राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-174/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 250/2015 में पारित आदेश दिनांक 02.11.2015 के विरूद्ध)
M/s SKODA AUTO INDIA PRIVATE LIMITED
A-1/1, MIDC, Five Star Industrial Area,
Aurangabad, Maharashtra
....................पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी संख्या-1
बनाम
1. RAMESH KUMAR GUPTA
S/O Sh. Shyam Sundar Gupta
R/o Plot No. 49, Shyam Nagar
Kalyanpur, Near Durga Mandir
Kalyanpur, Lucknow
2. Vishal Cars
C-1/19, Transportnagar, Fase-2
Amar Shaheed Path Lucknow
Through : Appropriate officer
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी तथा विपक्षी संख्या-2 समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री महेश चन्द्र, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री टी0एच0 नकवी,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री सर्वेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 30.11.2015
माननीय न्यायमूर्ति श्री वीरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा परिवाद संख्या-250/2015 रमेश कुमार गुप्ता बनाम स्कोडा आटो इंडिया व अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा दिनांक 02.11.2015 को पारित उक्त आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है जो निम्नवत् है:-
“विपक्षीगण को यह आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी की प्रश्नगत कार ठीक करा दें। जब तक विपक्षीगण उसके वाहन को ठीक
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कराकर नहीं देते हैं तब तक वैकल्पिक व्यवस्था के रुप में दूसरी कार उसे उपलब्ध करायें अथवा रू0 3000/-प्रतिदिन अंतरिम अनुतोष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किये जाने की तिथि से वाद के अंतिम निस्तारण तक अदा करें।
पत्रावली जवाबदावा हेतु नियत तिथि पर पेश हो।”
हमने श्री टी0एच0 नकवी विद्वान अधिवक्ता पुनरीक्षणकर्ता एवं श्री सर्वेश कुमार शर्मा विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी/परिवादी को सुना है और अभिलेख का अवलोकन किया है। प्रश्नगत आदेश के अवलोकन मात्र से यह स्पष्ट है कि परिवादी के वाहन को ठीक कराने तक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में दूसरी कार उपलब्ध कराए जाने अथवा 3000/-रू0 प्रतिदिन अंतरिम अनुतोष प्रदान किए जाने की कोई बाध्यता उभय पक्ष के मध्य वाहन के क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में दृष्टिगोचर नहीं होती है और ऐसा आदेश पारित किया जाना स्वत: ही ऐसा आदेश है जिसे विधिसम्मत आदेश नहीं कहा जा सकता है, परन्तु जहॉं तक परिवादी की प्रश्नगत कार ठीक कराकर दिए जाने का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में दो राय नहीं है कि प्रश्नगत कार को ठीक कराए जाने का दायित्व पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण का है। पुनरीक्षणकर्ता न ही तो यह स्पष्ट कर सके हैं कि उनके द्वारा वाहन को ठीक नहीं कराए जाने का क्या औचित्य है और न ही उनके द्वारा जिला फोरम के समक्ष गुणदोष पर कोई लिखित कथन ही प्रस्तुत किया गया है और न ही अंतरिम अनुतोष सम्बन्धी परिवादी के प्रार्थना पत्र पर कोई आपत्ति ही प्रस्तुत की गयी है। ऐसी स्थिति में हम इस पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र के सम्बन्ध में अधिक विवेचन न करते हुए न्यायहित में यह समीचीन पाते हैं कि पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र अंशत:
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स्वीकार किया जाने योग्य है और परिवादी का वाहन ठीक कराकर देने का दायित्व विपक्षीगण का है। तदनुसार प्रश्नगत आदेश को हम निम्नवत् संशोधित करते हुए यह पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार करते हैं।
आदेश
पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी/प्रत्यर्थी की प्रश्नगत कार को 15 दिन के अन्तर्गत ठीक करा दें। वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में दूसरी कार परिवादी को उपलब्ध कराए जाने अथवा 3000/-रू0 प्रतिदिन अंतरिम अनुतोष प्रदत्त किया जाने सम्बन्धी आदेश समाप्त किया जाता है।
(न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह) (महेश चन्द्र)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं०-1