(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1126/2007
अवध ग्रामीण बैंक (परिवर्तित नाम आर्यवर्त ग्रामीण बैंक) बनाम राम दीन पुत्र सहदेव चमार तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक : 19.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-284/2005, राम दीन बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, उन्नाव द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.4.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एच.के. श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.के. श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमित भैंस की मृत्यु पर अवशेष ऋण राशि वसूलने से विपक्षी सं0-2 बैंक को निषेधित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार अवध ग्रामीण बैंक से ऋण लेकर एक भैंस क्रय की गई थी, जिसका बीमा, विपक्षी सं0-1 बीमा कंपनी से कराया गया था तथा टैग नम्बर एनआईए 420200/4250 लगाया गया था, जिसकी मृत्यु दिनांक 10.1.2004 को हो गई। शव का परीक्षण चिकित्साधिकारी द्वारा किया गया तथा बैंक एवं बीमा कंपनी को सूचना दी गई, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा क्लेम निरस्त कर दिया गया।
4. बीमा कंपनी ने दिनांक 2.6.2003 से दिनांक 1.6.2006 तक की अवधि तक बीमा होना स्वीकार किया है, परन्तु कथन किया है कि भैंस की मृत्यु दिनांक 10.1.2004 को हुई, जबकि सूचना दिनांक 25.2.2004 को दी गई। बीमा कंपनी के इन्वेस्टिगेटर द्वारा यह रिपोर्ट दी गई कि भैंस की मृत्यु नहीं हुई है न ही कोई पोस्ट मार्टम हुआ है। बीमित भैंस का कोई इलाज नहीं कराया गया, इसी आधार पर बीमा क्लेम नहीं दिया गया।
5. विपक्षी सं0-2 बैंक का कथन है कि भैंस के कान में टैग नम्बर एनआईए 420200/4250 लगाया गया था। यह भी स्वीकार किया गया कि भैंस की मृत्यु की सूचना लिखित में प्राप्त हुई थी, उसी दिन बीमा कंपनी को सूचित कर दिया गया था।
-2-
6. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बीमित भैंस की मृत्यु हुई है तथा बैंक द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में कमी की गई है, क्योंकि बीमा कंपनी को समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, इसीलिए बैंक के विरूद्ध ऋण राशि न वसूलने का आदेश पारित किया गया।
7. बैंक द्वारा इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि बैंक के विरूद्ध पारित आदेश अनुचित है। परिवादी ने बैंक के विरूद्ध किसी प्रकार की सेवा में कमी का कोई उल्लेख नहीं किया है।
8. अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा पत्रावली का अवलोकन करने के पश्चात एक मात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या क्षतिपूर्ति की राशि अदा करने के लिए अपीलार्थी बैंक उत्तरदायी है। बैंक का कथन है कि परिवादी द्वारा भैंस की मृत्यु की सूचना दी गई थी तथा टैग भी प्रस्तुत किया गया था, जो बीमा कंपनी द्वारा लगाया गया था और बीमा कंपनी को सूचना अग्रसारित कर दी गई थी। यह भी कथन किया गया कि पशु चिकित्साधिकारी द्वारा शव का परीक्षण भी किया गया था, इसलिए बैंक के स्तर से सेवा में कमी साबित नहीं होती। बीमा कंपनी को देरी से सूचना देने का तात्पर्य यह नहीं है कि बीमा कंपनी अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाती है, क्योंकि बीमा कंपनी द्वारा इन्वेस्टीगेटर नियुक्त किया गया था। इन्वेस्टीगेटर द्वारा यह कथन किया गया था कि भैंस का पोस्ट मार्टम नहीं हुआ है, जबकि बैंक द्वारा लिखित कथन में कहा गया है कि भैंस का पोस्ट मार्टम पशु चिकित्साधिकारी द्वारा किया गया। यह भी लिखित कथन में कहा गया कि भैंस का इलाज नहीं हुआ। किसी पशु की मृत्यु से पूर्व उसका इलाज कराने का अवसर प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार किसी गांव वाले के बयान को विचार में नहीं लिया जा सकता। अत: इन्वेस्टीगेटर द्वारा दी गई रिपोर्ट अनुचित है इस रिपोर्ट के आधार पर बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम नकारने का निष्कर्ष अवैध है। अत: यह अपील स्वीकार होने तथा विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश परिवर्तित होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.04.2007 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि बीमा राशि की अदायगी का उत्तरदायित्व बीमा कंपनी पर है। अत: बीमा कंपनी बीमित राशि एवं उस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज की दर से ब्याज देय होगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
-3-
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2