Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/1669

N I A Co - Complainant(s)

Versus

Ramayan Chauhan - Opp.Party(s)

B P Dubey

25 Oct 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/1669
( Date of Filing : 08 Sep 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. N I A Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Ramayan Chauhan
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 25 Oct 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1669/2011

The New India Assurance Company Ltd.

Versus

Shri Ramayan Chauhan S/O Late Shri Bhaggal Chauhan

समक्ष:-                                                            

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

उपस्थिति:-

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री बी0पी0 दुबे, विद्धान अधिवक्‍ता

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री आमोद राठौर, विद्धान अधिवक्‍ता

दिनांक :25.10.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-23/2008, रमायन चौहान बनाम शाखा प्रबन्‍धक दि न्‍यू इण्डिया इंश्‍योरेंस कं0लि0 व अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, मऊ द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 06.08.2011 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोन किया गया।

2.         जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए बीमित वाहन की चोरी होने पर अंकन 4,77,650/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।

3.         परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी का कथन है कि वह गरीब असहाय अनपढ़ सीधा साधा कृषक है। उसकी मुलाकात विपक्षी संख्या 4 से हुई जिसने बताया कि वह ट्रैक्टर एजेंसी के एजेंट है और ऋण पर ट्रैक्टर दिलाता है। उसने परिवादी से भी लोन पर ट्रैक्टर दिलाने को कहा मार्च 2006 में परिवादी विपक्षी संख्या 2 बैंक पर गया जहां विपक्षी संख्या 4 उपस्थित था। उसने बैंक के फील्ड अफसर तथा विपक्षी संख्या 2 से मुलाकात करायी जिन्होंने लोन पर ट्रैक्टर दिलाये जाने की बात कही विपक्षी संख्या 4 और विपक्षी संख्या 2 के सामने परिवादी के अंगूठे, फार्म, स्टाम्प पेपर और सादे कागजों पर लिये गये तथा 30,000/- रू० नगद ले लिया गया और उसे 15 दिन बाद ट्रैक्टर देने को कहा जब परिवादी को ट्रैक्टर नहीं मिला तो वह विपक्षी संख्या 3 के एजेंसी पर गया और उससे ट्रैक्टर की बात की और फिर उसके पश्चात विपक्षी संख्या 4 के गांव पर गया और उसे मिलने पर ट्रैक्टर की बात कही तो उसने ट्रैक्टर परिवादी को नहीं दिया। विपक्षी संख्या 2 लगायत 4 लगातार हीला हवाली करते रहे। जिससे यह सम्‍भव प्रतीत होता है कि इन तीनों ने मिली भगत करके ट्रैक्टर एजेंसी से निकाल लिया और विपक्षी संख्या 4 ने उसे कहीं पर बेच दिया। विपक्षी संख्या 4 की शिकायत जब उसने विपक्षी संख्या 2 व 3 से की तो विपक्षी संख्या 2 ने अपने पास से ट्रैक्टर के कागज के कापी और बीमा का कागज दिया तब उसे ट्रैक्टर का नं० आदि पता लगा बारबार दौड़ने पर भी उसका ट्रैक्टर नहीं मिला तो उसने इसकी सूचना थाना घोसी और पुलिस अधीक्षक मऊ, जिलाधिकारी तथा नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी विपक्षी संख्या 1 को दी। कोई कार्यवाही न होने पर उसने न्यायालय में विपक्षी संख्या 4 के विरूद्ध एक मुकदमा भी दर्ज कराया जो लम्बित है। विपक्षी संख्या 1 ने पत्र द्वारा परिवादी से कागजों की मांग की जो कागज उसने पास उपलब्ध थे वे उसने विपक्षी संख्या 1 को दे दिये। चूंकि ट्रैक्टर बीमित था किन्तु उसके बावजूद भी विपक्षी संख्या 1 ने यह कहते हुये कि एफ० आई० आर० 379 में दर्ज नहीं है। उसका क्लेम निरस्त कर दिया और इस प्रकार विपक्षी संख्या 1 ने सेवा में कमी की है। विपक्षी संख्या 1 लगायत 4 ने धोखाधड़ी की है अतः परिवाद पत्र में अंकित धनराशि परिवादी को दिलायी जाय और नया ट्रैक्टर भी दिलाया जाय।

4.         विपक्षी स0 2 ने लिखित कथन में उल्‍लेख किया है कि उनके विरूद्ध योजित करने का अधिकार नहीं है। परिवादी को ट्रैक्‍टर की डिलीवरी हो चुकी है। परिवादी को 4,62,000/-रू0 का ऋण स्‍वीकार किया गया है। परिवादी द्वारा ट्रैक्‍टर का पंजीयन भी कराया गया है। ट्रैक्‍टर का बीमा न्‍यू  इंडिया इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड से कराया गया था। परिवादी ने ऋण खाते में एक भी रूपया जमा नहीं किया तथा ट्रैक्‍टर को 2,25,000/-रू0 मई 2006 में विक्रय कर दिया और पैसा प्राप्‍त कर लिया।

5.        विपक्षी सं0 1 बीमा कम्‍पनी का कथन है कि ट्रैक्‍टर कथित चोरी की सूचना दिनांक 25.11.2006 को आजमगढ़ कार्यालय से जारी हुई, जो परिवादी को दिनांक 27.11.2006 को प्राप्‍त हुई तब परिवादी से चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट, आर0सी0 तथा डी0एल0 की मांग की गयी, जिनके मिलने पर ज्ञात हुआ कि मामला धारा 420 के अंतर्गत बनता है। चोरी की कोई घटना नहीं हुई है यह ट्रैक्‍टर भी परिवादी के घर आया ही नहीं, इसलिए चोरी का कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता। तदनुसार बीमा क्‍लेम देय नहीं है।

6.        साक्ष्‍य की व्‍याख्‍या करते हुए जिला उपभोक्‍ता आयोग ने यह निष्‍कर्ष दिया है कि विपक्षी सं0 4 परिवादी के ट्रैक्‍टर को लेकर भाग गया। अत: यह मामला चोरी के अंतर्गत आता है और विपक्षी सं0 1 ने बीमा क्‍लेम ने देकर सेवा में कमी की है। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया है।

7.        अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने विधि-विरूद्ध निर्णय पारित किया है। ट्रैक्‍टर की चोरी होने का कोई सबूत नहीं है। इसके बावजूद चोरी की घटना मानते हुए निर्णय पारित किया है, जबकि परिवादी ट्रैक्‍टर अंकन 2,25,000/-रू0 मई 2006 में विक्रय कर चुका है, इसलिए विक्रय करने के पश्‍चात ट्रैक्‍टर की चोरी होने का कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता। प्रथम सूचना रिपोर्ट में चोरी की घटना दिनांक 27.03.2006 की बतायी गयी है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 21.04.2007 को दर्ज करायी गयी है, इसलिए कदाचित बीमा क्‍लेम देय नहीं है।

8.        परिवादी द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के निर्णय की पुष्टि की गयी। पक्षकारों द्वारा प्रस्‍तुत किये गये अभिवचनों तथा जिला उपभोक्‍ता  आयोग द्वारा पारित निर्णय के अवलोकन करने तथा पक्षकारों के अधिवक्‍ताओं की बहस सुनने के पश्‍चात इस अपील के विनिश्‍चय के लिए यह विनिश्‍चायक बिन्‍दु उत्‍पन्‍न होता है कि क्‍या बीमित ट्रैक्‍टर चोरी हुआ है यदि हां तब क्‍या चोरी की सूचना त्‍वरित रूप से दर्ज करायी गयी है?

9.                   द्वितीय विनिश्‍चायक बिन्‍दु यह उत्‍पन्‍न होता है कि क्‍या परिवादी द्वारा ट्रैक्‍टर विक्रय कर दिया गया है और तदनुसार विक्रय करने के पश्‍चात परिवादी बीमा क्‍लेम प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत नहीं है?

10.                दोनों विनिश्‍चायक बिन्‍दु एक-दूसरे के पूरक हैं। अत: दोनों निष्‍कर्ष एकसाथ दिया जाता है।

11.       परिवाद पत्र के प्रथम 5 पैरे के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी यह कहना चाहता है कि उसके साथ शाखा प्रबंधक एसबीआई तथा विपक्षी सं0 4 द्वारा धोखा किया गया है। पैरा सं0 6 में यह लिखा गया है कि विपक्षी सं0 4 एवं ट्रैक्‍टर का इंतजार किया, लेकिन वह ट्रैक्‍टर लेकर नहीं आया और न ही खबर दी। इसके पश्‍चात विपक्षी सं0 3 के एजेण्‍ट से जाकर पता किया तब भी विपक्षी सं0 4 वहां पर नहीं मिला। इसके बाद परिवादी विपक्षी गांव सूरपुर गया तब बताया कि ट्रैक्‍टर परिवादी के घर पहुंचा देंगे, लेकिन ट्रैक्‍टर परिवादी के घर नहीं पहुंचाया। इस प्रकार परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0 2 लगायत 4 ने धोखा-धड़ी करके ट्रैक्‍टर को गायब करवा दिया है। शिकायत करने पर विपक्षी सं0 2 ने कहा कि ट्रैक्‍टर का बीमा कराया गया है, इसलिए पैसा मिल जायेगा, चिंता की बात नहीं है। परिवादी साजिश के संबंध में महीनों दौड़-भाग करता रहा। इसके बाद दिनांक 07.10.2006 को पंजीकृत डाक से पुलिस को सूचना दी गयी। उपरोक्‍त  समस्‍त तथ्‍यों से यह आभास कदाचित नहीं मिलता कि परिवादी का ट्रैक्‍टर चोरी हुआ है और बीमा कम्‍पनी क्षतिपूर्ति के लिए उत्‍तरदायी है।

12.       परिवाद पत्र में ट्रैक्‍टर के क्रय करने, कीमत अदा करने का कोई भी उल्‍लेख नहीं है, परंतु पैरा सं0 4 के अवलोकन से ऐसा जाहिर होता है कि परिवादी अपने खेत की खतौनी लेकर मार्च 2006 में एसबीआई आया था। यह ट्रैक्‍टर कभी भी परिवादी के कब्‍जे में नहीं आया, इसलिए कभी भी चोरी नहीं हुआ, जैसा कि परिवाद के तथ्‍यों में उल्‍लेख है, बल्कि विक्रय करते समय से ही डीलर के पास ट्रैक्‍टर के होने के समय से ही विपक्षी सं0 4 इस ट्रैक्‍टर को अपने कब्‍जे मे लेने के प्रयास में लगा रहा और परिवादी को कभी भी ट्रैक्‍टर नहीं मिला यही कारण है कि परिवादी की शिकायत पर संबंधित मजिस्‍ट्रेट के न्‍यायालय ने अपराध सं0 317/07 धारा 419, 420, 467, 468 एवं 471 आईपीसी के अंतर्गत दर्ज किया है। चोरी के अंतर्गत अपराध दर्ज करने का आदेश पारित नहीं किया है। परिवाद में वर्णित तथ्‍यों से यथार्थ में चोरी का कोई मामला ही नहीं बनता।

13.       जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में ओरियण्‍टल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड बनाम रोहित कुमार गुप्‍ता में पारित निर्णय के आधार पर यह निष्‍कर्ष दिया है कि यदि किसी व्‍यक्ति को कोई सामान न्‍यास के रूप में दिया जाता है और वह लेकर भाग जाता है तब धारा 379 के अंतर्गत चोरी मानी जायेगी।

14.       भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 410 के अंतर्गत भी चोरी की परिभाषा में इस तथ्‍य का उल्‍लेख है कि न्‍यास भंग की सम्‍पत्ति भी चोरी की सम्‍पत्ति मानी जाती है, परंतु प्रस्‍तुत केस न्‍यास भंग की श्रेणी का नहीं है। यह ट्रैक्‍टर कभी परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी को प्राप्‍त नहीं हुआ, परिवादी ने स्‍वैच्‍छा से यह ट्रैक्‍टर किसी को सुपुर्द नहीं किया इसलिए धारा 379, 405, धारा 407 आईपीसी के तथ्‍य प्रस्‍तुत केस में मौजूद नहीं है।

15.      अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि परिवादी ने पीठ के समक्ष सही तथ्‍य वर्णित नहीं किया यथार्थ में उसके द्वारा ट्रैक्‍टर क्रय करने के पश्‍चात विक्रय कर दिया गया। विक्रय से संबंधित दस्‍तावेज एनेक्‍जर सं0 1 पत्रावली पर मौजूद है। शपथ पत्र पर रामायन चौहान ने अंकित किया है कि वाहन सं0 यू0पी0 54ई 8506 का वह मालिक है, जिस पर फाइनेंस कराया गया है, जो अजय कुमार तिवारी को 2,25,000/-रू0 में विक्रय कर दिया गया है। यह शपथ पत्र स्‍वयं परिवादी ने तैयार किया है, परंतु परिवाद पत्र में इस कथन का कोई उल्‍लेख नहीं किया। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादी येन-केन-प्रकारेण बीमा की राशि को हड़प करना चाहता है। वास्‍तविक तथ्‍यों को परिवाद में वर्णित नहीं किया। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने तथ्‍य, साक्ष्‍य एवं विधि की सही व्‍याख्‍या नहीं की। बीमा कम्‍पनी को उत्‍तरदायी ठहराने का आदेश अवैधानिक रूप से पारित किया गया है, जो अपास्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

                 अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है।

                प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

     

    

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2

   

 

 

 

 

         

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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