सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1031/2015
मैनेजर, संजीवनी कोल्ड स्टोरेजे एण्ड आइस फैक्ट्री, ग्राम रानऊ, पोस्ट शिकारपुर, जिला बुलन्दशहर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्~
श्रीपाल पुत्र श्री सूरज पाल, निवासी ग्राम नंगला दलपतपुर पोस्ट करौरा, जिला बुलन्दशहर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
एवं
अपील संख्या-1033/2015
मैनेजर, संजीवनी कोल्ड स्टोरेजे एण्ड आइस फैक्ट्री, ग्राम रानऊ, पोस्ट शिकारपुर, जिला बुलन्दशहर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्~
राम अवतार पुत्र श्री महावीर सिंह, निवासी ग्राम नंगला दलपतपुर पोस्ट करौरा, जिला बुलन्दशहर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
एवं
अपील संख्या-1035/2015
मैनेजर, संजीवनी कोल्ड स्टोरेजे एण्ड आइस फैक्ट्री, ग्राम रानऊ, पोस्ट शिकारपुर, जिला बुलन्दशहर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्~
विनोद कुमार पुत्र श्री झड़ी सिंह, निवासी ग्राम नंगला दलपतपुर पोस्ट करौरा, जिला बुलन्दशहर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
एवं
अपील संख्या-1036/2015
मैनेजर, संजीवनी कोल्ड स्टोरेजे एण्ड आइस फैक्ट्री, ग्राम रानऊ, पोस्ट शिकारपुर, जिला बुलन्दशहर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्~
मिन्टू राघव पुत्र श्री ओम प्रकाश राघव, निवासी ग्राम नंगला दलपतपुर पोस्ट करौरा, जिला बुलन्दशहर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
एवं
अपील संख्या-1037/2015
मैनेजर, संजीवनी कोल्ड स्टोरेजे एण्ड आइस फैक्ट्री, ग्राम रानऊ, पोस्ट शिकारपुर, जिला बुलन्दशहर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्~
देवराज सिंह पुत्र श्री अभिनन्दन सिंह निवासी ग्राम नंगला दलपतपुर पोस्ट करौरा, जिला बुलन्दशहर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अमित शुक्ला, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 23.05.2018
मा0 श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
उपरोक्त सभी अपीलें, अर्थात् अपील संख्या-1031/2015, 1033/2015, 1035/2015, 1036/2015 तथा अपील संख्या-1037/2015 विद्वान जिला फोरम, बुलन्दशहर द्वारा क्रमश: परिवाद संख्या-182/2013, 180/2013, 179/2013, 181/2013 तथा परिवाद संख्या-183/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28.04.2015 के विरूद्ध योजित की गयी हैं।
उपरोक्त सभी अपीलें एक ही प्रकृति की हैं। अत: सभी अपीलों का निस्तारण एक ही निर्णय/आदेश के द्वारा किया जा रहा है, इस हेतु अपील संख्या-1031/2015 अग्रणी अपील होगी।
अपील संख्या-1031/2015 से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 80 बोरी यानि 40 कुण्टल आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 01.04.2013 को भण्डारित किया था। परिवादी जब दिनांक 2 एवं 3.10.2013 को आलू लेने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि 4-5 दिन बाद कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाला जायेगा और जब 4-5 दिन बाद परिवादी विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में गया तो विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उसका आलू खराब हो गया है, इसलिए वह उसे आलू कहीं से खरीदकर वह दे देगा। परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षी से आलू मांगने पर विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू खरीदकर नहीं दिया गया। परिवादी को अपने आलू की बुआई हेतु 80 बोरा आलू मु0 84,000/- कहीं और से खरीदना पड़ा। अत: विपक्षी से आलू न मिलने के कारण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति पहुंची, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक परिवाद विद्वान जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया, जहां अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए मुख्यत: यह कथन कर स्वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा 80 बोरे आलू रखे गये थे, किन्तु विपक्षी के अनुसार उक्त आलू दागी व भीगा हुआ था। इसके अतिरिक्त परिवादी 2 व 3 अक्टूबर, 2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं गया था और न ही 7 अक्टूबर को आलू लेने गया। परिवादी दिनांक 24.10.2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने गया था और आलू निकलवाया गया तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी, इसलिए परिवादी ने आलू लेने से इंकार कर दिया गया और अनुचित दाम मांगने लगा। चूंकि आलू में नमी व मिट्टी लगी थी और वह भीगा हुआ था, इसलिए इसमें फंगस लग गयी थी, जिसके कारण उसमें क्षति हो गयी थी। मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में भारी नुकसान हुआ तथा अधिकांश आलू दागी हो गया और कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। परिवादी का 80 से 85 प्रतिशत आलू सही दशा में था और बोने हेतु उचित था, लेकिन इसके बाद भी परिवादी ने आलू गांव के अन्य लोगों के बहकावे में आकर नहीं उठाया। परिवादी द्वारा आलू न उठाये जाने के कारण इसमें गलाव उत्पन्न होना शुरू हो गया, जिस कारण से विपक्षी ने नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में परिवादी के आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाल दिया। परिवादी की लापरवाही से उसके आलू खराब हुए हैं, जिस कारण से विपक्षी स्वंय क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 28.04.2015 को परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया गया कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर मु0 80,000/- रू0 आलू के नुकसान के मद में बतौर क्षतिपूर्ति मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से तायोम अदायगी तथा रू0 2,000/- वाद व्यय अदा करें।
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील संख्या-1031/2015 मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वंय आलू को कोल्ड स्टोरेज से लेने से इंकार कर दिया गया था। यद्यपि अपीलार्थी द्वारा इस संबंध में परिवादी/प्रत्यर्थी को अनेको बार आलू ढ़ोने हेतु सूचित किया गया था, किन्तु उसके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है, इसके बावजूद भी विद्वान जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय/आदेश गलत आधारों पर पारित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील संख्या-1033/2015 से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 20 बोरी यानि 10 कुण्टल आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 01.04.2013 को भण्डारित किया था। परिवादी जब दिनांक 2 एवं 3.10.2013 को आलू लेने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि 4-5 दिन बाद कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाला जायेगा और जब 4-5 दिन बाद परिवादी विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में गया तो विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उसका आलू खराब हो गया है, इसलिए वह उसे आलू कहीं से खरीदकर वह दे देगा। परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षी से आलू मांगने पर विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू खरीदकर नहीं दिया गया। परिवादी को अपने आलू की बुआई हेतु 20 बोरा आलू मु0 21,000/- कहीं और से खरीदना पड़ा। अत: विपक्षी से आलू न मिलने के कारण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति पहुंची, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक परिवाद विद्वान जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया, जहां अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए मुख्यत: यह कथन कर स्वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा 20 बोरे आलू रखे गये थे, किन्तु विपक्षी के अनुसार उक्त आलू दागी व भीगा हुआ था। इसके अतिरिक्त परिवादी 2 व 3 अक्टूबर, 2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं गया था और न ही 7 अक्टूबर को आलू लेने गया। परिवादी दिनांक 24.10.2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने गया था और आलू निकलवाया गया तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी, इसलिए परिवादी ने आलू लेने से इंकार कर दिया गया और अनुचित दाम मांगने लगा। चूंकि आलू में नमी व मिट्टी लगी थी और वह भीगा हुआ था, इसलिए उसमें फंगस लग गयी थी, जिसके कारण उसमें क्षति हो गयी थी। मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में भारी नुकसान हुआ तथा अधिकांश आलू दागी हो गये और कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। परिवादी का 80 से 85 प्रतिशत आलू सही दशा में था और बोने हेतु उचित था, लेकिन इसके बाद भी परिवादी ने आलू गांव के अन्य लोगों के बहकावे में आकर नहीं उठाया। परिवादी द्वारा आलू न उठाये जाने के कारण इसमें गलाव उत्पन्न होना शुरू हो गया, जिस कारण से विपक्षी ने नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में परिवादी के आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाल दिया। परिवादी की लापरवाही से उसके आलू खराब हुए हैं, जिस कारण से विपक्षी स्वंय क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 28.04.2015 को परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया गया कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर मु0 20,000/- रू0 आलू के नुकसान के मद में बतौर क्षतिपूर्ति मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से तायोम अदायगी तथा रू0 2,000/- वाद व्यय अदा करें।
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील संख्या-1033/2015 मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वंय आलू को कोल्ड स्टोरेज से लेने से इंकार कर दिया गया था। यद्यपि अपीलार्थी द्वारा इस संबंध में परिवादी/प्रत्यर्थी को अनेको बार आलू ढ़ोने हेतु सूचित किया गया था, किन्तु उसके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है, इसके बावजूद भी विद्वान जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय/आदेश गलत आधारों पर पारित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील संख्या-1035/2015 से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 80 बोरी यानि 40 कुण्टल आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 02.04.2013 को भण्डारित किया था। परिवादी जब दिनांक 2 एवं 3.10.2013 को आलू लेने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि 4-5 दिन बाद कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाला जायेगा और जब 4-5 दिन बाद परिवादी विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में गया तो विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उसका आलू खराब हो गया है, इसलिए वह उसे आलू कहीं से खरीदकर वह दे देगा। परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षी से आलू मांगने पर विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू खरीदकर नहीं दिया गया। परिवादी को अपने आलू की बुआई हेतु 80 बोरा आलू मु0 82,950/- कहीं और से खरीदना पड़ा। अत: विपक्षी से आलू न मिलने के कारण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति पहुंची, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक परिवाद विद्वान जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया, जहां अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए मुख्यत: यह कथन कर स्वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा 80 बोरे आलू रखे गये थे, किन्तु विपक्षी के अनुसार उक्त आलू दागी व भीगा हुआ था। इसके अतिरिक्त परिवादी 2 व 3 अक्टूबर, 2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं गया था और न ही 7 अक्टूबर को आलू लेने गया। परिवादी दिनांक 24.10.2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने गया था और आलू निकलवाया गया तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी, इसलिए परिवादी ने आलू लेने से इंकार कर दिया गया और अनुचित दाम मांगने लगा। चूंकि आलू में नमी व मिट्टी लगी थी और वह भीगा हुआ था, इसलिए इसमें फंगस लग गयी थी, जिसके कारण उसमें क्षति हो गयी थी। मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में भारी नुकसान हुआ तथा अधिकांश आलू दागी हो गया और कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। परिवादी का 80 से 85 प्रतिशत आलू सही दशा में था और बोने हेतु उचित था, लेकिन इसके बाद भी परिवादी ने आलू गांव के अन्य लोगों के बहकावे में आकर नहीं उठाया। परिवादी द्वारा आलू न उठाये जाने के कारण इसमें गलाव उत्पन्न होना शुरू हो गया, जिस कारण से विपक्षी ने नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में परिवादी के आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाल दिया। परिवादी की लापरवाही से उसके आलू खराब हुए हैं, जिस कारण से विपक्षी स्वंय क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 28.04.2015 को परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया गया कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर मु0 79,000/- रू0 आलू के नुकसान के मद में बतौर क्षतिपूर्ति मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से तायोम अदायगी तथा रू0 2,000/- वाद व्यय अदा करें।
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील संख्या-1035/2015 मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वंय आलू को कोल्ड स्टोरेज से लेने से इंकार कर दिया गया था। यद्यपि अपीलार्थी द्वारा इस संबंध में परिवादी/प्रत्यर्थी को अनेको बार आलू ढ़ोने हेतु सूचित किया गया था, किन्तु उसके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है, इसके बावजूद भी विद्वान जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय/आदेश गलत आधारों पर पारित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील संख्या-1036/2015 से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 46 बोरी यानि 23 कुण्टल आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 01.04.2013 को भण्डारित किया था। परिवादी जब दिनांक 2 एवं 3.10.2013 को आलू लेने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि 4-5 दिन बाद कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाला जायेगा और जब 4-5 दिन बाद परिवादी विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में गया तो विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उसका आलू खराब हो गया है, इसलिए वह उसे आलू कहीं से खरीदकर वह दे देगा। परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षी से आलू मांगने पर विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू खरीदकर नहीं दिया गया। परिवादी को अपने आलू की बुआई हेतु 46 बोरा आलू मु0 48,300/- कहीं और से खरीदना पड़ा। अत: विपक्षी से आलू न मिलने के कारण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति पहुंची, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक परिवाद विद्वान जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया, जहां अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए मुख्यत: यह कथन कर स्वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा 46 बोरे आलू रखे गये थे, किन्तु विपक्षी के अनुसार उक्त आलू दागी व भीगा हुआ था। इसके अतिरिक्त परिवादी 2 व 3 अक्टूबर, 2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं गया था और न ही 7 अक्टूबर को आलू लेने गया। परिवादी दिनांक 24.10.2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने गया था और आलू निकलवाया गया तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी, इसलिए परिवादी ने आलू लेने से इंकार कर दिया गया और अनुचित दाम मांगने लगा। चूंकि आलू में नमी व मिट्टी लगी थी और वह भीगा हुआ था, इसलिए इसमें फंगस लग गयी थी, जिसके कारण उसमें क्षति हो गयी थी। मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में भारी नुकसान हुआ तथा अधिकांश आलू दागी हो गया और कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। परिवादी का 80 से 85 प्रतिशत आलू सही दशा में था और बोने हेतु उचित था, लेकिन इसके बाद भी परिवादी ने आलू गांव के अन्य लोगों के बहकावे में आकर नहीं उठाया। परिवादी द्वारा आलू न उठाये जाने के कारण इसमें गलाव उत्पन्न होना शुरू हो गया, जिस कारण से विपक्षी ने नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में परिवादी के आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाल दिया। परिवादी की लापरवाही से उसके आलू खराब हुए हैं, जिस कारण से विपक्षी स्वंय क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 28.04.2015 को परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया गया कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर मु0 46,000/- रू0 आलू के नुकसान के मद में बतौर क्षतिपूर्ति मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से तायोम अदायगी तथा रू0 2,000/- वाद व्यय अदा करें।
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील संख्या-1036/2015 मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वंय आलू को कोल्ड स्टोरेज से लेने से इंकार कर दिया गया था। यद्यपि अपीलार्थी द्वारा इस संबंध में परिवादी/प्रत्यर्थी को अनेको बार आलू ढ़ोने हेतु सूचित किया गया था, किन्तु उसके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है, इसके बावजूद भी विद्वान जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय/आदेश गलत आधारों पर पारित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील संख्या-1037/2015 से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने 30 बोरी यानि 15 कुण्टल आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में दिनांक 13.03.2013 को भण्डारित किया था। परिवादी जब दिनांक 2 एवं 3.10.2013 को आलू लेने विपक्षी के पास गया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि 4-5 दिन बाद कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाला जायेगा और जब 4-5 दिन बाद परिवादी विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में गया तो विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि उसका आलू खराब हो गया है, इसलिए वह उसे आलू कहीं से खरीदकर वह दे देगा। परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षी से आलू मांगने पर विपक्षी द्वारा परिवादी को आलू खरीदकर नहीं दिया गया। परिवादी को अपने आलू की बुआई हेतु 30 बोरा आलू मु0 31,000/- कहीं और से खरीदना पड़ा। अत: विपक्षी से आलू न मिलने के कारण परिवादी को आर्थिक व मानसिक क्षति पहुंची, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक परिवाद विद्वान जिला फोरम के समक्ष दायर किया गया, जहां अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए मुख्यत: यह कथन कर स्वीकार किया गया कि परिवादी द्वारा 30 बोरे आलू रखे गये थे, किन्तु विपक्षी के अनुसार उक्त आलू दागी व भीगा हुआ था। इसके अतिरिक्त परिवादी 2 व 3 अक्टूबर, 2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं गया था और न ही 7 अक्टूबर को आलू लेने गया। परिवादी दिनांक 24.10.2013 को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने गया था और आलू निकलवाया गया तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी, इसलिए परिवादी ने आलू लेने से इंकार कर दिया गया और अनुचित दाम मांगने लगा। चूंकि आलू में नमी व मिट्टी लगी थी और वह भीगा हुआ था, इसलिए इसमें फंगस लग गयी थी, जिसके कारण उसमें क्षति हो गयी थी। मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में भारी नुकसान हुआ तथा अधिकांश आलू दागी हो गया और कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। परिवादी का 80 से 85 प्रतिशत आलू सही दशा में था और बोने हेतु उचित था, लेकिन इसके बाद भी परिवादी ने आलू गांव के अन्य लोगों के बहकावे में आकर नहीं उठाया। परिवादी द्वारा आलू न उठाये जाने के कारण इसमें गलाव उत्पन्न होना शुरू हो गया, जिस कारण से विपक्षी ने नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में परिवादी के आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकाल दिया। परिवादी की लापरवाही से उसके आलू खराब हुए हैं, जिस कारण से विपक्षी स्वंय क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 28.04.2015 को परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया गया कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर मु0 30,000/- रू0 आलू के नुकसान के मद में बतौर क्षतिपूर्ति मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दावा दायर करने की तिथि से तायोम अदायगी तथा रू0 2,000/- वाद व्यय अदा करें।
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपील संख्या-1037/2015 मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वंय आलू को कोल्ड स्टोरेज से लेने से इंकार कर दिया गया था। यद्यपि अपीलार्थी द्वारा इस संबंध में परिवादी/प्रत्यर्थी को अनेको बार आलू ढ़ोने हेतु सूचित किया गया था, किन्तु उसके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। इस प्रकार अपीलार्थी द्वारा कोई भी सेवा में कमी नहीं की गयी है, इसके बावजूद भी विद्वान जिला फोरम द्वारा प्रश्नगत निर्णय/आदेश गलत आधारों पर पारित किया गया है, जो कि निरस्त किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अमित शुक्ला तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा उपस्थित आये। उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
उपरोक्त सभी अपीलों में यह तथ्य निर्विवादित है कि परिवादीगण द्वारा अपीलार्थी, कोल्ड स्टोरेज में अपने आलू बीज भण्डारित किये गये थे। विवादित बिन्दु यह है कि अपीलार्थी के अनुसार परिवादीगण विपक्षी/अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में आलू लेने नहीं आये और जब वे आलू लेने आये तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की ही क्षति हुई थी शेष आलू का बीज सही था, किन्तु परिवादीगण द्वारा आलू लेने से इंकार कर दिया गया। अपीलार्थी की ओर से यह भी बिन्दु उठाया गया कि परिवादीगण के आलू में नमी व मिट्टी लगी होने के कारण उसमें फंगस लग गयी थी, जिस कारण से आलू में क्षति हो गयी थी, अत: अपीलार्थी आलू की क्षति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। परिवादीगण के अनुसार अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में जब वे आलू लेने गये तो आलू खराब हो चुका था और अपीलार्थी/विपक्षी ने बाद में आलू खरीदकर देने हेतु कहा था, किन्तु आलू खरीदकर न दिये जाने के कारण अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
अब यह देखा जाना है कि क्या परिवादीगण के आलू बीज भण्डारित किये जाने के समय दागी व भीगे होने के कारण उसमें फंगस लग गयी थी, जिस कारण से वह खराब हो गये थे, जिसके लिए अपीलार्थी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, यदि हां तो उसका प्रभाव। इसके अतिरिक्त यह भी देखा जाना है कि क्या परिवादीगण के द्वारा भण्डारित किये गये आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में खराब हो गये थे और अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादीगण के आलू न लौटाकर सेवा में कमी की गयी है या नहीं। यदि हां तो उसका प्रभाव।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बहस के दौरान यह तर्क किया गया कि कोल्ड स्टोरेज में एक कृषक द्वारा ही अपने आलू को भण्डारित करने पर उसे उपभोक्ता माना जा सकता है किसी अन्य व्यक्ति को नहीं, जो कि आलू को भविष्य में बेंचकर उसका व्यापार करे। अपीलार्थी के अनुसार परिवादीगण ने अपने को कहीं भी कृषक नहीं बताया है, इसलिए वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं, जिस कारण से प्रश्नगत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत चलने योग्य नहीं थे।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के उपरोक्त तर्क में हम कोई बल नहीं पाते हैं, क्योंकि सर्वप्रथम विपक्षी/अपीलार्थी ने अपने प्रतिवाद पत्र में कहीं भी इस बिन्दु को नहीं उठाया है कि परिवादीगण कृषक नहीं थे, अत: उसका परिवाद चलने योग्य नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र की धारा-7 में यह भी कथन किया गया है कि मार्च 2013 में भारी वर्षा और ओला वृष्टि होने के कारण आलू की फसल में नुकसान हुआ था और '' कृषकों द्वारा दागी व भीगा हुआ आलू भण्डारित कर दिया गया। '' यहीं नहीं धारा-8 में विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा यह कथन किया गया है कि 80 से 85 प्रतिशत आलू बीज सही दशा में था और बोने हेतु उचित दशा मे था। विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा प्रतिवाद पत्र की धारा-7 व 8 के उपरोक्त कथनों से यह स्पष्ट है कि परिवादीगण ने कृषकों की तरह से ही आलू के बीज को बोने के लिए विपक्षी/अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित किये थे, अत: स्पष्टत: परिवादीगण कृषक थे और विपक्षी/अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में आलू भण्डारित करने के आधार पर वे उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं।
इसके अतिरिक्त अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने एक अन्य तर्क बहस के दौरान यह भी किया कि परिवादीगण द्वारा आलू बीज भण्डारित करने के किराये का भुगतान विपक्षी को नहीं किया गया और चूंकि वस्तुत: अपीलार्थी/विपक्षी को आलू को भण्डारित करने के संबंध में कोई भी प्रतिफल परिवादीगण द्वारा नहीं दिया गया, इसलिए वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। अपीलार्थी के उपरोक्त तर्क में भी कोई बल नहीं है, क्योंकि सर्वप्रथम विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र में यह कहीं भी तथ्य नहीं लिया गया है कि परिवादीगण द्वारा आलू भण्डारित करने के संबंध में कोई भी भुगतान विपक्षी/अपीलार्थी को नहीं किया गया था। इसके अतिरिक्त यह तो स्वीकृत तथ्य है कि परिवादीगण द्वारा किराया तय होने के आधार पर ही आलू भण्डारित किया गया था और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 क्लॉज 1 क्लॉज D के अनुसार '' किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है '' तो ऐसा व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। इस प्रकरण में भी यदि भुगतान नहीं किया गया है तो भी भुगतान का वचन दिया गया है, जो एक स्वीकृत तथ्य है। अत: परिवादीगण उपरोक्त कारण से उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं।
अब इस प्रकरण के मुख्य बिन्दुओं पर आते हैं क्या परिवादीगण के आलू बीज भण्डारित किये जाने के समय दागी व भीगे होने के कारण उसमें फंगस लग गयी थी, जिस कारण से वह खराब हो गये थे, जिसके लिए अपीलार्थी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, यदि हां तो उसका प्रभाव। इसके अतिरिक्त यह भी देखा जाना है कि क्या परिवादीगण के द्वारा भण्डारित किये गये आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में खराब हो गये थे, जिस कारण से अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है या नहीं। यदि हां तो उसका प्रभाव।
इस संबंध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया है कि जो आलू परिवादीगण द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित किये गये थे, वे दागी और भीगे होने के कारण उसमें फंगस लग गयी थी, जिस कारण से उसमें क्षति हुई थी, जिसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी जिम्मेदार नहीं हैं, किन्तु इस संबंध में उल्लेखनीय है कि यदि परिवादीगण के उपरोक्त आलू दागी और भीगे थे तो उन्हें विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपने कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित नहीं करना चाहिये था। इसके अतिरिक्त स्वंय विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र में यह कथन किया गया है कि जब परिवादीगण आलू लेने आये तो उसमें 15 से 20 प्रतिशत की क्षति थी और शेष 80 से 85 प्रतिशत आलू बीज बोने हेतु उचित दशा में था। यहां पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब भण्डारित करने के लगभग 06 माह बाद भी विपक्षी/अपीलार्थी के अनुसार आलू 80 से 85 प्रतिशत बोने हेतु उचित दशा में था तो स्पष्ट है कि जिस समय आलू बीज भण्डारित किया गया उस समय आलू में किसी भी प्रकार की कमी होना या आलू खराब होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। स्पष्टत: अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त कथन कि आलू दागी व भीगा होने के कारण खराब हो गया था, उसके भुगतान से बचने के लिए दिया गया है। अपीलार्थी के द्वारा यह भी कथन किया गया है कि परिवादीगण जब आलू लेने आये तो आलू 80 से 85 प्रतिशत सही दशा में था, किन्तु परिवादीगण ने उक्त आलू लेने से इंकार कर दिया गया, जबकि परिवादीगण के अनुसार जो आलू उनके द्वारा भण्डारित किये गये थे, वह सब खराब हो चुके थे, इसलिए उसको लेने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। स्वंय अपीलार्थी के अनुसार 15 से 20 प्रतिशत आलू के बीज दिनांक 24.10.2013 को ही खराब हो चुके थे और शेष आलू अपीलार्थी के कथनानुसार परिवादीगण द्वारा आलू न लिये जाने पर उनके द्वारा नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में आलू को कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकलवा दिया गया था। उपरोक्त तथ्य यह स्पष्ट करता है कि वस्तुत: परिवादीगण के आलू पूर्णतया खराब हो चुके थे, जिस कारण से ही परिवादीगण द्वारा आलू नहीं लिये गये थे और इस कारण से ही स्वंय अपीलार्थी द्वारा ही उपरोक्त आलू अपने कोल्ड स्टोरेज से बाहर कर दिये गये थे। अत: यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि परिवादीगण द्वारा जो आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित किये गये थे, जिन्हें परिवादीगण को बीज की तरह से फसल के समय वापस प्राप्त करना था, वे खराब होने के कारण उन्हें वापस प्राप्त नहीं कर सका, जिस कारण से उन्हें नि:संदेह आर्थिक क्षति हुई है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी किये जाने के कारण विद्वान जिला फोरम द्वारा जो प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किये गये हैं, उसमें किसी भी प्रकार की कोई विधिक त्रुटि होना दृष्टिगत नहीं होती है। तदनुसार उपरोक्त सभी अपीलें निरस्त किये जाने योग्य हैं।
आदेश
उपरोक्त सभी अपीलें, अर्थात् अपील संख्या-1031/2015, 1033/2015, 1035/2015, 1036/2015 तथा अपील संख्या-1037/2015 निरस्त की जाती हैं।
पक्षकारान अपना अपना अपीलीय व्यय भार स्वंय वहन करेंगें।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-1031/2015 में रखी जाये एवं इसकी एक-एक सत्य प्रतिलिपि संबंधित अपीलों में भी रखी जाये।
(विजय वर्मा) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2