जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी...................वरि.सदस्या
पुरूशोत्तम सिंह..............................................सदस्य
उपभोक्ता वाद संख्या-314/2013
श्रीमती गुड्डी देवी पत्नी स्व0 राम प्रसाद यादव निवासिनी-35 बी आजाद नगर पहलवान पुरवा, कानपुर नगर।
................परिवादिनी
बनाम
1. रामाशिव सुपर स्पेषलिटी हास्पिटल 7/200 स्वरूप नगर कानपुर नगर।
2. डा0 नीरज श्रीवास्तव, (सर्जन हैलट अस्पताल) द्वारा रामाशिव सुपर स्पेषलिटी हास्पिटल 7/200 स्वरूप नगर कानपुर नगर।
3. डा0 सुनीता श्रीवास्तव सर्जन रामाशिव सुपर स्पेषलिटी हास्पिटल 7/200 स्वरूप नगर कानपुर नगर।
...........विपक्षीगण
परिवाद दाखिल होने की तिथिः 11.06.2013
परिवाद निर्णय की तिथिः 01.10.2015
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत परिवाद पत्र इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादिनी के साथ विपक्षीगण द्वारा चिकित्सा में की गयी कमी के कारण परिवादिनी को रू0 1,00,000.00 क्षतिपूर्ति के रूप में तथा रू0 5,00,000.00 मानसिक पीड़ा के लिए दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का संक्षेप में यह कथन है कि परिवादिनी पेट दर्द की बीमारी के चलते उपरोक्त अस्पताल में दिनांक 04.03.13 को भर्ती हुई थी। जहां पर अल्ट्रासाउण्ड की जांचोपरान्त डा0 नीरज श्रीवास्तव ने परिवादिनी के पित्त में पथरी होना बताया गया। डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं अस्पताल के लोगों की सलाह के अनुसार परिवादिनी एवं परिवादिनी के परिवार के अन्य सदस्यों ने आॅपरेषन की अनुमति दे दी। परिवादिनी के पुत्र प्रमोद ने अनुमति पत्र पर हस्ताक्षर किये। दिनांक
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05.03.13 को 4ः30 बजे षाम परिवादिनी को आपरेषन थियेटर से बाहर निकाला गया और डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं अस्पताल प्रबन्धन के द्वारा परिवादिनी का आपरेषन सफल होना बताया गया। दिनांक 07.03.13 को परिवादिनी को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया और दिनांक 14.03.13 को टांके काटने के लिए बुलाया गया। दिनांक 14.03.13 को परिवादिनी के घाव की पट्टी खोलने के बाद देखा कि परिवादिनी का घाव पूरी तरह से पक गया है और परिवादिनी के दर्द की तकलीफ में कोई आराम नहीं हुआ। वहां पर विपक्षी सं0-2 के द्वारा पुनः यह आष्वासन दिया गया कि आपरेषन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की गयी और पित्त की पथरी को निकाल दिया गया है। षीघ्र ही आराम मिल जायेगा। परिवादिनी के आपरेषन व इलाज के समस्त खर्चे दि न्यू इण्डिया इष्ंयोरेन्स कंपनी लि0 द्वारा मेडिक्लेम पाॅलिसी नं0-एम0ए0-आई0डी0 नं0-5007435947 एम्पलाई नं0-एस.एस.ए.-16 के द्वारा किया गया है। परिवादिनी के लड़कों को यह कहने पर कि इलाज व आपरेषन डा0 नीरज श्रीवास्तव द्वारा किया गया है, लेकिन डा0 नीरज श्रीवास्तव सर्जन का नाम काटकर डा0 सुनीता श्रीवास्तव क्यों लिखा गया है। इस पर भी अस्पताल प्रबन्धन के द्वारा कोई संतोशजनक उत्तर नहीं दिया है। परिवादिनी की तकलीफ और ज्यादा बढ़ जाने के कारण दिनांक 20.04.13 को परिवादिनी का विकास डाग्नोस्टिक्स, से पुनः परिवादिनी के पेट का सी.टी. स्कैन हुआ। सी.टी. स्कैन की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि परिवादिनी के आप्रेषन में पित्त से किसी भी प्रकार की पथरी आदि को नहीं निकाला गया है, मात्र पेट में चीरा लगाकर वापस सिल दिया गया है। क्योंकि अल्ट्रासाउण्ड की रिपोर्ट से ही विपक्षीगण को यह मालूम हो गया था कि परिवादिनी को कैंसर है और परिवादिनी के पित्ताषय में कई पथरियाॅं हैं। उपरोक्त पथरियों के कारण षरीर के अंदर के कई अंग जैसे लीवर, अग्नाषय आदि आपस में इस तरह जटिल हो गये हैं कि वहां से पथरियों को आपरेट कर बाहर निकालना मुष्किल है। यदि आपे्रषन करके पथरियों को निकाला जाता तो परिवादिनी की मृत्यु हो जाती। इस प्रकार जानबूझकर परिवादिनी का पेट विपक्षी सं0-2 के द्वारा
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चीरा गया और साषय अतिरिक्त दर्द दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवादिनी को विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से ही विपक्षी सं0-2 डा0 नीरज श्रीवास्तव के द्वारा देखा गया एवं अस्पताल के प्रबन्धन के सहयोग व साजिष से परिवादिनी का पेट काटा गया। आपरेषन नोट में सर्जन नेम के स्थान पर डा0 नीरज श्रीवास्तव का नाम ही अंकित है तथा आपरेषन भी डा0 नीरज श्रीवास्तव के द्वारा किया गया है। परन्तु डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं अस्पताल के मालिकों एवं डा0 सुनीता श्रीवास्तव की मिली भगत से कुछ कागजातों पर सर्जन के नाम की जगह पर डा0 सुनीता श्रीवास्तव का नाम अंकित किया गया है, जो स्पश्ट रूप से यह दर्षाता है कि विपक्षीगणों के द्वारा एक साजिष के तहत एक राय होकर परविादिनी के आपरेषन के नाम पर मेडीक्लेम पाॅलिसी का पैसे हड़प् करने तथा परिवादिनी को धोख देने की नियत से चिकित्सा व्यवसाय के सिद्धांतों के विरूद्ध जाकर उपरोक्त गैरकानूनी कृत्य किया गया और सेवा में भारी कमी कारित की गयी। फलस्वरूप परिवादिनी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी सं0-1 की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये परिवाद पत्र में अंकित तथ्यों का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि दौरान आपरेषन यह पाया गया कि गालब्लैडर, लिवर की खून की नली द्वारा पूरी तरह से घिरा हुआ था, जिसको निकालने से मरीज की जान भी जा सकती थी, जिसे परिवादिनी व उसके तीमारदारों को भली-भाॅति बतायी गयी थी। यह तथ्य सर्जन द्वारा आॅपरेषन नोट में भी दर्षाया गया है। परिवादिनी द्वारा कतिपय तथ्य परिवाद को रंगत देने के लिए उल्लिखित किये गये हैं। मरीज का बीमा दि न्यू इण्डिया एष्योरेन्स से था। मरीज के ही अनुरोध पर बीमा कंपनी द्वारा रू0 23030.00 का भुगतान किया गया था। परिवादिनी का इलाज डा0 सुनीता श्रीवास्तव सर्जन द्वारा ही किया गया था। डा0 सुनीता श्रीवास्तव, डा0 नीरज श्रीवास्तव की पत्नी हैं। लिपिकीय त्रुटि से डा0 सुनीता श्रीवास्तव की जगह डा0 नीरज श्रीवास्तव लिख गया था, जिसे हटा
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दिया गया था। अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट में कैंसर की कोई रिपोर्ट नहीं थी, बल्कि आपरेट करने के दौरान ही इस बात का पता चला था कि गाल ब्लैडर लिवर खून की नली द्वारा पूरी तरह से घिरा हुआ था एवं उक्त अवस्था में गालब्लैडर को अलग कर निकालने से मरीज जिसकी उम्र 66 वर्श है, की जान को खतरा हो सकता था एवं उक्त तथ्य को भली-भाॅति मरीज व परिजन व तीमारदारों को अवगत करा दिया गया था। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अनुचित धन लाभ हेतु दाखिल किया गया है। अतः परिवाद पत्र निरस्त किया जाये।
4. परिवाद योजित होने के पष्चात विपक्षी सं0-2 व 3 को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी, लेकिन पर्याप्त अवसर दिये जाने के बावजूद भी विपक्षी सं0-2 व 3 फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं आये। अतः विपक्षी सं0-2 व 3 पर पर्याप्त तामीला मानते हुए दिनांक 13.01.14 को विपक्षी सं0-2 व 3 के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही किये जाने का आदेष पारित किया गया।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 11.06.13, 09.04.14 व 03.11.14 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट की प्रति, केस षीट की प्रति, आपरेषन नोट की प्रति, टेस्ट रिपोर्ट की प्रति, डिस्चार्ज कार्ड की प्रति, सी.टी. स्कैन रिपोर्ट की प्रति, नोटिस की प्रति, रजिस्ट्री रसीद की प्रति, मेडीक्लेम पाॅलिसी की प्रति, समाचार पत्र के प्रकाषन की प्रति,
विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी सं0-1 ने अपने कथन के समर्थन में डा0 ए.के. सिंह का षपथपत्र दिनांकित 22.06.15 दाखिल किया है।
निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक परिषीलन किया गया।
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उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से विदित होता है कि परिवादिनी का प्रमुख तर्क यह है कि विपक्षी सं0-2 डा0 नीरज श्रीवास्तव के द्वारा उसके चिकित्सा में लापरवाही की गयी। परिवादिनी पेट के दर्द की बीमारी के चलते विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में दिनांक 04.03.13 को भर्ती हुई थी। जहां पर परिवादिनी का अल्ट्रासाउण्ड किया गया और डा0 नीरज श्रीवास्तव के द्वारा परिवादिनी के अल्ट्रासाउण्ड के जांचोपरान्त परिवादिनी के पित्त में पथरी होना बताया गया। जांचोपरान्त डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं अस्पताल प्रबन्धन के द्वारा दी गयी राय पर परिवादिनी के पुत्र प्रमोद के द्वारा सहमति पत्र पर आपरेषन के लिए हस्ताक्षर कर दिये गये। दिनांक 05.03.13 को आपरेषन के उपरान्त डा0 नीरज श्रीवास्तव एवं अस्पताल प्रबन्धन के द्वारा परिवादिनी का आपरेषन सफल होना बताया गया। दिनांक 07.03.13 को परिवादिनी को डिस्चार्ज कर दिया गया और दिनांक 14.03.13 को टांके काटने के लिए बुलाया गया। दिनांक 14.03.13 को परिवादिनी का घाव पूरी तरह से पक गया था और दर्द में कोई आराम नहीं था। दिनांक 14.03.13 को ही विपक्षी सं0-2 डा0 नीरज श्रीवास्तव के द्वारा परिवादिनी को यह बताया गया कि उसके पित्त की पथरी निकाल दी गयी है, कुछ दिन में ठीक हो जायेगी। किन्तु परिवादिनी की तकलीफ ज्यादा बढ़ जाने के कारण परिवादिनी ने दिनांक 20.04.13 को विकास डाग्नोस्टिक्स सेंटर में पेट का पुनः सी.टी. स्कैन कराया, जिससे परिवादिनी को ज्ञात हुआ कि पित्त से पथरी नहीं निकाली गयी है। मात्र पेट में चीरा लगाकर वापस सिल दिया गया है। क्योंकि अल्ट्रासाउण्ड की रिपोर्ट से ही विपक्षी सं0-2 को यह जानकारी हो गयी कि पथरियों के कारण परिवादिनी के षरीर के अंदर के कई अंग जैसे लीवर, अग्नाषय आदि इस तरह से आपस में जटिल हो गये कि पथरियों को निकालना संभव नहीं है। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा जानबूझकर परिवादिनी के पेट में चीरा लगाया गया और साषय अतिरिक्त पीड़ा दी गयी। आपरेषन नोट में सर्जन नाम के स्थान पर डा0 नीरज श्रीवास्तव का नाम काटकर डा0 सुनीता श्रीवास्तव का नाम अस्पताल प्रबन्धक के मिली
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भगत से किया गया है। जिससे स्पश्ट होता है कि विपक्षीगण द्वारा मिलीभगत करके मेडिक्लेम पाॅलिसी का पैसा हड़पने की नियत से चिकित्सा व्यवसाय के सिद्धोंतों के विरूद्ध जाकर सेवा में भारी कमी कारित की गयी है।
जबकि विपक्षी सं0-1 की ओर ये तर्क प्रस्तुत किया गया है कि परिवादिनी का इलाज डा0 सुनीता श्रीवास्तव सर्जन द्वारा ही किया गया था। डा0 सुनीता श्रीवास्तव, डा0 नीरज श्रीवास्तव की पत्नी हैं। लिपिकीय त्रुटि के कारण डा0 सुनीता श्रीवास्तव की जगह डा0 नीरज श्रीवास्तव लिख दिया गया था। इस तरह से अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट में कैंसर की कोई रिपोर्ट नहीं थी, बल्कि आपरेषन के दौरान इस बात का पता चला था कि गालब्लैडर लीवर खून की नली द्वारा पूरी तरह से घिरा हुआ था एवं उक्त अवस्था में गालब्लैडर को अलग कर निकालने से मरीज जिसकी उम्र 66 वर्श है, की जान को खतरा हो सकता था। परिवादिनी द्वारा कतिपय तथ्य परिवाद को रंगत देने के लिए उल्लिखित किये गये हैं। मरीज के अनुरोध पर बीमा कंपनी द्वारा रू0 23,030.00 मेडिक्लेम का भुगतान न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स द्वारा किया गया है। विपक्षी सं0-1 के द्वारा सेवा में कोई त्रुटि कारित नहीं की गयी है।
उपरोक्तानुसार उभयपक्षों के तर्कों को सुनने तथा पत्रावली के परिषीलन से विदित होता है कि विपक्षी सं0-2 एवं 3 जो कि रिष्ते में, आपस में पति, पत्नी हैं और सर्जन भी हैं-के द्वारा बावजूद तामीला प्रस्तुत मामले में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। अतः विपक्षी सं0-2 एवं 3 के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद एकपक्षीय रूप से चलाया गया है। विपक्षी सं0-2 को परिवादिनी के द्वारा हैलेट अस्पताल में सेवारत होना परिवाद पत्र में दर्षाया गया है। परिवाद पत्र में परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यों में आपरेषन नोट के अवलोकन से विदित होता है कि आपरेषन नोट दिनांकित 05.03.13 में सर्जन के नाम पर कटिंग की गयी है। जिससे परिवादिनी के कथन को बल प्राप्त होता है। परिवादिनी की ओर से विपक्षी सं0-2 एवं 3 के विरूद्ध प्रस्तुत किये
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गये तर्कों एवं प्रलेखीय साक्ष्यों का खण्डन विपक्षी सं0-2 व 3 के द्वारा बावजूद तामीला नहीं किया गया है, जिससे परिवादिनी के द्वारा विपक्षी सं0-2 व 3 के विरूद्ध किये गये तर्क एवं प्रस्तुत किये गये साक्ष्य अखण्डनीय है। परिवादिनी द्वारा अपने परिवादपत्र व षपथपत्र में भी अपने उपरोक्त तर्कों को स्पश्ट रूप से अंकित किया गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा परिवादिनी के इलाज में लापरवाही बरती गयी है। परिवादिनी के पेट में चीरा लगाने से पहले ही यह सुनिष्चित कर लेना चाहिए था कि परिवादिनी का आपरेषन संभव है या नहीं। परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र में व षपथपत्र में एवं तर्कों में यह कहा गया है कि विपक्षी सं0-2 के द्वारा ही उसकी जांच की गयी और उसका आपरेषन किया गया। परिवादिनी द्वारा अस्पताल प्रबन्धक के विरूद्ध भी मिलीभगत होने का आक्षेप लगाया गया है। किन्तु परिवादिनी द्वारा अस्पताल प्रबन्धन के किसी व्यक्ति को नामित नहीं किया गया है और न ही तो सीधे तौर पर कोई आक्षेप लगाया गया है।
उपरोक्त तर्कों, परिस्थितियों के आलोक में फोरम इस मत का है कि परिवादिनी, विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी बनती है, किन्तु विपक्षी सं0-1 व 3 के विरूद्ध परिवादिनी द्वारा कोई आक्षेप साबित नहीं किया जा सका है।
अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप से रू0 25000.00 कुल क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है। रू0 25000.00 की क्षतिपूर्ति इस आधार पर निर्धारित की जा रही है कि पूर्व में भी बीमा कंपनी के द्वारा परिवादिनी को समस्त उपचार हेतु रू0 23,030.00 अदा किया जाना बताया गया है। जिसका खण्डन किसी भी पक्ष के द्वारा नहीं किया गया है। परिवादिनी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अतः परिवादिनी उपरोक्त क्षतिपूर्ति के विरूद्ध कोई अन्य क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है।
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ःःःआदेषःःः
7. परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी सं0-2, परिवादिनी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 25,000.00 तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय अदा करे।
(श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी) (पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्या सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर। कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी) (पुरूशोत्तम सिंह) (डा0 आर0एन0 सिंह)
वरि0सदस्या सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम प्रतितोश फोरम
कानपुर नगर। कानपुर नगर। कानपुर नगर।