राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता आयोग, उन्नाव, द्वारा परिवाद संख्या 205 सन 2004 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.07.2008 के विरूद्ध)
अपील संख्या:-1457/2008
स्टेट बैंक आफ इंडिया द्धारा मैनेजर शाखा-सफीपुर जिला उन्नाव व एक अन्य।
बनाम
श्री रामापति शाही पुत्र श्री श्रीपति शाही निवासी मोहल्ला ब्राह्मन टोला (सराय खुर्रम) कस्बा, परगना एवं तहसील-सफीपुर जिला उन्नाव।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता : श्री जितेन्द्र नरायण मिश्रा
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता : कोई नहीं
दिनांक :- 30.07.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी स्टेट बैंक आफ इंडिया द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उन्नाव द्वारा परिवाद सं0-205/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01.07.2008 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी सरकारी योजना के अन्तर्गत कृषि के अच्छी फसल के उत्पादन हेतु अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से किसानों के लिए बनाए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड के लिए विपक्षी के यहां आवेदन पत्र पूर्ण करके जरिए ब्लाक सफीपुर जिला उन्नाव रू0 50,000/- की संस्तुतिं हेतु भेजी और बैंक से सम्पर्क करने पर श्री ओम प्रकाश पाल फील्ड आफीसर स्टेट बैंक सफीपुर ने बताया कि डेढ़ महीने बाद सम्पर्क करना तब आपका किसान क्रेडिट कार्ड बना देगें।
परिवादी द्वारा पुनः सम्पर्क करने पर फील्ड आफीसर महोदय ने भार मुक्त प्रमाण पत्र (बारह साला) मांगा जिसे परिवादी को बैंक पैनल लायर श्री कौशल किशोर गुप्ता एडवोकेट द्वारा बनवाकर दिया गया तत्पश्चात पुनः आकार पत्र-45 की नकल मांगी गई, जो परिवादी द्वारा दिनांक 20-10-2001 की बनवाकर दे दी गयी। परिवादी लगातार फील्ड आफीसर से मिलता रहा परन्तु वे टाल-मटोल करते रहे। इस तरह से धीरे-धीरे फील्ड आफीसर द्वारा लगभग डेढ़ वर्ष तक टाल-मटोल करने के बाद कहा गया कि तुम्हारी पुरानी फाइल मिल नही रही है दूसरी फाइल ब्लाक से बनवाकर भेजवाओ।
परिवादी द्वारा पुन: ब्लाक सफीपुर से फार्म पूर्ण कराकर संस्तुति कराते हुये सन् 2003 में बैंक को भेजा लेकिन पुन: सम्पर्क करने पर फील्ड आफिसर बराबर टाल-मटोल करते रहे। इस तरह परिवादी की खेती में प्रतिवर्ष फसल में लगभग 1,00,000/- रूपया की क्षति हो चुकी है। परिवादी किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के सन्दर्भ में स्टेट बैंक के मैनेजर से भी मिला परन्तु बैंक मैनेजर द्वारा कहा गया कि पाल जी से मिल लो वही तुम्हारा कार्य करेगें। बाद में स्टेट बैंक के फील्ड अफसर पाल द्वारा परिवादी का क्रेडिट कार्ड बनाने से इंकार कर दिया गया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद योजित किया है।
विपक्षी की तरफ से जवाबदावा दाखिल करते हुये कहा गया कि परिवादी को विपक्षी के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत करने का कोई अधिकार नहीं है परिवाद हर्जे पर खारिज किया जाय। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि परिवादी द्धारा विपक्षी से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने हेतु सारी औपचारिकता पूरी कर आवेदन किया था। बैंक में परिवादी द्वारा जमीन के कागजात सहित अन्य आवश्यक कागजात भी दाखिल किया गया था परन्तु परिवादी द्वारा विपक्षी के कुछ नार्म्स है उसे पूरा नही किया गया। विपक्षी द्वारा परिवादी का बचत खाता विपक्षी की बैंक में होना स्वीकार किया गया है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’ परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी संख्या 1 व 2 को निर्देशित किया जाता है कि परिवादी का किसान क्रेडिट कार्ड दो माह में बनाकर परिवादी को दे दें। परिवादी विपक्षी संख्या-1 व 2 से क्षतिपूर्ति के रूप में 25,000/- (पच्चीस हजार रूपये) प्राप्त करने का अधिकारी है। क्षतिपूर्ति की उपरोक्त रकम विपक्षीगण की सेवा में कमी के कारण व्यक्तिगत देनदारी होगी। अन्य अनुतोष निरस्त किया जाता है।‘’
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी स्टेट बैंक आफ इंडिया की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री जितेन्द्र नरायण मिश्रा का तर्क सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रस्तुत अपील विगत 15 वर्षो से लम्बित है। दिनांक 03.06.2024 को पीठ संख्या-02 में सदस्यगण के मतभेद के कारण अपील आज सुनवाई हेतु मेरे समक्ष पेश हुई।
अपीलार्थी को यह तथ्य स्वीकृत है कि प्रत्यर्थी द्वारा अपीलार्थी के यहां किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने हेतु सारी औपचारिकताएं पूरी करने के पश्चात प्रार्थनापत्र दिया तथा स्टेट बैंक आफ इण्डिया सफीपुर के फील्ड अफिसर से सम्पर्क भी किया। फील्ड आफिसर द्वारा परिवादी को बार बार बुलाया गया परिवादी द्वारा क्रेडिट कार्ड से सम्बन्धित समस्त औपचारिकता पूर्ण करने के बाद भी फील्ड अफसर का डेढ़ वर्ष बाद परिवादी से यह कहना कि तुम्हारी फाइल नही मिल रही है, ब्लाक से दूसरी फाइल बनवाकर भिजवा दो। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ब्लाक सफीपुर से फार्म पूर्ण कराकर तथा ब्लाक की संस्तुति कराकर अपीलार्थी की बैंक में पुन: भेजा लेकिन अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का क्रेडिट कार्ड नहीं बनाया गया और परिवादी दौड़ता रहा। अपीलार्थी/विपक्षी का यह कृत्य सेवा में कमी और लापरवाही को इंगित करता है।
अपीलार्थी बैंक द्वारा यह भी कहा गया है कि परिवादी द्धारा कुछ नार्म्स पूरा नही किया गया। अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के क्या नार्म्स थे, वह नार्म्स प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं बताया और न ही नार्म्स अपीलार्थी द्धारा जिला आयोग अथवा अपील पत्रावली में दाखिल किया गया है। इससे यह पुष्ठ होता है कि अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का किसान क्रेडिट कार्ड जानबूझकर नही बनाया गया है।
मेरे द्वारा समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह पाया गया कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय पूर्णत: विधिक एवं तथ्यों पर निर्धारित है जिसमें किसी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही ऐसा कोई तथ्य अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उल्लिखित किया गया कि विद्वान जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय में किसी प्रकार की कमी अथवा अवैधानिकता उल्लिखित की जा सके। उपरोक्त समस्त विश्लेषण के प्रकाश में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हॅू कि इस अपील में कोई बल नहीं है और यह अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार पक्षकारों को उपलब्ध करायी जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
रंजीत, पी.ए.
कोर्ट नं.-01