View 10893 Cases Against Hospital
Narendra Kumar meghwal filed a consumer case on 10 Feb 2016 against Ramakrishna Multispeslity Hospital & Research Centre, Director in the Kota Consumer Court. The case no is CC/153/2012 and the judgment uploaded on 12 Feb 2016.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या- 153/12
नरेन्द्र कुमार मेघवाल पुत्र मांगीलाल मेघवाल उम्र 28 वर्ष जाति मेघवाल निवासी रायपुरा मस्जिद के पास, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
01. अधीक्षक, रामकृष्णा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल एण्ड रिसर्च सेन्टर, 257-ए, शीला चैधरी रोड, तलवण्डी, कोटा, राजस्थान।
02. डा0 यश भार्गव (एम.एस.) रामाकृष्णा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल एण्ड रिसर्च सेन्टर, 257-ए, शीला चैधरी रोड, तलवण्डी, कोटा, राजस्थान।
03. डा0 विनोद महोबिया, रामाकृष्णा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल एण्ड रिसर्च सेन्टर, 257-ए, शीला चैधरी रोड, तलवण्डी, कोटा, राजस्थान। -विपक्षीगण
समक्ष
भगवान दास - अध्यक्ष
हेमलता भार्गव - सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1 श्री अशोक चैधरी , अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2 श्री बी0एस0 यादव, अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 10.02.16
परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवादोष बताया है कि उसके पैर में फुन्सी होने से सूजन हो गई, कीडे काटने की शंका होने के कारण विपक्षी सं. 3 से ईलाज करवाया जिसने दवाईयाॅ लिखी लेकिन आराम नहीं हुआ, दर्द बड़ गया उसके पश्चात् विपक्षी सं. 3 ने उसे विपक्षी सं. 1 अस्पताल में भर्ती करा दिया वहाॅ भी 3 दिन तक ईलाज चला विपक्षी सं. 2 से विचार विमर्श करके आ गया विपक्षी सं. 2 ने पट्टी खोलकर बताया कि पैर की चमडी गल गई है, चीरा लगेगा विपक्षी सं. 2 ने उसके पैर का आपरेशन कर दिया प्रत्येक दिन चमडी काटकर अलग कर दी जाती व पट्टी कर दी जाती, लेकिन दर्द बडता गया विपक्षी सं. 2 व 3 ने घ्यान नहीं दिया नाराज हो गये तथा 35,000/- रूपये जमा कराने के लिये कहा जबकि पहले ही 70,000/- रूपये जमा हो चुके थे। डिस्चार्ज करने से मना कर दिया मजबूरी में विपक्षी सं. 2 को 35,000/- रूपये दिये जिसकी रसीद नहीं दी तथा डिस्चार्ज कर दिया इसके बाद डा0 एच.पी. गुप्ता को दिखाया जिसने यह बताया कि आपरेशन गलत तौर से किया गया उनके यहाॅ लगभग 4 माह तक ईलाज चला। विपक्षीगण की लापरवाही से उसे काफी शारीरिक कष्ट हुआ लगभग डेढ वर्ष तक बिस्तर पर रहना पडा ईलाज में काफी खर्चा हुआ उसने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में वाद प्रस्तुत किया। वहाॅ गुणदोष पर निपटारा नहीं हुआ, राजीनामा भी नहीं हुआ, वहाॅ वाद का निस्तारण दिनांक 02.04.12 को कर दिया गया। विपक्षीगण की ईलाज में लारवाही व सेवा में कमी से उसे मानसिक संताप भी हुआ है।
विपक्षी सं. 1 व 2 के जवाब का सार हेै कि परिवादी के पैर की पूरी चमड़ी किसी जहरीले कीडे़ के काटने से गंभीर स्थिति मंे परिवादी उनके अस्पताल में रात्रि करीब 10ः30 बजेे भर्ती हुआ उसकी वह बीमारी( ब्मससनजपजपे दमबवतजपेपदह ंिबपजपेद्ध है। उसका ईलाज पूरी सावधानी, दक्षता व उपयुक्त तरीके से आवश्यक दर्द निरोधक एवं एन्टीबायोटिक्स दवाईयें देकर किया गया। इस ईलाज में उसकी चमड़ी को स्कीन ग्राफ्टिंग के जरिये हटाया गया। अस्पताल में वह दिनांक 14.09.08 से 18.09.08 तक भर्ती रहा उसके घाव की नियमित पट्टी व स्कीन ग्राफ्टिंग करने की सलाह देकर छुट्टी दी गई उसके पश्चात् परिवादी उनके अस्पताल में नहीं आया। अपनी इच्छा से उसने अन्य चिकित्सक एच.पी. गुप्ता को दिखाया उन्होनें भी एन्टीबायोटिक्स व पट्टी के उपरान्त स्कीन ग्राफ्टिंग करके उपचार किया। परिवादी से ईलाज के पेटे कुल 4,800/-रूपये जरिये रसीद लिये गये 70,000/-रूपये लिये व बाद मंे 35,000/-रूपये लेने की कहानी बिलकुल झूंठी है। परिवाद मियाद बाहर है। ईलाज में लापरवाही के बाबत् कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कोटा मंे परिवादी ने परिवाद दायर किया जिसे निरस्त कर दिया गया। उसके पश्चात् दुर्भावना से नाजायज लाभ उठाने के लिये झूंठा परिवाद पेश किया गया है।
विपक्षी सं. 3 के जवाब का सार है कि वह जूलोजी में पी.एच.डी. डिग्री धारक है। राजकीय महाविद्यालयों में प्रोफेसर के पद पर रहा है। वह वाईस प्रिंसिपल के पद से सेवा निवृत हुआ है। उसे प्राणी शास्त्र में जहरीले कीडे़, साॅंप-बिच्छू आदि की शारीरिक संरचना, उनके काटने व उनसे संबंधित जटिलताओं के बाबत् अध्यापन का अनुभव प्राप्त है इसी का लाभ प्राप्त करने के लिये वह समाज हित में सलाह देता है। उसने परिवादी का कोई ईलाज नहीं किया, कोई दवा नहीं लिखी, उसे ईलाज के लिये विपक्षी संख्या 2 को रेफर किया गया था। उन्होंने परिवादी का यथोचित ईलाज किया, उसे प्रताडि़त करने मात्र के लिये परिवाद पेश किया गया है। उसने सेवा मंे कोई दोष नहीं किया है, परिवादी उपभोक्ता भी नहीं है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कोटा (स्थायी लोक अदालत) के मुकदमा नं. 09/10 के निर्णय दिनांक 02.04.12, विपक्षी-अस्पताल के बिल दिनांक 18.09.08 की प्रति प्रस्तुत की है।
विपक्षी सं. 2 व 3 ने अपने-अपने शपथ-पत्र प्रस्तुत किये हैं।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
पूरे परिवाद में परिवादी ने विपक्षी-अस्पताल में विपक्षी सं. 2 व 3 से ईलाज कराने की कोई तिथि व अवधि अंकित नहीं की है। विपक्षी-अस्पताल के ईलाज का बिल नं. 81 दिनांक 18.09.08 की प्रति प्रस्तुत की है उससे प्रकट होता है कि उक्त अस्पताल में परिवादी का ईलाज 14.09.08 से 18.09.08 तक हुआ जिसके कुल चार्जेज 4,800/-रूपये लिये गये। विपक्षी सं. 1 व 2 ने भी अपने जवाब में इसी अवधि मेें परिवादी का ईलाज हेतु भर्ती होना प्रकट किया है। इस मंच के समक्ष यह परिवाद परिवादी ने 20.04.12 को पेश किया है उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में वाद कारण उत्पन्न होने से अधिकतम दो वर्ष की अवधि में वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। इस मामले में विपक्षीगण के अस्पताल में ईलाज की लापरवाही से संबंधित विवाद का वाद कारण 18.09.08 को उत्पन्न हुआ इससे स्पष्ट हैे कि वाद कारण उत्पन्न होने के लगभग साढे़ तीन वर्ष पश्चात् यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है जो निश्चित रूप से मियाद बाहर है। परिवादी ने इस विवाद के संबंध में परिवादी ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कोटा की स्थायी लोक अदालत में विवाद लम्बित होने के कारण मियाद में छूट का उल्लेख परिवाद में किया है लेकिन हम पाते हैं कि परिवादी कानून मेें ऐसी कोई छूट पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि स्थाई लोक अदालत द्वारा आदेश में मियाद में उनके यहाॅ गुजरी अवधि समायोजित करने के आदेश मात्र से छूट नहीं मिल सकती, ऐसी छूट मर्यादा अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत ही मिल सकती है जिसके लिये परिवादी को प्रथक से आवेदन-पत्र, शपथ-पत्र, छूट के कारणों व आधारों का स्पष्ट उल्लेख करके अनुमति लेना अनिवार्य था। जबकि परिवादी ने ऐसी कोई अनुमति नहीं ली, इस प्रकार हम पाते हैं कि परिवाद मियाद बाहर होने से इसी आधार पर खारिज होने योग्य है।
जहां तक गुण-दोष का प्रश्न है विपक्षी सं. 3 द्वारा ईलाज करने की कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है जबकि विपक्षी सं. 3 ने स्पष्ट कहा है कि उसने परिवादी का कोई ईलाज नहीं किया केवल विपक्षी सं. 2 से ईलाज कराने की सलाह दी थी। परिवादी ने ऐसा भी कोई प्रमाण पेश नहीं किया है कि उसे विपक्षी सं. 3 ने कोई शुल्क लिया इसलिये विपक्षी सं. 3 उसके संबंध में शुल्क लेकर सेवा देने वाला व्यक्ति नहीं होने से उसके विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्र्तगत परिवाद चलने योग्य नहीं है, खारिज होने योग्य है।
जहां तक विपक्षी सं. 1 अस्पताल में विपक्षी सं. 2 द्वारा परिवाद का ईलाज करने का प्रश्न है यह विवाद नहीं है कि उक्त अस्पताल में विपक्षी सं. 2 ने परिवादी का 14.09.08 से 18.09.08 तक ईलाज किया। विपक्षी सं. 2 ने शपथ-पत्र पर स्पष्ट किया है कि परिवादी( ब्मससनजपजपे दमबवतजपेपदह ंिबपजपेद्ध रोग से पीड़ीत उसके अस्पताल में आया जिसका चिकित्सा शास्त्र के अनुसार पूरी सावधानी, दक्षता, योग्यता से सद्भावना पूर्वक उचित एवं आवश्यक ईलाज किया गया। ईलाज मंे कोई लापरवाही नहीं की गई। इस ईलाज के पेटे मात्र 4,800/-रूपये जर्येे रसीद लिये गये अन्य कोई राशि नहीं ली गई। परिवादी ने इसके अलावा ईलाज पेटे अन्य राशि अदा करनेे का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। केवल अपना शपथ-पत्र दिया। परिवाद मंें बाताया है कि ईलाज कराने उसके माता-पिता, परिवारजन एवं मित्र गये थे। जिनके द्वारा राशि देना बताया है लेकिन उसमें से किसी का शपथ-पत्र तक नहीं दिया है इसलिये ईलाज के पेटे 4,800/-रूपये के अलावा अन्य राशि अदा करने की कहानी झूंटी है।
विपक्षी सं. 2 द्वारा ईलाज में लापरवाही करने के बाबत् भी परिवादी ने यह स्पष्ट तौर पर नहीं बताया है कि किस प्रकार की लापरवाही की गई है तथा इस बाबत् किसी विशेषज्ञ की कोई साक्ष्य/रिपोर्ट भी पेश नहीं की है। परिवादी यह केस लेकर आया है कि बाद में उसने डा. एच.पी.गुप्ता को दिखाया जिसने बताया कि पूर्व ईलाज/ आॅपरेशन में लापरवाही हुयी, लेकिन इस कहानी की पुष्टी के लिये डा. एच.पी.गुप्ता की कोई रिपोर्ट या शपथ-पत्र पेश नहीं हुआ है इसके विपरीत विपक्षी सं. 2 की शपथ पर सुस्पष्ट साक्ष्य है कि उसने पूर्ण सद्भावना से सावधानी पूर्वक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार परिवादी की पीड़ा का ईलाज पूरी सावधानी, दक्षता व योग्यता से किया था तथा उसमें कोई लापरवाही नहीं की गई थी। इसके खण्डन मंे किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की साक्ष्य पेश नहीं की गई ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि परिवादी विपक्षी सं. 2 द्वारा ईलाज में लापरवाही करने या सेवा में कमी करने के केस को सिद्ध नहीं कर सका है इसलिये विपक्षी सं. 1 व 2 के विरूद्ध परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। अतः परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किये जाने योग्य है।
आदेष
परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच, कोटा। मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 10.02.16 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच, कोटा। मंच, कोटा।
Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes
Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.