राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या– 1960/1997 सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 572/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 01-09-1997 के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक, ब्रान्च रावर्टगंज, जिला- सोनभद्र, द्वारा ब्रान्च मैनेजर, इलाहाबाद बैंक
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्री रमा कान्त पाण्डेय पुत्र श्री अशर्फी निवासी मौजा-गुरैट परगना-बड़हर, तहसील-रार्वटगंज, जिला-सोनभद्र।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : कोई नहीं।
दिनांक-28/07/2016
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 572/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 01-09-1997 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है कि विपक्षी को समय रहते रकम जो वापस करना था, वह मई 1990 में वापस हो जानी चाहिए थी और परिवादी दिनांक 01-01-1990से सूद पाने का हकदार है। परिवादी को जो सूद ट्रैक्टर का देना पड़ा उसका प्रपोशनेट ब्याज विपक्षी उपलब्ध कराये और हिसाब-किताब दुरूस्त करके उपलब्ध करावे।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने परिवाद पत्र में कहा है कि परिवादी ने 1984 में मु0 45,000-00 रूपये का कृर्षि ऋण लेकर एक एस्कार्ट ट्रैक्टर खरीदा था, जिसकी अदायगी हेतु किश्त बॉधी गई थी। वर्ष 1986 तक मु0 30,000-00 रूपये का भुगतान शिकायतकर्ता ने कर दिया था मात्र मु0 15,000-00 रूपये शेष रहा। वर्ष 1990 में विपक्षी के द्वारा शिकायतकर्ता के विरूद्ध 41,312-00 रूपये की आर0सी0 काट दी गई, दिनांक 07-03-1990 को हिसाब-किताब कराकर सारा ऋण चुकता कर दिया, फिर बाद में विपक्षी के द्वारा शिकायतकर्ता को मालूम पड़ा कि मु0 10,000-00 रूपये अधिक भुगतान हो गया है। परिवादी ने दिनांक 04-10-1990 को एक दूसरा ट्रैक्टर महिन्द्रा पुन: ऋण लेकर क्रय किया। परिवादी ने उक्त राशि मु0 10,000-00 रूपये इस दूसरे ऋण में समायोजित करने के लिए विपक्षी से याचना की, जिस पर विपक्षी ने कोई ध्यान नहीं दिया और दूसरे ऋण की वसूली हेतु आर0सी0
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काट दी गई। यदि 10,000-00 रूपये उसके ऋण में मुजरा हो गया होता तो आर0सी0 नहीं कटती और विपक्षी ने सेवाओं में कमी की है और उससे जो परिवादी को क्षति हुई है, उसकी भरपाई परिवादी ने परिवाद-पत्र में चाहा है।
विपक्षी का यह कथन कि परिवादी ने बैंक की अलग-अलग शाखाओं से ऋण लिया था, पहले ट्रैक्टर ऋण के मुताल्लिक सेवा की कमी दूर हो गई है, कोई सेवा की कमी उनके पार्ट पर नहीं है। शिकायतकर्ता की शिकायत है कि पहले ऋण के मुताल्लिक मु0 10,000-00 रूपये अधिक वसूला गया। विपक्षी ने अवगत कराया कि कृर्षि ऋण राहत योजना 15 मई 1990 को आयी, जबकि उसके पूर्व ही आर0सी0 जारी की जा चुकी थी, इसलिए राहत की राशि को आर0सी0 से नहीं काटा जा सका। विपक्षी को जब तक योजना नहीं आई, उसे मालूम नहीं था, कि राहत आयेगी, राहत की राशि वर्ष 1990 से रखी थी।
जिला उपभोक्ता फोरम ने यह निष्कर्ष दिया है कि विपक्षी ने कोई साक्ष्य नहीं दिया है, जिससे जाहिर होता हो कि 10,000-00 रूपये की पात्रता प्राप्त होने के बाद शिकायतकर्ता के लिए सुरक्षित रखने के बावत राहत के मद में उसे उन्होंने अवगत कराया कि रकम 10,000-00 रूपये शासन द्वारा प्राप्त हो गई है तो उनकी जिम्मेदारी इस रकम को शिकायतकर्ता को देने की थी और जिला उपभोक्ता फोरम ने यह निष्कर्ष दिया है कि विपक्षी को समय रहते रकम वापस करना था, मई 1990 में वापस हो जानी चाहिए थी।
अपील के आधार में अपीलार्थी इलाहाबाद बैंक द्वारा कहा गया है कि परिवादी कोई अदायगी नहीं कर रहा था, इसलिए रिकबरी सर्टीफिकेट उसके विरूद्ध जारी दिनांक 07-03-1993 को किया गया। परिवादी ने सभी रकम उस रिकबरी सर्टीफिकेट के परिपालन में अप्रैल 1990 में जमा कर दिया और परिवादी का ट्रॉजक्शन रार्वटगंज ब्रान्च पर अप्रैल 1990 में पूरा हो गया। इसके बाद राज्य सरकार ने कर्ज माफी स्कीम 1990 चलाया और इस स्कीम को 15, मई 1990 से लागू किया गया और इसलिए यह स्कीम उन व्यक्तियों पर लागू होता जिनके कर्ज स्कीम लॉन्च होते समय उनके कर्ज के बारे में होता है, जो स्कीम लॉन्च होने की तिथि तक बकाया था, चॅूंकि परिवादी ने ऋण की अदायगी अप्रैल 1990में ही कर दिया था, इसलिए उसको कोई अनुतोष नहीं दिया जा सकता था और गलत आधार के अर्न्तगत 10,000-00 उसके एकाउन्ट में दिनांक 24-11-1990 को क्रेडिट किया गया, उसके बाद परिवादी ने दूसरा ऋण भैरो बकौली ब्रान्च, इलाहाबाद बैंक से दिनांक 04-10-1990 में महिन्द्रा ट्रैक्टर प्राप्त करने के लिए
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लिया और इस ऋण के बार में अपीलकर्ता ब्रान्च रावर्टगंज को परिवादी द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई, इसलिए रार्वटगंज ब्रान्च को इस ट्रांजक्शन के बारे में कोई नहीं जानकारी नहीं थी और प्रतिवादी ने ऋण पेमेन्ट के बार में रिकबरी प्रोसीडिंग जारी की गई और प्रतिवादी ने पत्र दिनांक 19-03-1997 परिवादी को लिखा और 10,000-00 रूपये की रकम मांग की गई।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा, उपस्थित है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा अपील आधार का अवलोकन किया गया एवं जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 01-09-1997 का भी अवलोकन किया गया।
यह निर्विवाद है कि परिवादी ने अपीलार्थी से 45000-00 रूपये का ऋण लेकर एक ट्रैक्टर खरीदा था। इस ऋण की कुछ किश्तें अदा की और शेष कुछ अवशेष रहीं। बैंक ने बकाया को वसूलने के लिए वसूली प्रमाण पत्र जारी किया, जिसके सापेक्ष परिवादी ने सम्पूर्ण धनराशि मार्च/अप्रैल 1990 में जमा कर दिया।
परिवादी/प्रत्यर्थी का कथन है कि उससे 10,000-00 रूपये अधिक जमा करा लिया और उसको शासन की कृपा राहत योजना का लाभ नहीं दिया। यह धनराशि उसके द्वारा जो दूसरा ऋण लिया गया है, उसमें समायोजित करना चाहिए। साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि प्रथम कर्जका पूर्ण भुगतान ऋण राहत योजना के प्रभावी होने की तिथि से पूर्व में ही जमा हो चुका था। परिवादी कृपा राहत योजना के अर्न्तगत पात्रता नहीं रखता था। अत: इस योजना का लाभ उसे नहीं मिल सकता है। उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में जिला मंच का निर्णय विधिसंगत नहीं कहा जा सकता।
उपरोक्त सारे तथ्यों एवं अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के उपरान्त हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो निर्णय/आदेश दिनांकित 01-09-1997 पारित किया गया है, वह विधि संगत नहीं है और निरस्त होने योग्य है, क्योंकि अपीलकर्ता/विपक्षी द्वारा कोई सेवाओं में कमी नहीं की गई है। अपीलकर्ता की अपील स्वीकार होने योग्य है।
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आदेश
अपीलकर्ता की अपील स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 572/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 01-09-1997 निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(आर0सी0 चौधरी) ( राज कमल गुप्ता )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी. वर्मा, कोर्ट नं0-2