(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1474/2007
एलआईसी आफ इण्डिया बनाम राम प्रताप मिश्रा पुत्र श्री राम सरन
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक : 19.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-307/2000, राम प्रताप मिश्रा बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला आयोग, फर्रूखाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.5.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री संजय जायसवाल को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने बीमाधारक की मृत्यु पर बीमित राशि अंकन 25,000/-रू0 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा पालिसी के क्लाउज संख्या-4बी के अनुसार जिसे प्रस्तावक द्वारा स्वीकार किया गया है, जन संस्थान के अलावा दुर्घटना होने पर बीमा निगम उत्तरदायी नहीं है, यदि ऐसी घटना बीमा पालिसी प्राप्त करने के तीन वर्ष के अन्दर होती है। दस्तावेज सं0-24 पर यह विवरण मौजूद है। बीमाधारक की मृत्यु तीन वर्ष की अवधि के अन्दर हुई है। अत: यह क्लाउज प्रभावी हो जाता है। नजीर एलआईसी बनाम गणेश लाल II (2013) CPJ 362 (NC) में व्यवस्था दी गई है कि यदि पालिसी लेने के तीन वर्ष के अन्दर किसी महिला द्वारा आत्महत्या की जाती है तब क्लाउज सं0-4बी प्रभाव में आ जाता है और तब इस प्रकरण में केवल प्रीमियम की राशि तथा उस पर देय ब्याज देय होता है। अत: नजीर के आलोक में कहा जा सकता है कि चूंकि बीमाधार की मृत्यु घर के अन्दर हुई है। अत: क्लाउज सं0-4बी के प्रावधान प्रभावी
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हैं। तदनुसार परिवादी केवल प्रीमियम की राशि 6 प्रतिशत ब्याज के साथ प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
4. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.05.2007 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को केवल प्रीमियम की राशि 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज के साथ देय होगी।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2