Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/408

Syndicate Bank - Complainant(s)

Versus

Ram Prakash Lavania - Opp.Party(s)

M L Verma

13 Mar 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/408
( Date of Filing : 10 Mar 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Syndicate Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Ram Prakash Lavania
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 13 Mar 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।                                                          

सुरक्षित

अपील सं0-४०८/२०११

(जिला मंच(द्वितीय), आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या-४३९/२००७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०१-२०११ के विरूद्ध)

सिण्डिकेट बैंक (abody corporate constituted under Banking Companies (Acquisition and Transfer of Undertakings) Act No. V of  1970) हैड आफिस मनीपाल, उदुपी जिला, कर्नाटक स्‍टेट एण्‍ड अन्‍य ब्रान्‍च अ‍ाफिस नरीपुरा, निकट अजीत नगर क्रॉसिंग, नरीपुरा, जिला आगरा द्वारा मैनेजर लॉ श्री पी0के0 सिंह तैनात, रीजनल आफिस, लखनऊ।         ............      अपीलार्थी/विपक्षी।

बनाम

 

राम प्रकाश लवानिया पुत्र स्‍व0 खूबी राम लवानियॉं निवासी मधुवन कालोनी, खेरिया मोड़, जगनेर रोड, आगरा।              ............      प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

समक्ष:-

१-  मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एम0एल0 वर्मा विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित: श्री सुशील कुमार शर्मा विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक :-  २६-०३-२०१९.

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच(द्वितीय), आगरा द्वारा परिवाद संख्‍या-४३९/२००७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०१-२०११ के विरूद्ध योजित की गयी है।

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के कथनानुसार सेवा समाप्ति के उपरान्‍त परिवादी को उत्‍तर प्रदेश राज्‍य कर्मचारी सामूहिक बीमा योजना के अन्‍तर्गत ५८,९३१/- रू० का चेक दिनांक ११-०७-२००७ प्राप्‍त हुआ था। परिवादी के पुत्र ने यह चेक दिनांक ३१-०७-२००७ को भुगतान हेतु अपीलार्थी बैंक की आगरा स्थित नरीपुरा शाखा में परिवादी के खाते में जमा करने हेतु प्रेषित किया था। दिनांक ११-१०-२००७ को परिवादी जब उक्‍त शाखा में गया एवं अपने बचत खाता सं0-८६११२२०४४७२२ में जमा धनराशि के सम्‍बन्‍ध में जानकारी की तो ज्ञात हुआ कि परिवादी द्वारा दिनांक ३१-०७-२००७ को जमा कराये गये उपरोक्‍त चेक की धनराशि ५८,९३१/- रू० उसके खाते में जमा नहीं है। परिवादी द्वारा अनेक

 

 

 

 

-२-

बार सम्‍पर्क करने पर भी उक्‍त चेक की धनराशि जमा न करके कोई सन्‍तोषजनक उत्‍तर नहीं दिया गया और न ही परिवादी की विधिक नोटिस का अनुपालन किया गया, बल्कि नोटिस के जबाव में ५८,९३१/- रू० का चेक जमा करना स्‍वीकार करते हुए भी नोटिस का गलत उत्‍तर दिया। इस प्रकार अपीलार्थी बैंक का कार्य एवं व्‍यवहार अत्‍यन्‍त उपेक्षापूर्ण अभिकथित करते हुए चेक की धनराशि मय ब्‍याज भुगतान कराने एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच में योजित किया गया।

अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार परिवादी द्वारा भुगतान हेतु प्रेषित चेक कलैक्‍शन हेतु लखनऊ भेजा गया था किन्‍तु आकस्मिक एवं अपरिहार्य परिस्थिति में चेक गुम हो जाने के कारण अपीलार्थी को उस चेक का भुगतान प्राप्‍त नहीं हो पाया। चेक गुम हो जाने पर डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करने की जिम्‍मेदारी परिवादी पर थी, परन्‍तु उसने कोई सहयोग नहीं किया और अपीलार्थी को अपने स्‍तर पर कार्यवाही करके विभाग से डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त हो सका। डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करने की प्रक्रिया में विलम्‍ब हुआ। अपीलार्थी का कार्य एवं व्‍यवहार परिवादी के प्रति कभी भी उपेक्षापूर्ण नहीं रहा। परिवादी को चेक की राशि का भुगतान बैंक रूल्‍स के तहत ब्‍याज सहित कर दिया गया है।

प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा जिला मंच ने अपीलार्थी बैंक की लापरवाही मानते हुए अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी को १०,०००/- रू० क्षतिपूर्ति के रूप में निर्णय की तिथि से ३० दिन के अन्‍दर दिलाये जाने तथा २,०००/- रू० वाद व्‍यय के रूप में दिलाये जाने हेतु आदेशित किया। 

      इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गई।

      हमने अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एम0एल0 वर्मा एवं प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।

      अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत चेक अपने खाते में भुगतान हेतु अपीलार्थी बैंक की

 

 

 

 

-३-

नरीपुरा शाखा में दिनांक ३१-०१-२००७ को प्रेषित किया गया। चेक दूसरे जिले से सम्‍बन्धित होने के कारण कलैक्‍शन हेतु क्‍लीयरेंस के लिए भेजा गया किन्‍तु इस प्रक्रिया के मध्‍य चेक खो जाने के कारण चेक की धनराशि का भुगतान परिवादी के खाते में नहीं हो सका। चेक खोने का तथ्‍य परिवादी की जानकारी में लाया गया किन्‍तु परिवादी द्वारा कोई सहयोग नहीं किया गया। अपीलार्थी बैंक ने पत्र दिनांकित १०-१०-२००७ उ0प्र0 राज्‍य कर्मचारी सामूहिक बीमा निदेशालय, लखनऊ को भेजा तथा स्‍वयं अपीलार्थी के प्रयास से डुप्‍लीकेट चेक उक्‍त विभाग से प्राप्‍त हो सका। उ0प्र0 राज्‍य कर्मचारी सामूहिक बीमा निदेशालय, लखनऊ द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित २४-१०-२००७ जिसकी प्रति अपीलार्थी बैंक को भी भेजी गई, अपील मेमो के साथ संलग्‍नक-ए-१ के रूप में दाखिल की गई है। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि निगोशिएबिल इन्‍स्‍ट्रूमेण्‍ट एक्‍ट की धारा-४५ (ए) के अन्‍तर्गत चेक खोने की स्थिति में चेकधारक से यह अपेक्षित है कि वह डुप्‍लीकेट चेक जारी करने हेतु चेक जारीकर्ता को आवेदन करे। अत: परिवादी का यह दायित्‍व था कि डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करने हेतु आवेदन करता किन्‍तु परिवादी द्वारा इस सन्‍दर्भ में स्‍वयं कोई प्रयास नहीं किया गया तथा अपीलार्थी का कोई सहयोग नहीं किया गया। अपीलार्थी बैंक के स्‍वयं के प्रयास से डुप्‍लीकेट चेक प्रापत होने पर अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी के चेक की धनराशि ५८,९३१/- रू० का भुगतान परिवादी के खाते में दिनांक ०९-०२-२००८ को किया गया तथा साथ ही दिनांक   १५-०२-२००८ तक का ब्‍याज ९४५/- रू० भी विलम्‍ब की अविध का भुगतान किया गया। इस प्रकार अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई बल्कि स्‍वयं परिवादी द्वारा ही लापरवाही की गई तथा डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करने में असहयोग किया गया। जिला मंच ने चेक के खो जाने एवं विलम्‍ब से भुगतान को सेवा में त्रुटि मानते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित किया।

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्रश्‍नगत चेक अपीलार्थी बैंक की नरीपुरा शाखा में दिनांक ३१-०७-२००७ को भुगतान हेतु प्रेषित किया। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि दिनांक ११-१०-२००७ तक इस चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक

 

 

 

 

-४-

द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते में नहीं किया गया। अपीलार्थी बैंक के कथनानुसार यह चेक क्‍लीयरेंस हेतु भेजा गया था किन्‍तु रास्‍ते में चेक खो जाने के कारण चेक भुगतान परिवादी के खाते में नहीं हो सका। चेक खो जाने की जानकारी प्राप्‍त होने पर परिवादी से डुप्‍लीकेट चेक की मांग की गई किन्‍तु परिवादी द्वारा सहयोग नहीं किया गया जबकि निगोशिएबिल इन्‍स्‍ट्रूमेण्‍ट एक्‍ट की धारा-४५ (ए) के अन्‍तर्गत स्‍वयं परिवादी का यह दायित्‍व है कि वह डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करके बैंक को उपलब्‍ध कराये। परिवादी द्वारा सहयोग न करने के कारण स्‍वयं अपीलार्थी बैंक के प्रयास से डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त किया गया तथा चेक की धनराशि प्राप्‍त होने पर दिनांक ०९-०२-२००८ को ब्‍याज सहित चेक की धनराशि भुगतान किया गया।

      मामले के तथ्‍यों एवं परिस्‍ि‍थतियों के अवलोकन से यह विदित होता है कि अपीलार्थी बैंक का आचरण परिवादी/उपभोक्‍ता के प्रति असंवेदनशील रहा है। प्रश्‍नगत चेक अपने खाते में धनराशि के भुगतान हेतु दिनांक ३१-०७-२००७ को परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत किए जाने के उपरान्‍त लगभग ढाई माह की अवधि तक इस चेक की धनराशि का भुगतान प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते में नहीं हुआ। स्‍वयं अपीलार्थी का यह कथन नहीं है कि इस चेक के खोने में प्रत्‍यर्थी/परिवादी की कोई भूमिका रही है। अपीलार्थी बैंक द्वारा यह स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि किन परिस्थितियों में प्रश्‍नगत चेक खो गया। प्रश्‍नगत चेक के खोने में प्रत्‍यर्थी/परिवादी की कोई भूमिका न होने एवं चेक खोने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी के चेक का भुगतान लगभग ढाई माह तक न हो पाने के बाद इस तथ्‍य की जानकारी प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी बैंक को प्रस्‍तुत किए जाने पर अपीलार्थी बैंक से यह अपेक्षित था कि सम्‍पूर्ण घटना के प्रति अपने उपभोक्‍ता से खेद प्रकट करते तथा परिवादी से सहयोग की अपेक्षा करते किन्‍तु उपभोक्‍ता का चेक स्‍वयं की लापरवाही के कारण खोने के बाबजूद प्रकरण के सन्‍दर्भ में खेद प्रकट न करके अपीलार्थी बैंक द्वारा तर्क प्रस्‍तुत किया जा रहा है कि यह प्रत्‍यर्थी/परिवादी का दायित्‍व था कि निगोशिएबिल इन्‍स्‍ट्रूमेण्‍ट एक्‍ट की धारा-४५ (ए) के अन्‍तर्गत परिवादी डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करके अपीलार्थी बैंक को प्राप्‍त कराता। निगोशिएबिल

 

 

 

-५-

इन्‍स्‍ट्रूमेण्‍ट एक्‍ट की धारा-४५ (ए) उस परिस्थिति को वर्णित करती है जहॉं चेक स्‍वयं चेकधारक की लापरवाही के कारण खोया हो। यदि खोये हुए चेक के सन्‍दर्भ में डुप्‍लीकेट चेक प्राप्‍त करने हेतु चेकधारक द्वारा ही आवेदन प्रस्‍तुत किया जाना हो ऐसी परिस्थिति में भी जबकि चेक खोने में उसकी कोई भूमिका न हो और बैंक द्वारा ही चेक खोया गया हो तब सामान्‍य शिष्‍टाचार के अन्‍तर्गत भी बैंक से यह अपेक्षित है कि उपभोक्‍ता से खेद प्रकट करते हुए डुप्‍लीकेट चेक प्रस्‍तुत करने का अनुरोध किया जाता, न कि डुप्‍लीकेट चेक प्रस्‍तुत करने का दायित्‍व उपभोक्‍ता का मानते हुए उपभोक्‍ता द्वारा डुप्‍लीकेट चेक स्‍वयं प्रस्‍तुत करने का प्रयास न करने का आरोप लगाकर उपभोक्‍ता को ही लापरवाह बताया जाय। यद्यपि यह तथ्‍य निर्विवाद है कि प्रश्‍नगत चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक ने ९४५/- रू० ब्‍याज सहित दिनांक ०९-०२-२००८ को कर दिया है किन्‍तु इस तथ्‍य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि स्‍वयं अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण प्रश्‍नगत चेक खो जाने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी को चेक का भुगतान चेक प्रस्‍तुतीकरण की तिथि से लगभग ०७ माह बाद कराया जाना सम्‍भव हो सका जिसके लिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी बैंक को अन्‍तत: विधिक नोटिस देने तथा परिवाद योजित करने के लिए भी बाध्‍य होना पड़ा।

      स्‍वाभाविक रूप से अपीलार्थी बैंक के उपरोक्‍त आचरण के कारण परिवादी को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से प्रताडि़त होना पड़ा। जिला मंच ने क्षतिपूर्ति के रूप में १०,०००/- रू० के भुगतान हेतु आदेशित किया है। क्षतिपूर्ति की यह धनराशि हमारे विचार से अत्‍यधिक है। मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आलोक में १०,०००/- रू० के स्‍थान पर ३,०००/- रू० क्षतिपूर्ति के रूप में तथा २,०००/- रू० वाद व्‍यय के रूप में परिवादी को दिलाया जाना न्‍यायोचित होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

      अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच(द्वितीय), आगरा

 

 

 

-६-

द्वारा परिवाद संख्‍या-४३९/२००७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक   ३१-०१-२०११ मात्र इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि जिला मंच द्वारा आदेशित क्षतिपूर्ति के रूप में धनराशि १०,०००/- रू० के स्‍थान पर मात्र धनराशि ३,०००/- रू० परिवादी को देय होगी। शेष आदेश की यथावत् पुष्टि की जाती है। 

      इस अपील का व्‍यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे।

      पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार प्राप्‍त करायी जाय।

 

     

                                                 (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                  पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                   (गोवर्द्धन यादव)

                                                       सदस्‍य

 

 

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट नं.-२.   

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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