राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0 २०३८ सन् १९९७
(जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 २५३ सन् १९९५ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१०-१९९७ के विरूद्ध)
गाजियाबाद डेवलपमेण्ट अथारिटी, गाजियाबाद द्वारा सैक्रेटरी।
अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
राम नारायण गुप्ता निवासी ७३, गूजरवाला, टाउन पार्ट-द्वितीय, दिल्ली।
प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री रामराज विद्वान अधिवक्ता के सहयोगी श्री
सर्वेश कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- २९.०९.२०१४
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठसीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 २५३ सन् १९९५ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१.१०.१९९७ के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत निम्नवत् आदेश पारित किया गया है :-
‘’ परिवादी की शिकायत को स्वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय के पश्चात् दो माह के भीतर परिवादी की जमा राशि मय ब्याज १८ प्रतिशत वार्षिक की दर से वापिस करे। ब्याज की गणना जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक की जाएगी। साथ ही परिवादी के मानसिक उत्पीड़न और वाद के हर्जे खर्चे के लिए ३०००/- रू0 मुआवजा अदा करे।
यदि विपक्षी उपरोक्त अवधि में आदेश का पालन नहीं करता है तो विपक्षी को २१ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करना होगा। ‘’
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री रामराज के सहयोगी श्री सर्वेश कुमार शर्मा उपस्थित
-२-
हैं। प्रत्यर्थी की ओर से आज कोई उपस्थित नहीं है, जबकि पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि प्रत्यर्थी को नोटिस भेजी गयी है। चूँकि यह प्रकरण वर्ष १९९७ से लम्बित है, ऐसी स्थिति में प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों के दृष्टिगत पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि अपीलार्थी की ओर से उपस्थित हुए विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर इस अपील का निस्तारण कर दिया जाय।
इस मामले में परिवादी ने विपक्षी की प्रताप विहार आवास योजना १९८८ में एक एच0आई0जी0 भवन के लिए ५०,०१०/- रू0 जमा करके पंजीकरण कराया तथा भवन की कुल कीमत २,१५,०००/- रू0 थी। तत्पश्चात् विपक्षी ने बताया कि प्रश्नगत भवन देना सम्भव नहीं है, यदि वो चाहे तो दूसरा भवन जिसकी अनुमानित कीमत ३,५५,०००/-रू0 है, ले सकता है और उसको १९९० तक कब्जा दे दिया जायेगा। परिवादी ने विपक्षी द्वारा मांगा हुआ कुल मूल्य का पचास प्रतिशत धन दिनांक ३०-०९-१९९० तक जमा कर दिया। जब परिवादी ने मौके पर जाकर देखा तो भवन रहने लायक स्थिति में नहीं था। उसके बाद पुन: ०१-१०-१९९१ को विपक्षी ने भवन की बढ़ी हुई कीमत ४,४८,६००/- रू0 की सूचना परिवादी को दी और कहा कि जल्द ही अच्छी कण्डीशन में रिहायसी भवन का कब्जा दे दिया जायेगा, परन्तु उक्त भवन को रिहायसी स्थिति में नहीं किया गया। परिदवादी ने यह भी कथन किया कि नाला पास होने के कारण भवन में दरार पड़ गयी है, जिसके भवन की नींव कमजोर हो चुकी है और इस दशा में भवन का कब्जा लेना सम्भव नहीं है।
विपक्षी ने अपने लिखित कथन में जिला मंच के समक्ष परिवादी द्वारा प्रश्नगत योजना में एक भवन के लिए आवेदन करना और कथित राशि जमा करना स्वीकार किया, परन्तु यह कथन किया कि भवन की लागत में हुई वृद्धि के कारण भवन की कीमत ४,४८,६००/- रू0 निर्धारित की गयी। विपक्षी ने नोटिस दिनांक ११-११-१९९१ एवं १६-११-१९९२ के माध्यम से परिवादी को कब्जा लेने हेतु सूचित किया, जिसका परिवादी ने कोई जवाब नहीं दिया और वह स्वयं ही कब्जा लेने में असफल रहा।
जिला मंच द्वारा दोनों पक्षों को सुनने एवं अभिलेख का अवलोकन करने के उपरान्त परिवादी की शिकायत को स्वीकार होने योग्य पाते हुए उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
-३-
पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री श्री रामराज के सहयोगी श्री सर्वेश कुमार शर्मा को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा अभिलेख का भली भांति अनुशीलन किया गया।
अपीलार्थी का तर्क है कि वस्तुत: भवन के मूल्य निर्धारण का अधिकार प्राधिकरण को है, उसमें फोरम कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। परिवादी द्वारा अपनी धनराशि वापसी के लिए कोई प्रार्थना पत्र प्राधिकरण कार्यालय में नहीं प्रस्तुत किया गया है, जबकि परिवादी को प्रश्नगत भवन का कब्जा लेने हेतु दिनांक ०५-०९-१९९१, ११-११-१९९१ एवं १६-११-१९९२ के पत्रों द्वारा निर्देशित किया गया था, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी आवश्यक औपचारिकाताऐं पूर्ण करके कब्जा लेने में स्वयं ही विफल रहा है। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
जिला मंच के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा विवादित भवन के लिए आवेदन विपक्षी के यहॉं किया गया था और अपीलार्थी/ विपक्षी द्वारा परिवादी से दूसरा भवन लेने हेतु कहा गया, जिसकी अनुमानित कीमत ३,५५,०००/- रू0 थी और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विवादित भवन का कब्जा न लेने का यह कारण बताया गया कि प्रश्नगत भवन रहने योग्य नहीं था तथा पास में नाला होने के कारण उसकी नींव कमजोर हो गयी थी। फलस्वरूप, प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी जमा धनराशि की वापिसी हेतु अपीलार्थी/विपक्षी से अनुरोध किया।
चूँकि इस मामले में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा रहने योग्य स्थिति में विवादित भवन का कब्जा परिवादी को समयान्तर्गत नहीं दिया गया और उसकी जमा धनराशि अपीलार्थी की अभिरक्षा में रही और निश्चित ही उस धनराशि से अपीलार्थी द्वारा लाभ कमाया गया होगा तथा अपीलार्थी इतने लम्बे समय तक उस धनराशि से वंचित रहा, ऐसी स्थिति में पीठ के अभिमत में जिला मंच द्वारा परिवादी की जमा धनराशि पर ब्याज की अदायगी हेतु दिये गये आदेश में प्रथम दृष्ट्या कोई विधिक त्रुटि नहीं पायी जाती है।
पीठ के अभिमत में कानून के दृष्टिकोण से जब किसी मामले में ब्याज के भुगतान हेतु आदेश पारित किया जाता है तो उस स्थिति में अलग से क्षतिपूर्ति दिलाये जाने का आदेश पारित किया जाना विधि सम्मत नहीं होगा। अत: इस प्रकरण में क्षतिपूर्ति व वाद के हर्जे खर्चे
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के लिए ३०००.०० रू0 मुआवजा अदा किया जाने सम्बन्धी आदेश अपास्त होने योग्य है।
परिणामस्वरूप, प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 २५३ सन् १९९५ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१०-१९९७ में क्षतिपूर्ति एवं परिवाद व्यय हेतु धनराशि ३,०००.०० रू0 अधिनिर्णीत किया जाने सम्बन्धी आदेश अपास्त करते हुए शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष इस अपील का अपना-अपना व्यय-भार स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस आदेश की सत्य प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(जे0 एन0 सिन्हा)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार वैय0सहा0ग्रेड १, कोर्ट ४.