राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या :206/2009
(जिला उपभोक्ता फोरम, हरदोई द्धारा परिवाद सं0-84/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.01.2009 के विरूद्ध)
Central Bank of India Kotra Branch Post Kala Aam District Hardoi through its Branch Manager.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
1- Ram Kumar Singh, S/o Balram Singh, R/o Village Gursanda Post Kala Aam District Hardoi.
……..…. Respondent/ Complainant
2- Tehsildar, Tehsil Sadar District Hardoi.
……..…. Respondent/ Opp. Party
समक्ष :-
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री सी0के0 सेठ
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक : 17.8.2017
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
मौजूदा अपील जिला उपभोक्ता फोरम, हरदोई के परिवाद सं0-84/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 07.01.2009 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम, हरदोई द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
"परिवाद इस तौर पर स्वीकार किया जाता है कि इस आदेश के एक माह के भीतर विरोधी पक्षकार सं0-1 परिवादी को 10,000.00 रूपया हर्जाना व 500.00 रूपया वाद व्यय अदा करेगा। इसमें चूक होने पर एक माह के बाद से भुगातन की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देय होगा।"
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 से दिनांक 06.7.2001 को किसान क्रेडिट कार्ड 18000.00 रू0 का बनवाया था और उसी दिन एक प्रार्थना पत्र दिया कि वर्ष-2001 में तीन एकड गन्ना
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व दो एकड़ धान की बुआयी की है, जिसका बीमा कर दिया जाये, किन्तु प्रतिवादी सं0-1 ने द्वेष वश फसल का बीमा नहीं किया और रू0 51.00 जमा करके परिवादी का दुर्घटना बीमा कर दिया। परिवादी ने किसान क्रेडिट कार्ड की धनराशि की अदायगी दिनांक 25.02.2002 को 17,000.00 रू0 व दिनांक 22.4.2002 को रू0 1755.00 बैंक में जमा कर दिए। पुन: परिवादी ने रू0 40,000.00 का क्रेडिट कार्ड दिनांक 17.8.2002 को बनवाया किन्तु बार-बार फलस बीमा करवाने के लिए प्रार्थना पत्र देने पर भी प्रतिवादी सं0-1 द्वारा फसल का बीमा नहीं किया गया। परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 से अनुरोध किया कि जितने का क्रेडिट कार्ड बनता है, उतने ही पैसे का फसल बीमा किए जाने की योजना है जो पत्रांक क्षेत्रीय कार्यालय ग्रा0वि0वि0/01/02/03 दिनांक 29.6.2001 द्वारा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना खरीफ 2001 में लागू किया जाना था जो कि प्रतिवादी सं0-1 ने द्वेष वश व रंजिशन नहीं किया। परिवादी ने रू0 40,000.00 का क्रेडिट कार्ड बन जाने के बाद उससे पैसे निकाल कर 3 एकड गन्न व 3 एकड़ धान व अगौती आलू आदि में लगाया, किन्तु 2002 व 2003 में सूखा पड़ जाने के कारण फलस नष्ट हो गई, जिससे परिवादी बैंक का पैसा नहीं जमा कर पाया। परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 को इसकी सूचना दी और बीमा कम्पनी से क्षतिपूर्ति के लिए कहा। सूखे के कारण किसानों की ब्याज मांफी की योजना का लाभ भी प्रतिवादी सं0-1 ने परिवादी को द्वेष वश नहीं दिया जबकि जी0ओ0 पत्रांक आर0सी0आर0ओ0 2002-2003 लेटर नं0-124-27-2002 रिजर्व बैंक आफ इण्डिया द्वारा यह घोषणा की गई थी। परिवादी ने पैसा अदा करने की नियत से वर्ष 2003-2004 में खेती में पैसा लगा कर ज्वार बोया किन्तु अधिक वर्षा के कारण वह फलस भी नष्ट हो गयी। परिवादी की फसल का बीमा न किए जाने के कारण परिवादी ऋण की अदायगी नहीं कर पाया जिसके लिए प्रतिवादी सं0-1 जिम्मेदार है। किसान क्रेडिट कार्ड पर ब्याज की दर 08 प्रतिशत के स्थान पर 12.5 प्रतिशत लगाना गलत है। परिवादी ने जब नोटिस के जरिये प्रतिवादी सं0-1 से अपने उक्त नुकसान की भरपाई करने को कहा तो उसने अपने को बचाने के लिए
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बैंक डेट में एक रिकवरी सर्टीफिकेट रू0 46,880.00 का परिवादी को परेशान करने के लिए तहसील में भेज दिया। सेंट्रल बैंक आफ इण्डिया के क्षेत्रीय कार्यालय से भेजे गये पत्र दिनांक 24.8.2001 में बिन्दु सं0-8 में साफ लिखा हुआ है कि संसूचित फसलों के लिए ऋण देते समय यह योजना अनिवार्य रूप से लागू करना है अन्यथा संस्तुत फसल के ऋण प्राप्त करने वाले किसान को होने वाली क्षति की भरपायी की जिम्मेदारी सम्बन्धित शाखा प्रबन्धक की होगी। इस प्रकार परिवादी की नष्ट हुई फलस की क्षतिपूर्ति शाखा प्रबन्धक से दिलायी जाये क्योंकि फलस बीमा योजना होते हुए भी उसका अनुपाल नहीं किया गया है। अत: परिवादी प्रतिवादीगण के विरूद्ध इस अनुतोष के साथ प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी का ब्याज मॉफ तथा आर0सी0 को तत्काल रोक दिया जाये एवं फसल बीमा न होने से हुए नुकसान के एवज में रू0 80,000.00 मय ब्याज तथा क्षतिपूर्ति भी प्रतिवादीगण से दिलायी जाय।
प्रतिवादी सं0-1 की ओर से जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवादी का विरोध किया गया है और यह कथन किया गया है कि परिवादी का यह कहना गलत है कि जितनी धनराशि का किसान कार्ड होता है उतनी धनराशि का फसल बीमा कराया जाता है। बैंक के नियमानुसार जब ऋणी लिखित रूप से देता है कि कितने क्षेत्रफल में और कौन सी फलस बोयी गई है तब फसलवार बीमा कराया जाता है। परिवादी ने अपने किसान क्रेडिट कार्ड ऋण खाते से दिनांक 21.7.2003 और 23.7.2003 को 20,000.00-20,000.00 रू0 निकाल लिया और उस समय फसल बोने की कोई भी लिखित सूचना प्रतिवादी सं0-1 को नहीं दी, जिसके कारण फसल बीमा नहीं कराया जा सका था, जब परिवादी ने अपना ऋण खाता बैंक नियमानुसार चालू नहीं रखा तो दिनांक 20.01.2005 को वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी को भेज दिया गया परिवादी के ऋण खाते में दिनांक 30.9.2004 तक ब्याज व खर्चें सहित रू0 42,590.00 बांकी थे, इसलिए रू0 42,590.00 का वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी को भेजा गया। परिवादी को कोई भी ऋण खाते में ऋण राहत योजना प्राप्त नहीं हुई है,
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इसलिए उसके ऋण खाते में कोई भी ऋण राहत राशि समायोजित नहीं की गई है। वसूली प्रमाण पत्र जारी होने के उपरांत परिवादी ने प्रतिवादी सं0-1 को नोटिस दिनांक 27.01.2005 को ऋण की अदायगी से बचने के लिए दिया था, जिसका जवाब दिनांक 17.2.2005 को भेजा गया। परिवादी जानबूझकर बैंक को ऋण राशि अदा नहीं करना चाहता है और ऋण अदायगी से बचने के लिए झूठा परिवाद दाखिल किया है, जो कि खारिज होने योग्य है। किसान कार्ड योजना के अधीन यह आवश्यक होता है कि वितरित धनराशि एक वर्ष के भीतर बैंक के नियमानुसार समायोजित हो जानी चाहिए, अन्यथा खाता अनियनित हो जाता है और वसूली कार्यवाही आवश्यक हो जाती है। प्रतिवादी सं0-1 की सेवाओं में कोई भी लापरवाही नहीं की गई है, इसलिए परिवाद निरस्त होने योग्य है।
इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम के प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांकित 07.01.2009 तथा आधार अपील का अवलोकन किया गया एवं प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सी0के0 सेठ की बहस सुनी गई तथा अपीलार्थी की ओर से दाखिल लिखित बहस का अवलोकन किया गया है।
आधार अपील में यह कहा गया है कि परिवादी ने अपने किसान क्रेडिट कार्ड ऋण खाते से दिनांक 21.7.2003 और 23.7.2003 को 20,000.00-20,000.00 रू0 निकाल लिये और उस समय फसल बोने की कोई भी लिखित सूचना प्रतिवादी सं0-1 को नहीं दी, जिसके कारण फलस बीमा नहीं कराया जा सका था। परिवादी ने जब अपना ऋण खाता बैंक में नियमानुसार चालू नहीं रखा तो दिनांक 20.01.2005 को वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी को प्रेषित कर दिया गया था। इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी ने यह पाया है कि इस मामले में एक बात और महत्वपूर्ण है कि परिवादी ने कोई भी प्रमाण पत्र इस बात का नहीं दाखिल किया है कि उसने फसल बोने में कितना खर्चा किया, कितनी उपज साधारणत: प्राप्त होती है और कितनी उपज वास्तव में प्राप्त हुई परिवादी ने एक सवाल जवाब दाखिल किया है, तहसीलदार सदर के कार्यालय से प्राप्त किया जाना दर्शाया गया
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है, जिसमें कहा गया है कि ग्राम गुरसण्डा, जिला हरदोई के भूमि खण्ड संख्या-1006 एवं गाटा संख्या-158 के सन्-158 के सन 1397-98 के खसरे बस्ते में उपलब्ध नहीं है। इस कागज की क्या सुसंगता इस मामले में है, यह स्पष्ट नहीं है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का किसान क्रेडिट कार्ड 17.8.2002 को बनाया गया था, लिखित कथन के अनुसार 12.8.2002 को बनाया गया था, प्रत्यक्षत: मामला खरीफ की फसल से सम्बन्धित है, अत: 2002 में से 592 घटाने पर सन् 1410 फसली होगा और 1397 में 592 जोड़ने पर सन् 1989 होगा। इस तरह स्पष्ट: वर्ष 2002-2003 से सम्बन्धित फसली सन् 1397-98 नहीं होगा। अत: फसली सन् 1397-98 से सम्बन्धित कागज का इस मामले में कोई सम्बन्ध नहीं है।
केस के सारे तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा साक्ष्यों का हवाला देते हुए सारे अभिलेखों का उल्लेख करते हुए और इस सबंध में जो कानून का प्राविधान है, उसकी विवेचना करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह हमारी राय में भी विधि सम्मत है और उसमें किसी हस्तक्षेप की गुनजाइश नहीं है। तद्नुसार अपीलार्थी की अपील खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेगें।
(रामचरन चौधरी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-4