राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1197/2022
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग-प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या 110/2018 में पारित आदेश दिनांक 27.09.2022 के विरूद्ध)
वेद प्रकाश पुत्र श्री हिमांचल सिंह निवासी-सेक्टर-3 सी, मकान नं0 327, बुद्धि विहार, नगर व जिला मुरादाबाद
.....................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
श्री राम किशन कान्ट्रेक्टर (Masion), निवासी- मोहल्ला- मिठोनी/भूड़, कन्या प्राइमरी पाठशाला के सामने निकट आलम जनरल स्टोर, मस्जिद भोगपुर, मिठोनी के सामने वाली गली, निकट रेलवे क्रासिंग, पुलिस स्टेशन-मझोला, तहसील व जिला-मुरादाबाद
.....................प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 30.05.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग-प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-110/2018 वेदप्रकाश बनाम श्रीराम किशन ठेकेदार में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27.09.2022 के विरूद्ध योजित की गयी।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी का नगर के
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बुद्धि विहार स्थित मुहल्ले में एक मकान निर्मित है, जिसके लेन्टर की ऊँचाई कुछ कम थी, जिससे परिवादी व उसके परिजनों को असुविधा होती थी। परिवादी अपने मकान के लेन्टर की ऊँचाई कुछ अधिक कराना चाहता था, जिसके लिए परिवादी ने वर्ष 2017 के फरवरी माह में विपक्षी से सम्पर्क किया तो विपक्षी ने अवगत कराया कि विपक्षी परिवादी के मकान का लेन्टर जो कि 1000 वर्ग फुट है, ऊँचा कर देगा, जिस हेतु विपक्षी 1,25,000/-रू0 चार्ज लेगा।
परिवादी की सहमति के उपरान्त विपक्षी ने परिवादी के मकान को ऊँचा करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया और समय-समय पर कुल 1,45,000/-रू0 प्राप्त किये। विपक्षी ने फरवरी 2017 से अपना कार्य प्रारम्भ किया और परिवादी को काफी परेशान करने के उपरान्त दिनांक 12.06.2017 को कार्य पूर्ण करके परिवादी को अवगत कराया कि परिवादी के मकान के लेन्टर का कार्य पूरा हो चुका है तथा परिवादी को 20,000/-रू0 अतिरिक्त अदा करना होगा। परिवादी ने शर्त के विपरीत 20,000/-रू0 अतिरिक्त विपक्षी को अदा किये। इस प्रकार विपक्षी द्वारा कुल 1,65,000/-रू0 परिवादी से प्राप्त किये गये, परन्तु विपक्षी द्वारा परिवादी के मकान को ऊँचा करने हेतु डाले गये लेन्टर से कुछ दिनों बाद पानी टपकने लगा, जिसके संबंध में परिवादी ने विपक्षी से फोन कर अनुरोध किया कि परिवादी स्वयं लेन्टर का अवलोकन करें कि किन कारणों से लेन्टर से पानी टपक रहा है।
विपक्षी दिनांक 25.06.2017 को परिवादी के निवास पर आया और लेन्टर को देखकर बोला कि लेन्टर में राज मजदूरों द्वारा प्लास्टर सम्बन्धी कुछ कमियॉं छोड़ दी गयी हैं, जिसे शीघ्र पूर्ण करा दिया जायेगा और लेन्टर से पानी टपकना बन्द हो जायेगा तथा जो लेन्टर चटका हुआ दिखाई दे रहा है, वह भविष्य में नहीं दिखाई देगा। विपक्षी ने परिवादी के लेन्टर पर थोड़ा सीमेन्ट आदि
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लगाकर लेन्टर के टपकने को रोकने की कोशिश की, परन्तु लेन्टर से पानी टपकना बन्द नहीं हुआ और निरन्तर टपकने लगा। परिवादी ने पुन: विपक्षी से अनुरोध किया कि राज मजदूरों एवं स्वयं विपक्षी ने लेन्टर की ऊँचाई लेबल में नहीं की है, लेन्टर को डालने में लापरवाही की गयी है, लेन्टर में लगाये गये सरिया आदि को ठीक प्रकार से बांधा भी नहीं गया है तो विपक्षी द्वारा अफसोस व्यक्त करते हुए कहा गया कि परिवादी के ऊँचे किये गये मकान के लेन्टर को पुन: तुड़वाकर शीघ्र ऊँचा कर देगा, लेकिन अनेकों बार फोन करने व बार-बार सम्पर्क करने के बाद भी विपक्षी ने दिनांक 25.01.2018 को परिवादी के लेन्टर को तोड़वाकर पुन: डालने एवं लेन्टर में हुए व्यय को अदा करने से इंकार कर दिया, जिसके कारण परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्ट पहुँचा। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी के विरूद्ध परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी द्वारा जवाबदावा दाखिल किया गया तथा मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि विपक्षी राज मिस्त्री है और कहीं भी पंजीकृत ठेकेदार नहीं है, न ही अपंजीकृत ठेकेदार है। परिवादी को विपक्षी के विरूद्ध कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है, न ही विपक्षी कोई संस्था है, न ही विपक्षी और परिवादी के बीच खरीद फरोख्त के संबंध में कोई संविदा हुई है, न ही भवन निर्माण से सम्बन्धित ठेकेदारी सम्बन्धी संविदा हुई है। परिवादी कोई उपभोक्ता नहीं है, न ही विपक्षी से किसी संबंध में ऐसी कोई सेवा ली है। जिला उपभोक्ता आयोग को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। विपक्षी भवन निर्माण का कार्य मजदूरी पर करता है। परिवादी ने अपने दावे के साथ ठेके से सम्बन्धित किसी प्रकार का टेण्डर आदि दाखिल नहीं किया, जिससे विपक्षी ठेकेदार सिद्ध हो।
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परिवादी ने विपक्षी एवं अन्य 06 राज मजदूरों से दिनांक 17.02.2017 से दिनांक 12.06.2017 तक अपने पुराने मकान को तुड़वाकर उसी स्थान पर नये भवन का निर्माण करवाया, जिसमें विपक्षी रामकिशन राज मिस्त्री ने 110 दिन तक कार्य किया, महीलाल व इन्द्रराज मिस्त्री ने 100-100 दिन कार्य किया तथा मजदूर नन्हें, उदय सिंह, मोन्टी व मोहन लाल ने 112-112 दिन कार्य किया, लेकिन परिवादी ने विपक्षी व अन्य मजदूरों को मजदूरी का पूर्ण भुगतान नहीं किया, इसलिए मजबूरन विपक्षी राम किशन व अन्य राज मजदूरों के द्वारा न्यायालय श्रीमान सहायक श्रम आयुक्त, मुरादाबाद के यहॉ वेतन भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 15 की उपधारा 7 के अन्तर्गत दावा किया है और यह मुकदमा विचाराधीन है। विपक्षी व अन्य राज मजदूर कुल 07 व्यक्तियों की मजदूरी की रकम 1,82,300/-रू0 परिवादी के विरूद्ध बकाया है। परिवादी ने बदनियति से उक्त धनराशि का भुगतान नहीं किया और झूठे तथ्यों के आधार पर परिवाद योजित कर दिया। भवन निर्माण से सम्बन्धित समस्त सामग्री परिवादी के द्वारा उपलब्ध करायी गयी थी तथा तकनीकी कार्य भी परिवादी द्वारा कराया गया। विपक्षी एवं अन्य मजदूर किसी तकनीकी त्रुटि के लिए जिम्मेदार नहीं है, न ही उनके द्वारा सेवा में कोई कमी की गयी है। परिवादी के लेन्टर में कोई छिद्र नहीं हो सकता है, लेकिन यदि ऐसा कोई छिद्र रह गया है तो विपक्षी परिवादी द्वारा शेष भुगतान किये जाने पर भवन के मरम्मत हेतु तैयार है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(7)(ii) एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(42) को दृष्टिगत रखते हुए अपने निर्णय में निम्न तथ्य उल्लिखित किये गये:-
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''परिवादी के परिवाद के कथनों से यह दर्शित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी की व्यक्तिगत सेवा के तौर पर सेवा ली गई है जिसकी पुष्टि परिवाद के साथ प्रस्तुत किए गये कागज संख्या 4ग/1 व कागज संख्या 17क/11 लगायत 17क/15 से भी होती है। जिस पर दिनांक 17-02-2017 को रामकिशन ठेकेदार ने काम शुरू किया अंकित है व प्रति दिनांक कितनी लेबर ने कितने से कितने बजे तक व क्या कार्य किया तथा कितनी मजदूरी का पैसा दिया गया का भी विवरण दिया गया है, जिससे यह दर्शित होता है कि राज मजदूरों द्वारा दिहाड़ी के हिसाब से प्रतिदिन कार्य किया जा रहा था महज रामकिशन ठेकेदार लिख देने से विपक्षी के विरूद्ध यह सिद्ध नहीं होता कि उसके द्वारा कार्य ठेके के अर्न्तगत किया गया था ना ही परिवादी द्वारा पत्रावली में इस सन्दर्भ में कोई ऐसी उभय पक्ष की संविदा प्रपत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें विपक्षी व परिवादी के मध्य ठेके पर काम करने को लेखबद्ध किया गया हो यदि संविदा ठेकेदारी पर कार्य कराया गया होता तो निश्चित रूप से सेवा कार्ड शर्तें व कीमत लेखबद्ध किया गया होता। इसके विपरीत पत्रावली पर कागज संख्या 13क/1 साक्ष्य शपथपत्र इन्दर, कागज संख्या 14क/1 साक्ष्य शपथपत्र महीलाल, कागज संख्या 15क/1 साक्ष्य शपथपत्र नन्हें उन राज मजदूरों के शपथपत्र है जिन्होने विपक्षी के साथ परिवादी के लेन्टर डालने का कार्य किया था व उक्त राज मजदूरों की भी मजदूरी की बकाया धनराशि परिवादी द्वारा अदा की जानी थी तथा उक्त सभी के द्वारा सहायक श्रमायुक्त मुरादाबाद के समक्ष परिवादी के विरूद्ध अपनी शेष मजदूरी राशि प्राप्त करने हेतु मुकदमा योजित किया जिसे कि परिवादी द्वारा अपने रिज्वाइन्डर शपथपत्र कागज संख्या 17क/1 की धारा 4 में भी स्वीकार किया गया है, परिवादी का यह कहना कि विपक्षी द्वारा लेन्टर पर स्वयं कभी कोई कार्य नहीं किया गया और मात्र ठेकेदारी बनते हुए केवल निरीक्षण का कार्य किया गया की पुष्टि पत्रावली पर उपलब्ध किसी भी दस्तावेज/साक्ष्य से नहीं होती है बल्कि परिवादी द्वारा स्वयं दाखिल किए गये फोटोग्राफ्स कागज संख्या 17क/8 में विपक्षी लेन्टर सम्बन्धी कार्य करता हुआ नजर आ रहा है।
उपरोक्त समस्त विश्लेषण से हम यह पाते है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को किसी भी प्रकार से इस प्रकार की सेवा नहीं दी गई जैसा कि अधिनियम की धारा 2(42) में परिभाषित है बल्कि दिहाड़ी मजदूरी पर कार्य करते हुए परिवादी के लेन्टर का कार्य किया गया, जब विपक्षी द्वारा दिहाड़ी मजदूरी के अर्न्तगत व्यक्तिगत सेवा दी गई तो उक्त सेवा के आधार पर परिवादी अधिनियम की धारा 2(7)(ii) के अर्न्तगत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आएगा,
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अधिनियम की धारा 2(7)(ii) के अर्न्तगत कोई व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में तभी आएगा जबकि उसने धारा 2(42) के अर्न्तगत सेवा ली गई हो। परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2(7)(ii) के अर्न्तगत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है फलस्वरुप परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है।''
तदनुसार जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद खारिज किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया, जिसमें हस्तक्षेप हेतु पर्याप्त आधार नहीं है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1