Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/19/2011

KANHAIYA LAL - Complainant(s)

Versus

RAM KRIPAL - Opp.Party(s)

RAMESH CHANDRA PANDEY

14 Feb 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 19 सन् 2011

प्रस्तुति दिनांक 05.02.2011

                                                                                                 निर्णय दिनांक 14.02.2022

कन्हैयालाल श्रीवास्तव उम्र तखo 55 वर्ष पुत्र गोबर्धनलाल श्रीवास्तव निवासी मोo- हीरापट्टी, परगना- निजामाबाद, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

  1. रामकृपाल उपाध्याय (सजिव) आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo 270 एलवल तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।
  2. क्षेत्रीय प्रबन्धक सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo क्षेत्रीय कार्यालय 14 हरबंशपुर आजमगढ़।
  3. महाप्रबन्धक सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo मुख्यालय 6 सरोजनी नायडू मार्ग लखनऊ उoप्रo।
  4. जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियाँ उoप्रo जनपद- आजमगढ़।      
  5. विपक्षीगण।

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह पेशे से अध्यापक है। परिवादी ने दिनांक 1989 में आराजी नं. 125 मिo तायदाती 140 कड़ी में से महज रकबा 35 कड़ी, राजेन्द्र सिंह पुत्र सत्यराम सिंह से विक्रय पत्र हासिल कर पंजीकृत बयनामा व बयनामाशुदा भूमि में भवन निर्माण हेतु नक्शा स्वीकृत कराया। इसके पश्चात् परिवादी ने विपक्षी संख्या 01 के माध्यम से विपक्षी संख्या 03 से मुo 1,00,000/- रुपया भवन निर्माण हेतु आवासीय ऋण समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण कर प्राप्त किया। जिसकी किश्त परिवादी ने विपक्षी संख्या 02 के माध्यम से विपक्षी संख्या 01 को अदा किया तथा परिवादी ने सदस्यता शुल्क व मार्जिन मनी स्वयं अदा किया। परिवादी विपक्षी संख्या 01 को ऋण के किस्तों का भुगतान समयानुसार लगातार करता रहा। परिवादी पर ही उसके पूरे परिवार के परवरिश का भार रहता है और वह पेशे से अध्यापक है वेतन भुगतान विलम्ब से होने की दशा में परिवादी विपक्षी संख्या 01 को ऋण किश्तों का भुगतान कुछ विलम्ब से किया। भुगतान में विलम्ब के कारण विपक्षी संख्या 01 ने द्वेषवश ऋण वसूली हेतु परिवादी के विरुद्ध रिकवरी प्रमाण पत्र वर्ष 1994 में विल्कुल गलत तौर पर निर्गत कर दिया, जिससे वह काफी परेशान हो गया। इस बाबत परिवादी ने विपक्षी संख्या 04 के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया जिसपर परिवादी व विपक्षी संख्या 01ता03 के पक्ष को सुनकर विपक्षी संख्या 04 ने दिनांक 26.05.1997 को आदेश पारित किया “श्री श्रीवास्तव के प्रार्थना पत्र पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए यह निर्णय लिया गया कि जिस प्रकार प्रार्थी पूर्व में प्रार्थी पैसा जमा करता आ रहा है उसी प्रकार मुo 1200.00 रुपया प्रतिमाह अपने बकाए की अदायगी करते रहेंगे जबतक की ऋण की पूर्ण अदायगी न हो जाए।” जिसकी प्रतिलिपि विपक्षी संख्या 04 ने परिवादी व विपक्षी संख्या 01ता03 को अपने पत्रांक संख्या 453/डी/सह/संग्रह/वसूली दिनांक 26.05.1997 को प्रेषित किया जो वर्तमान समय में भी प्रभावी है। परिवादी विपक्षी संख्या 04 आदेश के क्रम में अपने ऋण की किस्ते प्रतिमाह जमा करता चला आया। परिवादी विपक्षी संख्या 01 के समक्ष दिनांक 15.03.2010 को प्रत्यावेदन प्रस्तुत कर अनुरोध किया कि वर्ष 2010 तक उसके द्वारा जमा किस्तों को उसके ऋण खाते में समायोजित करने के उपरान्त ऋण की अद्यतन स्थिति से अवगत कराएं तथा इस प्रत्यावेदन की प्रतिलिपि विपक्षी संख्या 03 को भी दिया। परिवादी के आवदेन पत्र दिनांक 15.03.2010 के आलोक में विपक्षी संख्या 01 ने परिवादी से उसके द्वारा जमा रसीदों का विवरण मांगा जिसे परिवादी ने विपक्षी संख्या 01 को समय से प्रदान कर दिया। परिवादी के प्रत्यावेदन दिनांक 15.03.2010 के परिप्रेक्ष्य में विपक्षी संख्या 01 ने परिवादी को उसके ऋम खाते का स्टेटमेन्ट पंजीकृत डॉक से भेजा, जो पूर्णतया विधि विरुद्ध व गलत ढंग से तैयार किया गया था व आदेश दिनांक 26.05.1997 के प्रतिकूल रहने एवं स्टेटमेन्ट ऑफ एकाउन्ट गलत मानक के आधार पर तैयार किया गया था एवं निम्न कारणों से अवैधानिक घोषित किए जाने योग्य है।

  • परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 01 के बैंक खाते में किस्त के रूप में जमा धनराशि परिवादी ने स्वयं अदा किया था, लिहाजा उक्त धनराशि पर रिकवरी चार्ज लगने का कोई औचित्य नहीं था।
  • परिवादी के प्रत्यावेदन को विपक्षी संख्या 04 ने निस्तारित कर आदेश दिनांक 26.05.1997 को निर्गत किया जो सम्प्रति प्रभावी है, उक्त आदेश के प्रभाव में रहते रिकवरी चार्ज का कोई औचित्य नहीं है।
  • विपक्षी संख्या 01 ने परिवादी के ऋण खाते का जो खाता तैयार किया वह द्वेषवश तैयार किया क्योंकि विपक्षी संख्या 01 ने विपक्षी संख्या 04 के आदेश दिनांक 26.05.1997 के विरुद्ध अबतक कोई कार्यवाही नहीं किया। महज दुर्भावना से ग्रसित होकर परिवादी का ऋण खाता विल्कुल गलत तौर पर परिवादी को परेशान करने के लिए तैयार किया।
  • विपक्षी संख्या 01 ने परिवादी का ऋण खाता तैयार करते समय वर्ष 1995 से गलत तौर पर रिकवरी चार्ज की कटौती परिवादी द्वारा जमा किस्तों की धनराशि से किया है एवं मनमाने ढंग से दण्ड ब्याज भी लगाया है। जबकि आदेश दिनांक 26.05.1997 के कायम रहते दण्ड ब्याज का और रिकवरी चार्ज काटने का कोई औचित्य नहीं था।

परिवादी विपक्षी संख्या 01 से व्यक्तिगत तौर पर मिला और उनसे अपने ऋण खाते के स्टेटमेन्ट में हुई गलतियों एवं अनावश्यक तौर पर लगाए गए ब्याज, दण्ड ब्याज व अवैधानिक रूप से रिकवरी चार्ज के मद में हुई कटौती के बाबत शिकायत किया पहले तो विपक्षी संख्या 01 ने अपने कृत्य पर शर्मिन्दगी जाहिर किया और पुनः परिवादी के खाते का स्टेटमेन्ट तैयार कर उपरोक्त कमियों को दूर करने का आश्वासन दिया लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया तथा दिनांक 30.01.2011 को विपक्षी संख्या 01ता03 द्वारा अन्तिम रूप से इन्कार कर दिया गया। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वे विपक्षी संख्या 01 द्वारा तैयार किया गया परिवादी का ऋण खाता दिनांकित 12.05.2010 आदेश दिनांक 26.05.1997 के प्रतिकूल होने के कारण अवैधानिक व शून्य है तद्नुसार विपक्षी संख्या 01 बिना दण्ड ब्याज व रिकवरी चार्ज की कटौती किए, परिवादी द्वारा अदा की गयी धनराशि को परिवादी के ऋण खाते में समायोजित कर परिवादी का ऋण खाता तैयार करें एवं माo फोरम द्वारा नियत समय के अन्दर परिवादी को उपलब्ध कराए। साथ ही अन्य दादरसी व कुल खर्चा मुकदमा याचिका जिम्मा संघर्षरत विपक्षीगण पर आयद किया जावे।     

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 5/1 जिला सहायक निबन्धक सहकारी समिति उoप्रo आजमगढ़ द्वारा जारी वसूली प्रपत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 5/2व3 जिला सहायक निबन्धक सहकारी समिति उoप्रo आजमगढ़ द्वारा प्रबन्ध निदेशक उoप्रo आवास संघ लिo लखनऊ को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 5/4 परिवादी द्वारा सचिव आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ को अपने ऋण खाते की अद्यतन स्थिति से सम्बन्धित जानकारी प्राप्ति हेतु भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 5/5व6 विपक्षी आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ द्वारा परिवादी को आवासीय ऋण के बारे में दी गयी सूचना की छायाप्रति, कागज संख्या 5/7ता5/12 आर.सी. का रजिस्टर की छायाप्रति तथा कागज संख्या 5/13 ग्रुप इन्श्योरेन्स प्रीमियम के विवरण की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।

कागज संख्या 16क² विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ विधि के अधीन उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 (उoप्रo अधिनियम संख्या 11, 1966) की धारा 8 के उपधारा 1 के अधीन निबन्धित एक सहकारी आवास समिति है, जिसके निबन्धक का अधिकार माo आवास आयुक्त उoप्रo एवं विकास परिषद्, लखनऊ में निहित है। आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ का नियन्त्रण पर्यवेक्षण एवं संचालन उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अधीन वर्णित कानून समिति के निबन्धित उपविधि के अनुसार होता है तथा उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अधीन विधिवत गठित प्रबन्ध कमेटी द्वारा होता है। विपक्षी संख्या 01 उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 31 एवं उoप्रo सहकारी समिति नियमावली-1968 द्वारा समिति की प्रबन्ध कमेटी द्वारा नियुक्त सचिव है। उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo, सहकारी आवास समितियों की शीर्ष संस्था है और जिसका निबन्धन भी उoप्रo सहकारी अधिनियम 1965 एवं नियमावली 1968 के उपबन्धों के अनुसार माननीय निबन्धक (सहकारी आवास समितियां)/आवास आयुक्त उoप्रo आवास एवं विकास परिषद लखनऊ द्वारा किया गया है, जिसके अनुसार प्रत्येक सहकारी आवास समिति को अपने निबन्धित उपविधि में वर्णित उपबन्धों के अन्तर्गत उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo का सदस्य होना आवश्यक है। जिसके अनुपालन में आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo भी उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo की विधिवत सदस्य है। आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति आजमगढ़ की निबन्धित उपविधि के मुख्य उद्देश्य की धारा 5 के अनुसार समिति द्वारा उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ एवं अन्य स्रोतों से समिति सदस्यों की भूमि एवं प्रस्तावित भवन को बंधक कर ऋण प्राप्त करना तथा उसी की धारा-2 के अनुसार गृह निर्माण हेतु अपने सदस्यों को सुविधाजनक शर्तों पर ऋण देता है। परिवादी ने समिति की सदस्या हेतु दिनांक 14.04.1989 को परिशिष्ट-ख उपविधि संख्या 8 पर निर्धारित घोषणा-पत्र समिति में प्रस्तुत किया जिसे समिति की प्रशासकीय बैठक दिनांक 22.04.1989 में पारित प्रस्ताव संख्या 2 द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसके लिए परिवादी ने मुo 100/- रुपए शुल्क भी जमा किया। चूंकि परिवादी विधिवत सदस्य एवं अंशधारक है अतः वह उपभोक्ता नहीं है। परिवादी ने अपने भवन निर्माण के लिए अपना ऋण आवेदन पत्र समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए समिति के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे समिति ने उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ को ऋण स्वीकृत करने हेतु अग्रसारित किया। उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo ने रुपए 1,00,000/- का ऋण स्वीकृत करते हुए निर्देश दिया कि सदस्य कन्हैला लाल श्रीवास्तव से निर्धारित औपचारिकताओं की पूर्ति करा ली जाए। परिवादी ने अपने भवन निर्माण हेतु प्रस्तावित भू-खण्ड को ऋण के सापेक्ष प्रतिभूति हेतु एक बंधक विलेख निबन्धित एवं निष्पादित किया तथा उक्त बंधकित भू-खण्ड को विपक्षी संख्या 01 द्वारा उसी दिनांक 02 जून, 1989 को एक रजिस्टर्ड अभ्यर्पण विलेख उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ को प्रेषित कर दिया गया। परिवादी द्वारा समिति के पक्ष में निबन्धित बंधक पत्र की शर्तों के अन्तर्गत परिवादी को एक लाख रूपया का भवन निर्माण ऋण 13.25 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से 20 वर्षों की तिमाही समीकृत किश्तों में प्रत्येक वर्ष के 01 अप्रैल, 01 जुलाई, 01 अक्टूबर एवं 01 जनवरी की निर्धारित देय तिथि को पुनर्भुगतान करने की शर्तों के साथ स्वीकृत किया गया तथा ऋण की शर्तों के अनुसार यदि परिवादी ऋणी सदस्य द्वारा देय दिनांक को किश्तों का भुगतान नहीं किया जाता है तो निर्धारित देय बकाया किश्तों की कुल धनराशि पर किश्तों के देय दिनांक से किश्तों के भुगतान करने की तिथि तक 16.25 प्रतिशत की दर से दण्ड ब्याज भी परिवादी ऋणी सदस्य द्वारा देय होगा। ऋण की शर्तों के अनुसार प्रत्येक वर्ष के 31 मार्च को देय किश्तों के वास्तविक भुगतान के उपरान्त अवशेष बकाया ऋण पर उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ द्वारा निर्धारित दर से ग्रुप इन्श्योरेन्स प्रीमियम के अन्तर्गत बीमा प्रीमियम भी परिवादी द्वारा देय होगा और यदि वह प्रीमियम भी देय दिनांक को भुगतान नहीं करता है  तो बीमा प्रीमियम की धनराशि पर भी उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo, लखनऊ द्वारा निर्धारित ब्याज दर से ब्याज भी परिवादी अदा करेगा। परिवादी को दिनांक 16.06.1989 को स्वीकृत ऋण रुपए एक लाख की धनराशि से उoप्रo सहकारी आवास संघ लिमिटेड लखनऊ द्वारा निर्धारित अंशधन की धनराशि रुपए 5,000/- एवं प्रीमियम ग्रुप इन्श्योरेन्स मद में रुपए 1000 की कटौती करते हुए शेष धनराशि का भुगतान आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ को किया गया। जिसे समिति ने परिवादी को कार्य प्रगति के अनुसार क्रमशः तीन किश्तों में बंधक विलेख की शर्तों एवं ऋण स्वीकृत पत्र की शर्तों के अनुरूप नियमानुसार अंशधन एवं प्रीमियम ग्रुप इन्श्योरेन्स की कटौती करते हुए भुगतान किया गया। अंशधन की कटौती की गयी धनराशि 5000 रुपए उoप्रo सहकारी आवास संघ लिमिटेड लखनऊ के पास जमा रहती है और जब ऋण गृहिता सदस्य सम्पूर्ण ऋण का भुगतान करता है तो अवशेष ऋण के मद में समायोजित कर ली जाती है अथवा सम्बन्धित ऋण सदस्य को समिति के माध्यम से वापस कर दी जाती है। परिवादी ने कुल 21 त्रैमासिक किश्तों को निर्धारित तिथि को भुगतान नहीं किया, जिसके वसूली हेतु विपक्षी संख्या 01 ने लगातार प्रयास किया लेकिन परिवादी लगातार टालमटोल करता रहा और बकाया जमा करने में रुचि नहीं लिया। जिससे बाध्य होकर विपक्षी ने बकाए के सम्बन्ध में परिवादी को एक नोटिस दिया, फिर भी परिवादी ने बकाया जमा करने में रुचि नहीं दिखाई न तो कोई सम्पर्क ही किया। परिवादी ने भवन निर्माण ऋण की देय किश्तों के भुगतान में लगातार चूक किया है। जिसके कारण वसूली हेतु उoप्रo आवास एवं विकास परिषद् सहकारिता अनुभाग 104, महात्मा गाँधी मार्ग लखनऊ के पत्रांक 7267/सह/95क दिनांक 08.02.1995 द्वारा रुपए 151371.79 जो दिनांक 11.09.1994 को बकाया था का वसूली प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। उक्त वसूली प्रमाण पत्र में यह भी आदेश दिया गया कि 151371.79 पर वसूली की तिथि तक 16.25% वार्षिक ब्याज की दर से धनराशि की वसूली होगी। उपरोक्त वसूली प्रमाण पत्र वसूली हेतु माननीय जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियां उoप्रo आजमगढ़ को माननीय जिलाधिकारी आजमगढ़ के माध्यम से प्राप्त हुआ। जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियां उoप्रo आजमगढ़ द्वारा नियुक्त सहकारी कुर्क अमीन ने वसूली के क्रम में वादी मुकदमा को तत्सम बकाए का साईटेशन प्राप्त कराया। जिसके क्रम में परिवादी ने दिनांक 01.06.1995 को मुo 5000 रुपए इसके बाद माह अगस्त 1995 से मई 1996 तक प्रत्येक माह 1200 रुपए का भुगतान समिति के जिला सहकारी बैंक आजमगढ़ में स्थित समिति के बैंक खाते में जमा किया। जिसका समायोजन समिति ने वसूली प्रमाण पत्र के बकाए धनराशि के सापेक्ष निर्धारित ब्याज एवं संग्रह शुल्क लेते हुए समायोजित किया। परिवादी ने मई 1996 में तत्कालीन जिला सहायक निबन्धक, सहकारी समितियाँ उoप्रo आजमगढ़ को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिसका उल्लेख उपरोक्त जिला सहायक निबन्धक ने अपने पत्र दिनांक 26 मई, 1997 में किया है पर उपरोक्त जिला सहायक निबन्धक द्वारा बगैर समिति का पक्ष सुने एक पक्षीय आदेश पारित किया गया है जो कि विधि विरुद्ध है, क्योंकि जिला सहायक निबन्धक उपरोक्त माननीय जिलाधिकारी, आजमगढ़ द्वारा सहकारी देयों की वसूली हेतु वसूली अधिकारी है। जिला सहायक निबन्धक उपरोक्त को वसूली प्रमाण पत्र में उल्लिखित धनराशि की किश्तें बनाने का विधितः अधिकार नहीं है और यदि साईटेशन के बाद परिवादी ने कोई आपत्ति प्रस्तुत की हो और उसकी जाँच में वह आपत्ति सही पायी जा रही हो तो उसके सुधार के आदेश के इतर अन्य पारित करने का भी विधितः अधिकार नहीं है। वसूली प्रमाण पत्र में कोई भी परिवर्तन अथवा कोई भी संशोधन का विधितः अधिकार मात्र वसूली प्रमाण पत्र निर्गतकर्ता अधिकारी सहायक आवास आयुक्त/सहायक निबन्धक, सहकारी आवास समितियां उoप्रo आवास एवं विकास परिषद् 104 महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ को ही प्राप्त है। जिला सहायक निबन्धक उपरोक्त का आदेश पत्रांक 453 दिनांक 26 मई 1997 की प्रति वसूली प्रमाण पत्र जारीकर्ता अधिकारी को नहीं भेजी गयी है और माननीय जिलाधिकारी आजमगढ़ तथा समिति सचिव को भी कोई प्रति नहीं भेजी गयी है। उक्त पत्रांक की प्रति प्राप्त नहीं है। साथ ही उपरोक्त जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियाँ उoप्रo आजमगढ़ ने अपने आदेश पत्रांक 453 दिनांक 26.05.1997 में यह आदेश कहीं नहीं दिया कि सम्बन्धित बकाएदार श्री कन्हैया लाल श्रीवास्तव से से संग्रह शुल्क न लिया जाए। विपक्षी माननीय फोरम न्यायालय को अवगत कराना चाहता है कि परिवादी के विरुद्ध निर्गत वसूली प्रमाण पत्र की धनराशि 151371.79 पर 16.25% वार्षिक ब्याज की दर से प्रत्येक माह का ब्याज रुपए 2049.82 आकलित किया है। जिस पर संग्रह शुल्क 204.98 है। इस प्रकार प्रत्येक माह 2254.80 मात्र ब्याज ही देय हो रहा है। जिसके सापेक्ष परिवादी द्वारा 1200 रुपए ही जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियां उoप्रo आजमगढ़ के आदेश पत्रांक 453 दिनांक 26.05.1997 के क्रम में समिति के बैंक खाते में जमा किया जा रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा उसके वसूली प्रमाण पत्र की धनराशि 151371.79 पर आकलित ब्याज भी सम्पूर्ण जमा नहीं किया गया। जिससे परिवादी पर काफी बकाया चला आ रहा है। परिवादी को समय समय पर उसके द्वारा मांगी गयी सूचना को उसको उपलब्ध करायी जाती रही। उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 70 में स्पष्ट प्राविधान है कि व्यवसाय से सम्बन्धित समिति एवं उसके सदस्यों के मध्य उत्पन्न विवाद निबन्धक के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे। इस प्रकार वादों के निस्तारण की किसी भी विधि में किसी भी बात के होते हुए किसी सिविल या अन्य न्यायालय को भी क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। इसी प्रकार उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 111 के अनुसार कोई भी सिविल या राजस्व न्यायालय ऐसे किसी भी वाद को जिसे उo प्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 70 के अन्तर्गत रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है, की सुनवाई नहीं करेगा। उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 117 के प्राविधानानुसार कोई बात सम्बन्धित सहकारी समिति को 60 दिन की अवधि की नोटिस दिए बिना संस्थित नहीं किया जा सकता। यही नहीं इस प्रकार की नोटिस दिए जाने से सम्बन्धित तथ्यों को वाद पत्र में भी उल्लिखित किया जाएगा। अर्थात् वाद पत्र में यह उल्लिखित हो कि 60 दिन की अवधि की नोटिस सहकारी समिति को प्रेषित कर दी गयी है। उक्त प्रकरण में इसका अनुपालन नहीं किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि प्रस्तुत वाद उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 65, धारा 111 एवं धारा 117 से बाधित है। परिवादी को अपने जमा धनराशियों के समायोजन से सम्बन्धित की गयी गणना के सम्बन्ध में कोई आपत्ति है तो उसे उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अधीन निबन्धक के समक्ष प्रस्तुत कर निर्णीत कराने का प्रथम विकल्प था, लेकिन परिवादी ने ऐसा नहीं किया। परिवादी पर दिनांक 30.09.2013 तक कुल बकाया 3,96,888.25 रुपया है। परिवादी का परिवाद पोषणीय नहीं है। अतः खारिज किया जाए।         

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी संख्या 01 द्वारा कागज संख्या 26/01 वसूली हेतु गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 26/02व03 वसूली प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 26/04 अन्तिम नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 26/05ता26/08 बन्धक विलेख की छायाप्रति, कागज संख्या 28/01ता28/09 तक आर.सी. का रजिस्टर की छायाप्रति, कागज संख्या 39/01व02 खाता सदस्य के लेजर रजिस्टर की छायाप्रति तथा कागज संख्या 39/03ता39/11 आर.सी. का रजिस्टर की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में तथा बतौर साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

कागज संख्या 18क² विपक्षी संख्या 02व03 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उनके द्वारा परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार करते हुए विपक्षी संख्या 01 के जवाबदावे में किए गए अभिकथनों का ही अपने जवाबदावे में अभिकथन किया गया है और अपने जवाबदावा के पैरा 33 में यह कहा गया है कि परिवादी पर दिनांक 31.08.2013 तक संघ का बकाया मुo 5,50,135.95 रुपया हो गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी संख्या 02व03 द्वारा कागज संख्या 20/01 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo लखनऊ द्वारा जारी बकाया हिसाब सम्बन्धी प्रपत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 20/02ता20/05 बन्धक विलेख की छायाप्रति, कागज संख्या 20/06ता20/09 उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo द्वारा प्रेषित पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/10व11 निर्गत वसूली प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/12 अन्तिम नोटिस की छायाप्रति तथा कागज संख्या 20/13व14 ऋण वसूली हेतु नोटिस की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी संख्या 01 द्वारा लिखित बहस भी प्रस्तुत किया गया है जिसका भी अवलोकन किया गया। इस मामले में यदि हम ‘उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम-1965 के अध्याय 09 की धारा-70 एवं विशेष रूप से धारा-70(ख)का अवलोकन करें तो इसमें यह स्पष्ट रूप से व्यवस्था दी गयी है कि किसी सदस्य, भूतपूर्व सदस्य या मृत सदस्य के माध्यम से दावा करने वाले किसी व्यक्ति, और समिति, उसकी प्रबन्ध कमेटी, जिसे आगे इस अध्याय में कमेटी अभिदिष्ट किया गया है, अथवा समिति के अधिकारी, अभिकर्ता या कर्मचारी जिनके अन्तर्गत भूतपूर्व अधिकारी, अभिकर्ता या कर्मचारी भी हैं, के बीच कोई मामला हो तो वह इस अधिनियम और नियमों के उपबन्धों के अनुसार कार्यवाही के लिए निबन्धक को अभिदिष्ट किया जाएगा और किसी ऐसे विवाद के सम्बन्ध में किसी न्यायालय को कोई वाद अथवा अन्य कार्यवाही ग्रहण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त न होगा। इसी प्रकार उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा-111 में भी इस प्रकार की बातों का उल्लेख किया गया है। यहाँ यह भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित बन्धक विलेख जो कि कागज संख्या 26/05ता26/08 है, में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चूंकि ऋण गृहीता समिति का सदस्य है तथा वह समिति की उपविधियों, उत्तर प्रदेश सहकारी समिति (संख्या 11-1966) तथा इस अधिनियम के अन्तर्गत बने नियमों द्वारा विधितः बाध्य है। ऐसी स्थिति में परिवादी उक्त समिति का सदस्य है। अतः यह मामला इस न्यायालय जिला उपभोक्ता आयोग में पोषणीय नहीं है। इसलिए उपरोक्त बातों व तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है। 

 

 

 

 

 

आदेश

                                                               परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

     

 

 

 

 

                                                                         गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह  

                                                        (सदस्य)                           (अध्यक्ष)

 

          दिनांक 14.02.2022

                                                      यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

                                                गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                                 (सदस्य)                              (अध्यक्ष)

 

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Bhanu Pratap

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