KIRAN LATA ETC. filed a consumer case on 14 Feb 2022 against RAM KRIPAL UPADHYAYA in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/79/2013 and the judgment uploaded on 18 Feb 2022.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 79 सन् 2013
प्रस्तुति दिनांक 05.06.2013
निर्णय दिनांक 14.02.2022
....................................................................................परिवादीगण।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
परिवादीगण ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि परिवादी संख्या 01 गृहिणी महिला है एवं परिवादी संख्या 02 पेशे से दुकानदार है। परिवादीगण ने वर्ष 1990 में मुo 1,20,000/- रुपया भवन निर्माण हेतु ऋण का प्रस्ताव ऋण का प्रस्ताव विपक्षी संख्या 01 के माध्यम से विपक्षी संख्या 02 व 03 के समक्ष रखा जो विपक्षीगण द्वारा स्वीकार किया गया। परिवादीगण को ऋण की धनराशि मुo 1,20,000/- रुपया स्वीकृत हुई एवं कुल 03 किश्तों में याची को 1,13,400/- रुपया ऋण प्राप्त हुआ तथा शेष धनराशि मुo 6,600/- रुपया मार्जिनमनी के रूप में विपक्षी संख्या 01 ने अपने पास रोक लिया। परिवादीगण विपक्षी संख्या 01 को किश्तों की धनराशि मुo 4,360/- रुपया त्रैमासिक किश्तों में अदा करना तय हुआ उक्त के मुताबिक परिवादीगण विपक्षी संख्या 01 को किश्तों की धनराशि साथ ही साथ बीमा के प्रीमियम के रूप में अतिरिक्त धनराशि अदा व बेबाक करते रहे और लगभग वर्ष 2000 तक विपक्षी संख्या 01 पर विश्वास कर उनके समिति के खाते में धनराशि अदा करते रहे। वर्ष 2000 में सर्वप्रथम परिवादी संख्या 01 को यह जानकारी विपक्षी संख्या 02 के द्वारा दी गयी कि उनकी किश्तों की धनराशि आवास संघ स्तर पर खुले उनके ऋण खाते में जमा नहीं हो रही है। तब परिवादीगण को गहरा सदमा पहुंचा और 2000 के पश्चात् के किश्तों की धनराशि सीधे परिवादीगण द्वारा आवास संघ के खाता संख्या 535 बैंक ऑफ बड़ौदा में जमा किया जाता रहा और जमा पर्ची की रसीद आवास संघ स्तर पर प्रस्तुत कर ऋण खाते में याचीगण समायोजित कराते रहे। समिति सचिव द्वारा परिवादीगण से वसूल की गयी किस्तों की धनराशि को अपने पास अकारण रोक कर धन का दुरूपयोग किया गया जिससे व्यथित होकर व वसूली हुई धनराशि मय ब्याज के आवास संघ स्तर पर खुले ऋण खाते में जमा कराने हेतु परिवादीगण ने सक्षम न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, आवेदन पत्र न्यायालय द्वारा निगरानी स्तर पर स्वीकार हुआ और विधिक कार्यवाही विपक्षी संख्या 01 के विरूद्ध प्रारम्भ हुई। परिवादीगण द्वारा समिति स्तर पर जमा की गयी किश्तों की धनराशि को समिति सचिव द्वारा समय से आवास संघ स्तर पर भुगतान न करने पर परिवादीगण का खाता अनियमित हो गया। परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 02 व 03 से बराबर प्रार्थना करता रहा कि वे समिति सचिव से सम्पर्क स्थापित कर रोकी हुई धनराशि को मेरे खाते में समयोजित कराकर कृत कार्यवाही से अवगत कराए किन्तु विपक्षीगण संख्या 02 व 03 के द्वारा घोर उपेक्षा बरतने के कारण ही समिति सचिव ने परिवादीगण के आवास संघ स्तर पर खुले ऋण खाते में धनराशि अदा नहीं किया और किस्त हेतु नियत 20 वर्ष का समय व्यतीत हो गया। परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 02 के माध्यम से जवाब नोटिस दिनांक 03.01.2009 जिसकी प्रति विपक्षी संख्या 01व 03 को भी पृष्ठांकित है, प्रेषित किया तथा विपक्षी संख्या 03 को दिनांक 13.02.2010 को पृष्ठांकित पत्र जो विपक्षी संख्या 02 को भी प्रेषित है प्रस्तुत कर धनराशि ऋण खाते में समायोजित करने का आग्रह किया। परिवादीगण के उपरोक्त पत्रों का प्रभाव रहा कि विपक्षी संख्या 02 ने अपने पत्रांक 2562/वसूली दिनांक 31.05.2010 द्वारा स्पष्ट किया कि समिति सचिव द्वारा मुo 106324.95 रुपए रोक लिया गया। ऋणी सदस्य के आवास संघ स्तर पर खुले ऋण खाते में जमा नहीं है। परिवादी ने विपक्षी संख्या 02 से सम्पर्क किया और रोकी गयी धनराशि को जमा कराने के लिए अनुरोध किया ताकि परिवादीगण के जिम्मे कोई बकाया शेष हो तो उस दशा में परिवादी शेष धनराशि को जमा कर ऋण मुक्त हो सके एवं अपनी सम्पत्ति जो समिति/आवास संघ के समक्ष बंधक है, को बंधक मुक्त करा कर वापस प्राप्त कर सके। इस सन्दर्भ में परिवादीगण ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 25.09.2012 को आवेदन पत्र विपक्षी संख्या 02 को प्राप्त कराया एवं उसकी प्रतिलिपि विपक्षी संख्या 01 को जरिए डॉक भेजा। परिवादी के उक्त पत्र के परिप्रेक्ष्य में विपक्षी संख्या 02 ने विपक्षी संख्या 01 को अपने पत्रांक 212 दिनांक 26.09.2012 के द्वारा आवश्यक दिशा निर्देश भी निर्गत किया। किन्तु विपक्षी संख्या 01 ने परिवादी के प्रार्थना पत्र दिनांक 25.09.2012 व तत्क्र में जारी दिशा निर्देश विपक्षी संख्या 02 कोई अनुपालन नहीं किया। विपक्षी संख्या 01 द्वारा ऋण की निर्धारित अवधि व्यतीत होने के बावजूद याचीगण को उनके द्वारा किस्त के रूप में जमा की गयी धनराशि/बीमा की राशि का कोई विवरण नहीं दिया। इस कारण परिवादीगण पर मुo 29,974.70 रुपए का दण्ड ब्याज का नाजायज भार पड़ा तथा समिति सचिव द्वारा मनमाने ढंग से 15,000/- रुपए वाद व्यय खर्च हिसाब में अंकित किया गया। जबकि किसी भी न्यायालय द्वारा वाद खर्च विपक्षी संख्या 01 के पक्ष में आयत नहीं है। अलावा बरी इसके परिवादी के कटौती अंश की धनराशि 6600/- रुपए के बजाए मात्र 6000/- रुपए ही दर्शाया गया है। इस तरह से समिति सचिव द्वारा 45,574.70 रुपए का अधिक हिसाब दिनांक 30.09.2012 तक का प्रस्तुत किया गया। परिवादीगण ने स्टेटमेन्ट ऑफ अकाउन्ट विपक्षीगण से मांग किया लेकिन विपक्षीगण ने नहीं दिया। विवश होकर परिवादी ने जानकारी हेतु प्रार्थना पत्र विपक्षी संख्या 02 के माध्यम से प्रेषित किया और उनके द्वारा प्रस्तुत गलत हिसाब के कारण परिवादीगण पर मुo 45,574.70 रुपया का अतिरिक्त भार पड़ा तथा इसके अतिरिक्त तीन दिन का अधिक ब्याज भी अदा करना पड़ा। विपक्षी संख्या 01 ने परिवादीगण द्वारा जमा करायी गयी किस्तों को रोककर दुरुपयोग कर लिया। इस कारण परिवादी को उक्त धनराशि अपने आवास संघ स्तर पर खुले ऋण खाते में समिति सचिव से जमा कराने में 12 साल तक काफी दौड़धूप व दौड़धूप के सिलसिले में परिवादी संख्या 02 को काफी धन व्यय करना पड़ा एवं परिवादीगण को काफी मानसिक व शारीरिक क्लेश भी हुआ तथा परिवादी संख्या 02 को अपना कारोबार भी बन्द करना पड़ा इस सिलसिले में भी परिवादीगण को आर्थिक रूप से नुकसान हुआ इस तौर पर परिवादीगण का क्रमशः भागदौड़ व पत्राचार व अन्य खर्च के रुप में 20,000/- एवं पैरवी के सिलसिले में जाने के कारण बार-बार दुकान बंद रहने के कारण लगभग 15,000/- रुपये का खर्च हुआ। परिवादीगण विपक्षीगण के उपभोक्ता हैं। परिवादी ने विपक्षी संख्या 01 से आग्रह किया कि वह परिवादीगण से अधिक वसूली गयी धनराशि/दण्ड ब्याज मुo 29,974.70 रुपया तथा वाद व्यय के रूप में वसूले गए 15,000/- रुपया तथा अंशधन की धनराशि मुo 600.00 जुमला 45,574.70 रुपए तथा तीन का वसूला गया अधिक ब्याज व मुo 45,000/- रुपया क्षतिपूर्ति का भी भुगतान कर दे। किन्तु वे पहले तो आजकल करके टालते रहे और अब वे भुगतान करने से इन्कार कर रहे हैं। जिससे परेशान होकर परिवादीगण ने परिवाद दाखिल किया है। अतः परिवादीगण को विपक्षी संख्या 01 से 45,574.70 रुपया व सम्पत्ति के कागजात तथा बन्धक मुक्त कराकर प्रमाण पत्र व ऋण स्टेटमेन्ट ऑफ एकाउन्ट दिलाया जाए साथ ही विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति के रूप में 45,000/- रुपया भी दिलाया जाए।
परिवादीगण द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 8/1 सचिव आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ द्वारा प्रस्तुत बकाया विवरण की छायाप्रति, कागज संख्या 8/2 रजिस्ट्री रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 8/3 परिवादी द्वारा प्रबन्धक उत्तर प्रदेश सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo के भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/4 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo द्वारा भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/5 रजिस्ट्री रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 8/6 परिवादी द्वारा महाप्रबन्धक सहकारी आवास एवं वित्त निगम लिo लखनऊ को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/7 स्टाम्प पेपर की छायाप्रति, कागज संख्या 8/8 नोटरी शपथ पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/9 स्टाम्प पेपर की छायाप्रति, कागज संख्या 8/10 नोटरी शपथ पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/11 शाखा प्रबन्धक सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo द्वारा जारी पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/12 शाखा प्रबन्धक सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo आजमगढ़ को सचिव आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ द्वारा भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/13 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo द्वारा बकाएदारों को भेजी गयी सूची की छायाप्रति, कागज संख्या 8/14 जवाब अन्तिम नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 8/15 चालू खाते में जमा रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 8/16 परिवादी द्वारा दिए गए जवाब की छायाप्रति, कागज संख्या 8/17 सामान्य जमा पर्ची की छायाप्रति, कागज संख्या 21 परिवादी द्वारा मूल दस्तावेज (विक्रय विलेख) की वापसी के सम्बन्ध में भेजे गए पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 22 मूल दस्तावेज के वापसी हेतु प्रार्थना पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 13क² विपक्षी संख्या 02व03 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उन्होंने यह कहा है कि परिवादीगण ने जाली, फर्जी, मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद तथ्यों के आधार पर परिवाद दाखिल किया है, जो हरगिज पोषणीय नहीं है। उoप्रo सहकारी आवास संघ अपने सहकारी आवास समितियों के माध्यम से समिति के सदस्यों के भवन निर्माण हेतु ऋण प्रदान करता है। परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 01 के माध्यम से विपक्षी संख्या 02 के समक्ष ऋणराशि हेतु प्रस्ताव रखा, जिसके सम्बन्ध में समस्त औपचारिकताएं पूर्ण की गयी तथा नियमानुसार विपक्षी संख्या 02 व 03 की सहमति पर दिनांक 01.02.1990 को सम्पादित रजिस्टर्ड बंधक विलेख के क्रम में मुo 1,20,000/- रुपया स्वीकार किया गया जो विपक्षी संख्या 01 के माध्यम से किश्तों में परिवादीगण को अदा किया गया। परिवादी एवं उसके जमानतदार उपरोक्त ने आवास संघ में अपने द्वारा संयुक्त रूप से इस आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत किया कि वह धनराशि का नियमित भुगतान करता रहेगा, लेकिन उनके द्वारा ऋणराशि का भुगतान नहीं किया गया। शाखा पर उपलब्ध अभिलेख के अनुसार परिवादीगण द्वारा सम्पूर्ण ऋणराशि जमा हो चुकी है। उनके विरुद्ध कोई ऋणराशि सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo की बकाया नहीं है। धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट में वर्णित है कि किसी भी विधि के होते हुए भी यदि कोई विवाद को-ऑपरेटिव सोसाइटीज के संविधान, प्रबन्धन या को-ऑपरेटिव सोसाइटी के व्यवसाय से सम्बन्धित हो तथा यह विवाद को-ऑपरेटिव सोसाइटीज के सदस्य, पूर्व सदस्यों के बीच हो तो ऐसी स्थिति में विवाद रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव सोसाइटीज के समक्ष प्रस्तुत होगा और इस प्रकार के विवादों से सम्बन्धित वाद का किसी भी न्यायालय को सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होगा। परिवादीगण ने अपने परिवाद पत्र में यह भी कहा है कि विपक्षी संख्या 01 एक सहकारी आवास समिति है और वह सदस्यों को विपक्षी संख्या 02 व 03 से गृह निर्माण हेतु आवश्यकतानुसार ब्याज पर कर्ज दिलाती है। इस प्रकार परिवादीगण विपक्षी संख्या 01 के सदस्य हैं। जिससे यह परिलक्षित होता है कि गृह निर्माण हेतु आवश्यकतानुसार कर्ज केवल उपरोक्त समिति के सदस्यों को ही दिया जाता है। यह अविवादित है कि विपक्षी संख्या 01, 02 व 03 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट में सोसाइटी के प्राविधानों से नियन्त्रित होते हैं। धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट में सोसाइटी के व्यवसाय से सम्बन्धित कार्यों के सम्बन्ध में उत्पन्न विवाद सोसाइटी के रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा न कि माननीय फोरम न्यायालय में। जिससे स्पष्ट है कि धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट में सिविल न्यायालय को इस प्रकार के वादों के निस्तारण की क्षेत्राधिकारिता प्राप्त नहीं है। अतएव यह बात धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट से बाधित प्रतीत होता है। धारा 111 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट के प्राविधानानुसार कोई भी सिविल या राजस्व न्यायालय ऐसे किसी भी वाद को जिन्हें धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट के अन्तर्गत रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, की सुनवाई नहीं करेगा। साथ ही धारा 117 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट के प्राविधानानुसार कोई भी वाद को-ऑपरेटिव सोसाइटीज को 60 दिन की अवधि की नोटिस दिए बिना संस्थित नहीं किया जा सकता है। यही नहीं इस प्रकार की नोटिस दिए जाने से सम्बन्धित तथ्यों को वाद पत्र में भी उल्लिखित किया जाएगा। अर्थात् वाद पत्र में यह उल्लिखित हो कि 60 दिन की अवधि की नोटिस को-ऑपरेटिव सोसाइटीज को प्रेषित कर दी गयी है। उक्त प्रकरण में इसका अनुपालन नहीं किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि धारा 117 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट के प्राविधानों से बाधित है। दावा वादी में आवश्यक पक्षकारों के असंयोजन का दोषबाधक है। परिवादीगण ने अनावश्यक रूप से विपक्षी संख्या 02 व 03 के विरुद्ध दाखिल किया है। उसकी बंधकशुदा सम्पत्ति पूर्व में ही अवमुक्त की जा चुकी है, जिसके सन्दर्भ में आवश्यक सूचना परिवादीगण को जरिए विपक्षी संख्या 01 द्वारा उपलब्ध करा दी गयी थी। सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo का अपना अलग खाता होता है तथा समिति का अपना अलग खाता होता है। समिति का यदि परिवादीगण पर कुछ बकाया होता है अथवा कोई विवाद होता है तो उस सन्दर्भ में समिति ही जवाबदेय है। परिवादीगण का परिवाद अधूरा, नासाफ, नामुकम्मल, वेग व बोगस है तथा आदेश 07 नियम 11 जाफ्ता दीवानी के तहत रिजेक्ट होने योग्य है। परिवादीगण का आवास संघ से कुछ भी लेना-देना नहीं रह गया है, उसकी बंधकशुदा सम्पत्ति भी अवमुक्त हो चुकी है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
कागज संख्या 18क² विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ विधि के अधीन उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 (उoप्रo अधिनियम संख्या 11, 1966) की धारा 8 के उपधारा-1 अधीन निबन्धित एक सहकारी आवास समिति है। जिसके निबन्धक का अधिकार माo आवास आयुक्त उoप्रo आवास एवं विकास परिषद् लखनऊ में निहित है। आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ का नियन्त्रण पर्यवेक्षण एवं संचालन उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अधीन वर्णित कानून समिति के निबन्धित उपविधि के अनुसार होता है तथा उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के धारा 171, 181, 182 एवं उoप्रo सहकारी समिति नियमावली 1968 के अधीन विधिवत गठित प्रबन्ध कमेटी द्वारा होता है। रामकृपाल उपाध्याय उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 31 एवं उoप्रo सहकारी समिति नियमावली 1968 द्वारा समिति की प्रबन्ध कमेटी द्वारा द्वारा नियुक्त सचिव है। उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo सहकारी आवास समितियों की शीर्ष संस्था है और जिसका निबन्धन भी उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 एवं नियमावली के उपबन्धों के अनुसार माo निबन्धक सहकारी आवास समितियां/आवास आयुक्त, उoप्रo आवास एवं विकास परिषद् लखनऊ द्वारा किया गया है। जिसके नियमानुसार प्रत्येक सहकारी आवास समिति को अपने निबन्धित उपविधि में वर्णित उपबन्धों के अन्तर्गत उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo का सदस्य होना आवश्यक है के अनुपालन में आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo भी उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo की विधिवत सदस्य है। आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति, आजमगढ़ की निबन्धित उपविधि के मुख्य उद्देश्य की धारा 5 के अनुसार समिति द्वारा उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ एवं अन्य स्रोतों से समिति सदस्यों की भूमि एवं प्रस्तावित भवन को बन्धक/अभ्यर्पित कर ऋण प्राप्त करना तथा उसी की धारा 2 के अनुसार गृह निर्माण हेतु अपने सदस्यों को सुविधाजनक शर्तों पर ऋण देना है। श्रीमती किरनलता आदि दिनांक 22.09.1989 को विपक्षी संख्या 01 समिति के समक्ष समिति की सदस्यता ग्रहण करने हेतु परिशिष्ठ ख उपविधि संख्या 8 के निर्धारित घोषणा पत्र पर प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जो समिति की प्रबन्ध समिति की बैठक दिनांक 05.10.1989 के प्रस्ताव संख्या 4 द्वारा स्वीकृत किया गया और तद्नुसार परिवादीगण किरनलता आदि को समिति की विधिवत सदस्यता प्रदान की गयी। जिसके क्रम में परिवादीगण द्वारा प्रति सदस्य 100 रुपये का एक अंशधन तय करने हेतु और प्रत्येक व्यक्ति का सदस्यता शुल्क विपक्षी समिति में जमा किया गया। उपरोक्त से स्पष्ट है कि परिवादीगण 01 समिति के अंशधारक एवं विधिवत सदस्य है। उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 17 एवं उoप्रo सहकारी समिति नियमावली 1968 के नियम 38 से 46 के अन्तर्गत समिति के विधिवत सदस्य है तथा यह भी स्पष्ट है कि परिवादीगण विपक्षी संख्या 01 समिति के उपभोक्ता नहीं हैं। परिवादीगण ने समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए अपना ऋण प्रार्थना पत्र समिति के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसे समिति ने संचालक मण्डल की बैठक दिनांक 05.10.1989 में पारित प्रस्ताव संख्या 05 द्वारा स्वीकृत करते हुए उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo को अग्रेतर ऋण स्वीकृत हेतु परिवादीगण का ऋण प्रार्थना पत्र अग्रसारित किया गया। उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo, लखनऊ ने विपक्षी संख्या 01 समिति को 1,20,000/- का ऋण निर्धारित शर्तों पर देने हेतु स्वीकृत किया। जिसके क्रम में परिवादीगण ने अपने भवन निर्माण हेतु प्रस्तावित भू-खण्ड को स्वीकृत ऋण की प्रतिभूति हेतु एक बन्धक विलेख विपक्षी संख्या 01 समिति के पक्ष में दिनांक 31 जनवरी, 1990 को निष्पादित कर निबन्धित कराया। जिसके पश्चात् दिनांक 01 फरवरी 1990 को समिति ने एक अभ्यर्पण विलेख उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo के पक्ष में निबन्धित कराया और वादीगण द्वारा विपक्षी संख्या 01 समिति के पक्ष में निष्पादित बन्धक विलेख की शर्तों एवं ऋण स्वीक आदेश की शर्तों के अनुरूप रुपए 1,20,000/- का ऋण उसके भवन निर्माण की क्रमिक प्रगति के अनुसार भुगतान किया गया। परिवादीगण को ऋण स्वीकृत पत्र में संघ द्वारा निर्धारित किया गया था कि स्वीकृत ऋण से 5% की दर से रुपए 6000/- किस्तों की क्रमिक अवमुक्त से अंशधन के रूप में काट लिया जाएगा और 0.5% की दर से प्रथम वर्ष 1990-91 का प्रीमियम ग्रुप इन्श्योरेन्स काट लिया जाएगा और शेष धनराशि का भुगतान वादीगण ऋणी सदस्य को किया जाएगा। उoप्रo सहकारी संघ लिo लखनऊ द्वारा कटौती की गयी अंशधन की धनराशि को अपने पास जमा रखा जाएगा तथा जब वादीगण सम्पूर्ण ऋण का भुगतान विपक्षी संख्या 01 समिति को करेंगे और विपक्षी संख्या 01 समिति उoप्रo सहकारी समिति आवास संघ लिo को तद्नुसार भुगतान करेगी उस समय इस अंशधन की धनराशि का समायोजन वादीगण के बकाए के विरुद्ध किया जाएगा। इस प्रकार याचीगण का यह कहना है कि बिल्कुल असत्य है कि रुपए 6600/- की धनराशि विपक्षीगण ने अपने पास रोक रखा है। परिवादीगण द्वारा विपक्षी संख्या 01 के पक्ष में निष्पादित बन्धक विलेख इस शर्तों के अनुसार वादीगण अपने लिए गिए ऋण के पुनर्भुगतान के क्रम में देय निर्धारित किस्तों का भुगतान प्रत्येक वर्ष 01अप्रैल, 01जुलाई, 01अक्टूबर और 01जनवरी को एवं प्रत्येक वर्ष के 31 मार्च के मूल अवशेष ऋण पर संघ द्वारा निर्धारित ग्रुप इन्श्योरेन्स प्रीमियम का भुगतान विपक्षी संख्या 01 समिति को करेगा। यदि परिवादीगण द्वारा इसमें चूक की जाती है तो परिवादीगण द्वारा भुगतान करने की तिथि तक संघ द्वारा निर्धारित प्रतिशित की दर से बकाया किस्तों की धनराशि पर दंड ब्याज और बकाया प्रीमियम पर ब्याज विपक्षी संख्या 01 द्वारा आकलित कर वसूल किया जाएगा। परिवादीगण को स्वीकृ ऋण रुपए 1,20,000/- में से रुपए 90,000/- 13.25% की ब्याज दर से और शेष 30,000/- रुपए 13.75% की ब्याज दर से 20 वर्षों के लिए 80 त्रैमासिक समीकृत किस्तों में पुनर्भुगतान करने हेतु स्वीकृत किया गया था। जिसकी प्रथम देय किस्त दिनांक 01.04.1990 को देय थी। जिसमें दिनांक 01.04.1990, 01.07.1990 और 01.10.1990 की तीन किस्तें मात्र ब्याज की हैं। तदुपरान्त चौथी किस्त से लेकर 80वीं किस्त तक रुपए 435840/- की नियमित किस्तें परिवादीगण द्वारा विपक्षी संख्या 01 समिति को देय होती थी। परिवादीगण ने दिनांक 01.04.1990 से 14.07.2001 तक समय-समय पर धनराशियाँ समिति को उपलब्ध कराया जिसे सदस्य के ऋण खाते में विधिवत समायोजित कर उसकी रसीदें उसे समय समय पर उपलब्ध करा दी जाती थीं और अवशेष किस्तों के बकाए से परिवादीगण को व्यक्तिगत रूप से अवगत कराया जाता रहा। परिवादीगण ने दिनांक 19.07.2001 को नोटिस दफा 80जाoदीo एवं धारा117 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटी ऐक्ट के अन्तर्गत एक नोटिस विपक्षी संख्या 01 को दिया। परिवादीगण ने दिनांक 11.09.2001 को माo न्यायालय सी.जी.एम. आजमगढ़ में अन्तर्गत धारा 408 भाoदंoविo प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 153(3) दिया गया, जिसे माo न्यायालय सी.जी.एम. आजमगढ़ ने निरस्त कर दिया। जिसके पश्चात् परिवादीगण ने उपरोक्त आदेश न्यायालय सी.जी.एम. आजमगढ़ के विरुद्ध एक क्रिमिनल निगरानी संख्या 269 सन् 2001 न्यायालय श्रीमान् अपर सत्र न्यायाधीश/फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या 03 के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें माo न्यायालय ने निगरानी स्वीकार करते हुए अवर न्यायालय को विधि के अनुसार आदेश पारित करने का आदेश प्रदान किया। तदुपरान्त विपक्षी संख्या 01 ने माo अपर सत्र न्यायाधीश/फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या 03 द्वारा परिवादीगण के पक्ष में पारित आदेश के विरुद्ध माo उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष केस अप्लीकेशन यू./एस. 482 नं.9667 ऑफ 2002 योजित किया जिसमें माo उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने अपर सत्र न्यायाधीश /फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या 03 द्वारा परिवादीगण के पक्ष में पारित आदेश स्थगित कर दिया। यह स्थगन आदेश वर्तमान में भी प्रभावी है और सम्पूर्ण प्रकरण माo उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष विचाराधीन है। परिवादीगण ने दिनांक 01.10.2001 से क्रमशः 28.03.2010 तक की धनराशियाँ उoप्रo सहकारी आवास संघ के खाते में जमा कराया और वहाँ से समिति के पक्ष में निर्गत रसीद की प्रति प्राप्त किया। संघ से निर्गत रसीद से स्पष्ट निर्देश है कि परिवादीगण इस रसीद के साथ अपनी विपक्षी संख्या 01 समिति के समक्ष उपस्थित हो और संघ में जमा धनराशि का अभिलेखों के अनुसार समायोजन कराकर समिति की रसीद प्राप्त करें, लेकिन परिवादीगण द्वारा ऐसा नहीं किया गया और दिनांक 26.03.2010 को पश्चात् कोई भी धनराशि बकाए के विरुद्ध परिवादीगण द्वारा जमा नहीं किया गया। उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 एवं नियमावली के अधीन नियम संख्या 374घ के अनुसार कोई भी अभिलेख की सूचना अथवा प्रतिलिपि प्राप्त करने की व्यवस्था है परन्तु परिवादीगण द्वारा इसका पालन नहीं किया गया। परिवादीगण द्वारा हस्ताक्षर रहित और उनके वकील श्री रमेशचन्द्र पाण्डेय द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रार्थना पत्र दिनांक 25.09.2012 को विपक्षी संख्या 02 के समक्ष प्रेषित किया गया। जिसके क्रम में विपक्षी संख्या 02 ने परिवादीगण के ऋण खाते के बकाए के सम्बन्ध में अनौपचारिक सूचना चाही। जिसे समिति ने तत्समय विपक्षी संख्या 02 को उपलब्ध करा दी गयी। जिसके सम्बन्ध में परिवादीगण ने समस्त बकाए की धनराशि को उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo के बैंक खाते में जमा करा दी गयी और उसकी जमा पर्ची विपक्षी संख्या 02 के माध्यम से विपक्षी संख्या 01 को प्राप्त करायी गयी। विपक्षी संख्या 01 ने उक्त जमा धनराशि का परिवादी संख्या 01 के ऋण खाते के बकाए के सापेक्ष समायोजित करते हुए परिवादीगण की विपक्षी संख्या 01 समिति के पक्ष में बन्धकित एवं उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo लखनऊ के पक्ष में अभ्यर्पित सम्पत्ति को अवमुक्त करे तथा अंशधन की कटौती की गयी धनराशि 6000 रुपए को अवशेष ऋण के सापेक्ष समायोजित करने का अनुरोध करते हुए प्रस्ताव पारित किया जिसके क्रम में उoप्रo सहकारी आवास संघ लिo ने परिवादीगण की बन्धकित सम्पत्ति अवमुक्त करते हुए वांछित अभिलेख समिति को प्राप्त करा दिए गए, जिसकी सूचना परिवादीगण को दी गयी लेकिन परिवादीगण ने अपने अभिलेख समिति से प्राप्त नहीं किया। अपितु एक शपथ पत्र दिनांक 20.10.2012 विपक्षी संख्या 01 के सापेक्ष प्रस्तुत किया जिसकी धारा 02 में कथन किया कि शपथकर्ता के जिम्मे ऋण से सम्बन्धित कोई धनराशि बकाया नहीं है तथा धारा 3 में यह कथन किया कि शपथकर्ता (परिवादी) एवं समिति सचिव के मध्य किसी भी न्यायालय में कोई वाद विचाराधीन नहीं है असत्य है क्योंकि परिवादीगण से सम्बन्धित वाद माo उच्चन्यायालय इलाहाबाद के समक्ष विचाराधीन है, जिसका उल्लेख जवाबदेही की धारा 27 में पूर्व में ही किया गया है। परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र में दिनांक 20.10.2012 की धारा 4 में पंजीकरण कार्यालय सदर आजमगढ़ से सम्पत्ति को बन्धक मुक्त कराने का उल्लेख है। इसके सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 01 द्वारा दिनांक 18.11.2012 को समिति की प्रबन्ध कमेटी के पारित प्रस्ताव से परिवादीगण को अवगत कराया गया है कि समिति सचिव के विरुद्ध वादीगण द्वारा संस्थित वाद का निर्णय जब तक सक्षम न्यायालय द्वारा नहीं कर दिया जाता है तब तक परिवादीगण की सम्पत्ति निबन्धन कार्यालय से डी मार्टेज न कराई जाए। साथ ही यह भी प्रस्ताव पारित किया गया कि विपक्षी संख्या 01 के विरुद्ध परिवादीगण गलत तथ्यों के आधार पर वाद प्रस्तुत किया गया, जिसमें आने वाले वाद व्यय की वसूली परिवादीगण से की जाए। क्योंकि परिवादीगण ने उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अधीन की व्यवस्थाओं का अनुपालन नहीं किया है। अतः विपक्षी संख्या 01 द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुपालन में याचीगण से वाद व्यय की वसूली की गयी। दिनांक 16.04.2013 को समिति ने पुनः एक पत्र परिवादीगण को अपना अभिलेख प्राप्त करने हेतु प्रेषित किया परन्तु परिवादीगण ने कोई संज्ञान नहीं लिया। उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 एवं नियमावली 1968 के अधीन निबन्धित सहकारी आवास समिति है और उक्त अधिनियम एवं नियमावली के उपबन्धों से आबद्ध है। धारा 111 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाईटी ऐक्ट 1965 के प्राविधानानुसार कोई भी वाद जिन्हें धारा 70 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटी ऐक्ट के अन्तर्गत रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, की सुनवाई नहीं करेगा। साथ ही धारा 117 उoप्रo को-ऑपरेटिव सोसाइटी ऐक्ट 1965 के प्राविधानों के अनुसार कोई भी वाद सम्बन्धित सहकारी समिति को 60 दिन की अवधि की नोटिस दिए बिना संस्थित नहीं किया जा सकता। यही नहीं इस प्रकार की नोटिस दिए जाने से सम्बन्धित तथ्यों को वाद पत्र में भी उल्लिखित किया जाएगा। अर्थात् वाद पत्र में यह उल्लिखित हो कि 60 दिन की अवधि की नोटिस सहकारी समिति को प्रेषित कर दी गयी है। उक्त प्रकरण में इसका अनुपालन नहीं किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि प्रस्तुत वाद उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम 1965 की धारा 65, धारा 111 एवं धारा 117 से बाधित है। परिवादीगण को अपने द्वारा लिए गए ऋण के सापेक्ष देय किस्तों की जमा धनराशियों के समायोजन के सम्बन्ध में यदि कोई आपत्ति है तो उसे उपयुक्त फोरम निबन्धक सहकारी आवास समितियां उoप्रo के समक्ष प्रस्तुत किया जाना न्यायोचित था, जहाँ परिवादीगण/विपक्षीगण के अभिलेखों की विधिवत जाँच कराकर यदि कोई पक्ष दोषी है तो निबन्धक को दण्डित करने का पूरा अधिकार है। परिवादीगण का परिवाद अधूरा, नासाफ, नामुकम्मल, जाली, फर्जी, मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद है जो हरगिज पोषणीय नहीं है। अतः खारिज किया जाए।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी संख्या 01 द्वारा कागज संख्या 43/1 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo लखनऊ द्वारा जारी पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 43/2 खाते में जमा धनराशि के विवरण की मूल प्रति, कागज संख्या 43/3 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निमग लिo द्वारा जारी प्राप्ति रसीद/समायोजन पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 43/4 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo द्वारा जारी खाते से सम्बन्धित पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 43/5 खाते में जमा धनराशि के विवरण की मूल प्रति, कागज संख्या 43/6 सचिव आदर्श सहकारी गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ द्वारा परिवादी को लिखे गए पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 43/7 सचिव आदर्श गृह निर्माण समिति लिo आजमगढ़ द्वारा परिवादी को लिखे गए मूल दस्तावेज (विक्रय विलेख) के सम्बन्ध में पत्र की मूल प्रति, कागज संख्या 39/1ता39/8 बन्धक विलेख की छायाप्रति, कागज संख्या 39/09व10 अभ्यर्पण विलेख की छायाप्रति, कागज संख्या 39/11ता39/18 न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आजमगढ़ में दायर मुकदमें से सम्बन्धित प्रपत्रों की छायाप्रति, कागज संख्या 39/19 कार्यालय ज्ञाप की छायाप्रति, कागज संख्या 39/20 सहकारी आवास निर्माण एवं वित्त निगम लिo लखनऊ द्वारा भेजे गए पत्र की छायाप्रति तथा कागज संख्या 39/21ता39/25 अवमुक्त की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में तथा बतौर साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी संख्या 01 द्वारा लिखित बहस भी प्रस्तुत किया गया है जिसका भी अवलोकन किया गया। इस मामले में यदि हम ‘उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम- 1965 के अध्याय 09 की धारा-70’ एवं विशेष रूप से ‘धारा-70 (ख)’ का अवलोकन करें तो इसमें यह स्पष्ट रूप से व्यवस्था दी गयी है कि किसी सदस्य, भूतपूर्व सदस्य या मृत सदस्य के माध्यम से दावा करने वाले किसी व्यक्ति, और समिति, उसकी प्रबन्ध कमेटी, जिसे आगे इस अध्याय में कमेटी अभिदिष्ट किया गया है, अथवा समिति के अधिकारी, अभिकर्ता या कर्मचारी जिनके अन्तर्गत भूतपूर्व अधिकारी, अभिकर्ता या कर्मचारी भी हैं, के बीच कोई मामला हो तो वह इस अधिनियम और नियमों के उपबन्धों के अनुसार कार्यवाही के लिए निबन्धक को अभिदिष्ट किया जाएगा और किसी ऐसे विवाद के सम्बन्ध में किसी न्यायालय को कोई वाद अथवा अन्य कार्यवाही ग्रहण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त न होगा। इसी प्रकार ‘उoप्रo सहकारी समिति अधिनियम- 1965 की धारा-111’ में भी इस प्रकार की बातों का उल्लेख किया गया है। यहाँ यह भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित बन्धक विलेख जो कि कागज संख्या 39/1ता39/8 है, में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चूंकि ऋण गृहीता समिति का सदस्य है तथा वह समिति की उपविधियों, उत्तर प्रदेश सहकारी समिति (संख्या 11-1966) तथा इस अधिनियम के अन्तर्गत बने नियमों द्वारा विधितः बाध्य है। ऐसी स्थिति में परिवादीगण उक्त समिति के सदस्य हैं। अतः यह मामला इस न्यायालय जिला उपभोक्ता आयोग में पोषणीय नहीं है। इसलिए उपरोक्त बातों व तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 14.02.2022
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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