राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-654/2022
डॉ0 राजमणि शर्मा उर्फ राजमणि विश्वकर्मा पुत्र श्री बच्चेलाल शर्मा/विश्वकर्मा, डायरेक्टर शानू चिल्ड्रेन अस्पताल, धरवारा रोड, टैक्सी स्टैण्ड जहानागंज, जनपद आजमतगढ, मूल निवासी ग्राम परसूपुर, पोस्ट दौलताबाद, जिला आजमगढ़।
...............अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
राम दुलारे राय पुत्र श्री बोला राय, निवासी ग्राम व पोस्ट मितूपुर, तसहली सदर जिला आजमगढ़।
.............प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री राजेन्द्र कुमार राजभर
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 29.8.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, आजमगढ़ द्वारा परिवाद सं0-190/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.5.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री देवी श्रेया आयु लगभग 02 वर्ष 08 माह अचानक अस्वस्थ हो गयी, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के अस्पताल में दिनांक 22.9.2012 को दिखाया गया तो अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा बच्ची का इलाज शुरू कर खून की जांच कराने के लिए पर्ची लिखी गई, जिसे विष्णु एक्स-रे व पैथालॉजी सेन्टर जहानागंज में कराया गया और
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रिपोर्ट अपीलार्थी/विपक्षी डॉ0 राजमणि शर्मा को दिखायी गयी, तब अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की बेटी को अपने अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी के बेटी का इलाज दिनांक 22.9.2012 से 25.9.2012 तक अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा किया जाता रहा, अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा जो भी शुल्क दवा का, अस्पताल का खर्चा व अपनी फीस के रूप में मॉगा जाता रहा, उसे प्रत्यर्थी/परिवादी दवारा समय पर जमा किया जाता रहा।
यह भी कथन किया गया है कि दिनांक 25.9.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री के स्वास्थ्य में कोई सुधार न होकर हालत काफी नाजुक हो गयी तब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी डॉ0 राजमणि शर्मा से कहा गया कि आपके द्वारा दी जा रही दवा से कोई फायदा नहीं हो रहा है बल्कि तबियत और बिगड़ती जा रही है, इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी पुत्री/मरीज को आजमगढ़ जिला अस्पताल ले जाना चाहता है, इसलिए आप दवारा जो इलाज किया गया है उसकी पर्ची दे दीजिए और मरीज को रैफर कर दीजिए। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा अपने अस्पताल का बकाया भुगतान करने के लिए कहा गया और पूर्ण भुगतान होने से उपरान्त अपीलार्थी/विपक्षा डॉक्टर दवारा जाँच रिपोर्ट और जो दवा उनके द्वारा चलायी गयी थी उस दवा के पर्चे के ऊपर से अपना नाम व अस्पताल का नाम व डिग्री का हिस्सा फाड़कर प्रत्यर्थी/परिवादी के भाई को दे दिया। अपीलार्थी/विपक्षी के इस कार्य पर प्रत्यर्थी/परिवादी को संदेह हुआ, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री की हालत ठीक न होने के कारण वह अपनी बेटी को जिला अस्पताल, आजमगढ़ लेकर चला गया। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा इलाज व अपने अस्पताल के शुल्क व अपनी
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फीस के रूप में कुल 18,500/- रुपए समय-समय पर प्रत्यर्थी/परिवादी से जमा कराये गये।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपनी पुत्री को दिनांक 25.9.2012 को समय लगभग 1.30 बजे दिन में जिला अस्पताल लेकर पहुंचा और इमरजेन्सी में भर्ती करने के पश्चात् बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर आए और उन्होंने पूर्व इलाज का पर्चा मांगा और पर्चा देखते ही डॉक्टर ने कहा कि रोग व जॉच रिपोर्ट के आधार पर कोई दवा इलाज नहीं हुआ है और रोग बिगड़ जाने के बाद आप लोग यहाँ आए हैं। इसके बाद उन्होंने इलाज शुरू किया, परन्तु लगभग आधे घण्टे बाद ही प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री की मृत्यु हो गई, इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी पुत्री के इलाज में हुए व्यय एवं अपीलार्थी/विपक्षी डॉक्टर की लापरवाही के कारण हुई प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री की मृत्यु की क्षति हेतु क्षतिपूर्ति दिलाये जाने के अनुतोष के साथ परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया कि अपीलार्थी/विपक्षी का नाम राजमणि विश्वकर्मा है जिसका कोई अस्पताल या नर्सिंग होम जहानागंज में नहीं है और न तो शानू चिल्ड्रेन अस्पताल है। सारी घटना परिवाद पत्र काल्पनिक, फर्जी एवं मनगढन्त है तथा शत्रुता पर आधारित एवं सोची समझी सुनियोजित योजना है। अपीलार्थी/विपक्षी राजमणि विश्वकर्मा मेडिकल कॉलेज इटौरा चण्डेश्वर से फिजियोथिरेपी में डिप्लोमा का कोर्स 02 वर्षीय जुलाई, 2011 से जुलाई 2013 में किया। परन्तु इस बीच उसके द्वारा कोई अस्पताल या नर्सिंग नहीं चलाया गया और न ही आज वह कोई नर्सिंग होम चलाता है।
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यह भी कथन किया गया कि माह जून, 2012 में अपीलार्थी/विपक्षी राजमणि अपने मित्र अरविन्द शर्मा पुत्र सोचन राम शर्मा, निवासी ग्राम व पोस्ट- कोल्हूखोर, थाना- जहानागंज, आजमगढ़ के यहाँ बर्थडे में गया था और वहीं पर प्रत्यर्थी/परिवादी से किसी मामूली बात पर तू-तू मैं-मैं हो गयी, किन्तु जाते समय प्रत्यर्थी/परिवादी ने धमकी दी थी कि वह भूमिहार का बच्चा है इसका अपीलार्थी से बदला लेकर रहेगा। अपीलार्थी/विपक्षी इस धमकी से मन ही मन भयभीत था और अपने कई मित्रों और अधिवक्ता बन्धुओं से भी इस बात को बताया तो उन्होंने कहा कि शान्त रहो कुछ नहीं होगा, प्रत्यर्थी/परिवादी का सारा परिवाद झूठा व कल्पनीय है, जो निरस्त होने योग्य है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता को विस्तार से सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से नोटिस तामीली के बावजूद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री का इलाज दिनांक 22.9.2012 से 25.9.2012 तक अपीलार्थी/विपक्षी डॉक्टर द्वारा शानू चिल्ड्रेन अस्पताल, आजमगढ़ में किया जाता रहा और जब दिनांक 25.9.2012 तक प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ तथा उसकी तबियत और बिगड़ती गई तब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी पुत्री को आजमगढ़ जिला अस्पताल ले लाने के लिए अपीलार्थी/विपक्षी डॉक्टर से कहा
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गया तो उनके द्वारा अस्पताल का पूर्ण भुगतान करने पर जाँच रिपोर्ट और उनके द्वारा चलायी गयी दवा के पर्चे के ऊपर से अपना नाम व अस्पताल का नाम व डिग्री का हिस्सा फाड़कर प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया गया तदोपरांत जिला चिकित्सालय आजमगढ़ में प्रत्यर्थी/परिवादी की पुत्री की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई।
प्रस्तुत मामले में जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत प्रपत्रों के परिशलन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख यह कथन किया गया कि अपीलार्थी नर्सिंग होम अथवा कोई अस्पताल नहीं चलाता है उसने फिजियोथरैपी का डिग्री ली है। विष्णु एक्स-रे एण्ड पैथालॉजी सेन्टर दवारा जारी रिपोर्ट के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि मरीज को डॉ० आर.एम शर्मा द्वारा ही वहाँ रैफर किया गया था। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी डॉ0 आर.एम. शर्मा का यह कथन असत्य पाया जाता है कि वह नर्सिंग होम नहीं चलाते हैं। अपीलार्थी/विपक्षी डॉ0 आर.एम. शर्मा के पास केवल फिजियोथिरैपी कि डिग्री है और कोई डिग्री नहीं है।
यहॉ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि चिकित्सीय संव्यवहार के अन्तर्गत एक चिकित्सक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने ज्ञान, प्रतिभा एवं अनुभव के अनुसार किसी पीड़ित अथवा व्यथित व्यक्ति के प्रति उसकी चिकित्सा अथवा शल्य क्रिया के अपने चिकित्सीय संव्यवहार को स्थापित चिकित्सीय सिद्धान्तों के अधीन रहते हुए पूर्ण ज्ञान एवं सजगता से अपने इस दायित्व का निर्वहन करेगा। परन्तु जहॉ तक प्रस्तुत मामले में चिकित्सक के उक्त बच्ची के उपचार हेतु प्राप्त दिये गये निर्देशों पर बच्ची का विष्णु एक्स-रे एण्ड पैथालॉजी सेन्टर दवारा जारी रिपोर्ट का प्रश्न है उससे यह सिद्ध होता है कि
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अपीलार्थी द्वारा ही अपनी योग्यता के अनुरूप बच्ची का इलाज कर सेवा में कमी की गई है, जिससे कि उसकी स्थिति दिन प्रतिदिन बिगडती गई और अंततोगत्वा बच्ची की मृत्यु हो गई। इस संबंध में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विधिक सिद्धांतों पर विचार करने के उपरांत जो निष्कर्ष अपने निर्णय में अंकित किया गया है, वह मेरे विचार से पूर्णत: उचित एवं विधि सम्मत है, उसमें किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलीय स्तर पर नहीं पायी गई, तद्नुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 30 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1