राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-206/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, कांशीराम नगर द्वारा परिवाद सं0-30/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 04-05-2012 के विरूद्ध)
एक्जक्यूटिव इंजीनियर, दक्षिणांचल विद्युत विभाग, कासगंज, जिला-कांशीराम नगर।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
राम चरन पुत्र कुन्दन लाल (मृतक) द्वारा सुरेश चन्द्र पुत्र राम चरन (पुत्र) निवासी नदरई, कासगंज, जिला – कांशीराम नगर।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री मोहन अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0डी0 क्रान्ति विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 05-08-2024.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत, जिला उपभोक्ता आयोग, कांशीराम नगर द्वारा परिवाद सं0-30/2011 रामचरन बनाम अधिशासी अभियन्ता दक्षिणांचल विद्युत विभाग में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 04-05-2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
विद्वान जिला आयोग ने अपीलार्थी/विपक्षी को निर्देशित किया है कि परिवादी को 7.50 रू0 प्रति माह की दर से विद्युत बिल वसूला जाए। तदनुसार पूर्व में जारी बिल निरस्त कर दिए।
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परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने कुटीर ज्योति योजना के अन्तर्गत विद्युत कनेक्शन नं0 050372 दिनांक 04-12-1989 को लिया था और इसकी बिल बुक भी जारी की गई, जिसमें 7.50 रू0 प्रतिमाह भुगतान किया जाना अंकित है, जिसका भुगतान किया। विपक्षी ने दिनांक 25-03-2010 को अंकन 26,900/- रू0 का बिल जारी किया। परिवादी ने इस सम्बन्ध में शिकायत की तथा विपक्षी से बिल ठीक कराने और 7.50 रू0 की दर से बिल जमा कराए जाने का अनुरोध किया।
विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र में कथन किया कि अगस्त, 2002 से बिल भुगतान का अधिभार 150/- रू0 प्रतिमाह हो गया है, जिसे परिवादी ने जमा नहीं किया है। इसी कारण बिल जारी किया गया है, जिसमें छूट भी दी गई है।
पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करते हुए विद्वान जिला आयोग ने यह निष्कर्ष दिया कि विपक्षी द्वारा जारी बिल बुक में विद्युत दर 7.50 रू0 प्रतिमाह अंकित है तो परिवादी इसी दर से बिल देने के लिए उत्तरदायी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बिल किस दर से वसूला जाए, यह सुनिश्चित करने का अधिकार विद्वान जिला आयोग को नहीं है। परिवादी द्वारा प्रारम्भ में जब विद्युत कनेक्शन लिया गया था, तब वर्ष 1989 में 7.50 रू0 की दर से भुगतान किया जाना था, परन्तु बाद में यह 150/- रू0 प्रतिमाह हो गया। जो ब्याज अधिरोपित किया गया है, व नियमों के अन्तर्गत किया गया है। इसलिए विद्वान जिला आयोग को बिल की राशि में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के उक्त तर्क में विधिक बल प्रतीत होता है, क्योंकि जिस दर से विद्युत कनेक्शन प्रारम्भ में दिया गया वह दर हमेशा के लिए स्थिर नहीं रखी गई। विद्युत दर में समय-समय पर संशोधन नियमित रूप से होता रहता है। संशोधित दर के अनुसार विद्युत बिल की देयता बनती है। ऐसी स्थिति में पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग
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द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुकूल न होने के कारण अपास्त होने योग्य है तथा परिवाद खारिज होने योग्य है।
तदनुसार वर्तमान अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील, स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, कांशीराम नगर द्वारा परिवाद सं0-30/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 04-05-2012 अपास्त किया जाता है। परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
अपीलार्थी द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उस धनराशि को अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार एक माह में अपीलार्थी को वापस अदा किया जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक : 05-08-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.