राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1350/2017
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-प्रथम, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या 53/2016 में पारित आदेश दिनांक 25.05.2017 के विरूद्ध)
1. Chief Medical Superintendent, Northern Railway, Moradabad Division, Moradabad.
2. Divisional Rail Manager, Divisional Rail Manager Office, District Moradabad.
...................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
Ram Charan Lal S/O Late Sri. Chandan Singh R/O Mohalla Sarayn Khalsa, P.S. Civil Lines Moradabad.
................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री वैभव राज के सहयोगी
श्री गोविंद चतुर्वेदी,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 11.03.2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-53/2016 राम चरन लाल बनाम मुख्य चिकित्सा अधीक्षक रेलवे अस्पताल उत्तर रेलवे मुरादाबाद व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 25.05.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
-2-
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादी का परिवाद स्वीकृत किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण इस आदेश से एक माह के अंदर प्रश्नगत चिकित्सा प्रतिपूर्ति की धनराशि अंकन-16000/-रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वाद दायरा तिथि ताअदायगी परिवादी को अदा करें।
विपक्षीगण अंकन-2500/-रूपये क्षतिपूर्ति एवं अंकन-1500/-रूपये वाद व्यय भी परिवादी को अदा करें।''
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वैभव राज के सहयोगी श्री गोविंद चतुर्वेदी और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह रेलवे विभाग का सेवानिवृत्त
-3-
कर्मचारी है। उत्तर रेलवे में सेवाकाल के दौरान उसके एवं उसके परिवार को रेलवे की ओर से चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती थी और सेवानिवृत्त होने के पश्चात् सर्कुलर दिनांक 05.11.1997 के अनुसार रिटायर्ड एम्पलोयीज लिबराइज्ड हैल्थ स्कीम के अन्तर्गत उसकी आखिरी तनख्वाह लेकर प्रश्नगत स्कीम के अन्तर्गत उसकी व उसके परिवार की चिकित्सा सेवा कवर की गयी थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 29.11.2013 को वह अचानक बीमार हुआ, जिसके लिए वह अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के अधीन रेलवे अस्पताल मुरादाबाद गया जहॉं अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 द्वारा उसका अल्ट्रासाउण्ड कराया गया तथा उसे बताया गया कि उसका आपरेशन किया जाना है, परन्तु उनके यहॉं कोई सर्जन उपलब्ध नहीं था इस कारण उसे अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 ने जिला अस्पताल दिनांक 29.11.2013 को रेफर कर दिया। तब प्रत्यर्थी/परिवादी जिला अस्पताल गया तो वहॉं भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी इस कारण उसने अधिक तकलीफ होने के कारण मजबूरी में डा0 राजशेखर के सिविल लाइन स्थित नर्सिंग होम शेखर हास्पिटल किडनी एण्ड स्टोन क्लीनिक में आपरेशन कराया जहॉं दिनांक 09.12.2013 को डा0 राजशेखर गुप्ता द्वारा उसका आपरेशन किया गया, जिसमें उसका लगभग 16,000/-रू0 खर्च हुआ और इसका प्रमाण पत्र शेखर हास्पिटल द्वारा जारी किया गया तथा डिस्चार्ज समरी व बिल दिनांक 11.12.2013 दिया गया। परिवाद पत्र के अनुसार उपरोक्त
-4-
16,000/-रू0 के अतिरिक्त प्रत्यर्थी/परिवादी का दवाईंया खरीदने तथा ट्रांसपोर्टेशन आदि में लगभग 4000/-रू0 खर्च हुआ। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी का कुल 20,000/-रू0 इलाज में खर्च हुआ है, जिसके भुगतान हेतु उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण से अनुरोध किया, परन्तु उन्होंने भुगतान नहीं किया। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण को दिनांक 22.09.2014 को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा फिर भी उन्होंने प्रत्यर्थी/परिवादी को उसकी चिकित्सा में हुए उपरोक्त व्यय की धनराशि अदा नहीं की। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और अपने इलाज में हुए उपरोक्त व्यय 20,000/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षीगण से दिलाये जाने की मांग की है। साथ ही मानसिक कष्ट हेतु 25,000/-रू0 और वाद व्यय हेतु 15,000/-रू0 और मांगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण ने लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया है और कहा है कि परिवाद हेतु वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। प्रत्यर्थी/परिवादी उनका उपभोक्ता नहीं है। वह रेलवे विभाग का रिटायर्ड कर्मचारी है। उसे व उसके परिवार को विभागीय रिटायर्ड लिबराइज्ड हैल्थ स्कीम के अन्तर्गत चिकित्सा सुविधा दी गयी थी।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 29.11.2013 को जिला अस्पताल
-5-
मुरादाबाद में सर्जरी हेतु रेफर किया गया था, परन्तु उसने अपना आपरेशन दिनांक 09.12.2013 को शेखर किडनी एण्ड स्टोन क्लीनिक, मुरादाबाद में कराया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि जिला अस्पताल में सर्जन उपलब्ध न होने पर प्रत्यर्थी/परिवादी को पुन: अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 से सम्पर्क करना चाहिए था, जिससे अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को आपरेशन हेतु केन्द्रीय अस्पताल, नई दिल्ली रेफर किया जाता, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने ऐसा नहीं किया है और स्कीम की शर्तों का उल्लंघन किया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि परिवाद जिला फोरम की अधिकारिता से परे है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि यूनियन आफ इण्डिया परिवाद में आवश्यक पक्षकार है, परन्तु उसे पक्षकार नहीं बनाया गया है। अत: परिवाद में आवश्यक पक्षकार न बनाये जाने का दोष है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष अंकित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को हैल्थ स्कीम के अन्तर्गत चिकित्सा सुविधा प्रदान की गयी थी। अत: वह उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। उसे अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 द्वारा जिला अस्पताल रेफर किया गया है जहॉं पर सर्जन न होने के कारण उसे दिनांक 02.12.2013
-6-
को डा0 राजशेखर के अस्पताल में इलाज कराना पड़ा है। ऐसी स्थिति में वह इलाज के व्यय की धनराशि अपीलार्थी/विपक्षीगण से पाने का अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है और उसने रिटायर्ड लिबराइज्ड हैल्थ स्कीम का उल्लंघन कर विभाग को सूचना दिये बिना निजी चिकित्सक के यहॉं इलाज कराया है, इस कारण वह इलाज में हुए व्यय की धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर गलती की है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी रिटायर्ड कर्मचारी लिबराइज्ड हैल्थ स्कीम का सदस्य है और इस सुविधा हेतु उसके अन्तिम वेतन से कटौती की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि इस स्कीम के तहत अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 को इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने का दायित्व दिया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी इलाज हेतु दिनांक 29.11.2013 को अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के यहॉं गया तब उसे आपरेशन की सलाह दी गयी, परन्तु उसका आपरेशन वहॉं न कर उसे जिला चिकित्सालय भेजा गया और जिला चिकित्सालय में भी आपरेशन की व्यवस्था नहीं थी। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राइवेट अस्पताल
-7-
शेखर हास्पिटल में अपना आपरेशन कराना पड़ा है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 ने प्रत्यर्थी/परिवादी की सेवा में कमी की है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1, प्रत्यर्थी/परिवादी के इलाज में हुए व्यय के भुगतान हेतु उत्तरदायी है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को रिटायर्ड लिबराइज्ड हैल्थ स्कीम के अन्तर्गत अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 की चिकित्सा सुविधा दी गयी है और दिनांक 29.11.2013 को प्रत्यर्थी/परिवादी उनके अस्पताल में आया है तो उसे आपरेशन की सलाह दी गयी है, परन्तु उसका आपरेशन न कर उसे जिला चिकित्सालय रेफर किया गया है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार जिला चिकित्सालय में भी आपरेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है तब उसे शेखर अस्पताल में अपना आपरेशन कराना पड़ा है। परिवाद पत्र की धारा-3 में स्पष्ट रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि उसे व रेलवे विभाग के अन्य सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी आखिरी तनख्वाह लेकर प्रश्नगत स्कीम के अन्तर्गत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने परिवाद पत्र की धारा-3 के कथन से इन्कार
-8-
नहीं किया है और यह कहा है कि परिवाद पत्र की धारा-3 का कथन रिकार्ड का विषय है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने संगत अभिलेख प्रस्तुत कर प्रत्यर्थी/परिवादी के कथन को गलत साबित नहीं किया है। अत: परिवाद पत्र के इस कथन पर विश्वास करने हेतु उचित आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रश्नगत हैल्थ स्कीम की सुविधा उसकी आखिरी तनख्वाह लेकर उपलब्ध करायी गयी है और उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 द्वारा यह चिकित्सा सुविधा प्रत्यर्थी/परिवादी को दी जानी थी, परन्तु उसने प्रत्यर्थी/परिवादी को आपरेशन की सुविधा उपलब्ध न कराकर जिला चिकित्सालय भेजा है और जिला चिकित्सालय में भी उसे चिकित्सा उपलब्ध नहीं करायी गयी है। अत: विवश होकर उसे प्राइवेट अस्पताल में अपना आपरेशन कराना पड़ा है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित आधार है कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 ने अपनी सेवा में कमी की है। चूँकि यह सुविधा प्रत्यर्थी/परिवादी को उसकी अन्तिम तनख्वाह लेकर उपलब्ध करायी गयी है, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 का उपभोक्ता है और इस सन्दर्भ में जो जिला फोरम ने निष्कर्ष निकाला है, वह उचित और युक्तिसंगत है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो अपीलार्थी/विपक्षीगण को प्रत्यर्थी/परिवादी को चिकित्सा प्रतिपूर्ति की धनराशि 16,000/-रू0 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करने हेतु आदेशित किया है, वह उचित है।
-9-
उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1, अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 का अधीनस्थ अधिकारी है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के कार्य हेतु अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 ‘वाइकेरियस लाइबिल्टी’ के सिद्धान्त पर उत्तरदायी है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मेरी राय में अपील बल रहित है। अत: सव्यय निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादी को 2000/-रू0 अपील का व्यय अदा करेंगे।
अपीलार्थीगण की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1