राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या- 1262/2005
( जिला उपभोक्ता फोरम ।। बरेली द्वारा परिवाद सं0-19/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित-22-11-2004 के विरूद्ध)
1-सेंट्रल बैंक आफ इंडिया मीरगंज ब्रान्च बरेली, द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
2-सेंट्रल बैंक आफ इंडिया रीजनल आफिस सिविल लाइन्स, बरेली।
....अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
राम चरन लाल पुत्र स्व0 राम प्रसाद गंगवार मीरगंज, जिला- बरेली।
...प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति: श्री सी0के0 सेठ, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थिति : कोई नहीं।
दिनांक- 05-11-2015
माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
अपीलकर्ता ने यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम ।। बरेली द्वारा परिवाद सं0-19/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित-22-11-2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त आदेश में जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है।
परिवाद स्वीकार किए जाकर आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है कि चेक दिनांक 09-11-2000 की धनराशि अंकन 14,220-00 रूपये बचत खाता संख्या– 15157 में जमा करें। इस धनराशि पर 09 प्रतिशत का वार्षिक साधारण ब्याज भी दिनांक 0911-2000 से भुगतान की तिथि तक का देय होगा1 यादि खाता बंद हो गया है तो कुल धनराशि का सीधा भुगतान परिवादी 1/1 को किये जाये जो विपक्षीगण से 1000-00 रूपये की धनराशि क्षतिपूर्ति व वाद व्यय में भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने चेक की धनराशि अंकन 14,220-00 रूपये की प्राप्ति हेतु इन तथ्यों सहित प्रस्तुत किया है कि परिवादी राम प्रसाद पुत्र प्यारे लाल निवासी ग्राम सिंघौरी तह0 मीरगंज जिला बरेली ने एक राजकीय चेक सं0’- 4411
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दिनांक11-09-2000 धनराशि 14,220-00 रूपये का भुगतान प्राप्त करने हेतु दिनांक28-11-2000को प्रबन्धक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, मीरगंज, बरेली के पास प्रस्तुत किया था, जिसकी रसीद उसके पास सुरक्षित है। इसी बैंक में उसका बचत खातासं0-15157 पहले से ही चल रहा है। लगभग 14 माह बीत जाने के बाद भी आज तक न तो उक्त चेक का भुगतान वादी के उक्त खाता में जमा किया गया और न ही चेक वापस किया गया। अत: परिवाद उक्त चेक की धनराशि 14,220-00 रूपये का भुगतान ब्याज सहित तथा मानसिक अशान्ति व भागदौड़ के लिए हर्जा-खर्चा 1000-00 रूपये अतिरिक्त दिलाने हेतु प्रस्तुत किया गया है। परिवादी राम प्रसादकी दौरान मुकदमा मृत्यु हो गई। अत: उसका एक मात्र पुत्र राम चरन लाल को उत्तराधिकारी निश्चित किया गया है, जिसके पक्ष में डिग्री चाही है।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी की तरफ से कोई उत्तर पत्र/लिखित कथन दाखिल नहीं किया गया है। विपक्षी बैंक की ओर से अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित आपत्तियॉ ( कास सं0-31/1) प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि प्रश्नगत चेक अनादृत हो गया था, इसलिए परिवादी के खाते में जमा नहीं हो पाया, इसकी सूचना परिवादी को दे दी गई। अत: परिवादी को भुगतान सम्भव नहीं है, परिवाद खारिज होने योग्य है।
जिला उपभोक्ता फोरम ने दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त यह पाया कि परिवादी के खाते में चेक की धनराशि जमा न करके प्रतिवादी ने सेवाओं में त्रुटि की है।
इस सम्बन्ध में अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री सी0के0 सेठ को सुना गया। प्रत्यर्थी के तरफ से कोई उपस्थित नहीं हुआ था। प्रत्यर्थी को नोटिस पहले भेजा गया था, जैसा कि दिनांक 08-08-2005 के मार्जिन से स्पष्टहै, लेकिन कोई उपस्थित नहीं आया।
इस सम्बन्ध में अपीलकर्ता के तरफ से माननीय उच्चतम न्यायालय की रूलिंग दाखिल की गई:-
।।। (2009) सी.पी.जे. 3 (एस.सी.) Federal Bank LTD. Versus N.S. SABASTIAN
Consumer Protection Act, 1986-Section 2(1) (g)-Negotiable Instruments Act, 1938-Section 45 A-Banking and Financial Service - Cheque lost in transit - Bank advised complainant to get duplicate cheque from drawer—Banking Ombudsman held no deficiency in service on part of bank proved-Consumer complaint filed-State commission held bank liable to pay interest on cheque amount – order upheld by national Commission - Civil appeal filed- No amount deposited by drawer in account – Even if cheque not lost in transit, would have been dishonoured due to insufficiency of funds-No steps taken to obtain duplicate cheque-No action taken against drawer for recovery of amount-Orders of consumer Fora set aside.
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मौजूदा केस में यह तथ्य स्पष्ट है कि प्रतिवादी/अपीलकर्ता ने कहा है कि प्रश्नगत चेक एन0बी0ओ0 लखनऊ द्वारा दिनांक 26-12-2000 को कोरियर द्वारा इस भुगतान को रोके जाने के टिप्पणी के साथ वापस कर दिया गया, लेकिन विपक्षी द्वारा उक्त चेक को फोरम के समक्ष दाखिल नहीं किया गया और केस के तथ्यों से स्पष्ट है कि बैंक के द्वारा कोई पत्र परिवादी को उपलब्ध नहीं कराया गया था कि उसके चेक की धनराशि को रोक दिया गया है और यह स्पष्ट है कि उक्त चेक का भुगतान किसी को नहीं मिला,बल्कि वह गायब हो गया। माननीय उच्चतम न्यायालय की रूलिंग को दृष्टिगत रखते हुए हम यह पाते हैं कि परिवादी चेक की धनराशि पाने का हकदार नहीं है और न ही उस पर कोई ब्याज पाने का हकदार है। चूंकि बैंक ने नोटिस द्वारा परिवादी को सूचित करने का प्रमाण नहीं दे सका है। अत: उसकी सेवाओं में कमी के लिए जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा लगाया गया 1,000-00 रूपये पाने का हकदार है। इस प्रकार से अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम ।। बरेली द्वारा परिवाद सं0-19/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित-22-11-2004 में आंशिक संशोधन करते हुए यह आदेश पारित किया जाता है कि अपीलकर्ता परिवादी को एक हजार रूपये सेवाओं में कमी के कारण क्षतिपूर्ति के रूप में एक माह के अन्दर अदा करें तथा जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा जो चेक की धनराशि व उस पर 09 प्रतिशत के ब्याज का आदेश किया गया है, उसे समाप्त किया जाता है।
(आर0सी0 चौधरी) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु.
कोर्ट नं0-5