राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-682/2018
(जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-205/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-03-2018 के विरूद्ध)
1. डॉ0 संजय कुमार गुप्ता एवं
2. श्रीमती बबिता गुप्ता
दोनों निवासीगण ओम साई हास्पिटल, नगर पंचायत, गोला बाजार, पोस्ट एण्ड थाना-गोला, जिला गोरखपुर।
..............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
राम चन्दर प्रजापति पुत्र राममुरारी, निवासी बरहजपार माफी, पोस्ट चिलवा, थाना गोला, जिला गोरखपुर। ..............प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री अम्बरीश कौशल श्रीवास्तव विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 13-05-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-205/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-03-2018 के विरूद्ध योजित की गयी है।
परिवादी की पत्नी माँ बनने वाली थी, जिसके चेकअप हेतु विपक्षी के ओम साई चिकित्सालय गोला में दिखाया तो बताया गया कि जच्चा-बच्चा दोनों ठीक हैं। डिलेवरी का समय आने पर डिलेवरी करा दी जायेगी। परिवादी की पत्नी को दिनांक 07.08.2013 को कुछ परेशानी होने पर सुबह 6 बजे अपने रिश्तेदार के साथ ओम
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साई चिकित्सालय ले गये जहॉं डॉ० बबिता गुप्ता ने भर्ती किया। परिवादी की पत्नी को उक्त चिकित्सालय में भर्ती से 15 दिन पूर्व विपक्षीगण द्वारा अल्ट्रासाउण्ड किया गया था उस वक्त सब कुछ ठीक था, भर्ती करने के बाद विपक्षीगण द्वारा बताया गया कि जुड़वा बच्चे हैं, शीघ्र आपरेशन करना पडेगा। 35-40 हजार रूपये का इन्तजाम करे, परिवादी व रिश्तेदार घबराये तथा पैसे की व्यवस्था करके मु० 30 हजार रूपया जमा किया गया तथा पत्नी को सुबह 7.30 बजे काफी दर्द होने लगा तो डॉक्टर से कहा गया कि आपरेशन में देरी क्यों की जा रही है। पत्नी दर्द से परेशान है। विपक्षी सं० २ द्वारा बताया गया कि आपरेशन वाले डाक्टर को बुलाया गया है आते ही आपरेशन किया जायेगा। इसी बीच परिवादी द्वारा मु० 10 हजार रू० और जमा कर दिया गया, काफी इन्तजार करने के बाद लगभग 1.30 बजे तक आपरेशन वाले डॉक्टर न आने पर परिवादी की पत्नी ने दर्द से परेशान होकर अपने जुड़वा बच्चे के साथ दम तोड़ दिया। परिवादी तथा उसके रिश्तेदार रोने चिल्लाने लगे तथा विपक्षीगण द्वारा तत्काल चिकित्सालय से डिस्चार्ज कर दिया गया तथा 20 हजार रूपये आपरेशन का वापस क़रने लगा परन्तु परिवादी ने कहा कि मेरी पत्नी को वापस कर दो मैं पैसा नहीं लूँगा। परिवादी द्वारा तत्काल सूचना पुलिस को दी गयी तथा शव का पोस्टमार्टम कराया गया तथा परिवादी को शव मिलने पर दाहसंस्कार किया गया।
परिवादी को मोस्टमोर्टम रिर्पोट मिलने पर थाना-गोला में विपक्षीगण के विरूद्ध धारा 304 आई०पी०सी० 210/2013 दर्ज किया गया। परिवादी को पता चला कि विपक्षीगण काफी पहुँच वाले हैं, तथा विपक्षीमण के विरुद्ध तमाम मुकदमे चिकित्सीय लापरवाही के दर्ज हैं तथा चिकित्सालय कई बार सील हो चुका है व डॉ० संजय गुप्ता की डिग्री भी फर्जी है और पैसे के बल से चल रहा है, विपक्षीमाण की लापरवाही के कारण पत्नी तथा दो जुड़वा बच्चों की जान चली गयी, जिसके लिए परिवादी विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति का हकदार है, विपक्षीगण से क्षतिपूर्ति की बात की तो विपक्षीगण द्वारा कहा गया कि मुकदमा वापस लो तब क्षतिपूर्ति पर विचार किया
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जायेगा। परिवादी के पत्नी का बिसरा लखनऊ जांच में भेजा गया, जानकारी हुई कि विपक्षीगण द्वारा गलत रिर्पोट लगाकर मुकदमा समाप्त करा देंगे। परिवादी को विपक्षीगण द्वारा दिनांक 01.07.2014 को क्षतिपूर्ति देने से इंकार किया गया, जिसके कारण परिवादी को काफी मानसिक व शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ा। अतः यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विद्वान जिला आयोग ने विपक्षीगण की उपस्थिति हेतु पंजीकृत नोटिस दिनांक 14.08.2014 को प्रेषित किया गया, परन्तु कोई उपस्थित न होने की दशा में दिनांक 29.09.2014 को विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही का आदेश पारित किया गया।
केवल परिवादी पक्ष को सुनने एवं उसके प्रलेखीय साक्ष्यों के आधार पर विद्वान जिला आयोग ने एकपक्षीय रूप से परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
'' परिवादी का यह परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंशतः एकपक्षीय स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि निर्णय के 45 दिनों के अन्तर्गत परिवादी की पत्नी का, विपक्षीगण के लापरवाहीपूर्ण इलाज के दौरान हुई मृत्यु के एवज में क्षतिपूर्ति मु० 500000.00 रू०, परिवादी को भुगतान करें। विपक्षीगण को यह भी निर्देश दिया जाता है कि परिवादी को वाद व्यय के रूप में मु० 2000.00 रू० उपरोक्त अवधि के अन्तर्गत परिवादी को भुगतान करें। यदि उक्त आदेश का अनुपालन विपक्षीगण द्वारा समयान्तर्गत नहीं किया जाता है तो समस्त धनराशि पर वाद के योजित करने की तिथि से पूर्ण भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज देय होगा। ''
इसी निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क यह है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा विधि विरूद्ध ढंग से प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है। उनके द्वारा यह भी तर्क किया गया कि इस मामले में अपीलार्थीगण द्वारा न तो परिवादी की पत्नी
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का कोई इलाज किया और न ही प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से इस सम्बन्ध में कोई पर्चा प्रस्तुत किया गया है।
पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय व आदेश का सम्यक् रूप से परिशीलन व परीक्षण किया गया।
विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के अवलोकन से यह सपष्ट होता है कि विद्वान जिला आयोग ने चिकित्सीय उपेक्षा मानी है, किन्तु ऐसी कोई राय/अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिसके आधार पर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की लापरवाही मानी जा सके। प्रत्यर्थी/परिवादी यह कथन कि इलाज के दौरान् अपीलार्थी चिकित्सक द्वारा चिकित्सीय उपेक्षा एवं लापरवाही बरती गई है, साबित नहीं होता है। उसके द्वारा इलाज का कोई भी पर्चा/अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है।
मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय Jacob Methew V/s State of Punjab and another reported in III (2005) CPJ 9 (SC) of Punjab and another reported in III (2005) CP) 9 (SCJ of Punjab and another reported in III (2005) CP) 9 (SC) में मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस तथ्य को अवलोकन में लेते हुए कि चिकित्सकगण को अनावश्यक मुकदमेबाजी और तंग व परेशान करने वाले शिकायतों से बचाना चाहिए जब तक कि चिकित्सक का स्पष्ट उपेक्षा साबित न हो इसके विरुद्ध क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया जाना उचित नहीं है मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित प्रकार से निष्कर्ष दिया गया है:-
findings: either he was not possessed of the requisite skill which he professed to have possessed, or, he did not exercise, with reasonable competence in the given case, the skill which he did possess. The standard to be applied for judging, whether the person charged has been negligent or not, would be that of an ordinary competent person exercising ordinary skill in that profession. It is not possible for every professional to possess the highest level of expertise or skills in that
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branch which he practices. A highly skilled professional may be possessed of better qualities, but that cannot be made the basis or the yardstick for judging the performance of the professional proceeded against on indictment of negligence.
मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए पीठ इस मत की है कि वर्तमान मामले में परिवादी ने विपक्षी डॉक्टर द्वारा लापरवाही किये जाने मात्र का आक्षेप लगाया है किन्तु किसी प्रकार का ऐसा कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है कि किन आधारों पर चिकित्सक द्वारा इलाज में चिकित्सीय उपेक्षा कारित की गई है। अत: वर्तमान मामले में मात्र आक्षेपों के आधार पर यह मान लेना उचित नहीं है कि डॉक्टर द्वारा चिकित्सीय उपेक्षा की गई है।
उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए पीठ इस मत की है कि परिवादी द्वारा अभिलेखीय साक्ष्यों से डॉक्टर की लापरवाही एवं उपेक्षा साबित नहीं की जा सकी है। परिणामत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार वर्तमान अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-205/2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24-03-2018 अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थीगण द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के अपलार्थीगण को विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र वापस अदा कर दी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की
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वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 13-05-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.