राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-271/2006
(जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-452/2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 26-12-2005 के विरूद्ध)
ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी द्वारा मैनेजर, रीजनल आफिस, तृतीय तल, एलआईसी इन्वेस्टमेण्ट बिल्डिंग, हजरतगंज, लखनऊ।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
1. राम भुआल पुत्र श्री किसुन निवासी ग्राम रूद्रपुर, थाना-खजनी, जिला गोरखपुर, प्रौपराइटर मै0 दिल्ली चप्पल हाउस, खजनी बाजार, गोरखपुर।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आशुतोष कुमार सिंह विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 18-06-2024.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-15 के अन्तर्गत, जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-452/2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 26-12-2005 के विरूद्ध योजित की गई है।
विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए बीमा कम्पनी को निर्देशित किया है कि वह बीमित दुकान दिल्ली चप्पल हाउस खजनी में आग से हुई क्षति के लिए अंकन 1,50,000/- रू0 का भुगतान 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ किए जाने का आदेश पारित किया गया है।
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परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने दिल्ली चप्पल हाउस, स्थित खजनी बाजार, गोरखपुर का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 27-05-2001 को करवाया था, जो दिनांक 26-05-2002 तक वैध था। जोखिम धनराशि अंकन 1,60,000/- रू0 थी। खजनी बाजार में ही उसकी एक दूसरी दुकान उसकी के सामने स्थित है, जिसका नाम जनता ग्रामोद्योग सेवा संस्थान है, इसमें भी जूता चप्पल के सामान की बिक्री होती है। दिनांक 09/10-4-2002 को रात्रि करीब 2.00 बजे इलैक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई, जिससे परिवादी की दोनों दुकानों में रखा सामान तथा अभिलेख जल कर राख हो गए। फायर ब्रिगेड को इसकी सूचना दी गई, जिसके द्वारा आग बुझाई गई और अंकन 3,05,000/- रू0 क्षति का आंकलन किया गया। बीमा कम्पनी से अंकन 1,60,000/- रू0 की क्षतिपूर्ति की मांग की गई, परन्तु भुगतान नहीं किया गया। इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी बीमा कम्पनी का कथन है कि आग लगने की सूचना प्राप्त होने के बाद चार्टेड एकाउण्टेण्ट अन्वेषक हबीबुल्ला एण्ड कम्पनी को नियुक्त किया गया था। उनके द्वारा रिपोर्ट दी गई कि दुकान के अन्दर कुछ अधजले चप्पल, जूता मौजूद थे तथा लकड़ी के कुछ रैक जले थे। परिवादी ने दुकान के नाम से एक लाख रूपये की सी0सी0 लिमिट अप्रैल, 2000 में गोरखपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, खुटहना से ली थी और जून 2000 तक खाते से पूरी रकम निकालकर पुन: खाते में कोई लेनदेन नहीं किया और बैंक को स्टेटमेण्ट आफ एकाउण्ड भी नहीं दिया। इसके लिए बैंक ने नोटिस भी दिया। इसी प्रकार दूसरी दुकान का सामान दिखाकर 90,000/- रू0 का ऋण प्राप्त किया था और यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 से दो लाख रूपये का बीमा कराया था। एक ही दुकान के सामान को दिखाकर दो बैंकों से ऋण लिया गया। सर्वेयर द्वारा मांगे जाने के बाबजूद भी बीजक व इस्टीमेट, स्टाक
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रजिस्टर आदि उपलब्ध नहीं कराए गए। इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि की अदायगी नहीं की जा रही है। ऋण की अदायगी से बचने के लिए परिवादी ने गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है।
दोनों पक्षों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि सर्वेयर की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि दुकान में कुछ अधजले जूता चप्पल व फर्नीचर व रैक के टुकड़े पड़े हुए थे, इसलिए साल्वेज काटकर बीमा की धनराशि पाने के लिए परिवादी का क्लेम स्वीकार न करके बीमा कम्पनी ने सेवा में कमी की है।
तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने 1,60,000/- रू0 बीमा धनराशि में 10,000/- रू0 की साल्वेज के लिए कटौती करते हुए 1,50,000/- रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया।
इस निर्णय के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यथार्थ में परिवादी का कोई सामान मौके पर नहीं था। कोई बैंक स्टेटमेण्ट भी प्रस्तुत नहीं किया गया। बैंक में लेन-देन वर्ष 2000 में ही बन्द हो चुका था। विद्वान जिला आयोग द्वारा ने भी अपने निर्णय में सामान की क्षति का कोई आंकलन नहीं किया है। अन्वेषक द्वारा मांगे जाने के बाबजूद दावे के सम्बन्ध में परिवादी द्वारा बीजक, इस्टीमेट, स्टाक रजिस्ट आदि वर्ष 2000 के पश्चात् के प्रेषित नहीं किए जा रहे हैं।
विद्वान जिला आयोग ने इस तथ्य पर भी विचार नहीं किया कि दूसरी दुकान भी आस-पास है, जिसमें आग लगना बताया गया है और इसका भी बीमा कम्पनी से बीमा क्लेम मांगा गया है। ऐसी स्थिति में पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश साक्ष्य विहीन है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त करते हुए प्रकरण विद्वान
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जिला आयोग को प्रतिप्रेषित किए जाने योग्य है। अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है! जिला उपभोक्ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-452/2002 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 26-12-2005 अपास्त किया जाता है तथा प्रकरण प्रतिप्रेषित करते हुए विद्वान जिला आयोग को निर्देशित किया जाता है कि उक्त परिवाद को अपने मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित करते हुए परिवाद के दोनों पक्षकारों को साक्ष्य एवं सुनवाई का विधि अनुसार समुचित अवसर प्रदान करते हुए यथा सम्भव 03 माह की अवधि में परिवाद सं0-452/2002 को गुणदोष के आधार पर निस्तारित किया जाए और क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष दिया जाए कि अग्निकाण्ड की तिथि को दुकान में कितना सामान मौजूद था, परिवादी द्वारा कितना बिक्री किया गया था और उसमें कितना समान जलने के कारण नष्ट हो गया था ? तदनुसार क्षतिपूर्ति का स्पष्ट आंकलन किया जाए।
पक्षकार दिनांक 26-07-2024 को विद्वान जिला आयोग के समक्ष उपस्थित हों। किसी भी पक्षकार को, अपरिहार्य कारणों के अतिरिक्त, अनावश्यक स्थगन न दिया जाए।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
अपीलार्थी द्वारा यदि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के अपीलार्थी को विधि अनुसार शीघ्रातिशीघ्र वापस कर दी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को
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आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक : 18-06-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.