(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
पुनरीक्षण संख्या : 149 /2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद संख्या-403/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-11-2017 के विरूद्ध)
- Roshan Frieght Carrier-20/10, Jamuna Kinara, Agra through its Manager.
- Roshan Friegth Carrier, Gurusadan, 26/78, Isaji Street, Mumbai, Mumbai Head Office through its Chief Manager.
.....पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण
बनाम्
- Ram Bahadur Katiyar Son of Shri Sukhwasi Lal Katiyar, R/o Nekpur Kalan, Post Fatehgarh, District-Farrukhabad.
- Farrukhabad Agra Transport Company, Situated T Lal Sarai, Farrukhabad through its Manager.
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित- श्री जे0पी0 सक्सेना।
विपक्षी सं0-1 की ओर से उपस्थित- श्री अरूण टण्डन।
दिनांक : 03-07-2019
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-403/1999 राम बहादुर कटियार बनाम् रोशन फ्रेट कैरियन आदि में जिला उपभोक्ता फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 01-11-2017 के विरूद्ध यह पुनरीक्षण याचिका धारा-17 (1) (b) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद में विपक्षी जो अब वर्तमान में पुनरीणयाची है की ओर से परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में उठायी गयी प्रारम्भिक आपत्ति अस्वीकार करते हुए यह माना है कि परिवादी जो अब विपक्षी है उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता है और उसके द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
अत: जिला फोरम के आक्षेपित आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह पुनरीक्षण याचिका राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की है।
पुनरीक्षणयाचीगण की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री जे0पी0 सक्सेना उपस्थित आये। विपक्षी/परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन उपस्थित आए।
मैंने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
पुनरीक्षणयाचीगण के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी/परिवादी ने प्रश्नगत माल पुनरीक्षणयाचीगण जो परिवाद पत्र में विपक्षी हैं के ट्रान्सपोर्ट के माध्यम से अपने व्यापार के लिए बुक किया है। अत: धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत
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परिवादी जो पुनरीक्षण याचिका में विपक्षी है, उपभोक्ता नहीं है और उसके द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश दोषपूर्ण है अत: पुनरीक्षणयाची द्वारा परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में उठायी गयी प्रारम्भिक आपत्ति स्वीकार करते हुए परिवाद निरस्त किया जाना विधि की दृष्टि से आवश्यक है।
विपक्षी जो परिवाद में परिवादी है के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी के ट्रांसपोर्ट के माध्यम से अपना माल परिवहन हेतु बुक किया है व्यापार के लिए नहीं। अत: विपक्षी/परिवादी धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता है और उसके द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है। जिला फोरम द्वारा पारित आदेश विधि अनुकूल है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने दिमानो सिल्क मिल, कालवा देवी रोड, मुम्बई से कपड़ा खरीदा, जिसकी कुल कीमत रू0 2,58,922/- थी। परिवाद पत्र के अनुसार उपरोक्त दिमानो सिल्क मिल ने विपक्षी/परिवादी द्वारा क्रय किये गये कपड़ों को फतेहगढ़ लाने हेतु रोशन फ्रेट कैरियर मुम्बई अर्थात पुनरीक्षणयाची संख्या-2 जो परिवाद में विपक्षी संख्या-2 है के द्वारा बुक किया और विपक्षी संख्या-2 ने माल आगरा विपक्षी/पुनरीक्षणयाची संख्या-1 रोशन फ्रेट कैरियर आगरा के द्वारा आगरा भेजा। आगरा से वह माल फर्रूखाबाद लाने हेतु परिवादी ने फर्रूखाबाद, आगरा ट्रांसपोर्ट कम्पनी (परिवाद के विपक्षी संख्या-3/पुनरीक्षण याचिका में विपक्षी-2) को मूल कन्साइन नोट के साथ उपरोक्त विपक्षी संख्या-1 रोशन फ्रेट कैरियर आगरा के पास भेजा। तब विपक्षी संख्या-1 रोशन फ्रेट कैरियर आगरा ने माल फर्रूखाबाद आगरा ट्रांसपोर्ट को नहीं दिया और कहा कि दिमानों सिल्क मिल ने डिलीवरी देने से मना किया है। तब परिवादी ने दिमानो सिल्क मिल से सम्पर्क किया। तब दिमानों सिल्क मिल ने लिखकर दिया कि माल इन्हें दिया
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जाये, फिर भी परिवाद के विपक्षी संख्या-1 रोशन फ्रेट कैरियर आगरा ने माल परिवादी को नहीं दिया। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद जिला फोरम फर्रूखाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष परिवाद के विपक्षीगण संख्या-1 व 2 अर्थात वर्तमान पुनरीक्षणयाचीगण की ओर से आपत्ति उठाई गयी कि परिवादी कपड़े का व्यापार करता है और कपड़े के व्यापार के सिलसिले में ही उसने पुनरीक्षणयाचीगण के यहॉं अपने प्रतिष्ठान फतेहगढ़ लाने के लिए माल बुक किया है। अत: धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वह उपभोक्ता नहीं है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद ग्राह्य नहीं है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
पुनरीक्षणयाची की ओर से माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा M/s Harsolia Motors Vs. M/s National Insurance Co. Ltd. & Ors. में पारित निर्णय जो 2005 (1)CPR 1(NC) में प्रकाशित है, संदर्भित किया गया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस निर्णय में यह कहा है कि जब सेवा प्रत्यक्ष रूप से लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से प्राप्त की गयी हो तो सेवा का उद्देश्य वाणिज्यिक माना जायेगा। माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरत है :-
“Further, from the aforesaid discussion, it is apparent that even taking wide meaning of the words, for any commercial purpose’ it would mean that goods purchased or services hired should be used in any activity directly intended to generate profit. Profit is the main aim of commercial purpose. But, in a case where goods purchased
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or services hired in an activity which is not directly intended to generate profit, it would not be commercial purpose.”
माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है कि जब प्राप्त सेवा प्रत्यक्ष रूप से लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से प्राप्त की गयी हो तो वह सेवा वाणिज्यिक मानी जायेगी, परन्तु वर्तमान प्रकरण में बिल्टी से स्पष्ट है कि कन्साइनर और कन्साइनी दोनों परिवादी है जो पुनरीक्षण याचिका में विपक्षी सं0-1 है। वर्तमान कन्साइनमेंट को वह ट्रांसपोर्टर के माध्यम से विक्रेता से नहीं प्राप्त कर रहा है। माल उसने स्वयं विक्रेता से प्राप्त किया है और मुम्बई से माल आगरा परिवहन के लिए पुनरीक्षणकर्तागण के ट्रांसपोर्ट से बुक किया है। आगरा में माल प्राप्त करने वाला स्वयं परिवादी अर्थात पुनरीक्षण याचिका का विपक्षी सं0-1 है, और उसने यह सेवा प्रत्यक्ष रूप से पुनरीक्षणयाचीगण से लाभ अर्जित करने के लिए या पुनरीक्षणयाचीगण के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति से लाभ अर्जित करने के लिए प्राप्त नहीं की है।
उपरोक्त विवेचना एवं वर्तमान वाद के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए परिवादी अर्थात पुनरीक्षण याचिका का विपक्षी संख्या-1 धारा-2(1)(डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिभाषित उपभोक्ता की श्रेणी में आता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
पुनरीक्षण याचिका में पुनरीक्षणयाचीगण ने जिला फोरम फर्रूखाबाद के भौमिक क्षेत्राधिकार पर भी आपत्ति उठाया है, परन्तु इस संबंध में जिला फोरम ने कोई निष्कर्ष आक्षेपित आदेश में अंकित नहीं किया है। अत: उचित प्रतीत होता है कि यह बिन्दु पुनरीक्षणयाचीगण जिला फोरम के समक्ष उठायें और जिला फोरम इस संदर्भ में विधि के अनुसार आदेश पारित करे।
उपरोक्त विवेचना के आधार मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(डी) के अन्तर्गत उपभोक्ता मानते हुए आक्षेपित आदेश के द्वारा जो परिवाद को
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उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य माना है वह उचित और विधि सम्मत है। किसी हस्तक्षेप हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार नहीं है। अत: पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0