(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-567/2009
मैसर्स आकाश वर्धन कोल्ड स्टोरेज, विश्वनाथगंज, तहसील सदर, जिला प्रतापगढ़, द्वारा पार्टनर श्री सिद्धार्थ सिंह पुत्र स्व0 सुरेंद्र सिंह चौहान, निवासी सराय गोविंद राय, विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़, यू.पी.।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
राम अभिलाष मिश्रा पुत्र स्व0 राम नारायण मिश्रा, निवासी ग्राम कुशफरा, परगना व तहसील सदर, जिला प्रतापगढ़।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 05.12.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-229/2005, राम अभिलाष मिश्रा बनाम आकाश वर्धन कोल्ड स्टोरेज में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.06.2008 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता डा0 ज्ञान सिंह का वकालतनामा पत्रावली पर उपलब्ध है, परन्तु वह उपस्थित नहीं हैं। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा दिनांक 19.03.2005 एवं 20.03.2005 को कुल 113 बोरी आलू विपक्षी के शीतगृह में रखे गए थे, जब परिवादी दिनांक 29.10.2005 को आलू निकालने गया तब पाया कि आलू खराब थे, इसकी सूचना प्रबंधक को दी गई और प्रबंधक द्वारा आलू देने का आश्वासन
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दिया गया और किराया अंकन 6,658/- रूपये प्राप्त कर लिए, परन्तु न तो किराया वापस किया और न ही आलू दिया गया।
4. निर्णय/आदेश के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी पर पर्याप्त तामील मानी गई थी, परन्तु अपीलार्थी की ओर से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष कोई उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए परिवाद पत्र वर्णित तथ्यों का खण्डन नहीं किया गया और न ही परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए गए शपथ पत्र का कोई खण्डन किया गया।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष मूल रसीद प्रस्तुत नहीं की गई, जिसकी पुष्ट पर लिखा रहता है कि आलू प्राप्त किए। यदि अपीलार्थी द्वारा आलू वापस लौटाए जाते तब अपीलार्थी द्वारा सुगमता से गेट पास की प्रतिलिपि प्रस्तुत की जा सकती थी। अपीलार्थी के पास सहजता के साथ उपलब्ध रहती। गेट पास स्वंय शीतगृह के प्रबंधक द्वारा जारी किया जाता है, इसलिए इस निष्कर्ष के परिवर्तन का कोई आधार नहीं है कि परिवादी को आलू प्राप्त नहीं हुआ।
6. अपीलार्थी की ओर से यह बहस की गई है कि आलू की कुल कीमत अंकन 62,150/- रूपये बतायी गयी है तथा अंकन 35 हजार मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में मांगे गए हैं और विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने सम्पूर्ण राशि की अदायगी का आदेश पारित किया है। परिवाद पत्र की प्रति पत्रावली पर, जिसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा कहीं पर भी यह उल्लेख नहीं किया कि आलू की कीमत अंकन 62,150/- रूपये है। परिवादी द्वारा अंकन 97,100/- रूपये की क्षतिपूर्ति का ही उल्लेख किया है न कि दूसरी किसी अन्य राशि का, इसलिए प्रस्तुत अपील में कोई बल नहीं है।
7. परिवाद पत्र के अवलोकन से आलू की कीमत अंकन 62,150/- रूपये बतायी गयी है। अपीलार्थी की ओर से इस पीठ के समक्ष ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि आलू की कीमत तत्समय 62,150/- रूपये नहीं थी, इसलिए आलू की कीमत के संबंध में भी कोई विपरीत निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।
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8. अपलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि अंकन 35 हजार रूपये मानसिक प्रताड़ना की मद में स्वीकार किए हैं और इस मानसिक प्रताड़ना की मद में स्वीकृत राशि के संबंध में कोई आंकलन नहीं किया गया। निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि यथार्थ में 35 हजार रूपये के बिन्दु पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया और परिवाद में वर्णित उल्लेख के अनुसार यह राशि ज्यों की त्यों स्वीकार कर ली गई। अत: इस बिन्दु पर दिए गए निष्कर्ष पर इस पीठ द्वारा विचार किया जा सकता है। चूंकि कुल कीमत अंकन 62,150/- रूपये बतायी गयी है, इसलिए अंकन 35 हजार रूपये की राशि जो लगभग आधी होती है बतौर मानसिक प्रताड़ना की मद में स्वीकार करना अनुचित है। इस राशि को परिवाद व्यय तथा अन्य खर्चों में मानते हुए केवल 10 हजार रूपये की सीमा तक सीमित किया जाता है। अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18.06.2008 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को देय राशि आलू की कीमत अंकन 62,150/- रूपये होगी तथा मानसिक प्रताड़ना एवं वाद व्यय के रूप में केवल 10 हजार रूपये देय होंगे साथ ही परिवादी को देय राशि पर ब्याज दर 07 प्रतिशत होगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3