(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-416/2007
1. यूनियन आफ इण्डिया, द्वारा जनरल मैनेजर, नार्थ ईस्टर्न रेलवे, गोरखपुर।
2. स्टेशन सुप्रीटेंडेंट वापी रेलवे स्टेशन, गुजरात।
3. स्टेशन सुप्रीटेंडेंट ईस्टर्न रेलवे, भटनी जंक्शन, जिला देवरिया।
4. जनरल मैनेजर वेस्टर्न रेलवे, मुम्बई।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
श्री राकेश कुमार त्रिपाठी पुत्र श्री माघवेन्द्र नारायण तिवारी, निवासी ग्राम तितौली, पोस्ट कोठिलवा, जिला देवरिया।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री एम.एच. खान
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 29.09.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-163/2004, राकेश कुमार त्रिपाठी बनाम यूनियन आफ इण्डिया तथा तीन अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, देवरिया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 22.01.2007 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि परिवादी को विपक्षीगण द्वारा परिवहन की गई मोटरसाइकिल कभी भी उपलब्ध न कराने के कारण अंकन 38,000/- रूपये वाहन का मूल्य तथा शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 10,000/- रूपये एवं वाद व्यय की मद में अंकन 2,000/- रूपये अदा करने का आदेश दिया है।
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2. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने तथ्य एवं विधि के विपरीत निर्णय पारित किया है, परन्तु अपील के ज्ञापन में उल्लेख किया है कि उपभोक्ता की शिकायत मिलने पर मोटरसाइकिल के परिवहन में त्रुटि पायी गयी, इसलिए मूल दस्तावेज आदि की मांग की गई, परन्तु परिवादी ने खुद सूचना उपलब्ध नहीं कराई, इसलिए रेलवे विभाग का कोई उत्तरदायित्व नहीं है। यह भी कथन किया गया कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत कार्यवाही की जानी चाहिए थी न कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत।
3. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एम.एच. खान उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अवधेश शुक्ला का वकालतनामा पत्रावली पर उपलब्ध है, परन्तु वह उपस्थित नहीं हैं। अत: केवल अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. सर्वप्रथम इस बिन्दु पर विचार करना उचित है कि क्या उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है ? अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत प्रकरण संधारणीय है और विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग का क्षेत्राधिकार बाधित है, इस तर्क के समर्थन में नजीर I (2012) CPJ 380 (NC) प्रस्तुत की गई है। इस केस के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा अपना सामान परिवहन करने के लिए रेलवे विभाग के माध्यम से बुक कराया गया था, जो परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया। माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि यदि बुक कराया गया सामान परिवादी को उपलब्ध नहीं हुआ है तब प्रकरण रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के अन्तर्गत विचारणीय है न कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत। अत: इस विधिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं था। परिवादी रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर सकता है। यह उल्लेख करना भी समीचीन होगा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
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के अन्तर्गत जो समय व्यतीत हुआ है, उस समय की गणना रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने में नहीं की जाएगी। अपील तदनुसार स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 22.01.2007 अपास्त किया जाता है।
परिवादी को यह अधिकार प्राप्त रहेगा कि वह रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के समक्ष अनुतोष की मांग कर सकता है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग तथा इस आयोग के समक्ष जो समय व्यतीत हुआ है, उस समय की गणना रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने में नहीं की जाएगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3