DHARMENDRA KUMAR filed a consumer case on 30 Apr 2013 against RAKESH KUMAR SHUKLA in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/18/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -18-2013 प्रस्तुति दिनांक-21.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
धमेन्द्र कुमार डहेरिया, पिता श्री छिददीलाल
डहेरिया, निवासी-ग्राम सिन्दरिया, पोस्ट
सिन्दरिया तहसील कुरर्इ, जिला सिवनी
(म0प्र0) हाल निवास-पोस्ट आफिस के पास
आमला, तहसील आमला, जिला बैतूल
बैतूल (म0प्र0)।.....................................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
राकेष कुमार षुक्ला (प्रोप्रार्इटर),
षुक्ला कृशि केन्द्र, नागपुर रोड रेल्वे
फाटक के पास, सिवनी, जिला सिवनी(म0प्र0)।............अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 30/04/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसे दिनांक-12.07.2012 को निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर खाद का विक्रय किये जाने को अनुचित बताते हुये, हर्जाना दिलाने व अधिक प्राप्त किये गये मूल्य वापस दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक केमिकल खाद, बीज आदि का विक्रेता है। यह भी अविवादित है कि-दिनांक-12.07.2012 को अनावेदक ने अपनी दुकान के लेटरपेड पर खाद के मूल्य व हिसाब बाबद हस्ताक्षरित कागज परिवादी के नाम जारी किया था, जिसे परिवादी द्वारा खरीदी गर्इ खाद का बिल होने का और अनावेदक उसे इस्टीमेन्ट होने का कथन कर रहें है।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- दिनांक-12.07.20012 को परिवादी ने अनावेदक की दुकान से 25 किलो जिंक 50-रूपये प्रति किलो की दर से व दो बोरी पोटास 890- रूपये प्रति बोरी की दर से 191919 की खाद 4 किलो 120- रूपये प्रति किलो की दर से, यूरिया 4 बोरी 380-रूपये प्रति बोरी की दर से व 2 फोर डी 500 एम.एल. 140-रूपये में, इस तरह कुल- 5,170-रूपये नगद भुगतान कर खरीदा था, उक्त में-से यूरिया उत्तम केमिकल एण्ड फर्टीलार्इजर लिमिटेड कम्पनी का था, जिसमें 298.49-रूपये प्रति बोरी समस्त कर सहित, मध्यप्रदेष राज्य की निर्धारित बिक्री दर की कीमत लिखा हुआ था, जो कि-खाद की वास्तविक दर थी, उसकी जगह 380-रूपये प्रति बोरी की दर के हिसाब से अनावेदक ने मूल्य प्राप्त किया और इस तरह 380-रूपये प्रति बोरी की दर से मूल्य प्राप्त किया, उसका सही बिल भी नहीं दिया ओर परिवादी ने अधिक दर पर खाद बेचने ओर सही बिल न दिये जाने की षिकायत वाणिजियक कर अधिकारी, सिवनी को किया था, जिन्होंने जांच के बाद अनावेदक को दोशी पाते हुये, विक्रय की गर्इ वस्तुओं का सही बिल न दिये जाने के कारण, 5,000-रूपये पैनाल्टी अनावेदक से वसूल किया।
(4) परिवादी ने इसी खाद क्रय के संबंध में दिनांक-30.07.2012 को उपसंचालक कृशि विभाग, सिवनी को षिकायत कर, दाणिडक कार्यवाही करते हुये, पंजीयन निरस्त करने का निवेदन किया था, पर उक्त अधिकारी ने अनावेदक के विरूद्ध समुचित कार्यवाही नहीं किया और अनावेदक ने परिवादी से कहा कि-उसकी उक्त अधिकारियों से सैटिंग है, जो बनता है कर लो, मेरा कोर्इ कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
(5) अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-उसने परिवादी को कोर्इ भी खाद दिनांक-12.07.2012 को नहीं बेचा है, बलिक उक्त दिनांक को परिवादी को मात्र इस्टीमेन्ट प्रदान किया था और वाणिजियक कर अधिकारी, सिवनी के द्वारा जो अनावेदक को 5,000-रूपये की पैनाल्टी अधिरोपित की गर्इ है, वह कथित सामग्री विक्रय के एवज में नहीं थी, बलिक वह पैनाल्टी वेट अधिनियम के तहत बनाये गये प्रावधानों के कारण अधिरोपित की गर्इ थी, अनावेदक के द्वारा, कास्तकारों से कभी भी निर्धारित दर से अधिक राषि नहीं ली जाती है, बलिक सुसंगत कम्पनियों द्वारा, जो विभिन्न स्कीम चलार्इ जाती है, उसका फायदा भी कास्तकारों को देते हुये, स्कीम के तहत मूल्य में छूट का लाभ भी दिया जाता है, जो कि-उस समय जिंक का मूल्य प्रति पांच किलो 270- रूपये का स्कीम का पालन करते हुये, अनावेदक ने 250-रूपये का आंकलन बताया था और इसी तरह 191919 नामक उर्वरक की निर्धारित दर 170-रूपये के स्थान पर, 120-रूपये का तथा उर्वरक 2-4-डी की निर्धारित दर 157-रूपये के स्थान पर, इस स्कीम का पालन कर, 140-रूपये की दर आंकलित की गर्इ थी।
(6) उर्वरक यूरिया की षासन से निर्धारित दर की सप्लार्इ रहती है और अनावेदक के पास यूरिया नामक उर्वरक उस समय नहीं था, जिसके अन्य स्थान से बुलवाने भाड़ा, हमाली इत्यादि की संभावित राषि आंकलन कर, उसका इस्टीमेन्ट दिया गया था, जो कि-खाद, बीज और कीटनाषक सामग्री के क्रय-विक्रय का स्कंध (स्टाक रजिस्टर) रखा जाता है, जिसकी भली-भांति जानकारी संबंधित विभाग को रहती है और क्योंकि अनावेदक ने, परिवादी को पूर्व में खाद इत्यादि उधार देने से इंकार कर दिया था, इसलिए परिवादी ने दुर्भावनापूर्वक बिल को इस्टीमेन्ट बताकर झूठा परिवाद पेष किया है।
(7) परिवादी ने अनावेदक के जवाब आ जाने के पष्चात परिवाद में संषोधन के द्वारा, यह भी जोड़ा है कि-मध्यप्रदेष में पोटास का विक्रय मूल्य 636-रूपये प्रति बोरी रहा है और अनावेदक ने, परिवादी से 890-रूपये प्रतिबोरी की दर से अनुचित-रूप से अधिक मूल्य प्राप्त किया है।
(8) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक ने, परिवादी से दिनांक-12.07.2012
को उर्वरक, यूरिया और पोटास का निर्धारित मूल्य
से अधिक मूल्य अनुचित-रूप से प्राप्त कर, परिवादी
के प्रति-अनुचित व्यापार प्रथा को अपनाया है?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(9) जहां-तक यूरिया के मूल्य का संबंध है, तो प्रदर्ष सी- 1(बी) में कही गर्इ कीमत में किसी अन्य के गोदाम से ढुलार्इ व ट्रांसपोर्ट आदि के मूल्य षामिल हों और यूरिया अनावेदक के पास उपलब्ध न हो, ऐसा प्रदर्ष सी-1(बी) में उल्लेख नहीं और प्रदर्ष सी-1(बी) में उल्लेख किया गया यूरिया का मूल्य 380-रूपये और उसकी चार बोरी की कीमत 1520-रूपये निषिचत-रूप से निर्धारित मूल्य से अधिक अनुचित-रूप से दर्षाया गया मूल्य है, जो कि-कार्यालय उपसंचालक किसान कल्याण व कृशि विभाग से मांग किये जाने पर प्रदर्ष (ए) के पत्र सहित, प्रदर्ष ए(1) षासन द्वारा निर्धारित की गर्इ यूरिया के मूल्य के संबंध में है और जिससे स्पश्ट है कि-साधारण यूरिया का मूल्य 284.36-रूपये तथा नीमकोटेड यूरिया का मूल्य 298.58-रूपये प्रति बोरी तत्कालीन समय में षासन द्वारा निर्धारित रहा है।
(6) प्रदर्ष सी-1(ए) की पर्ची तो अनावेदक के गोदाम की है, जिसे स्वयं अनावेदक द्वारा कोर्इ इस्टीमेंट होना नहीं कहा गया है और उसमें भी चार बोरी यूरिया का मूल्य 1520-रूपये ही, जुलार्इ-2012 में परिवादी द्वारा प्राप्त किया जाना स्पश्ट है, तो यह स्पश्ट हो जाता है कि-अनावेदक अपनी दुकान में यूरिया का निर्धारित मूल्य 298.58-रूपये से अधिक अनुचित-रूप से 380-रूपये प्रति बोरी के हिसाब से यूरिया, खाद बेचता रहा है।
(7) इसी तरह परिवादी का यह परिवाद व साक्ष्य है कि- दिनांक-12.07.2012 को ही प्रदर्ष सी-1(बी) के द्वारा परिवादी को दो बोरी पोटास 890-रूपये प्रति बोरी की दर से 1780-रूपये में विक्रय किये गये और अनावेदक ने प्रदर्ष आर-1 का राज्य सहकारी विपणन संघ, भोपाल द्वारा निर्धारित करने बाबद, दिनांक-11.06.2012 के पत्र की प्रति पेष की है, जिसमें यह लेख है कि-प्रदायक द्वारा, दिनांक-15.05.2012 को एवं 01.06.2012 को पोटास की दर में वृद्धि किये जाने के फलस्वरूप, उक्त उर्वरक की विक्रय दरें पुनरीक्षित की गर्इ हैं और उक्त पुनरीक्षित दर दिनांक-01.06.2012 से लागू हो जाना और प्रदर्ष आर-1 के अनुसार, म्यू0 आफ पोटाष का मूल्य 890.64-रूपये हो जाना दर्षाया गया है और जो कि-उक्त मूल्य दिनांक-01.06.2012 से प्रदाय पोटास के बारे में रहा है जबकि दिनांक-16.05.2012 से प्रदाय रहे पोटास का प्रति बोरी का मूल्य 842.91-रूपये दर्षाया गया है। अनावेदक की ओर से एम.ओ.पी. पोटास के रूप में स्टाक रजिस्टर की प्रति प्रदर्ष आर-3 जो पेष की गर्इ है, उसमें दिनांक-01.04.2012 से 29.06.2012 तक की प्रविशिटयां हैं और उससे यह स्पश्ट है कि-पोटास का जो स्टाक अनावेदक के पास रहा है, वह दिनांक-01.04.2012 के पूर्व का रहा है, उक्त स्टाक रजिस्टर से यह भी स्पश्ट है कि-माह-मर्इ में मात्र 7 तारिख को 7 बोरियां, 31 तारिख को 3 बोरियां विक्रय हुर्इं, षेश 50 बोरी जो बैलेंस था, उसे दिनांक-29.06.2012 को एक ही दिन में विक्रय हो जाना दर्षाते हुये, उक्त स्टाक समाप्त हो जाने की प्रविशिट स्टाक रजिस्टर में की गर्इ है जो कि असामान्य प्रविशिट हो कर प्रमाण के रूप में विष्वसनीय नहीं है। जबकि परिवादी ने अनावेदक से खरीदे गये उर्वरक पोटास की दोनों खाली बोरियां प्रस्तुत की हैं, जिनमें उक्त उर्वरक की पैकिंग जनवरी-2012 में किया जाना और उसका बैच नंबर-(1)-ए12 होना स्पश्ट उल्लेख है। और उक्त बोरियों में अलग-अलग प्रांत हेतु एम.आर.पी. मूल्य लेख हैं, जो कि-मध्यप्रदेष के लिए सभी टेक्स सहित, एम.आर.पी. मूल्य 636-रूपये होना पोटास की उर्वरक की बोरियों में स्पश्ट रूप से लेख है, तो अनावेदक ने जो यह बचाव लिया है कि- दिनांक- 01.06.2012 से पुनरीक्षित मूल्य 890.64-रूपये निर्धारित हो गया था, वह मूल्य दिनांक-01.06.2012 के पष्चात फर्टीलार्इजर कम्पनी से अनावेदक को प्रदाय होने वाले पोटास उर्वरक के संबंध में है और उसके आधार पर, अनावेदक पूर्व के स्टाक में रहे पोटास उर्वरक को उसमें दर्ज एम.आर.पी. मूल्य से अधिक पर विक्रय करने के लिए अधिकृत नहीं हो जाता है, क्योंकि परिवादी द्वारा पेष उक्त पोटास की बोरी में रही उर्वरक के संबंध में उक्त पुनरीक्षित कर प्रभावी नहीं है।
(8) अनावेदक-पक्ष की ओर से तर्क में यह बचाव लिया गया है कि-परिवादी द्वारा इस फोरम में पेष की गर्इ उर्वरक पोटास की बोरियां अनावेदक से दिनांक-12.07.2012 को खरीदी गर्इ बोरियां रही होना प्रमाणित नहीं होता है और परिवादी द्वारा पूर्व में किसी अन्य के द्वारा खरीदे गये पोटास, उर्वरक की खाली बोरियां लाकर मामले में साक्ष्य बनाने के लिए पेष की जा सकती हैं, पर अनावेदक के ऐसे तर्क में कोर्इ सार नहीं है, परिवादी द्वारा पेष उर्वरक, पोटास की बोरियों में लिखे बैच नंबर की खाद की बोरी अनावेदक की दुकान में सप्लार्इ हुर्इ थी या नहीं और यदि हुर्इ थी, तो उन्हें अनावेदक ने पूर्व में कब, किसको और किस अन्य व्यकित को बेचा, ऐसा कोर्इ अभिलेख अनावेदक की ओर से खण्डन साक्ष्य में पेष नहीं किया गया और परिवादी-पक्ष की यह कहानी कोर्इ बाद का सोच होना नहीं मानी जा सकती, क्योंकि प्रदर्ष सी-5 का लिखित षिकायत, जो परिवादी ने खरीदी दिनांक-12.07.2012 को ही वाणिजियक कर अधिकारी, सिवनी के कार्यालय में किया था, उसकी प्रति प्रदर्ष सी-5 में भी परिवादी ने दिनांक-12.07.22012 को ही खरीदी के दिन उसके द्वारा, अनावेदक से खरीदे गये जिंक सल्फेट व 191919 खाद व पोटाष उर्वरक की खरीदी के बोरियों में लिखे बैच नंबर व पैकेजिग के दिनांक का स्पश्ट व विषिश्ट विवरण लेख किया गया है और पोटास उर्वरक की वही खाली बोरियां परिवादी की ओर से मामले में पेष भी की गर्इं। तो यह स्पश्ट हो जाता है कि-प्रदर्ष सी-1(बी) में उल्लेख उर्वरक अनावेदक के द्वारा, परिवादी को दिनांक- 12.07.2012 को वास्तव में विक्रय किये गये थे और उनका पक्का बिल देने के स्थान पर प्रदर्ष सी-1(बी) की विक्रय पर्ची जारी कर दी जिसमें इस्टीमेन्ट रिक्त रहा है।
(9) ग्राहकों से अनुचित मूल्य प्राप्त कर लेने और अमानक माल बेचने वाले व षासन को देय विक्रय कर व वैट टेक्ट की चोरी करने वाले दुकानदारों के द्वारा अपने बचने के लिए यह एक सामान्य हथकण्डा है कि-वे पक्का बिल जारी न कर, एक ऐसी पर्ची में बिल जारी करते हैं, जिसमें इस्टीमेन्ट प्रिंन्ट होता है और इस तरह उनके खिलाफ होने वाली किसी भी कार्यवाही में वे ग्राहक को माल विक्रय किये गये होने से इंकार कर, मात्र इस्टीमेन्ट जारी करने का बचाव लेते हैं, जो कि-उक्त मामले में भी अनावेदक द्वारा ऐसा ही झूठा बचाव लिया जाना पाया जाता है।
(10) प्रदर्ष सी-5 के वाणिजियक कर अधिकारी को परिवादी द्वारा लिखे गये षिकायती-पत्र में जिंक सल्फेट एवं 191919 उर्वरक जो परिवादी ने खरीदे थे उनके भी बैच नंबर लेख किये गये थे, उक्त बैच के उर्वरक अनावेदक की दुकान में यदि सप्लार्इ नहीं हुये होते और उसके द्वारा, परिवादी को नहीं विक्रय किये गये होते, तो निषिचत-रूप से अनावेदक यह दर्षाने के लिए कि-जिंक सल्फेट और उर्वरक 19 1919, जो प्रदर्ष सी-1(बी) में लेख है, उसके प्रदर्ष सी-5 में दर्षाये बैच नंबर परिवादी की दुकान में बिकने के लिए नहीं आये थे और यदि आये थे, तो उसने अन्य किसी को विक्रय किये थे, अभिलेख दुकान का पेष करता जो कि-ऐसा सब अभिलेख अनावेदक के पास उपलब्ध रहा है, और उसे जानबूझकर पेष नहीं किया है, तो अनावेदक के विरूद्ध ही यह अवधारणा होती है कि-वास्तव में उसके पास प्रदर्ष सी-1(बी) में लिखित उर्वरक जिनके बैच नंबर प्रदर्ष सी-5 में लेख हैं, वे सब अनावेदक की दुकान में थे और उसने ही परिवादी को विक्रय किया।
(11) परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष सी-2, सी-3, सी-4 व सी-5 की कार्यवाहियों की प्रतियों से यह स्पश्ट है कि-परिवादी ने खरीदी के दिन ही वाणिजियक कर अधिकारी को लिखित षिकायत किया था और उसके द्वारा, अनावेदक को भी नोटिस देकर सुना गया था और जांच के बाद यह पाते हुये कि-अनावेदक ने, परिवादी को उक्त उर्वरक विक्रय किया, लेकिन उसका उक्त विक्रय का बिल कच्ची पर्ची में लिख कर दिया और इसलिए विक्रयकर अधिनियम के प्रावधानों का सीधा उल्लघंन पाते हुये, धारा-40(2) के प्रावधान के तहत 5,000-रूपये अनावेदक पर अधिरोपित किये गये और उक्त आदेष अंतिम रहा है, जिसकी कोर्इ अपील अनावेदक द्वारा नहीं की गर्इ और उक्त जुर्माना की राषि 5,000-रूपये अनावेदक ने चालान के द्वारा जमा भी किया, तो उक्त कार्यवाहियों की प्रतियां भी इस बाबद प्रमाण के रूप में सुसंगत हैं कि-अनावेदक ने, परिवादी को प्रदर्ष सी-1(बी) की कच्ची पर्ची में उल्लेखित उर्वरक दिनांक-12.07.2012 को वास्तव में विक्रय किये थे, जो कि-प्रदर्ष सी-1(बी) में लिखित मूल्य से किसी भिन्न मूल्य में विक्रय किये जाने का अनावेदक का बचाव नहीं है।
(12) अनावेदक की ओर से पेष प्रदर्ष आर-4 और आर-5 यूरिया और पोटास के संबंध में नहीं, बलिक जिंक सल्फेट व अन्य उर्वरक के मूल्य की सूची है, जिनके मूल्य के संबंध में कोर्इ भी विवाद प्रस्तुत मामले में नहीं है।
(13) अनावेदक की ओर से अपने बचाव में अपने गोदाम के यूरिया स्टाक रजिस्टर की प्रति पेष की गर्इ है कि-अनुविभागीय अधिकारी कृशि के द्वारा उसकी जांच की जाती है, तो ऐसा रजिस्टर अपनी सुविधा के अनुसार, अनावेदक के द्वारा स्वयं तैयार किया गया अभिलेख है, जिसमें उसके द्वारा कोर्इ नियमित प्रविशिटयां प्रतिदिन की जाती हों, यह किसी भी तरह प्रमाणित नहीं होता। और इसलिए षिकायत होने के बाद अपने बचने के लिए स्टाक रजिस्टर में कोर्इ भी प्रतिवशिट कर लेना परिवादी के साक्ष्य का पर्याप्त खण्डन नहीं है। और प्रदर्ष आर-2 के स्टाक रजिस्टर से यह स्वयं ही स्पश्ट हो रहा है कि- दिनांक-11.07.2012 को 540 बोरी यूरिया की आमद हुर्इ थी और क्योंकि परिवादी ने अगले ही दिन दिनांक-12.07.2012 को की गर्इ खरीदी बाबद षिकायत किया, तो प्रदर्ष आर-2 के रजिस्टर में 540 बोरी यूरिया के आमद होने के दिनांक-11.07.2012 को ही पूरा माल विक्रय हो जाना बताकर, स्टाक समाप्त हो जाने की प्रविशिट कर दी गर्इ, जो कि-एक दिन में इतना माल विक्रय हो जाने की अन्य कोर्इ प्रविशिट रजिस्टर में नहीं है, तो यह एक असामान्य संदेहास्पद सिथत है, जिसका कोर्इ लाभ परिवादी की साक्ष्य के खण्डन साक्ष्य के रूप में अनावेदक को प्राप्त होना संभव नहीं। जो कि- ऐसा बचाव स्वाभाविक और विष्वसनीय बचाव नहीं, तो कृशि कल्याण व कृशि विकास विभाग द्वारा परिवादी की षिकायत पर, अनावेदक के विरूद्ध लायसेंस कैंसिल किये जाने के आवेदन पर उचित कार्यवाही न किये जाने संबंधी जिला कलेक्टर को जनसुनवार्इ में परिवादी द्वारा, कृशि विभाग के कर्मचारियों के विरूद्ध की गर्इ षिकायत के संबंध में उपसंचालक कृशि विभाग द्वारा यह लेख कर दिया कि-उक्त दिनांक को विक्रेता के संस्थान में निरीक्षण करने पर, स्कंध निरंक पाया गया, इसलिए षिकायत तथ्यात्मक-रूप से सही नहीं पार्इ गर्इ, तो उपसंचालक द्वारा, कलेक्टर को भेजा गया ऐसा जवाब जिसकी प्रति अनावेदक ने पेष की है, अनावेदक के बचाव का कोर्इ प्रमाण नहीं है, जो कि-मात्र अनावेदक के द्वारा बचाव के लिए अपने स्टाक में कर ली गर्इ प्रविशिटयों का प्रदर्ष आर-7 का पत्र आधारित है।
(14) तब यह प्रमाणित पाया जाता है कि-अनावेदक ने, परिवादी को दिनांक-12.07.2012 को उर्वरक, जिंक व पोटास तथा उर्वरक 191919 एवं उर्वरक यूरिया का विक्रय किया, जिसका पक्का बिल जारी न कर, प्रदर्ष सी-1(बी) की विक्रय पर्ची जारी कर दिया और यह प्रमाणित है कि-अनावेदक ने परिवादी को जो उर्वरक, पोटास की दो बोरिया विक्रय की उनमें सभी टेक्स सहित, वर्णित एम.आर.पी. मूल्य 636-रूपये प्रति बोरी के स्थान पर, 890-रूपये प्रति बोरी के हिसाब से अनुचित मूल्य प्राप्त किया, इस तरह 508-रूपये निर्धारित मूल्य से अधिक उर्वरक, पोटास की दो बोरियों के मूल्य के संबंध में प्राप्त किये गये। इस तरह उर्वरक यूरिया के मध्यप्रदेष के निर्धारित विक्रय मूल्य 298.49-रूपये प्रति बोरी मूल्य के स्थान पर 380-रूपये प्रति बोरी की दर से अनुचित मूल्य अनावेदक ने, परिवादी से प्राप्त किया और इस तरह चार बोरी यूरिया खाद के निर्धारित मूल्य से 326.04-रूपये अधिक मूल्य प्राप्त किया, तब उर्वरक पोटास और उर्वरक यूरिया जो अनावेदक ने, परिवादी को विक्रय किया, उसमें निर्धारित मूल्य से 834.04-रूपये अनुचित-रूप से अधिक अनावेदक द्वारा, परिवादी से प्राप्त किये गये, इस तरह अनावेदक ने, परिवादी के प्रति-अनुचित व्यापार- प्रथा को अपनाया है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(15) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक ने, परिवादी से जो 834.04-रूपये
(आठ सौ चौतिस रूपये चार पैसे) अधिक मूल्य
प्राप्त किया है, उक्त अधिक प्राप्त किये गये मूल्य
को अनावेदक, परिवादी को भुगतान करे।
(ब) माल का निर्धारित मूल्य से अधिक अनुचित मूल्य
प्राप्त करना और विहित प्रकार से बिल जारी न
करना परिवादी के प्रति व ग्राहकों के प्रति
अपनार्इ गर्इ अनुचित व्यापार-प्रथा है, जिसके लिये
दण्डात्मक हर्जाना देने के लिए अनावेदक दायी है,
तोे अनावेदक, परिवादी को 10,000-रूपये (दस
हजार रूपये) हर्जाना अदा करे।
(स) अनावेदक स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा
और परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा करे।
(द) उक्त सब अदायगी अनावेदक, परिवादी को आदेष
की प्रति पाने की दिनांक से तीन माह की अवधि
के अंदर करेगा।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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