Kavita rani nakhariya filed a consumer case on 03 Aug 2015 against Rajya Beema & Pravdhayi Nidhi Vibhag, Director, Mediclaim in the Kota Consumer Court. The case no is CC/160/2010 and the judgment uploaded on 05 Aug 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-160/2010
कुमारी कविता रानी नरवरिया पुत्री प्रभू लाल नरवरिया उम्र 38 साल जाति कोली निवसी चित्रकूट,828 बालाजी बी0एड0कालेज केपास, मधु स्मृति संस्थान, रंगबाडी, कोटा। -परिवादिया
बनाम
01. अतिरिक्त निदेशक, मेडीक्लेम, राज्य बीमा एवं प्रावधायी निधि विभाग, जयपुर राजस्थान।
02. प्रबंधंक ई मेडिटेक, सोलोशन लिमिटेड, 307, तृतीय तल,पैराडाइज एपार्टमेन्ट, होटल पार्क के पीछे, सरोजनी मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर राजस्थान।
03. प्रबंधक ई, मेडीटेक, सोलूसन, क0लि0, 45 नाथूपुर रोड, फेस नं. 3, गुडगांव-122002 (हरियाणा)
04. राज्य निदेशक, राज्य बीमा, अदालत परिसर, कोटा। विपक्षीगण
समक्ष:-
भगवान दास ः अध्यक्ष
महावीर तंवर ः सदस्य
हेमलता भार्गव ः सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01. श्री मोती लाल उज्जवल, अधिवक्ता, परिवादिया की ओर से।
02. श्री रितेश मेवाडा,लोक अभियोजक,विपक्षी सं. 1व 4 की ओर से।
03. विपक्षी सं. 2 व 3 के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही।
निर्णय दिनांक 03.08.2015
परिवादिया ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में सेवा दोष बताया है कि राज्य सरकार की मेडीक्लेम पालिसी योजना के अन्तर्गत उसने राज्य कर्मचारी होने के नाते पालिसी ली हुई है, जिसका आई0 कार्ड विपक्षी सं. 1 द्वारा जारी किया गया है, इस पालिसी के तहत विपक्षी सं. 4 मेडीक्लेम कटोती करता है। उसने अपनी बंाई आंख का आपरेशन डी.डी. नैत्र संस्थान (प्राइवेट अस्पताल) कोटा में कराया जिसका भुगतान उसे प्राप्त हो गया।
उसके उपरान्त दांई आंख के आपरेशन की स्वीकृति हेतु आवेदन-पत्र विपक्षी सं. 3 (टी0पी0ए0) को भेजा गया। कोटा में आंख का राजकीय अस्पताल नहीं होने से प्राइवेट अस्पताल में ईलाज की स्वीकृति चाही गई थी जो दूरभाष पर दी गई थी। उसके उपरान्त 29.06.07 को डी.डी. नैत्र संस्थान कोटा से दांई आंख का आपरेशन कराया तथा उसका कुल खर्च 45,448/- रूपये का मेडीक्लेम, विभाग में भेजा, बार-बार पत्राचार करने पर भी उसका भुगतान नहीं किया गया। अधिवक्ता के जरिये कानूनी नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजे गये इसके बावजूद उसे भुगतान नहीं किया गया, जिससे उसे आर्थिक क्षति के साथ-साथ मानसिक क्षति हुई।
विपक्षी सं. 2 व 3 बावजूद विधिवत तामील नोटिस उपस्थित नहीं हुये इस लिये उनके विरूद्ध दिनांक 03.02.11 को एक पक्षीय कार्यवाही के आदेश दिये गये।
विपक्षी सं. 1 व 4 की ओर से संयुक्त रूप से जवाब प्रस्तुत कर संक्षेप में प्रकट किया गया है कि उक्त मेडीक्लेम योजना में राज्य सरकार द्वारा राज्य (राज्य सरकार का विभाग) कर्मचारी व उन पर आश्रित परिवार के सदस्यों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने का है, जिसके तहत कोई प्रिमियम या राशि नहीं ली जाती है, इसलिये इस निःशुल्क योजना के कारण परिवादिया उपभोक्ता नहीं है, इसी आधार पर उसका परिवाद चलने योग्य नहीं है।
यह भी आपत्ति ली गई है कि राज्य कर्मचारियों के संबंध में विपक्षीगण सेवा प्रदाता नहीं है। परिवादिया व उनके मध्य उपभोक्ता व सेवा प्रदाता का संबंध नहीं है, इसलिये परिवाद इस मंच के सुनवाई के अधिकार का नहीं है। यह भी आपत्ति ली गई है कि उक्त मेडीक्लेम योजना के अन्तर्गत अनुमोदित अस्पताल में ईलाज कराने पर ही नियमानुसार राशि का पुर्नभरण हो सकता है। परिवादिया ने अनुमोदित अस्पताल में आंख का ईलाज नहीं करवाया, इसलिये वह ईलाज खर्च की कोई राशि पाने की अधिकारी नहीं है। उक्त आधार पर उसका परिवाद खारिज करने की प्रार्थना की गई है।
परिवादिया ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षीगण को प्रेषित पत्र, नोटिस, मेडीक्लेम कार्ड, डी0डी0 नैत्र संस्थान से दिनांक 29.04.08 को आंख का आपरेशन कराने संबंधी पर्ची व खर्चे के बिल, राज्य मेडीक्लेम बीमा योजना के अन्तर्गत अनुमोदित अस्पताल की सूची, दिनांक 29.06.07 को डी0डी0 नैत्र अस्पताल कोटा को अदा की गई राशि उसकी पर्चिया, विपक्षीगण को प्रेषित रजिस्टर्ड कानूनी नोटिस, विपक्षी सं. 1 से प्राप्त पत्र आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की ।
विपक्षी सं0 1 व 4 की ओर से साक्ष्य में प्रभारी अधिकारी अतिका आजाद, उप-निदेशक, राज्य बीमा एवं प्रावधायी निधि विभाग, कोटा के शपथ-पत्र के अलावा मेडीक्लेम बीमा योजना की निर्देश पुस्तिका, विपक्षीसं. 2 से मेडीक्लेम दावा भुगतान के संबंध में मांगी गई सूचना हेतु भेजा पत्र, विपक्षी सं. 2 की सेवा अवधि बढाने का पत्र, मेडिक्ल क्लेम बीमा पालिसी की शर्ते आदि दस्तावेजात की प्रति पेश की गई है।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया गया। दोनों पक्षों की ओर से प्रस्तुत तर्को पर मनन व गहन विचार किया।
विचारणीय प्रश्न है कि क्या परिवादिया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विपक्षीगण की उपभोक्ता है? एवं विपक्षीगण ने सेवा दोष किया ?
जहाॅ तक इस मंच को परिवादिया द्वारा विपक्षी सं. 1 व 4 के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद को सुनने का अधिकार नहीं होने की आपत्ति है यह र्निविवाद है कि परिवादिया राज्य सरकार के अधीन शिक्षा विभाग में सेवारत राज्य कर्मचारी है। विपक्षी संख्या 1 व 4 ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या 5476/2013 डा0 जगमित्तार सेन भगत व अन्य बनाम निदेशक, स्वास्थ्य सेवा हरियाणा और आदि में पारित निर्णय दिनांक 11.07.13 की प्रति प्रस्तुत की गई है जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि राज्य सेवक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(क)(पप) के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। राज्य सरकार से संबंधित अधिकारों को प्राप्त करने के लिये राज्य प्रशासनिक अधिकरण या अन्य सिविल न्यायालय में उपचार लिया जा सकता है।
परिवादिया ने परिवाद में अंकित किया है कि विपक्षी सं. 4 ने मेडीक्लेम पालिसी के अन्तर्गत कटोैती की है लेकिन उसका कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। विपक्षी सं. 1व 4 का स्पष्ट जवाब है कि राज्यसरकार की मेडीक्लेम पालिसी योजना राज्य कर्मचारी के लिये निःशुल्क सेवा है। ऐसी सेवा से संबंधित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत सुनवाई योग्य नहीं है। शुल्क, आधारित सेवा से संबंधित विवाद ही सुनवाई योग्य है।
स्वयं परिवादिया ने परिवाद में स्वीकार किया है कि उसने उक्त मेडीक्लेम योजना के अनतर्गत अनुमोदित अस्पताल में अपनी आंख का आपरेशन नहीं कराया जिस अस्पताल में कराया वह प्राइवेट है अनुमोदित नहीं है। उसने परिवाद में अंकित किया कि उसने स्वीकृति विपक्षी सं. 3 टी0पी0ए0 से ली थी, लेकिन उसका भी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। उसने यह अभिवचन प्रस्तुत करते हुये तर्क दिया है कि पूर्व में उसने प्राइवेट अस्पताल में अन्य आंख का आपरेशन कराया जिसके खर्चे की राशि उसे अदा की गई। यह उल्लेखनीय है कि इस संबंध में विपक्षी सं. 1 ने भुगतान करने वाले विपक्षी सं. 2 से गैर अनुमोदित अस्पताल के क्लेम के भुगतान करने के संबंध में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने हेतु दिनांक 30.03.09 को स्पष्टीकरण पूछा है तथा उसे पत्र दिनांक 03.07.09 के जरिये भुगतान की स्वीकृति जारी करते समय गैर अनुमोदित अस्पताल के बिलों के किये गये भुगतान की कटौती 45,500/- रूपये की गई है अर्थात् टी0पी0ए0 ने परिवादिया को जो अनाधिकृत भुगतान कर दिया उसकी राशि टी0पी0ए0 से वसूल की गई क्योकि वह देय नहीं थी, इसलिये परिवादिया की ओर से दिया गया यह तर्क भी सारहीन है कि उसे पूर्व में प्राइवेट अस्पताल (गैर अनुमोदित) से आंख के ईलाज के खर्च का भुगतान कर दिया गया था, इस आधार पर विवादित इलाज का खर्चा उसे देय है।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम इस निष्कर्ष पर आते है कि परिवादिया का परिवाद इस मंच की सुनवाई योग्य नहीं है तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवादिया उपभोक्ता भी नहीं है, इसलिये इस अधिनियम के अन्तर्गत वह कोई उपचार प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। गुण-दोष के आधर पर भी परिवाद सारहीन है, क्योंकि उसने गैर अनुमोदित अस्पताल में ईलाज करवाया है जिसके खर्चे राज्य सरकार की मेडीक्लेम योजना के तहत नियमानुसार पुर्नभरण योग्य हीं नहीं है, इसलिये परिवादिया का परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
अतः परिवादिया कुमारी कविता रानी नरवरिया का परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्ध खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(महावीर तंवर) (हेमलता भार्गव) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनंाक 03.08.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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