राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0 लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील सं0-404/2014
(जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-८६/२००९ में पारित आदेश दिनांक २७/०१/२०१४ के विरूद्ध)
उत्तर रेलवे स्टेशन बाराबंकी परगना व तहसील नवाबगंज जिला बाराबंकी द्वारा स्टेशन मास्टर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
राजनाथ शर्मा उम्र लगभग ६५ वर्ष पुत्र स्व0 गोकुल प्रसाद शर्मा निवासी बेलहरा हाउस देवां रोड परगना व तहसील नवाबगंज जिला बाराबंकी।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1 मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य।
2 मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री पीपी श्रीवास्तव अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: राजनाथ शर्मा स्वयं।
दिनांक: .01/01/2015
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठासीन न्यायिक सदस्य द्वारा उद्घोषित।
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी ने विद्वान जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-८६/२००९ राजनाथ शर्मा बनाम उत्तर रेलवे स्टेशन बाराबंकी में पारित आदेश दिनांक २७/०१/२०१४ के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें विद्वान जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है:-
‘’ परिवादी का परिवाद पत्र स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादी को नियमित रूप से रियायती टिकट भविष्य में नियमानुसार उपलब्ध कराए। परिवादी को हुई मानसिक एवं शारीरिक परेशानी हेतु विपक्षी निर्णय की तिथि से ४५ दिवस के अन्दर १००००/-रू0 क्षतिपूर्ति अदा करे। परिवादी १०००/-रू0 वाद व्यय भी विपक्षी से पाने का अधिकारी है।’’
संक्षेप में कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी को नियमानुसार अस्थियों में विकृति के कारण विकलांग/अथरंग व्यक्तियों/रोगियों के लिए रियायत प्रमाण पत्र परिशिष्ट १/३८ (नियम १०१, क्रम सं0-२५) के अनुसार प्रमाण पत्र जारी किया गया है। परिवादी जब भी विपक्षी के मातहत कर्मचारी जिसकी टिकट विवरण पर सेवा प्रदान कने की जिम्मेदारी होती है, वह अकारण ही परिवादी को एवं विकलांग व्यक्तियों को टिकट देने में परेशान करके टिकट देने से मना कर देता है। जिसके बावत परिवादी द्वारा दिनांक ३०/१२/२००८ को विपक्षी के यहां निर्धारित फार्म पर
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फार्म सं0-६२ पर शिकायत किया गया। परिवादी द्वारा उपरोक्त शिकायत के उपरोक्त विपक्षी द्वारा परिवादी को आश्वासन दिया गया था कि जंच कराके दोषी कर्मचारी दण्डित किया जायेगा और नियमानुसार रियायत प्राप्त करने के अधिकृत व्यक्तियों को पूर्ण निर्धारित ग्राहक सेवा उपलब्ध करायी जायेगी, जिस पर परिवादी ने विश्वास कर लिया। उसके उपरांत भी जब भी कहीं जाने के लिये रियायती टिकट लेना चाहा तो उसे यह कहकर मना कर दिया जाता है कि आपकी शिकायत पर जांच हो रही है, जब जांच हो जायेगी तब आपको रियायती टिकट दिया जायेगा। अभी माह जुलाई २००९ को विपक्षी द्वारा स्पष्ट रूप से मना किया गया कि आपने शिकायत किया है अब आपको कभी भी रियायती टिकट नहीं देंगे।
विपक्षी का अपने वादोत्तर में कथन इस प्रकार है कि उसे नियमानुसार अस्थि विकृत होने के कारण विकलांग रियायत पत्र परिशिष्ट १/३६ जारी किया गया है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया रियायती प्रमाण पत्र अपूर्ण था। अत: उस रियायत पत्र पर टिकट जारी करना संभव नहीं था। परिवादी द्वारा दिनांक ३०/१२/२००८ को बाराबंकी स्टेशन पर उपलब्ध परिवाद पुस्तिका के पृष्ठ ६२ पर परिवाद दर्ज किया जाना सही है, परन्तु परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया रियायती पत्र के अनुसार रियायती टिकट देना संभव नहीं था, क्योंकि उक्त रियायती प्रमाण पत्र अपूर्ण था। विभाग द्वारा जां करने के पश्चात परिवादी को दिनांक ०६/०४/२००९ को एक पत्र भेजकर रियायती पत्र की छायाप्रति की मांग की गयी थी, परन्तु परिवादी द्वारा कार्यालय को छायाप्रति उपलब्ध नहीं करायी गयी। परिवादी ने जुलाई माह में कई बार रियायती टिकट प्राप्त करने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि जब जांच हो जायेगी, तब टिकट उपलब्ध कराया जाएगा। इस संबंध में दिनांक, समय व कर्मचारी का कोई उल्लेख परिवाद पत्र में नहीं किया गया है। उक्त बातें मुकदमा को गढने के लिए तैयार की गयी हैं। विपक्षी द्वारा इस संबंध में परिवादी को पत्र दिनांक ०६/०४/२००९ में कहा गया कि आपके रियायती प्रमाण पत्र में विकलांगता किस्म के कालम में प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारी द्वारा उसे पूर्ण रूप से नहीं भरा गया है, तथा जांच हेतु रियायती पत्र की छायप्रति मांगी गयी थी जिसे परिवादी द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया। रियायती प्रमाण पत्र को देखने से स्पष्ट होता है कि उक्त कालम में कालम के ऊपर पहले से लिखे विवरण से भिन्न कालम का प्रयोग कर लिखा गया है तथा राईटिंग भी भिन्न है। चूंकि विकलांग रियायत प्रमाण पत्र में इस कमी की सूचना कार्यालय के पत्र दिनांक ०६/०४/२००९ को माध्यम से परिवादी को प्राप्त हो गयी थी जिसमें परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाण पत्र अन्य त्रुटि जैसे:-
- मुहर जिस पर डाक्टर का पूरा नाम और रजिस्ट्रेशन नम्बर हो, में मात्र चीफ मेडिकल अफसर की मुहर का प्रयोग किया गया है, जिस पर न तो डाक्टर का नाम है और न ही रजिस्ट्रेशन नम्बर।
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- सरकारी अस्पताल/क्लीनिक की स्पष्ट मुहर के कालम में पुन: चीफ मेडिकल आफीसर की मुहर का प्रयोग किया गया है जो पद की मुहर है न कि चिकित्सालय की ।
विकलांग प्रमाण पत्र (१/३६) नियम (१०१) क्रमांक (२५) में दी गयी सूचना क्रमांक (१) पर स्पष्ट रूप से यह अंकित है कि यह प्रमाण पत्र उन व्यक्तियों के है जो बिना किसी सहायता के यात्रा नहीं कर सकते।
अपीलार्थी की ओर से श्री पी0पी0 श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी स्वयं राजनाथ शर्मा के तर्कों को सुना गया। पत्रावली का परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी उपभोक्ता की श्रेणीमें नहीं आता है क्योंकि न तो अपीलार्थी द्वारा कोई सेवा दी गयी है और न ही सेवा के बदले कोई अनुतोष प्राप्त किया गया है। परिवादी ने नियमों का पालन न करते हुए अपूर्ण विकलांगता प्रमाणपत्र के आधार पर रियायती टिकट प्राप्त करना चाहता था। अत: ऐसी परिस्थिति में उसका परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि विकलांगता प्रमाण पत्र पर ओवर राईटिंग है और विकलांगता किस्म कालम प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारी का पूर्ण रूप से नहीं भरा गया है। डाक्टर का पूरा नाम और रजिस्ट्रेशन नम्बर नहीं लिख है। सरकारी अस्पताल/क्लीनिक की स्पष्ट मुहर के कालम में चीफ मेडिकल आफीसर की मुहर का प्रयोग किया गया है जो पद की मुहर है चिकित्सालय की नहीं है । अत: यदि ऐसे प्रमाण पत्र पर टिकट जारी कर दिया जाए तब ट्रैफिक एकाउन्ट आफिस नई दिल्ली द्वारा टिकट जारी करने वाले कर्मचारी के विरूद्ध डेविट निकाल दिया जाता है । इस कारण परिवादी से कहा गया कि उपरोक्त कालम जारी करने वाले डाक्टर से भरवाकर लाए।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर ये यह तर्क दिया गया कि परिवादी को नियमानुसार अस्थियों में विकृति के कारण विकलांग/अथरंग व्यक्तियों/रोगियों के लिए रियायत प्रमाण पत्र परिशिष्ट १/३८ (नियम १०१, क्रम सं0-२५) के अनुसार प्रमाण पत्र जारी किया गया था किन्तु अकारण ही परिवादी को विकलांग व्यक्तियों का टिकट देने में परेशान करके टिकट देने से मना किया जाता है जिसके बारे में उसने शिकायत की थी और अन्त में माह जुलाई २००९ को विपक्षी द्वारा स्पष्ट रूप से मना किया गया कि जां के उपरांत अब आपको कभी भी रियायती टिकट नहीं देंगे। अत: ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच द्वारा उसे रियायती टिकट न दिए जाने के फलस्वरूप विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है।
प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखां का अवलोकन किया गया। पत्रावली में विकलांगता का जो प्रमाण पत्र की फोटोप्रति दाखिल की गयी है उसके अवलोकन से विदित होता है कि परिवादी वस्तुत: विकलांग है और उसे इस
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विकलांगता के प्रमाण पत्र पर रियायती टिकट का लाभ मिलना चाहिए था किन्तु रेलवे विभाग द्वारा उसे रियायती टिकट उपलब्ध नहीं कराया गया क्योंकि उन्हें उपरोक्त विकलांग रियायत पत्र परिशिष्ट १/३६ पर संदेह था क्योंकि वह अपूर्ण था और जो प्रति परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गयी थी जिसमें डाक्टर का पूरा नाम और न ही रजिस्ट्रेशन नम्बर था तथा सरकारी अस्पताल/क्लीनिक के स्पष्ट कालम में पुन: चीफ मेडिकल आफीसर की मुहर का प्रयोग किया गया था जो कि पद की मुहर है न कि चिकित्सालय की ।ऐसी परिस्थिति में यदि अपीलकर्ता को विकलांगता के प्रमाण पत्र पर कोई संदेह था तो इस संबंध में रेलवे विभाग द्वारा संबंधित सरकारी डाक्टर/चीफ मेडिकल आफीसर से संपर्क कर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था जिससे कि यह पूर्णत: स्पष्ट होता कि यह विकलांगता का प्रमाण पत्र उसके द्वारा जारी किया गया है अथवा नहीं। प्राय: यह देखने में आता है कि चिकित्सालय के चिकित्साधिकारी अपने हस्ताक्षर अस्पष्ट रूप से करते हैं एवं मुहर से भी स्पष्टत: यह ज्ञात नहीं होता है कि कथित मुहर किस अधिकारी के द्वारा लगायी गयी है किन्तु अपीलकर्ता/विपक्षी ने इस संबंधमें कोई जांच नहीं की और बिना किसी ठोस आधार के परिवादी/प्रत्यर्थी को विकलांगता के आधार पर रियायती टिकट नहीं दिया जो कि किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। यह अत्यंत संवेदनशील एवं सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का प्रकरण है जिसमें कि विकलांगता के आधार पर रियायती टिकट उन लोगों को जारी किया जाता हैजो चिकित्साधिकारी द्वारा विकलांग घोषित किये जाते हैं। विकलांगता प्रमाण पत्र में परिशिष्ट १/३६ में यह प्रमाण पत्र दिए जाने का उल्लेख है कि श्री राजनाथ शर्मा जिसका ब्योरा नीचे दिया गया है सदासयी अस्थि विकृत से विकलांग/अथरंग व्यक्ति रोगी है और किसी मार्गदर्शी की सहायता के बिना यात्रा नहींकर सकते हैं। अत: ऐसी परिस्थिति में अपीलकर्ता/विपक्षी द्वारा परिवादी/प्रत्यर्थी को रियायती टिकट दिए जाने के संबंध में विकलांगता प्रमाण पत्र के सही होने की जांच कराने के उपरांत रियायती टिकट देना चाहिए था किन्तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा ऐसा नहीं किया गया । जहां तक विद्वान जिला मंच द्वारा अपीलार्थी को मानसिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति हेतु १००००/-रू0 एवं १०००/-रू0 वाद व्यय दिलाए जाने का प्रश्न है यह धनराशि अत्यधिक प्रतीत होती है और यदि अपीलार्थी/विपक्षी को विकलांगता के प्रमाणपत्र पर कोई संदेह है तो इस संबंध में संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
वर्णित परिस्थितियों में हम यह समीचीन पाते हैं कि परिवादी/प्रत्यर्थी को मानसिक एवं शारीरिक परेशानी के कारण जो विद्वान जिला मंच ने १००००/-रू0 क्षतिपूर्ति दिलायी गयी है वह अत्यधिक है और उसके स्थान पर ५०००/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में १०००/-रू0 के स्थान पर ५००/-रू0 दिलाया जाना न्यायोचित होगा। तदनुसार अपील अंशत: स्वीकार किए जाने योग्य है।
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आदेश
अपील अंशत: स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-८६/२००९ राजनाथ शर्मा बनाम उत्तर रेलवे स्टेशन बाराबंकी में पारित आदेश दिनांक २७/०१/२०१४ को संशोधित करते हुए अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी/प्रत्यर्थी को मानसिक एंव शारीरिक परेशानी हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में १००००/-रू0 के स्थान पर ५०००/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में १०००/-रू0 के स्थान पर ५००/-रू0 इस अपील के निर्णय के दो माह के अन्दर अदा करे।
अपीलार्थी/विपक्षी को यह भी निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को नियमानुसार भविष्य में रियायती टिकट उपलब्ध कराए।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाए।
(अशोक कुमार चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र कोर्ट0 3