राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण वाद संख्या 12/1999
इक्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलेक्ट्रीसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन-1, यू0 पी0 स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड, इलाहाबाद।
पुनरीक्षणकर्ता
बनाम
राजमणि विश्वकर्मा पुत्र राम सजीवन, निवासी गांव बधेखरा, भरवार पी0 ओ0, तहसील करछना, जिला इलाहाबाद।
प्रत्यर्थी
समक्ष:-
1 मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी पीठासीन सदस्य।
2-मा0 श्री राम चरन चौधरी सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित। विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित। कोई नहीं।
दिनांक-29-10-2014
मा0 श्री राम चरन चौधरी, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह पुनरीक्षणकर्ता ने विद्वान जिला मंच इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या- 332/1996 राजमणि बनाम अधिशाषी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड में पारित आदेश दिनांक 16-06-1998 के विरूद्ध प्रस्तुत किया है जो निम्न आदेश पारित किया गया है।
" पुकारा गया। वादी उपस्थित आये। विपक्षी को आदेश के अनुपालन के लिए नोटिस भेजा गया था जिसकी तामील की गयी है परन्तु विपक्षी ने आदेश का अनुपालन जानबूझ कर नहीं दिया है। अत: आदेश का अनुपालन न करने के लिए दो माह की कारावास की सजा तथा 2000 /-रू0 जुर्माना किया जाता है। विपक्षी को वारंट गिरफ्तारी का जारी हो। पत्रावली वास्ते आदेश 30 जुलाई को पेश हो। "
विपक्षी की ओर से बावजूद नोटिस कोई उपस्थित नहीं है। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्वान जिला मंच द्वारा पारित किया गया आदेश विधि अनुसार बिना प्रक्रिया अपनाये पारित किया गया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
उपरोक्त आदेश के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा-27 के अन्तर्गत नोटिस देकर निर्णय का अनुपालन न करने का कारण जाने बिना यह आदेश पारित किया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-27
2
के अन्तर्गत आरोपित अपराध का संज्ञान लेते हुए विपक्षी/निर्णीत ऋणी/अपीलार्थी को दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत विहित प्रक्रिया के अनुसार आहूत नहीं किया गया है और अपीलार्थी की अनुपस्थिति में ही दंडित करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होना प्रदर्शित करते हुए अपीलार्थी को दंडित कर दिया है। हमारी राय में प्रशनगत आदेश विधि सम्मत आदेश नहीं है क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसकी अनुपस्थिति में दण्डित नहीं किया जा सकता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्राविधानानुसार आरोपी को आहूत किया जाना आवश्यक है और तत्पश्चात ही संक्षित परीक्षण की प्रक्रिया को अपनाते हुए ऐसे आरोपी को यदि अभियुक्त माना जाता है तभी दण्डित किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में यह पुनरीक्षण स्वीकार किये जाने योग्य है एवं प्रश्नगत आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
आदेश
पुनरीक्षण स्वीकार किया जाता है तदनुसार जिला मंच इलाहाबाद द्वारा वाद संख्या- 332/1996 में पारित किये आदेश के अनुपालन में पारित किया गया प्रश्नगत आदेश दिनांक 16-06-1998 अपास्त किया जाता है और जिला फोरम को निर्देश दिया जाता है कि उपरोक्त अनुसार विधिक प्रक्रिया अपनाते हुए निष्पादन कार्यवाही सुनिश्चित करे।
वाद व्यय पक्षकार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(अशोक कुमार चौधरी) (राम चरन चौधरी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
मनीराम आशु0-2
कोर्ट- 3