Chhattisgarh

Janjgir-Champa

CC/15/45

RAMPRASAD CHANDRA - Complainant(s)

Versus

RAJKUMAT CHANDRA AND OTHERS - Opp.Party(s)

SHRI NANDKUMAR YADAV

04 Nov 2015

ORDER

District Consumer Dispute Redressal Forum
Janjgir-Champa
Judgement
 
Complaint Case No. CC/15/45
 
1. RAMPRASAD CHANDRA
VILLAGE KARIGANV THANA MALKHAROUD
JANJGIR CHAMPA
CHHATTISAGARH
...........Complainant(s)
Versus
1. RAJKUMAT CHANDRA AND OTHERS
PRABANDHAK DHAN UPARJAN KENDRA KARIGANV PO. BADORA
JANJGIR CHAMPA
CHHATTISGTARH
2. RAJENDRA KUMAR GABEL
CONPUTER OPERATOR DHAN UPARJAN KENDRA KARIGANV VILLAGE MUKTA PO KOTA
JANJGIR CHAMPA
CHHATTISAGARH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. BHISHMA PRASAD PANDEY PRESIDENT
 HON'BLE MR. MANISHANKAR GAURAHA MEMBER
 HON'BLE MRS. SHASHI RATHORE MEMBER
 
For the Complainant:
SHRI NANDKUMAR YADAV
 
For the Opp. Party:
SHRI KAMLESH MISRA
 
ORDER

   
                                           जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, जांजगीर-चाॅपा (छ0ग0)

 

                                                                                         प्रकरण क्रमांक:- CC/45/2015
                                                                                            प्रस्तुति दिनांक:- 12/06/2015

रामप्रसाद चंद्रा उम्र 77 वर्श पिता बिसाहूराम 
जाति-चंद्रा, निवासी-करिगांव,
तहसील-मालखरौदा, 
जिला जांजगीर-चाम्पा छ.ग.               ..................आवेदक/परिवादी
    
                         ( विरूद्ध )    
                 
1. राजकुमार चंद्रा 
पिता सुमंत प्रसाद चंद्रा,
निवासी-करिगांव, पो.-बंदोरा, 
उप संस्था प्रबंधक, 
धान उपार्जन केंद्र करिगांव, 
तहसील-मालखरौदा, 
जिला जांजगीर-चाम्पा छ.ग.  

2. राजेन्द्र कुमार गबेल 
पिता जैन कुमार गबेल,
निवासी ग्राम मुक्ता, पो.-कोटा,
व्हाया-मालखरौदा, तहसील-मालखरौदा,            
जिला जांजगीर-चाम्पा, 
(कम्प्यूटर आॅपरेटर, 
धान उपार्जन केंद्र करिगांव)        .........अनावेदकगण/विरोधी पक्षकारगण
 
                                                                              ///आदेश///
                                                       ( आज दिनांक  04/11/2015 को पारित)

    1. परिवादी/आवेदक ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदकगण के विरूद्ध 34,500/-रू. का नुकसानी एवं आर्थिक एवं मानसिक क्षति के रूप में 60,000/-रू., वाद व्यय एवं अन्य अनुतोश दिलाए जाने हेतु दिनांक 12.06.2015 को प्रस्तुत किया है ।   
2. स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी/आवेदक एक किसान है तथा अनावेदक क्रमांक 1 धान उपार्जन केंद्र करिगांव के उप संस्था प्रबंधक एवं अनावेदक क्रमांक 2 कम्प्यूटर आॅपरेटर है । 
3. परिवाद के निराकरण के लिए आवष्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार   है कि परिवादी/आवेदक का ग्राम करिगांव, प.ह.नं. 48, रा.नि.मं. एवं तहसील-मालखरौदा में 16) एकड़ भूमि है, जिस पर आवेदक खेती कर धान की फसल पैदा करता है और उक्त पैदावार धान को धान उपार्जन केंद्र करिगांव में बिक्री करता है । आवेदक द्वारा विधिवत धान खरीदी के पंजीयन हेतु आवेदन पेष किया गया था और समस्त राजस्व दस्तावेज दिया था, जिसे हल्का पटवारी द्वारा तहसीलदार के निर्देषानुसार 16) एकड़ भूमि का पंजीयन किया गया था । समिति का पजीयन नंबर 940 है । किंतु अनावेदकगण द्वारा जानबूझकर मिली भगत से दुर्भावनावष 3¹ध्¹ एकड़ भूमि को पंजीयन नहीं किया गया, जिससे आवेदक मात्र 13 एकड़ भूमि के फसल को ही धान उपार्जन केंद्र में बिक्री कर पाया और 3¹ध्¹ एकड़ के फसल से प्राप्त धान को उपार्जन केंद्र में बिक्री करने से वंचित रह गया। आवेदक को उक्त धान को मजबूरी में मिचैलियों के पास विक्रय करना पड़ा, जिससे आवेदक को षासन द्वारा निर्धारित मूल्य एवं बोनस से वंचित रहना पड़ा, जिससे 52 क्विंटल की राषि 34,500/-रू. बोनस सहित नुकसान हुआ। आवेदक ने पंजीयन की त्रुटि को सुधारने बाबत् माननीय तहसीलदार मालखरौदा तथा संस्था प्रबंधक धान खरीदी उप केंद्र करिगांव में आवेदन दिया था, उसके पष्चात भी धान उपार्जन केंद्र करिगांव के संस्था प्रबंधक एवं कम्प्यूटर आपरेटर द्वारा कोई सुधार नहीं किया गया था, जिसमें 16) एकड़ भूमि राजस्व रिकार्ड में अंकित है, उसके पष्चात भी जानबुझकर दुर्भावनावष 3) एकड़ भूमि को पंजीयन नहीं किया गया । इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा 3) एकड़ भूमि का पंजीयन नहीं कर सेवा में कमी की गई है, जिससे आवेदक को आर्थिक एवं मानसिक परेषानी का समना करना  पड़ा । अतः आवेदक ने अनावेदकगण से आवेदक की भूमि 3) एकड़ के फसल से प्राप्त धान 52 क्विंटल धान, जिसे षासन समर्थित मूल्य 1,360/-रू. की दर से बिक्री करना था, जिसे मिचैलियों के पास 1,050/-रू. में बिक्री करना पड़ा, जिससे 360/-रू. के प्रति क्विंटल का नुकसान झेलना पड़ा तथा बोनस 300/-रू. प्रति क्विंटल के हिसाब से योग 34,500/-रू. का नुकसान हुआ, जिसे अनावेदकगण से दिलायी जावे एवं आर्थिक एवं मानसिक क्षति के रूप में 60,000/-रू., वाद व्यय एवं अन्य अनुतोश दिलाए जाने का निवेदन किया है । 
4. अनावेदकगण ने अविवादित तथ्य को छोड़ शेष तथ्यों को इंकार करते हुए कथन किया है कि अनावेदकगण द्वारा आवेदक के भूमि का कभी भी जानबुझकर पंजीयन के संबंध में कोई त्रुटि नहीं किया गया है । पंजीयन संबंधी ग्राम कोटवार के द्वारा  मुनादी हेतु सूचना केंद्र प्रभारी करिगांव द्वारा कराया गया कि दिनांक 01.09.2014 से दिनांक 15.11.2014 तक धान खरीदी के लिए पंजीयन एवं रकबा में संषोधन अथवा त्रुटि सुधार हेतु तहसीलदार के द्वारा तहसील कार्यालय मालखरौदा में जुड़वाने हेतु कार्य किया जा रहा है, परंतु उक्त शासन द्वारा तय की गई निर्धारित अवधि के पष्चात आवेदक द्वारा श्रीमान् तहसीलदार मालखरौदा को दिनांक 05.01.2015 को आवेदन पंजीयन में त्रुटि सुधार हेतु दिया गया। हल्का पटवारी द्वारा दिनांक 17.12.2014 को प्रेषित कराई कई कृषकों की खेती योग्य रकबा की उपलब्ध सूची के अनुसार क्रमांक 197 में आवेदक की भूमि का रकबा 5.184 हे. भूमि होने के फलस्वरूप उक्त भूमि का ही पंजीयन समिति में किया गया । आवेदक द्वारा श्रीमान तहसीलदार को दिये गये आवेदन पत्र पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई, इसके संबंध में श्रीमान तहसीलदार ही जवाब लेकर कार्यवाही किया जा सकता है, अनावेदगण को तहसीलदार अथवा किसी अन्य सक्षम अधिकारी द्वारा आवेदक के साढ़े तीन एकड़ भूमि का पंजीयन हेतु आदेष प्रदान नहीं किया गया है । आवेदक स्वतः की लापरवाही से अपनी संपूर्ण भूमि का शासन के नियमानुसार विधिवत पंजीयन नहीं कराया है, जिसके लिए आवेदक की जिम्मेदार है। इस प्रकार  परिवादी ने जानबूझकर अनावेदकगण को परेषान करने के उद्देष्य से मौजूदा प्रकरण माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया है, जिसके लिए परिवादी से प्रतिकारात्मक व्यय 3,000/-रू. अनावेदकगण को दिलात हुए प्रस्तुत परिवाद खारिज किए जाने का निवेदन किया है । 
5. परिवाद पर उभय पक्ष के अधिवक्ता को विस्तार से सुना गया। अभिलेखगत सामग्री का परिषीलन किया गया है ।
6. विचारणीय प्रष्न यह है कि:-
1. क्या परिवादी/आवेदक अनावेदकगण का उपभोक्ता है ? 
2. क्या अनावेदकगण द्वारा सेवा में कमी की गई है ?
निष्कर्ष के आधार
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 1 का सकारण निष्कर्ष:-
7. परिवाद पत्र में परिवादी ने अनावेदकगण द्वारा जानबूझकर मिली भगत से दुर्भावना पूर्वक 3¹ध्¹ एकड़ भूमि का पंजीयन नहीं किया, जिससे आवेदक मात्र 13 एकड़ भूमि के फसल को ही धान उपार्जन केंद्र में बिक्री कर पाया और 3¹ध्¹ एकड़ फसल से प्राप्त धान को उपार्जन कंेद्र में बिक्री करने से वंचित रह गया, इस तरह अनावेदकगण द्वारा 3) एकड़ भूमि का पंजीयन नहीं कर सेवा में कमी की है का परिवाद किया है । 
8. अनावेदकगण ने जवाबदावा में परिवादी ने षासन के नियमानुसार अपनी संपूर्ण भूमि का विधिवत पंजीयन नहीं कराया है, जिसके लिए वह पूर्ण रूप से जिम्मेदार है । हल्का पटवारी द्वारा दिनांक 17.12.2014 को प्रेशित कराई कई कृशकों की खेती योग्य रकबा की उपलब्ध सूची के अनुसार क्रमांक 197 में आवेदक की भूमि का रकबा 5.184 हे. होने के फलस्वरूप उक्त भूति का ही पंजीयन समिति में किया गया बतलाया गया । इस प्रकार अनावेदकगण छ.ग. षासन योजना अंतर्गत धान उपार्जन कंेद्र करिगांव में उप संस्था प्रबंधक एवं कम्प्यूटर आॅपरेटर का कार्य करते हैं, जो कि षासन की योजना के तहत कृशकों द्वारा अपनी धान फसल को उपार्जन केंद्र में बिक्री करने हेतु अपने धान बोनी का क्षेत्र का पंजीयन धान बिक्री हेतु कराया जाना बताया है । जैसा कि उभय पक्ष के अभिवचन से प्रगट हो रहा है । अनावेदकगण से परिवादी प्रतिफल हेतु सेवा भाड़े पर लिया या उपभोग किया का कोई तथ्य नहीं है । परिवादी ने अनावेदकगण को कोई प्रतिफल का भुगतान किया परिवाद के तथ्यों से प्रगट नहीं है । इस प्रकार अनावेदकगण का कृशकों के भूमि का पंजीयन किया जाना किसी षुल्क के तहत नहीं है अर्थात निःषुल्क है । फलस्वरूप परिवादी निःषुल्क सेवा प्राप्त किया है, जिससे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(ओ) अनुसार सेवा में षामिल नहीं है । 
9. परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ दस्तावेजों की फोटोप्रति, जिसमें धान खरीदी के पंजीयन हेतु आवेदन पत्र, ड्रायविंग लाईसेंस, परिवादी के भारत निर्वाचन आयोग का पहचान पत्र, कृशक पुस्तिका की राजस्व दस्तावेज बी-1 वर्श 2014-2015, खसरा पाचसाला वर्श 2014-2015, तहसीलदार मालखरौदा को किया गया आवेदन दिनांक 05.01.2015 तथा पटवारी हल्का नंबर 5 के पटवारी को दिया गया आवेदन दिनांक 29.10.2015 एवं सुभाश लाल चंद्रा का पावती दिनांक 09.02.2015 प्रस्तुत किया है । उक्त दस्तावेजी प्रमाण से परिवादी अनावेदकगण से प्रतिफल देकर सेवा प्राप्त किया प्रकट नहीं हुआ है, बल्कि षासकीय योजना के तहत परिवादी ने अपने धान फसल को विक्रय करने के लिए धान उपार्जन केंद्र में पंजीयन कराया था, जो निःषुल्क था । उपरोक्त संपूर्ण तथ्यों से परिवादी अनावेदकगण का उपभोक्ता होना प्रथम दृश्टया प्रमाणित करने का दायित्व है । अभिलेखगत सामग्री से विचारणीय प्रष्न क्रमांक 1 प्रमाणित होना हम नहीं पाते हैं, फलस्वरूप निश्कर्श ’’नहीं’’ में देते हैं । 
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2 का सकारण निष्कर्ष:-
10. परिवाद के तथ्यों से अनावेदक क्रमांक 2 द्वारा जानबूझकर परिवादी के 3) एकड़ भूमि को पंजीयन नहीं किया, से सेवा में कमी किया जाना बताया गया है । अनावेदकगण द्वारा सेवा हेतु कोई षुल्क लिया गया था का कोई अभिकथन नहीं है, निःषुल्क सेवा से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(ओ) अनुसार सेवा में षामिल नहीं है । 
11. परिवादी ने अपने स्वामित्व/आधिपत्य के कृशि भूमि का राजस्व दस्तावेज की फोटोप्रति प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार उसने कुल 5.596 हे. भूमि का विवरण प्रस्तुत किया है, जो 13.99 एकड़ रकबा होता है प्रस्तुत राजस्व दस्तावेज से परिवादी के स्वामित्व/आधिपत्य में 16) एकड़ भूमि होना स्थापित नहीं हुआ है । 
12. परिवाद पत्र में परिवादी ने अभिवचन किया है कि उसके 13 एकड़ भूमि की फसल धान उपार्जन केंद्र द्वारा क्रय किया गया । अनावेदकगण की ओर से सूची अनुसार दस्तावेज हल्का पटवारी द्वारा दिनांक 17.12.2014 को कृशकों को कुल भूमि एवं धान बोनी के क्षेत्र के संबंध में पंजीयन हेतु दिया गया विवरण एवं  मुनादी दिनांक 30.08.2014 के आधार पर तर्क किया गया है । हल्का पटवारी में परिवादी की कुल 5.184 हे. की भूमि में धान बोनी का क्षेत्र बताया गया था, जिसका पंजीयन किया गया था, जो सरल क्रमांक 197 मंे उल्लेखित है ।  
13. हल्का पटवारी द्वारा परिवादी के धान बोनी का क्षेत्र 5.184 अर्थात 12.96 एकड़ का पंजीयन करने हेतु दिया था । उक्त संपूर्ण रकबा का पंजीयन किया था 12.96 अर्थात 13 एकड़ भूमि की फसल को नियमानुसार धान उपार्जन केंद्र द्वारा क्रय किया जाना बताया गया है, जो पटवारी द्वारा परिवादी के धान बोनी क्षेत्र का बताए रकबा अनुसार होना हम पाते हैं । इस प्रकार परिवादी के जितनी भूमि का पंजीयन हुआ था । संपूर्ण पंजीयन की गई भूमि का नियमानुसार धान उपार्जन केंद्र द्वारा क्रय किया गया । 
14. उपरोक्त अनुसार हल्का पटवारी द्वारा ही कुल 5.184 हे. अर्थात 12.96 एकड़ भूमि का पंजीयन हेतु जानकारी दिया था, जिसे अनावेदकगण द्वारा धान उपार्जन हेतु पंजीयन किया गया, से अनावेदगण द्वारा पंजीयन करने के आधार पर किसी प्रकार की सेवा में कोई कमी की गई होना हम नहीं पाते हैं । 
15. परिवादी की ओर से तर्क किया गया है कि उसने तहसीलदार मालखरौदा को आवेदन किया था। आवेदन पत्र दिनांक 05.01.2015 की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है, जबकि अनावेदकगण की ओर से सूची अनुसार दस्तावेज क्रमांक 2 में केंद्र प्रभारी करिगांव, सहकारी सेवा समिति मर्यादित पंजीयन क्रमांक 940 का  मुनादीकी प्रति प्रस्तुत की गई है, जिसके अनुसार ग्राम पंचायत करिगांव ने दिनांक 01.09.2014 से दिनांक 15.11.2014 तक धान खरीदी के लिए नया पंजीयन एवं रकबा में संषोधन तथा छुटे हुए रकबा को जुड़वाने का कार्य तहसीलदार के द्वारा तहसील कार्यालय मालखरौदा में किए जाने की  मुनादी किया जाना बताया गया है । इस प्रकार दिनांक 01.09.2014 से दिनांक 15.11.2014 तक पंजीयन एवं रकबा में संषोधन करने की कार्यवाही होना था । परिवादी ने उक्त समयावधि के पष्चात दिनांक 05.01.2015 को तहसीलदार मालखरौदा को आवेदन दिया उक्त आवेदन पर कोई आदेष होने का कोई प्रमाण परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है । इस प्रकार परिवादी द्वारा विलंब से अपने साढ़े तीन एकड़ जमीन का पंजीयन जोड़े जाने की जानकारी तहसीलदार को दिया गया । आवेदन दिनांक 29.10.2015 प्रस्तुत किया है, जिसमें पटवारी ने टीप लिखा है कि राजस्व अभिलेख की सूक्ष्म जाॅच के बाद ही पंजीयन किया जाता है, जिसमें विसंगति नहीं है, जिससे हल्का पटवारी क्रमांक 5 तहसीलदार मालखरौदा द्वारा सूची अनुसार विवरण में परिवादी के धान बोनी क्षेत्र के पंजीयन का विचारण जाॅंच उपरांत किया गया, से अन्यथा निश्कर्श निकाले जाने के लिए कोई तथ्य नहीं है । 
16. परिवादी ने अपने स्वामित्व/आधिपत्य के भूमि का राजस्व अभिलेख प्रस्तुत किया है, जिसमें कुल रकबा 5.596 में से 0.419 हे. भूमि पड़त में होना तथा 0.028 हे. भूमि पर तील की फसल लिए जाने का उल्लेख है । इस प्रकार 0.447 हे. भूमि पर धान फसल का उपज नहीं लिया गया, परिवादी द्वारा प्रस्तुत राजस्व दस्तावेजों से प्रगट हो रहा है । कुल रकबा 5.596 हे. में से 0.447 हे. जिस पर धान की फसल नहीं लिया गया को घटाए जाने पर षेश 5.149 हे. होता है, जिसका एकड़ में रकबा 12.8725 एकड होता है अर्थात 13 एकड़ के लगभग होता है । इस प्रकार परिवादी के 13 एकड़ भूमि का पंजीयन होना प्रस्तुत राजस्व दस्तावेजों के अनुसार उचित होना प्रगट होता है, जिसके खण्डन में या अन्यथा कोई तथ्य परिवादी द्वारा स्थापित, प्रमाणित नहीं कराया है, जिससे हल्का पटवारी द्वारा सूची अनुसार विवरण में परिवादी की धान बोनी का क्षेत्र के संबंध में दी गई जानकारी परिवादी द्वारा लिए गए उपज के आधार पर होना हम पाते हैं । 
17. उपरोकत अनुसार अनावेदकगण ने परिवादी से कोई में कोई कमी की गई है, परिवादी प्रमाणित करने में असफल रहा है, से विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2 का निश्कर्श ’’प्रमाणित नहीं’’ में हम देते हैं । 
18. अनावेदकगण ने आवेदन से प्रतिकारात्मक व्यय 3,000/-रू. दिलाते हुए परिवाद निरस्त करने का निवेदन किया है । प्रस्तुत परिवाद अंतर्गत परिवादी अनावेदकगण का उपभोक्ता होना प्रमाणित नहीं हुआ है  । अनावेदकगण द्वारा परिवादी की सेवा में कोई कमी की गई है भी प्रमाणित नहीं हुआ है, फलस्वरूप परिवाद निरस्त किए जाने योग्य होना हम पाते है, तद्नुसार अनावेदगण के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद 1,000/-रू (एक हजार रूपये ) के प्रतिकारात्म व्यय सहित निरस्त करते हैं । 

( श्रीमती शशि राठौर)                             (मणिशंकर गौरहा)                            (बी.पी. पाण्डेय)     
      सदस्य                                                        सदस्य                                           अध्यक्ष   

 

 

 


                         

 

 

 
 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. BHISHMA PRASAD PANDEY]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. MANISHANKAR GAURAHA]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. SHASHI RATHORE]
MEMBER

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