Uttar Pradesh

StateCommission

A/2007/1270

Tata Motors - Complainant(s)

Versus

Rajesh Kumar - Opp.Party(s)

R Chaddha

16 Oct 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2007/1270
( Date of Filing : 15 Jun 2007 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Tata Motors
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Rajesh Kumar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 16 Oct 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1270/2007

टाटा मोटर्स लिमिटेड बनाम राजेश कुमार तथा दो अन्‍य

समक्ष:-                                                              

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

दिनांक:  16.10.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.        परिवाद संख्‍या-42/2006, राजेश कुमार बनाम राजेन्‍द्र गोसाई वरिष्‍ठ विक्रय अधिकारी ओबराय मोटर्स तथा दो अन्‍य में विद्वान जिला आयोग, सहारनपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 3.4.2007 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्‍यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा एवं श्री आशुतोष द्विवेदी को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। शेष प्रत्‍यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।

2.    विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए गाड़ी की कीमत की मद में अंकन 1,81,700/-रू0 तथा मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 50,000/-रू0 एवं परिवाद व्‍यय के रूप में अंकन 2,000/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है।

3.    परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी वाहन सं0-यू.पी. 11 एम. 9985 का पंजीकृत स्‍वामी है, जिस पर विपक्षी सं0-1 के माध्‍यम से विपक्षी सं0-2 से फाइनेंस कराया गया। विपक्षी ने 20 प्रतिशत मार्जिन मनी परिवादी द्वारा जमा करने के लिए कहा, परन्‍तु बाद में धोखा देकर 10 प्रतिशत कर दी और ऋण की सीमा अंकन 3.5 लाख रूपये के स्‍थान पर अंकन 4 लाख रूपये कर दी। परिवादी द्वारा दिए गए धन को भी ऋण में बदल दिया और उस पर ब्‍याज  लगाना शुरू कर दिया। यह वाहन दिनांक 31.1.2005 को क्रय किया

 

-2-

गया था। ऋण की किस्‍त 10,750/-रू0 प्रतिमाह तय की गई थी तथा ऋण की अदायगी चार वर्ष में की जानी थी। परिवादी ने वाहन 13 माह पूर्व लिया है तथा 17 किस्‍तें अदा की जा चुकी हैं। दिनांक 14.2.2006 को जब परिवादी का वाहन चालक वाहन को लेकर हरिद्वार जा रहा था तब विपक्षीगण द्वारा वाहन को कब्‍जे में ले लिया गया तथा कोई नोटिस भी नहीं दिया गया।

4.    विपक्षी सं0-1 की ओर से कोई लिखित कथन प्रस्‍तुत नहीं किया गया। विपक्षी सं0-2 ने कथन किया कि वाहन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए क्रय किया गया था। परिवादी ने पूर्व से ही किस्‍ते देने में चूक की है। किस्‍तों में चूक करने पर विपक्षीगण को अधिकार है कि वह वाहन को अपने कब्‍जे में ले ले। विपक्षी सं0-3 का कथन है कि वह केवल सर्विस आदि का कार्य करता है, उसका कोई संबंध ऋण से नहीं है।

5.    पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला आयोग द्वारा निष्‍कर्ष दिया गया कि डीलर द्वारा ही ऋण की कार्यवाही की गई, इसलिए सहारनपुर स्थित विद्वान जिला आयोग को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त है तथा विपक्षीगण द्वारा अवैध रूप से वाहन परिवादी के कब्‍जे से लिया गया है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया है।

6.    इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई अपील तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि सहारनपुर स्‍िथत विद्वान जिला आयोग को परिवादी की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं है। परिवादी वाहन का मालिक केवल तब हो सकता है जब नियमित रूप से समस्‍त ऋण राशि का भुगतान कर दिया जाए। परिवादी द्वारा खाते के संधारण की मांग की गई, जो उपभोक्‍ता विवाद के रूप में संधारणीय नहीं है। परिवादी पर अभी भी रू0 97,818.90 पैसे बकाया हैं।

7.    सर्वप्रथम क्षेत्राधिकार के बिन्‍दु पर निष्‍कर्ष दिया जाता है। विपक्षी सं0-1, जो ओबराय मोटर्स अम्‍बाला रोड सहारनपुर का प्रबंधक है, इन्‍हीं के द्वारा

 

-3-

वाहन विक्रय किया गया है और इन्‍हीं के द्वारा विपक्षी सं0-2 से ऋण प्राप्‍त कराया गया है। यह ऋण विपक्षी सं0-1 ने विपक्षी सं0-2 से प्राप्‍त कराया है। वाहन की डिलीवरी विपक्षी सं0-1 से प्राप्‍त की गई है, इसलिए आंशिक रूप से वादकारण सहारनपुर में भी उत्‍पन्‍न हुआ है। अत: विद्वान जिला आयोग, सहारनपुर का निर्णय/आदेश विधिसम्‍मत है।

8.    अपीलार्थी की ओर से एक अभिवाक यह भी लिया गया कि वाणिज्यिक प्रयोग के लिए वाहन क्रय किया गया था, परन्‍तु परिवादी का स्‍पष्‍ट कथन है कि परिवादी द्वारा जीविकोपार्जन के लिए वाहन क्रय किया गया था, इसलिए इस तर्क में कोई बल नहीं है कि वाहन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए क्रय किया गया था। अत: स्‍पष्‍ट है कि परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है।

9.    सबसे महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न यह है कि क्‍या वाहन कब्‍जे में लेने की प्रक्रिया के संबंध में विद्वान जिला आयोग द्वारा वैध आदेश पारित किया गया है ?

10.   इस निष्‍कर्ष को देते समय विद्वान जिला आयोग ने सम्‍पूर्ण साक्ष्‍य पर विचार किया है तथा यह निष्‍कर्ष दिया है कि विपक्षीगण ने स्‍वीकार किया है कि अंकन 1,62,040/-रू0 की धनराशि प्राप्‍त हो चुकी है। परिवादी ने सशपथ साबित किया है कि अंकन 5,580/-रू0 उसके द्वारा नकद अदा किए गए। इस प्रकार कुल 1,67,620/-रू0 परिवादी की ओर से जमा किए गए हैं। वाहन का मूल्‍य अंकन 4,35,880/-रू0 था। विद्वान जिला आयोग ने वाहन जब्‍त करने की तिथि को 5 प्रतिशत हा्स मानते हुए वाहन की कीमत अंकन 4,14,086/-रू0 निर्धारित की है, जो पूर्णत: विधिसम्‍मत आदेश है। वाहन जबत करने से पूर्व नोटिस देने का कोई कथन विपक्षीगण की ओर से स्‍वंय लिखित कथन में ही नहीं किया गया, इसलिए बगैर कानूनी प्रक्रिया अपनाए वाहन जब्‍त करना विधि विरूद्ध मानने का निष्‍कर्ष विधिसम्‍मत है तथा यह निष्‍कर्ष भी विधिसम्‍मत है कि परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गई है, वह 15 किस्‍तों के बराबर है, जबकि तत्‍समय केवल 13 किस्‍तें देय थीं, इसलिए नियमित रूप से  तीन  माह की किस्‍त टूटना नहीं माना जा सकता और परिवादी से वाहन

 

-4-

जब्‍त करने का अधिकार उत्‍पन्‍न होना नहीं माना जा सकता। यह विवाद लेखा विवरण से संबंधित विवाद नहीं है। परिवादी द्वारा कितना ऋण लिया गया तथा कितनी किस्‍त अदा की गई, इसका निर्धारण विद्वान जिला आयोग द्वारा सुगमता से किया जा सकता है। वाहन का विक्रय भी बगैर नोटिस दिए किया गया है। अत: इस स्थिति में अंकन 1,81,700/-रू0 परिवादी को वापस लौटाने का आदेश विधिसम्‍मत है। यद्यपि मानसिक आघात एवं क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 50,000/-रू0 अदा करने का आदेश देने का कोई औचित्‍य नहीं बनता। तदनुसार मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति की मद में पारित आदेश अपास्‍त होने और प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

11.   प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 03.04.2007 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति की मद में पारित आदेश अपास्‍त किया जाता है। शेष निर्णय/आदेश पुष्‍ट किया जाता है।

     प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला आयोगको यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)                        (सुशील कुमार)

  सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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