राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-834/99
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-1255/1993 में पारित निर्णय दिनांक 04.02.1999 के विरूद्ध)
दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं0लि0, लीगल सेल 94 एम.जी. रोड अपोजिट
राज भवन, लखनऊ द्वारा असिसटेन्ट मैनेजर। .........अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम्
1.राजेश कुमार गुप्ता पुत्र श्री आदित्य कुमार गुप्ता, सी-2/45 विकास मार्केट
कमला नगर, आगरा।
2. टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कंपनी लि0 वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर
कफे परेड, बाम्बे, 400 005
3. अशोका आटो सेल्स, हेड आफिस आगरा कानपुर रोड नन्हाई
आगरा 282 006 ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री जे0एन0 सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 06.02.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी ने यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम आगरा के परिवाद संख्या 1255/1993 राजेश कुमार गुप्ता बनाम टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कंपनी लि0 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 04.02.1999 के विरूद्ध योजित की है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने अपीलार्थी/प्रत्यर्थी से एक ट्रक को विपक्षी संख्या 2 के माध्यम से क्रय किया। विपक्षी संख्या 2 अपीलकर्ता का अभिकर्ता था। ट्रक की कीमत रू. 300654.88 पैसे थी, जिसमें रू. 17600/- बीमा की धनराशि सम्मिलित थी। परिवादी ने बीमा कंपनी को 3 साल तक लगातार प्रीमियम का भुगतान किया। परिवादी द्वारा यह भी कहा गया कि वाहन के प्रयोग से वाहन की कीमत में 15 प्रतिशत दूसरे वर्ष में तथा 25 प्रतिशत तीसरे वर्ष में कमी हुई, जिससे प्रीमियम की धनराशि भी कम हो जाती है, लेकिन अपीलकर्ता द्वारा ट्रक का बीमा करने के समय अधिक प्रीमियम का भुगतान किया गया जो नियम विरूद्ध था। अपीलकर्ता द्वारा भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बीमा कंपनी द्वारा अपीलकर्ता को अधिक प्रीमियम की धनराशि रू. 1360/- वापस परिवादी को देने
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के लिए लिखा, लेकिन इस धनराशि को विपक्षी संख्या 1 व 2 द्वारा भुगतान नहीं किया गया। विपक्षी संख्या 2 ने यह अवगत कराया कि वह केवल विपक्षी संख्या 1 का डीलर है, अत: वह इस धनराशि को वापस करने का उत्तरदायी नहीं है। विपक्षी संख्या 3 द्वारा यह कहा गया कि परिवादी द्वारा प्रीमियम की रसीद प्रस्तुत नहीं की, अत: वह किसी अनुतोष का अधिकारी नहीं है।
जिला मंच द्वारा अपने निर्णय में यह अंकित किया कि विपक्षी संख्या 3 ने रू. 1360/- परिवादी को वापस करने की स्वीकृत प्रदान की थी। जिला मंच द्वारा यह पाया कि इस प्रकरण में विवाद यह था कि रू. 1360/- की धनराशि परिवादी को मिला या नहीं। यदि यह धनराशि परिवादी को प्राप्त हो गई है तब धनराशि वापसी का प्रश्न नहीं है, लेकिन यदि परिवादी को रू. 1360/- की धनराशि प्राप्त नहीं हुई है तब विपक्षी संख्या 3 को यह निर्देश किया गया कि वह रू. 1360/- का 15 प्रतिशत ब्याज सालाना की दर से परिवादी को भुगतान करें तथा रू. 1000/- की धनराशि मानसिक क्लेश की क्षतिपूर्ति के लिए प्रदान किया। यह धनराशि विपक्षी संख्या 3/अपीलार्थी द्वारा देय थी। जिला मंच द्वारा यह भी आदेश दिया गया कि उक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन के अंदर किया जाए और अनुपालन न होने की स्थिति में अपीलार्थी को 18 प्रतिशत ब्याज सालाना की दर से देना होगा। अपीलार्थी द्वारा उक्त आदेश दि. 04.02.99 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है।
कई तिथियों से उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं आ रहा है। वर्तमान अपील वर्ष 1999 से लंबित है, अत: न्याय हित में पीठ ने यह निर्णय लिया कि इस अपील का गुणदोष के आधार पर निस्तारित कर दिया जाए। पीठ ने पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी द्वारा ट्रक खरीदा गया था और उसका बीमा अपीलार्थी द्वारा किया गया था। यह तथ्य भी उभय पक्षों को स्वीकार है कि परिवादी ने रू. 1360/- की अधिक प्रीमियम की धनराशि अदा की थी। अपीलकर्ता का कथन है कि उनके द्वारा रू. 1360/- का ' चेक ' दिनांकित 10.02.95 के प्रार्थना पत्र दिनांकित 21.03.95 के साथ जमा किया गया था तथा इस ' चेक ' का जिक्र जिला फोरम द्वारा अपने आदेश दि. 21.03.95 में किया भी है। दि. 21.03.95 के आदेश जिला मंच द्वारा स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि विपक्षी द्वारा फोरम में राजेश गुप्ता परिवादी के नाम से विपक्षी संख्या 3 ने
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रू. 1360/- दि. 10.02.95 बैंक आफ इंडिया बाम्बे का चेक संख्या 356721 जमा किया गया है, जो परिवादी को दिया जाना है। परिवादी स्वयं आकर इस चेक को फोरम से प्राप्त कर ले। यह आदेश दोनों पक्षों के संज्ञान में था, परन्तु पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी संख्या 1/परिवादी ने इस चेक का प्राप्त किया हो या कोई अन्यथा प्रार्थना पत्र दिया हो। अत: अपीलार्थी की सदाशयता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है। प्रत्यर्थी/परिवादी को स्वयं यह चेक प्राप्त करना चाहिए था, जो उसके द्वारा नहीं किया गया और न ही कोई प्रयास किया गया। परिवादी की गलती की सजा अपीलकर्ता को नहीं दी जा सकती। यदि परिवादी द्वारा रू. 1360/- की धनराशि प्राप्त नहीं की है तो वह केवल इतनी धनराशि को ही प्राप्त करने का अधिकारी है और वह किसी भी प्रकार का ब्याज पाने का अधिकारी नहीं है। यदि फोरम की पत्रावली में चेक उपलब्ध है तो वह कालातीत हो चुका होगा। अत: अपीलार्थी केवल रू. 1360/- की धनराशि परिवादी को भुगतान करेगा, जिस पर कोई ब्याज देय नहीं होगा और न ही मानसिक क्लेश की क्षतिपूर्ति देय होगी। अपील अंशत: स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील अंशत: स्वीकार की जाती है और जिला मंच के आदेश में आंशिक संशोधन किया जाता है कि अपीलार्थी परिवादी को रू. 1360/- की धनराशि इस आदेश की तिथि से एक माह के अंदर भुगतान करेगा।
उभय पक्ष अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(जे0एन0 सिन्हा) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-3