Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/480

IndusInd Bank - Complainant(s)

Versus

Rajesh Deo Pandey - Opp.Party(s)

Nilish Anand , Brijendra Chaudhary

02 Jun 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/480
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. IndusInd Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Rajesh Deo Pandey
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 02 Jun 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

              अपील संख्‍या– 480/2013           सुरक्षित

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 35/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 12-02-2013 के विरूद्ध) 

1-इण्‍डुसइण्‍ड बैंक लिमिटेड, रजिस्‍टर्ड आफिस 2401 जनरल थिमिमाया रोड़- कैंटोमेंट पुणे, महाराष्‍ट्र।

2-ब्रान्‍च मैनेजर, इण्‍डुसइण्‍ड बैंक लिमिटेड, ब्रान्‍च ओबरा, जिला- सोनभद्र द्वारा लीगल मैनेजर।

                                                        ..अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                                बनाम

 राजेश देव पाण्‍डेय पुत्र स्‍व0 आदीनाथ देव पाण्‍डेय, निवासी- बभनौली, परगना बड़हर, तहसील-रार्बटगंज, जिला- सोनभद्र।                                      ..प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                  

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति  : श्री बृजेन्‍द्र चौधरी, विद्वान अधिवकता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थिति    : श्री अनिल कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक-08-09-2016

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उद्घोषित

       निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0 35/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 12-02-2013 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें     जिलाउपभोक्‍ताफोरम के द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है-

      परिवादी राजेश देव पाण्‍डेय का परिवाद-पत्र विपक्षी शाखा प्रबन्‍धक, इण्‍डुसइण्‍ड बैंक शाखा ओबरा, सोनभद्र के विरूद्ध आज्ञप्‍त किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय की तिथि से पन्‍द्रह दिन की अवधि के अन्‍दर परिवादी का वाहन सं0-यू0पी0 64एच/5147 को परिवादी को वापस करें तथा मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षति के रूप में मु0 25,000-00 रूपये तथा वाद व्‍यय के रूप में मु0 5,000-00 कुल मु0 30,000-00 रूपये बतौर क्षतिपूति परिवादी को अदा करें। निर्धारित समयावधि के अन्‍दर आदेश का अनुपालन विपक्षी द्वारा सुनिश्चित न करने की स्थिति में परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह उपरोक्‍त धनराशि 06 प्रतिशत ब्‍याज की दर से जिला फोरम के माध्‍यम से विपक्षी से वसूल कर लेवे।

      संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से है कि परिवादी ट्रक संख्‍यायू0पी0 64 एच/5147 का पंजीकृत स्‍वामी है, जिसे फाइनेंस स्‍कीम के तहत विपक्षी के यहॉ से दिनांक 12-03-2010 को परिवार की परिवरिश की नीयत से लिया था। इस तौर पर परिवादी विपक्षी का उपभोक्‍ता है। विपक्षी द्वारा ट्रक के बावत मु0 10,50,000-00रूपये का ऋण स्‍वीकृत किया गया था, जिसकी

(2)

अदायगी 42 किश्‍तों में मु0 37,800-00 रूपये माहवार की दर से किया जाना था। ऋण की अवधि दिनांक 12-03-2010 से शुरू होकर दिनांक 07-07-2013 तक कायम रही। परिवादी विपक्षी के स्‍टेटमेंट के मुताबिक ऋण के मु0 1478400-00 रूपये के सापेक्ष दिनांक 10-06-2011 तक मु0 941420-00 रूपये जमा कर चुका है। इस तौर पर समायोजन के बाद मु0 5,36,980-00 रूपये परिवादी के ऊपर बाकी है, जिसकी अदायगी हिसाब-किताब के बाद परिवादी करने को तैयार है। परिवादी की गाड़ी माल लेकर बिहार में जा रही थी कि ए0आर0टी0ओ0  मोहनियां द्वारा पकड़ लिया गया तथा तीन माह के बाद दिनांक 22-09-2011 को परिवादी गाड़ी छुड़ाकर अपने मुकाम राबर्टगंज ले आया और मामले की सूचना विपक्षी को दिया। परिवादी की गाड़ी चुनार फैक्‍ट्री में राखड़ खाली करके वापस आ रही थी कि चवेरी मोड़ में चुनार में विपक्षी के एजेंट द्वारा गाड़ी को पकड़ कर दिनांक 28-11-2011 को टण्‍डन यार्ड मिर्जापुर में खड़ी करा लिया गया। गाड़ी की खड़ी हो जाने से आय का सारा स्रोत बन्‍द हो गया, जिसे बन्‍द हो जाने से परिवादी की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ चुकी है तथा परिवादी किश्‍त की अदायगी करने में असमर्थ हो गया। परिवादी ने विपक्षी के कार्यालय जाकर सम्‍पर्क किया तो विपक्षी द्वारा बताया गया कि परिवादी मु0 2,00,000-00 रूपये अदा कर दें तो उसकी गाड़ी तत्‍काल अवमुक्‍त कर दी जावेगी। परिवादी विपक्षी की बातों पर विश्‍वास करके दिनांक 30-11-2011 को मु0 2,00,000-00 रूपये का बन्‍दोबस्‍त करके विपक्षी के कार्यालय में सम्‍पर्क किया तो विपक्षी टालमटोल करने लगा और गाड़ी छोड़ने से इंकार कर दिया और कहा कि गाड़ी नीलाम कर दिया जायेगा। दिनांक 15-03-2011 को अधिवक्‍ता के माध्‍यम से एक नोटिस पंजीकृत डाक से भेजी गई, किन्‍तु विपक्षी द्वारा आज तक परिवादी की गाड़ी अवमुक्‍त नहीं की गई। परिवादी मु0 2,00,000-00 जमा करने को तैयार है और समय के अन्‍दर सम्‍पूर्ण अदायगी भी करने को तैयार है। इस प्रकार का मामला राजेन्‍द्र गुप्‍ता बनाम मैग्‍मा फाइनेंस कम्‍पनी में मा0 मंच द्वारा गाडी को अवमुक्‍त करने का आदेश दिया जा चुका है। ऋण की अवधि दिनांक 08-07-2013 तक कायम है। इस अवधि के अन्‍दर विपक्षी द्वारा जबरदस्‍ती गाड़ी खींचकर अपने कब्‍जे में खड़ी करके घोर सेवा की कमी की गई है। विपक्षी द्वारा गाड़ी खड़ी कर लेने के कारण अब तक हुई क्षति मु0 4,40,000-00 रूपये तथा मय ब्‍याज टैक्‍स मुवलिंग 35,000-00 रूपये तथा टायर की खराबी का मूल्‍य 18,000-00 रूपये तथा बैट्री, मेन्‍टीनेंस मु0 50,000-00 कुल 70.50 की नुकसानी परिवादी की क्षति हुई है।

(3)

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी द्वारा अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें कहा गया है कि प्रतिवादी बैंक एवं परिवादी के मध्‍य दिनांक 12-03-2010 को एक अनुबन्‍ध संख्‍या-यू0एल. 000469 एच निष्‍पादित हुआ है एवं उपरोक्‍त अनुबन्‍ध पर परिवादी ने बतौर हायरर एवं श्री विनोद जायसवाल ने बतौर गारण्‍टर हस्‍ताक्षर किये है। उपरोक्‍त अनुबन्‍ध के आधार पर प्रार्थी बैंक द्वारा परिवादी को वाहन सं0-यू0पी064 एच-5147 ट्रक पर रूपये 10,50,000-00 रूपये की वित्‍तीय सहायता प्रदान की गई। उपरोक्‍त लोन एकाउन्‍ट का ब्‍याज रूपया 3,23,400-00 एवं बीमा धनराशि रूपया 1,05,000-00 सहित कुल अनुबन्‍ध की धनराशि रूपया 14,78,400-00 को अनुबन्‍ध दितीय अनुसूची के अनुसार दिनांक 07-04-2010 से दिनांक 7-07-2013 तक प्रत्‍येक माह की 07 तारीख तक नियमित किश्‍त की अदायगी करनी थी। किश्‍तों का विवरण इस प्रकार है:-

1-किश्‍त संख्‍या- 01 से 30 तक रूपया  37,800-00,

2-किश्‍त संख्‍या 31 से 40 तक रूपया 34,300-00,

      परिवादी ने जानबूझकर अनुबन्‍ध की शर्तो को ब्रीच/भंग कर समय से किश्‍तों का भुगतान नहीं किया एवं संविदा भंग से सम्‍बन्धित मामले उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की परिधि में नहीं आते हैं। अत: प्रश्‍नगत परिवाद सव्‍यय निरस्‍त होने योग्‍य है। परिवादी अनुबन्‍ध की शुरूआत से ही प्रश्‍नगत वाहन की किश्‍तों की अदायगी अनियमित रहे हैं एवं कभी भी समय पर किश्‍तों का भुगतान नहीं किया है एवं जानबूझकर अनुबन्‍ध की शर्तो का उल्‍लंघन किया है। बैंक द्वारा परिवादी को विधिवत सूचना देने के उपरान्‍त अपनी अभिरक्षा में लिया था एवं परिवादी द्वारा दिनांक 10-06-2011 को रूपया 210000-00 रूपये जमा करने एवं भविष्‍य की किश्‍तों का समय से जमा करने का आश्‍वासन देने पर प्रश्‍नगत वाहन को परिवादी के पक्ष में अवमुक्‍त कर दिया गया था। प्रार्थी बैंक ने परिवादी हायरर पर कोई भी अनुचित दबाव न बनाकर सिर्फ भविष्‍य की किश्‍तों की नियमित अदायगी के आश्‍वासन पर वाहन को निर्मुक्‍त कर दिया गया। प्रार्थी बैंक द्वारा अनुबन्‍ध में वर्णित अधिकारों के तहत एवं भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा निर्गत दिशा-निर्देशों के तहत प्रश्‍नगत वाहन ट्रक सं0 यू0पी0 64एच-5147 को दिनांक 28-11-2011 को मिर्जापुर जनपद के थाना कोतवाली देहात के अर्न्‍तगत परिवादी की न्‍यासवत अभिरक्षा से पुन: अपनी अभिरक्षा में वापस ले लिया गया, जिसकी सूचना सम्‍बन्धित थाना कोतवाली मिर्जापुर देहात में कर दी गई। प्रश्‍नगत विवाद प्रार्थी बैंक एवं परिवादी के मध्‍य

(4)

निष्‍पादित अनुबन्‍ध पर आधारित है एवं अनुबन्‍ध क क्‍लाज 23 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्लिखित किया गया है। पक्षकारों के मध्‍य किसी भी प्रकार का विवाद होने पर प्रश्‍नगत विवाद में आरवीट्रेशन एण्‍ड कन्सिलिएशन एक्‍ट 1996 के तहत आरवीट्रेटर के द्वारा सुलझाया जायेगा एवं प्रश्‍नगत विवाद को आरवीट्रेटर को रिफर किया जायेगा। क्‍लाज में आरवीट्रेटर की नियुक्ति एवं स्‍थान आदि का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है। अत: प्रश्‍नगत विवाद को अनुबन्‍ध की शर्तो के अनुपालन में आरवीट्रेशन को संदर्भित किया जाना आवश्‍यक है। यह भी कहा गया है कि परिवादी एक व्‍यवसायी है एवं मेसर्स विन्‍ध्‍य कन्‍स्‍ट्रक्‍शन कम्‍पनी का मालिक है। उपर्युक्‍त फर्म का कारोबार लाखों रूपयों में है एवं परिवादी लाभ अर्जित कर रहा है। इसके अतिरिक्‍त अन्‍य मोटर वाहन ट्रकों का भी स्‍वामी है एवं उनसे सभी लाभ अर्जित कर रहा है। प्रश्‍नगत ट्रक भी परिवादी ने अपने व्‍यवसाय में अभिबृद्धि हेतु फाइनेंस पर लिया था न कि अपने और अपने परिवार के जीवन निर्वाह हेतु परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2 डी (1) के अर्न्‍तगत उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है।

      इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री बृजेन्‍द्र चौधरी तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अनिल कुमार मिश्रा, को सुना गया तथा अपील आधार एवं जिला उपभोक्‍ता फोरम के निर्णय/आदेश एवं दाखिल लिखित बहस का अवलोकन किया गया।

      मौजूदा केस में प्रत्‍यर्थी/परिवादी के तरफ से लिखित बहस दाखिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अपीलकर्ता ने जिला उपभोक्‍ता फोरम के आदेश को चुनौती इस आधार पर दिया है कि उपरोक्‍त प्रकरण आरवीट्रेशन से सम्‍बन्धित होने के कारण फोरम को सुनने का क्षेत्राधिकार नही है। इस सम्‍बन्‍ध में उत्‍तरदाता/वादी द्वारा निम्‍न रूलिंग दाखिल किया गया है-

      2013(4) CPR 345 (SC) m/s National Seeds Corporation Ltd. Versus M. Madhusudhan Reddy and Another में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा निम्‍न सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया गया है-

      Consumer Protection Act, 1986 – Section 3- Arbitration and Conciliation Act, 1986- Section 8- Complaint- Maintainability- Remedy of arbitration is not the only remedy available to a grower- it is an optional  remedy-He can either seek reference to an arbitrator or file a complaint under Consumer Act-  If grower opts for remedy of arbitration then it may be possible to say that he

(5)

cannot, subsequently, file complaint under Consumer Act- However, if  he chooses to file a complaint in first instance before competent Consumer Forum, then he cannot be denied relief  by invoking Section 8 of Arbitration and Conciliation Act. 1986- Remedy available in that Act is in addition to and not in derogation of provisions of any other law for the time being in force.

      इस केस में यह तथ्‍य भी स्‍पष्‍ट है कि आरवीट्रेशन अवार्ड दिनांक 13-02-2013 को किया गया है,  जबकि जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा निर्णय दिनांक 12-02-2013 को पारित किया गया है और परिवादी के तरफ से यह कहा गया है कि परिवाद दायर करने के बाद आरवीट्रेशन कार्यवाही शुरू किया गया है। इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि मौजूदा प्रकरण में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की उपरोक्‍त रूलिंग को देखते हुए यह स्‍पष्‍ट है कि जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष लम्बित केस आरवीट्रेशन से बाधित नहीं है।

      अपीलकर्ता के तरफ से दूसरा तर्क यह लिया गया कि व्‍यवसायिक उद्देश्‍य से यह ट्रक लिया गया था। इस सम्‍बन्‍ध में परिवादी/प्रत्‍यर्थी के तरफ से कहा गया है कि उपरोक्‍त ट्रक अपने व अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए लेकर स्‍वयं चलाता था, जिस कारण वह उपभोक्‍ता की श्रेणी में आता है। यह भी कहा है कि परिवादी की केवल दो किश्‍तें बकाया था, जिसका उचित कारण अपीलार्थी को बतलाया गया था, उसके बावजूद अपीलार्थी ने बलपूर्वक गाड़ी खींचा, जो माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय व माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय आई.सी.आई.सी.आई.बैंक बनाम प्रकाश कौर एवं अन्‍य, 2007 (2) एस.सी.सी. 711 (एस.सी.) पैरा-21 में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने अवधारित किया है कि अविधिक रूप से बिना कानूनी प्रक्रिया के यदि वाहन कब्‍जा प्राप्‍त किया जाता है तो वह सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।

      मौजूदा केस में यह भी स्‍पष्‍ट है कि प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि परिवादी एक व्‍यवसायी है और उसके फर्म का कारोबार लाखों रूपये में है, इसके अतिरिक्‍त अन्‍य मोटर वाहन ट्रकों का भी वह स्‍वामी है। प्रतिवाद पत्र में अन्‍य कौन से ट्रक है, उसका कोई व्‍यौरा नहीं दिया गया है और यदि यह मान भी लिया जाय कि परिवादी के पास अन्‍य ट्रक भी था तो मौजूदा ट्रक के किश्‍त की अदायगी के लिए उसके पास पर्याप्‍त धन होता तो परिवादी मांगे गये ब्‍याज पर कर्ज नहीं लेता और उसकी देनदारी न देने पर उसका ट्रक सीज कर लिया गया, यह स्थिति नहीं होती और निश्चित रूप से परिवादी द्वारा विवादित ट्रक अपने स्‍वयं के रोजगार हेतु लिया गया था, इसके अलावा ऐसा कोई साक्ष्‍य नहीं है कि विवादित ट्रक को मुनाफे में बेचने के लिए खरीदा गया है और यदि विवादित ट्रक को मुनाफे में बेचने के लिए खरीदा जाता तो वह व्‍यवसायिक में आ सकता, किन्‍तु परिवादी द्वारा विवादित ट्रक को अपने स्‍वयं के रोजगार के लिए लिया गया था। इस प्रकार से दोनों पक्षों को सुनने व उपरोक्‍त रूलिंग को देखते हुए हम यह पाते हैं कि अपीलकर्ता की अपील निराधार है, मानने योग्‍य नहीं है।

      केस के तथ्‍यों परिस्थितियों में हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा आरवीट्रेशन के सम्‍बन्‍ध में एवं व्‍यवसायिक उद्देश्‍य के सम्‍बन्‍ध में जो निष्‍कर्ष दिया गया है, वह विधि सम्‍मत् है, उसमें हस्‍तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नहीं है और हम यह पाते हैं कि अपीलकर्ता की अपील खारिज होने योग्‍य है।

      आदेश

      अपीलकर्ता की अपील खारिज की जाती है।

      उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

 

   (आर0सी0 चौधरी)                                    (राज कमल गुप्‍ता)

    पीठासीन सदस्‍य                                          सदस्‍य,

आर.सी.वर्मा, आशु.

 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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