प्रकरण क्र.सी.सी./14/205
प्रस्तुती दिनाँक 26.06.2014
लक्ष्मीनारायण राठी आ. स्व. शिव लाल जी राठी, उम्र 89 वर्ष, निवासी- राठी कुंज, रूंगटा निवास के पास, मोहन बाल मंदिर के सामने, गंजपारा, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
राजेन्द्र सिंह ठाकुर, संचालक-जय भोरमदेव ट्रव्हल्स, जय भोरमदेव बस स्टैण्ड कवर्धा, जिला-कवर्धा (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 10 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से आने जाने की किराये राशि 60रू., मानसिक कष्ट हेतु 20,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण अनावेदक के विरूद्ध एकपक्षीय हैं।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी सीनियर सिटीजन (वरिष्ठ नागरिक) है, जिस कारण उसको छत्तीसगढ़ शासन से राजपत्र क्र.251/क-264/टी.सी./2010 दिनांक 19.10.2010 के तहत निःशुल्क बस यात्रा पास आर.टी.ओ. दुर्ग से दि.11.10.2012 से 10.10.2015 तक की अवधि के लिए दिया गया है। दि.24.03.2014 को परिवादी रायपुर से बेमेतरा स्थित अपने राठी धर्मशाला जाने के लिए अनावेदक के बस क्र.सी.जी.09/ई./5018 में बैठा। परिवादी से बस कण्डक्टर द्वारा बस किराया मांगने पर परिवादी ने छ.ग. शासन की आर से आर.टी.ओ. दुर्ग द्वारा उसे जारी निःशुल्क बस यात्रा पास को दिखाया, लेकिन कण्डक्टर ने उस पास को नहीं माना और परिवादी से दबावपूर्वक बस किराया राशि 60रू. प्राप्त कर टिकट क्र.41896 प्रदान किया, जिसपर दिनांक, स्थान, गाड़ी नंबर का स्पष्ट उल्लेख नहीं है न ही उस पर हस्ताक्षर हैं और किराया राशि भी 55रू. की जगह 60रू. ली गयी। अनावेदक द्वारा परिवादी को जारी निःशुल्क बस यात्री पास को नहीं मानकर परिवादी से जबरदस्ती कर किराये की राशि ज्यादा प्राप्त की गयी और छ.ग.शासन के आदेश की भी अव्हेलना की गयी। परिवादी ने दि.01.04.2014 को पंजीकृत नोटिस अनावेदक को प्रेषित की गयी, किन्तु प्राप्त कर लेने के बाद भी अनावेदक ने नोटिस का कोई भी जवाब नहीं दिया और न ही कोई क्षति राशि प्रदान की। इस तरह अनावेदक की ओर से सेवा में कमी की गयी है। अतः परिवादी को अनावेदक से आने जाने की किराये राशि 60रू., मानसिक क्षति 20,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
(4) परिवादी के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से आने जाने की किराये राशि 60रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि एनेक्चर-1 का दस्तावेज स्वयं ही अनावेदक के व्यवसायिक कदाचरण को सिद्ध करता है क्योंकि उक्त टिकिट में स्पष्ट नहीं है कि टिकिट कहां से कहां तक और कितने रूपये की है, जबकि अनावेदक का यात्रियों के प्रति यह कर्तव्य एवं भारी जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक यात्री को यह सन्तोष का अनुभव कराये कि वास्तव में जितनी राशि उससे ली गयी है, उतनी ही राशि का टिकिट गन्तव्य स्थान के लिये वाजिब है एवं टिकिट में सुस्पष्ट लिखा गया है, ऐसा नहीं करना ही व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी में आता है।
(7) अनावेदक की आक्रामक व्यापारिक नीति के चलते अनावेदक ने 89 उम्र के सीनियर सिटिजन को भी नहीं बक्शा, जो कि एक सामाजिक चेतना का विषय है कि किस प्रकार ऐसी ट्रान्सपोर्ट कम्पनियां गैर जिम्मेदार एवं सवेदनहीन व्यक्तियों को बिना टेªनिंग दिये कन्डक्टर जैसे पदों पर भर्ती करती है, जिन्हंे 89 साल के वृद्ध के लिए यह सोच है ही नहीं कि यदि उक्त वृद्ध अपना पास दिखा रहे हैं तो उसे पढ़े और तत्पश्चात् कार्यवाही करे जबकि ट्रान्सपोर्ट व्यवसायी का यह कर्तव्य है कि अपने कर्मचारियों को सरकार द्वारा दिये गये निर्देशों के सम्बन्ध में सजग बनाये। अनावेदक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है जब एनेक्चर-2 परिवादी ने दिखाया, तो उसे अमान्य एवं अनदेखा करने के क्या कारण थे।
(8) एक 89 साल के वृद्ध के साथ एवं शासन इतना मानवता का रूख अपना रही है तो अनावेदक द्वारा अपने आक्रामक व्यापारिक नीति के चलते एक वृद्ध के प्रति घोर उदासीनता एवं अनादर हो एवं इस स्थिती में निश्चित तौर पर उक्त वृद्ध ग्राहक को घोर मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने बीस हजार रूपये को आंकलन किया है तो एसे अत्यधिक नहीं माना जा सकता। हमारी यह बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी बनती है हम बुजुर्ग व्यक्ति को उचित आदर सम्मान दे, वे जो कह रहे है उसे धीरज से सुने एवं जब परिवादी ने उक्त पास दिखाया तो अनावेदक को अति आदर, मानवता एवं शिष्टाचार से उस दस्तावेज पर गौर कर परिवादी को यह अनुभव कराना था कि आज भी बुजुर्ग व्यक्ति समाज में सम्मानीय है और उसकी बातों को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे सिद्धान्तों एवं संस्कारों के धनी होते है और झूठ बोलने के आदि नहीं होने के कारण सही स्थिति पर ही अडिग रहते है, यदि अनावदेक ने परिवादी के बोलने और फिर पास दिखाने पर भी परिवादी से पैसे ले लिये तो निश्चित रूप से अनावेदक ने घोर व्यावसायिक कदाचरण किया है, फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने के समुचित आधार पाते हैं।
(9) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को 60रू. (साठ रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उपरोक्त कृत्य के कारण हुए मानसिक कष्ट के लिए 20,000रू. (बीस हजार रूपये) अदा करे।
(स) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।