राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१३६९/२०१४
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-७५९/२००७ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०९/०१/२०१४ के विरूद्ध)
- यूनियन आफ इंडिया द्वारा डायरेक्टर पोस्टल सर्विस आफिस पोस्ट मास्टर जनरल इलाहाबाद रीजन इलाहाबाद ।
- सब पोस्ट मास्टर पोस्ट आफिस विवेकानन्द मार्ग इलाहाबाद।
.............अपीलार्थीगण.
बनाम
राजेन्द्र प्रसाद प्रोपराईटर मै0 मारूति ट्रेडर्स निवासी २४ मुट्ठीगंज इलाहाबाद।
..............प्रत्यर्थी
समक्ष:-
- माननीय श्री संजय कुमार, पीठा0सदस्य।
- माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता डा0 उदय वीर
सिंह के सहयोगी श्रीकृष्ण।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 23/01/2018
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या-७५९/२००७ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०९/०१/२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलकर्ता से रू0 ७०००/- के तीन राष्ट्रीय बचत पत्र दिनांक ०२/११/१९९८ को खरीदे थे जो इस प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय बचत पत्र सं0-६ एनएसएस /२३डीडी८१०६१४ रू0 ५०००/-
- राष्ट्रीय बचत पत्र सं0-६ एनएसएस/४०सीसी२२०८७७ रू0 १०००/-
- राष्ट्रीय बचत पत्र सं0-६एनएसएस/४०सीसी २२०८७८ रू0 १०००/-।
इन सभी बचत पत्रों की कुल परिपक्वता धनराशि रू0 १४१०५/- थी जो दिनांक ०२/११/२००४ को देय थी । परिवादी/प्रत्यर्थी परिपक्वता तिथि पर अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-2 से उनके भुगतान के लिए मिला तो अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-२ ने उनका भुगतान करने से इन्कार कर दिया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त उल्लिखित राष्ट्रीय बचत पत्रों के भुगतान के संबंध में डाक विभाग के उच्च अधिकारियों से संपर्क किया किन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इसी से क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा यह परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया है।
जिला मंच द्वारा विपक्षीगण को नोटिस भेजा गया। अपीलकर्ता/विपक्षीगण द्वारा जिला मंच के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया और जिनमें यह अभिकथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद दायर किया है। उक्त प्रतिवाद पत्र में उपरोक्त उल्लिखित राष्ट्रीय बचत पत्रों को परिवादी द्वारा क्रय करना तो स्वीकार किया है किन्तु यह बचत पत्र परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा उपसंभागीय विपणन अधिकारी के यहां बंधक रख दिए गए थे जिसके कारण इसकी परिपक्वता पूरी होने के बावजूद उक्त बचत पत्र निर्धारित तिथि दिनांक ०२/११/२००४ को उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं हुए। परिवादी के उक्त बचत पत्र उपसंभागीय विपणन अधिकारी के पत्र सं0-३५९/जमानत वापसी दिनांक २४/०७/२००७ के द्वारा दिनांक २६/०७/२००७ को बंधक मुक्त हुए। परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा दिनांक २०/०५/२०११ को इन बचत पत्रों की राशि रू0 १५०९८/- का अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-2 से भुगतान प्राप्त कर लिया। उसके उपरांत बचत पत्रों के सापेक्ष कोई धनराशि शेष नहीं थी। इस प्रकार परिवाद पत्र को खारिज करने की प्रार्थना की गयी।
उभय पक्षों द्वारा जिला मंच के समक्ष अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। पक्षकारों के साक्ष्यों का परिशीलन करने और उभय पक्षों को सुनने के बाद जिला मंच ने प्रश्नगत आदेश निम्नवत पारित किया है-
‘’ परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध संयुक्त एवं पृथक रूपेण अंशत: आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षीगण को यह निर्देश दिया जाता है कि वे परिवादी को राष्ट्रीय बचत पत्र की परिपक्वता धनराशि रू0 १४१०५/- पर दिनांक २६/०७/२००७ से २०/०५/२०११ तक ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज का भुगतान करे। यदि ०२ माह के अन्तर्गत भुगतान नहीं किया गया तो परिवादी इस निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक भी परिपक्वता धनराशि पर उसी दर से ब्याज पाने का अधिकारी होगा। परिवादी विपक्षीगण से रू0 १०००/- क्षतिपूर्ति व रू0 १०००/- वाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है। ‘’
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गयी है।
अपील में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्नगत आदेश तथ्यों एवं नियमों के विपरीत है। विद्वान जिला मंच ने दिनांक २६/०७/२००७ से दिनांक २०/०५/२०११ तक की अवधि के लिए ०८ प्रतिशत की दर से ब्याज अनुमन्य करके त्रुटि की है क्योंकि राष्ट्रीय बचत पत्र नियमावली के नियम १३ व १५ के अनुसार अधिक ब्याज दिए जाने का कोई प्राविधान नहीं है और उक्त आदेश खारिज होने योग्य है। अपील के आधार में यह भी कहा गया है कि परिवादी/प्रत्यर्थी एक फर्म है और फर्म को राष्ट्रीय बचत पत्र नियमावली के अन्तर्गत फर्म को परिपक्वता की अवधि पर ब्याज अनुमन्य नहीं है और प्रश्नगत प्रकरण में ब्याज अनुमन्य करके त्रुटि की गयी है। विद्वान जिला मंच ने उस क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके त्रुटि की है जो उसमें निहित नहीं है।
अपील का प्रत्यर्थी द्वारा विरोध किया गया है।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह के सहयोगी विद्वान अधिवक्ता श्रीकृष्ण उपस्थित है। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हैं। अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त उल्लिखित विवरण के अनुसार रू0 ७०००/- के राष्ट्रीय बचत पत्र दिनांक ०२/११/१९९८ को क्रय किए थे और उक्त राष्ट्रीय बचत पत्रों की परिपक्वता तिथि दिनांक ०२/११/२००४ को कुल परिपक्वता धनराशि १४१०५/- थी। यह भी स्पष्ट है कि उक्त राष्ट्रीय बचत पत्र प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपसंभागीय विपणन अधिकारी इलाहाबाद के यहां एक जमानत के रूप में बंधक थे। अत: जब तक इन राष्ट्रीय बचत पत्रों को बंधक मुक्त नहीं किया जाता तब तक अपीलार्थी द्वारा उनका भुगतान किया जाना संभव नहीं था अर्थात परिपक्वता अवधि दिनांक ०२/११/२००४ को वह उपसंभागीय विपणन अधिकारी के यहां बंधक थे और उन्हें दिनांक २६/०७/२००७ को बंधक मुक्त किया गया था । अत: बंधक मुक्त होने के उपरांत अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-2 द्वारा उनका परिपक्वता भुगतान रू0 १५०९८/- दिनांक २०/०५/२०११ को कर दिया गया। इस विवाद में केवल प्रश्न यह है कि जब यह राष्ट्रीय बचत पत्र दिनांक २६/०७/२००७ को बंधक मुक्त हो गए थे तो उस तिथि से २०/०५/२०११ तक की अवधि तक उन राष्ट्रीय बचत पत्रों की परिपक्वता धनराशि का भुगतान क्यों नहीं किया गया। अनावश्यक रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी का उत्पीड़न हुआ और उसे विभिन्न स्तरों पर अपने राष्ट्रीय बचत पत्रों की धनराशि प्राप्त करने के लिए दौड़ना पड़ा और उसे यह परिवाद भी दायर करना पड़ा। राष्ट्रीय बचत पत्रों की परिपक्वता धनराशि दिनांक २६/०७/२००७ से २०/०५/२०११ तक अपीलार्थी द्वारा अनावश्यक रूप से अपने पास रोके रखी गई। प्रत्यर्थी/परिवादी दिनांक २६/०७/२००७ से दिनांक २०/०५/२०११ तक की अवधि के लिए परिपक्वता धनराशि पर समुचित ब्याज पाने का अधिकारी है। विद्वान जिला मंच ने उक्त अवधि के लिए ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देकर कोई त्रुटि नहीं की है। अपीलकर्ता की अपील में कोई बल नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है ।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(संजय कुमार) (महेश चन्द)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-5