मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 1492 /2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-141/2006 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-12-2015 के विरूद्ध)
उ0प्र0 राज्य द्वारा जिलाधिकारी, इटावा। .....अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
1- राजेन्द्र नारायन ऊर्फ मुन्ना पुत्र रामदत्त, निवासी-बुआपुर, पोस्ट मुगलपुर नरेनी, जनपद-इटावा। ...प्रत्यर्थी/परिवादी
2- न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लि0 शाखा फर्रूखाबाद, नगर व जिला फर्रूखाबाद, उ0प्र0 द्वारा शाखा प्रबन्धक। ......अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री आर0 के0 गुप्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
दिनांक : 05-09-2018
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-141/2006 राजेन्द्र नारायन ऊर्फ मुन्ना बनाम् उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिलाधिकारी व एक अन्य में जिला फोरम, इटावा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-12-2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित आक्षेपित निर्णय के द्वारा परिवाद विपक्षी संख्या-1 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिलाधिकारी के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
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‘परिवाद विपक्षी संख्या-1 के रू0 1,00,000/- की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। इस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा करें।‘’
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी सं0-1 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिलाधिकारी, इटावा ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 के0 गुप्ता उपस्थित आए। प्रत्यर्थीगण की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं है।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी पत्नी सरजो देवी, ग्राम बुआपुर परगना भरथना की खतौनी 1411 फसली लगायत 1416 फसली के क्रम संख्या-00234 की खातेदार है और दिनांक 04-02-2006 को दिन में 12.30 बजे रेलवे लाईन पार करते हुए उनकी दुर्घटना घटित हुई, जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी। तदोपरान्त दुर्घटना की सूचना थाना इकदिल में उसी दिन दी गयी तो थाना इकदिल ने घटना इत्तफाकिया होने के कारण अपराध पंजीकृत नहीं किया। तब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, इटावा को दिनांक 22-03-2006 को रजिस्ट्री द्वारा सूचना भेजी गयी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 04-02-2006 को सरजो देवी को घायल अवस्था में इटावा अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनका पैर जांघ से कट चुका था। उन्हें आगरा रिफर कर दिया गया किन्तु रास्ते में ही उनकी मृत्यु दिनांक 04-02-2006 को रात्रि 11.00 बजे हो गयी तब दिनांक 05-02-2006 को उनका अंतिम संस्कार हुआ और प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 10-02-2006 को सूचना लेखपाल को दी। लेखपाल ने उसे 15 दिन बाद बुलाया तब दिनांक 24-02-2006 को वह तहसील गया तो वहॉं लेखपाल ने फार्म
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दिया जो तीन प्रतियों में भरा गया। इसके साथ ही फोटो, प्रथम सूचना रिपोर्ट, रजिस्ट्री रसीद, मेडीकल, मृत्यु प्रमाण पत्र, प्रधान का प्रमाण पत्र, पंचायतनामा, खतौनी, परिवार रजिस्टर, सेन्ट्रल बैंक खाते की पासबुक भी लेखपाल को दिया परन्तु उसे कोई क्लेम नहीं मिला। अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम, इटावा के समक्ष प्रस्तुत किया।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी उपस्थित नहीं हुआ है और न ही उसके द्वारा कोई लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षी संख्या-2 शाखा प्रबंधक, न्यू इण्डिया इं0कं0 लि0 ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि उनकी बीमा कम्पनी के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी का कोई बीमा दावा प्राप्त नहीं हुआ है और उनकी बीमा कम्पनी को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित दुघर्टना की कोई जानकारी नहीं है। बीमा कम्पनी को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है, बीमा कम्पनी के विरूद्ध कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। उनका तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तुत परिवाद ग्राह्य भी नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा ही विपक्षी बीमा कम्पनी से प्रश्नगत बीमा पालिसी प्रीमियम देकर प्राप्त की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी अथवा उसकी पत्नी ने बीमा पालिसी हेतु उत्तर प्रदेश राज्य को कोई भुगतान नहीं किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को ही सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि पत्रावली पर उप जिलाधिकारी, भरथना द्वारा पारिवादी को दी गयी सूचना दिनांक 19-05-2006 की प्रति मौजूद है जिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट, पोस्टमार्टम और पंचनामा की मांग परिवादी से की गयी है। इसका अर्थ यह हुआ कि दावा प्रपत्र भरकर उप जिलाधिकारी के कार्यालय में दिया गया था और जो तीन कागज मांगे गये है वह
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इस पत्रावली पर मौजूद है और दाखिल भी किये जा चुके हैं।‘’ इसी आधार पर जिला फोरम ने यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा उप जिलाधिकारी के कार्यालय के कर्मचारी की लापरवाही के कारण बीमा कम्पनी को नहीं भेजा गया है। इस संदर्भ में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी का पोस्टमार्टम नहीं हुआ है और न पोस्टमार्टम की प्रति जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत की गयी है अत: जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय में पोस्टमार्टम पत्रावली पर उपलब्ध होने का जो उल्लेख किया है वह तथ्य व साक्ष्य के विरूद्ध है।
उप जिलाधिकारी, भरथना के आदेश दिनांक 19-05-2006 के द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी से एफ0आई0आर0 की छायाप्रति, पोस्टमार्टम रिपोर्ट की छायाप्रतियॉं तीन प्रतियों में और पंचनामा की तीन प्रतियों की मांग की गयी है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने न तो जिलाधिकारी के आदेश/पत्र दिनांक 19-05-2006 का उल्लेख किया है और न ही उसने कहा है कि इस पत्र के द्वारा वांछित अभिलेख उसने उप जिलाधिकारी के कार्यालय में प्रस्तुत किये है न ही इस संदर्भ में उसने शपथ पत्र में कोई कथन किया है। अत: जिला फोरम ने बिना किसी उचित आधार के यह निष्कर्ष अंकित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उप जिलाधिकारी के पत्र दिनांक 19-05-2006 द्वारा वांछित अभिलेख प्रस्तुत कर दिये, परन्तु उप जिलाधिकारी के कार्यालय की लापरवाही के कारण परिवादी का क्लेम बीमा कम्पनी के पास नहीं भेजा गया है। उप जिलाधिकारी, भरथना के पत्र दिनांक 19-05-2006 के द्वारा प्रत्यर्थी से उपरोक्त अभिलेख मांगे गये है परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त अभिलेख उप जिलाधिाकरी के कार्यालय को उपलब्ध कराये बिना दिनांक 15-07-2006 को परिवाद प्रस्तुत कर दिया है और यह नहीं कहा है कि उसने उपरोक्त वांछित अभिलेख उप जिलाधिकारी के कार्यालय में प्रस्तुत कर दिये है, फिर भी उनके द्वारा उसका दावा बीमा कम्पनी को प्रेषित नहीं किया गया है।
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अपीलार्थी/विपक्षी उत्तर प्रदेश राज्य ने उत्तर प्रदेश की खतौनी में दर्ज सभी कृषकों का प्रीमियम देकर बीमा कराया है अत: बीमित धनराशि का भुगतान करने हेतु बीमा कम्पनी उत्तरदायी है न कि उत्तर प्रदेश सरकार।
सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है।
सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्त कर प्रत्यर्थी/परिवादी को उप जिलाधिकारी के उपरोक्त पत्र दिनांक 19-05-2006 के द्वारा वांछित अभिलेख उप जिलाधिकारी, भरथना के कार्यालय में प्रस्तुत करने अथवा उसके संबंध में स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया जाए और उसके बाद उप जिलाधिकारी प्रत्यर्थी/परिवादी के बीमा दावे का परीक्षण कर प्रश्नगत बीमा पालिसी के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार और बीमा कम्पनी के बीच हुए करार के अनुबंध के अनुसार बीमा दावा बीमा कम्पनी को अग्रसारित करे। उसके बाद बीमा कम्पनी विधि के अनुसार बीमा दावे के संबंध में निर्णय लें।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद इस प्रकार निस्तारित किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उप जिलाधिकारी, भरथना के उपरोक्त पत्र दिनांक 19-05-2006 में वांछित अभिलेखों की प्रतियॉं उप जिलाधिकारी के कार्यालय में इस निर्णय की तिथि से दो माह के अंदर प्रस्तुत करे अथवा उसके संबंध में स्थिति स्पष्ट करें और उसके बाद उप जिलाधिकारी भरथना उत्तर प्रदेश सरकार और प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी के बीच हुए करार के अनुबंध के अनुसार उसके बीमा दावे का परीक्षण कर बीमा दावा बीमा कम्पनी को अग्रसारित करे। उसके बाद बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी के बीमा दावे
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के संबंध में बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार एक माह के अंदर निर्णय ले और प्रत्यर्थी/परिवादी को अवगत कराये।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (महेश चन्द)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0