Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/1895

Ex Eng E D D - Complainant(s)

Versus

Rajeev - Opp.Party(s)

Isar Husain

30 Nov 2009

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/1895
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Ex Eng E D D
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MRS. Smt Balkumari MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

मौखिक

अपील संख्‍या-1895/2009

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या-36/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-02-2009 के विरूद्ध)

 

Executive Engineer, Prescribed Authouity, U.P.Power Corporation, Electricity Distribution Division,IV NOIDA, 33/11, KV Distribution Sub Division, Sector 82, NOIDA, Now Sado Pur Ki Jhaal, G T Road, Dadri, District-Gautambudh Nagar.

                                                                    अपीलार्थी/विपक्षी

                                                    बनाम

Rajiv and Rakesh Sons of Late Om Pradash S/o Sri Mahipal R/o Kasba Dankaur, Pargana and Tahsil, Sadar, Gautambudh Nagar.                  

                                      प्रत्‍यर्थी/परिवादी

1-  अपीलार्थी की ओर से उपस्थित -   श्री इसार हुसैन।

2-  प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित -    कोई नहीं।

समक्ष :-

1-   मा0  श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव, पीठासीन सदस्‍य।

2-   मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्‍य।

दिनांक : 09-02-2015

मा0 श्री चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित निर्णय :

अपीलार्थी ने प्रस्‍तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या-36/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-02-2009 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की है जिसमें विद्धान जिला मंच द्वारा निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया है:-

'' परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी द्वारा परिवादी से 23721/-रू0 की वसूली अवैध घोषित की जाती है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि परिवादी से वसूलककी गयी उपरोक्‍त धनराशि परिवादी द्वारा देय भविष्‍य के बिलों में समायोजित करेगा। उभयपक्ष एक दूसरे से किसी प्रकार की ब्‍याज एवं अर्थदण्‍ड देने के एक एवं दूसरे के प्रति जिम्‍मेदार न होंगे, उभयपक्ष अपना वाद व्‍यय वहन करेंगे, से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

     संक्षेप में इस केस के तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी ने तेल एक्‍सपेलर चलाने हेतु विक्षी से 22 अश्‍व शक्ति का विघुत संयोजन ले रखा

 

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है जिसका नं0-0860/003056 बुक संख्‍या-08660 है। परिवादी स्‍वयं एवं विपक्षी परिवादी के यहॉं स्‍थापित मीटर की समय-समय पर जॉंट पड़ताल  करता रहा हैं। विपक्षी द्वारा जॉंच पर परिवादी के यहॉं स्‍थापित मीटर पूर्ण रूपेण सही हालत में पाया गया। दिनांक 03-03-2004 को परिवादी के संयोजन पर विपक्षी ने नया विघुत मीटर स्‍थापित कर सीलिंग प्रमाण पत्र जारी किया। दिनांक 23-02-2006 को विपक्षी ने पुलिस एवं प्रवर्तन दल के साथ वादी के कार्य स्‍थल पर आकर विघुत संयोजन की जांच की। परन्‍तु विप्‍क्षी एवं प्रवर्तन दल ने दुर्भावना से प्रेरित होकर अपनी रिपोर्ट में मीटर की रीडिंग गलत अंकित होना एवं परिवादी द्वारा जॉंच के समय सीलिंग प्रमाण पत्र न दिखाये जाना गलत रूप से अंकित कर दिया। जबकि परिवादी का मीटर सुचारू रूप से सही हालत में कार्य कर रहा था। विपक्षी ने जॉंच के समय ही परिवादी से 1,25000/-रू0 जेल भेजे जाने की धमकी देकर वसूल किया। जॉंच दल ने मीटर को पूर्णरूपेण सही हालत में पाया। विपक्षी ने 1,25,000/-रू0 मनमाने आधार पर परिवादी से वसूल किया और परिवादी का विघुत संयोजन विच्‍छेदित कर दिया जो पुन: 19-05-2006 को पुर्न स्‍थापित कर दिया। तीन माह विघुत आपूर्ति के अभाव में परिवादी को 30,000/-रू0 की अतिरिक्‍त क्षति उठानी पड़ी। विघुत संयोजन स्‍थापित करने हेतु विपक्षी पुन: 19,199/-रू0 परिवादी से गलत वसूल किये गये। परिवादी के बिना जानकारी के विपक्षी के परीक्षणशाला में मीटर की जॉंच करवाई। गलत रूप से मीटर 52 प्रतिशत सुस्‍त चलना दर्शित कर दिया। परीक्षण रिपोर्ट किसी वैज्ञानिक आधार पर तैयार नहीं की गयी। परिवादी की विघुत खपत प्रवर्तनदल की जॉंच के पूर्व एवं उसके पश्‍चात एक समान ही रही। परिवादी ने विपक्षी से वसूल की गयी धनराशि को भविष्‍य के बिलों में संयोजित करने का निवेदन किया।परन्‍तु विपक्षीने कोई कार्यवाही नहीं की। फलत: परिवादी को परिवाद संस्थित करने के लिए बाध्‍य होना पड़ा। परिवादी ने निवेदन किया कि विपक्षी द्वारा वसूल की गई 1,25,000/-रू0 19,199/-रू0 वापस कराये जाने के साथ ही साथ 30,000/-रू0 क्षतिपूर्ति करायी जाए।

     विपक्षी ने प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत कर परिवादी को कथित विघुत संयोजन प्रदान किया जाना स्‍वीकार किया।परिवादी से प्रवर्तन दल द्वारा परिवादी के मीटर की जॉंच किया जाना एवं 1,25,000/-रू0 मौकेपर वसूल किया जाना तथा पुर्न विघुत संयोजन स्‍थापित किया जाना स्‍वीकार किया। विपक्षी ने अतिरिक्‍त रूप से कथन किया कि प्रवर्तन दल ने मीटर चलाकर जॉंच की थी जिससेमीटर खपत को कम अंकित करते पाया गया। चूंकि प्रवर्तन दल में कोई सहायक अभियन्‍ता(मीटर) नहीं था। फलत: यांत्रिक जॉंच की नहीं जा सकी। प्रयोगशाला में की गयी जॉंच से परिवादी का मीटर 52.97 सुस्‍त

 

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चलता पाया गया। फलस्‍वरूप परिवादी के संयोजन का राजस्‍व निर्धारण किया गया। और परिवादी से पुन: कम वसूल की गयी धनराशि के अतिरिक्‍त 1,23721/-रू0 का बिल परिवादी को भेजा गया। परिवादी से अधिक वसूल की गयी 1279/-रू0 को भविष्‍य के बिलों में संयोजित किया जाने हेतु सहमति प्रकट की। विपक्षी ने कथन किया कि परिवादी का कथन असत्‍य है। विपक्षी की तरु से किसी भी प्रकार की सेवाओं में कमी एवं अनुचित व्‍यापार व्‍यवहार नहीं किया गया है। परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

     अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं।

हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता के तर्क सुने तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध कागजात एवं जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का भली-भॉंति परिशीलन किया।

अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्‍ता ने मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय  द्वारा सिविल अपील संख्‍या-5466/2012 (विशेष अनुज्ञा याचिका संख्‍या-35906/2011), उत्‍तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड व अन्‍य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांकित 01-07-2013 में दी गयी विधि व्‍यवस्‍था को दृष्टिगत रखते हुए यह तर्क दिया है कि अपीलकर्ता द्वारा परिवादी/प्रत्‍यर्थी के यहॉं विघुत चोरी के संबंध में चेकिंग रिपोर्ट 23-02-2006 को की गयी जिसमें '' उक्‍त मीटर वास्‍तविक खपत से कम अंकित कर रहा है। उपभोक्‍ता पर सीलिंग सर्टीफिकेट भी उपलब्‍ध नहीं था। दल में कोई सहायक अभि (मीटर) न होने के कारण मीटर की सीलों की जॉंच नहीं की जा सकी। मौके से मीटर को उतारकर सघन जॉंच हेतु सील कर दिया गया। संयोजन कटवा दिया गया। आंशिक राजस्‍व निर्धारण रू0 1,25,000/-रू0 मौकेपर वसूल किया गया।'' परिवादी अवैध रूप से विघुत चोरी करते पाया गया। अत: चेकिंग रिपोर्ट के आधार पर उनके राजस्‍व का कर निर्धारण किया गया। अत: ऐसी परिस्थिति में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दी गयी विधिक व्‍यवस्‍था के परिप्रेक्ष्‍य में परिवाद पोषणीय नहीं है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है एवं अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

प्रश्‍नगत निर्णय एवं चेकिंग रिपोर्ट 23-02-2006 का अवलोकन किया गया जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी के यहॉं चेकिंग रिपोर्ट 23-02-2006 को की गयी जिसमें परिवादी अवैध रूप से विघुत चोरी करते पाया गया तथा परिवादी का नियमानुसार राजस्‍व निर्धारण किया गया है। इसके अतिरिक्‍त इस आधार पर यह अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है एवं प्रश्‍नगत निर्णय निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

 

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पीठ की राय में चूंकि यह मामला विघुत चोरी एवं राजस्‍व कर निर्धारण से संबंधित है अत: मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय  द्वारा सिविल अपील संख्‍या-5466/2012 (विशेष अनुज्ञा याचिका संख्‍या-35906/2011), उत्‍तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड व अन्‍य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांकित 01-07-2013  के मामले में दिये गये विधिक सिद्धान्‍त को दृष्टिगत रखते हुए परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

इसके अतिरिक्‍त यह मामला विघुत चोरी एवं राजस्‍व कर निर्धारण से संबंधित है। मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा सिविल अपील संख्‍या-5466 सन् 2012 उत्‍तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड व अन्‍य बनाम अनीस अहमद में निम्‍नलिखित विधिक सिद्धान्‍त दिया गया कि :

"by virtue of Section 3 of the Consumer Protection Act, 1986 or Sections 173, 174 and 175 of the Electricity Act, 2003, The Consumer Forum cannot derive power to adjudicate a dispute in relation to assessment made under Section 126 or offences under Section 135 to 140 or the Electricity Act, as the acts of indulging in "unauthorized use of electricity" as defined under Section 126 or committing offence under Sections 135 to 140 do not fall within the meaning of "complaint" as defined under Section 2(1)(d) of the Consumer Protection Act, 1986.

          The act of indulgence in "unauthorized use of electricity" by a person, as defined in clause (b) of the Explanation below Section 126 of the Electricity Act, 2003 neither has any relationship with "unfair trade practice" or "restrictive trade practice" or "deficiency in service" nor does it amounts to hazardous services by the licensee. Such acts of "unauthorized use of electricity" has nothing to do with charging price in excess of the price. Therefore, acts of person in indulging in "unauthorized use of electricity", do not fall within the meaning of "complaint", as we have noticed above and, therefore, the "complaint" against assessment under Section 126 is not maintainable before the Consumer Forum. The Commission has already noticed that the offences referred to in Sections 135 to 140 can be tried only by a Special Court constituted under Section 153 of the Electricity Act, 2003. In that view of the matter also the complaint against any action taken under Sections 135 to 140 of the Electricity Act, 2003 is not maintainable before the Consumer Forum.

          In case of inconsistency between the Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986, the provisions of

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Consumer Protection Act will prevail, but ipso facto it will not vest the Consumer Forum with the power to redress any dispute with regard to the matters which do not come within the meaning of "service" as defined under Sections 2(1)(o) or "complaint" as defined under Section 2(1)(c) of the Consumer Protection Act, 1986.

A "complaint" against the assessment made by assessing officer under Section 126 or against the offences committed under Sections 135 to 140 of the Electricity Act, 2003 is not maintainable before a Consumer Forum.

          The Electricity Act, 2003 and the Consumer Protection Act, 1986 runs parallel for giving redressal to any person, who falls within the meaning of "consumer" under Section 2(1)(d) of the Consumer Protection Act, 1986 or the Central Government or the State Government or association of consumers but it is limited to the dispute relating to "unfair trade practice" or a "restrictive trade practice adopted by the service provider"; or "if the consumer suffers from deficiency in service"; or "hazardous service"; or "the service provider has charged a price in excess of the price fixed by or under any law".

उपरोक्‍त विधिक सिद्धान्‍त के परिशीलन से स्‍पष्‍ट है कि विघुत      चोरी एवं राजस्‍व कर निर्धारण से संबंधित मामलों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्‍ता फोरम के पास नहीं है। इस आधार पर यह अपील स्‍वीकार होने योग्‍य है। प्रश्‍नगत निर्णय निरस्‍त किये जाने योग्‍य है तथा परिवाद भी पोषणीय न होने के कारण निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

आदेश

 

प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या-36/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-02-2009  निरस्‍त किया जाता है। परिवादी का परिवाद भी पोषणीय न होने के कारण निरस्‍त किया जाता है।

उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

 

( चन्‍द्र भाल श्रीवास्‍तव )                   ( बाल कुमारी )

   पीठासीन सदस्‍य                           सदस्‍य

प्रदीप मिश्रा, आशु0

कोर्ट नं0-2

 

 
 
[HON'ABLE MR. Chandra Bhal Srivastava]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MRS. Smt Balkumari]
MEMBER

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