सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 1556/2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, फिरोजाबाद द्वारा परिवाद संख्या- 22/2018 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27-07-2018 के विरूद्ध)
- शाखा प्रबन्धक, श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस लि0, आगरा।
- शाखा प्रबन्धक, श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस लि0, जलेसर रोड, फिरोजाबाद।
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
राजीव कुमार पुत्र श्री अमर सिंह, निवासी- 105 चमरौली, शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्रीमती प्रतिभा सिंह
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री विनय प्रताप सिंह राठौर
दिनांक- 12-06-2020
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या– 22 सन 2018 राजीव कुमार बनाम शाखा प्रबन्धक, श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस लि0, आगरा व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, फिरोजाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक- 27-07-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह यथाशीघ्र प्रश्नगत वाहन को ए०आर०टी०ओ० हाथरस या सक्षम प्राधिकारी से मुक्त कराकर वाहन के कब्जे का परिदान वादी को यथाशीघ्र दें तथा 1000/-रू० दैनिक आर्थिक क्षति की दर से दिनांक- 27-10-2017 से प्रश्नगत वाहन के विपक्षीगण द्वारा वादी को परिदान करने की तिथि तक, लेकिन यदि वादी द्वारा स्वयं वाहन को रिलीज कराया जाए तो उस तिथि तक विपक्षीगण द्वारा वादी को देय होगा। उक्त अवधि के मध्य विपक्षीगण वादी से विलम्बित किश्तों की अदायगी में कोई विलम्ब अथवा दण्ड ब्याज भी वसूल नहीं करेगा। यदि विपक्षीगण उक्त वाहन सक्षम प्राधिकारी से मुक्त कराने में असफल रहता है तो परिवादी चाहे तो निर्णय की तिथि से सात दिन के बाद अपने स्तर से भी प्रश्नगत वाहन सक्षम प्राधिकारी से मुक्त करा सकेगा। मुक्त कराने में जो व्यय जैसे अधिवक्ता व्यय, अर्थदण्ड तथा अन्य प्रकीर्ण व्यय जो परिवादी द्वारा वास्तविक व्यय किया जाएगा वह धनराशि विपक्षीगण, परिवादी को 7 प्रतिशत ब्याज की दर से व्यय की तिथि से वसूली की तिथि तक भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। इसके साथ ही मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 30,000/-रू० तथा परिवाद व्यय के रूप में 2000/-रू० भी विपक्षीगण, परिवादी को अदा करेगा। निर्णय का अनुपालन 30 दिन में सुनिश्चित किया जाए। ‘’
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
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अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्रीमती प्रतिभा सिंह और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विनय प्रताप सिंह राठौर उपस्थित हुए हैं।
मैंने उभय-पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
मैंने प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने एक बुलेरो मैक्सी महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लि0 (लोडर) कमलेश आटोव्हील्स प्रा०लि० फिरोजाबाद से खरीदा जिसका फाइनेंस उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण से कराया । फाइनेंस अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रतिमाह अपीलार्थी/विपक्षीगण को किस्त का भुगतान करना था। किस्त का भुगतान न करने पर अपीलार्थी/विपक्षीगण को प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन जब्त करने का अधिकार था और किस्त जमा करने पर वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस किया जाना था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि किस्त न जमा होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के उपरोक्त वाहन को दिनांक 23-10-2017 को जब वाहन भाड़ा पर मैनपुरी गया था अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कागजात सहित ड्राइवर से जबरदस्ती ले लिया। जब सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को मिली तो उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण से सम्पर्क किया और दिनांक 27-10-2017 को अपीलार्थी/विपक्षीगण को समस्त बकाया किस्तों का भुगतान कर दिया जिस पर अपीलार्थी/विपक्षीगण ने वाहन को मुक्त करने का आदेश दिया और कहा कि
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वाहन एटा गोदाम से आदेश देकर ले जाना है। तब प्रत्यर्थी/परिवादी एटा गोदाम पहॅुचा और वाहन को छोड़ने को कहा तो वाहन वहॉ मौजूद नहीं था। उसने जानकारी की तो बताया गया कि वाहन किसी काम से बाहर गया है एक-दो दिन में आ जाएगा। उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण टाल-मटोल करते रहे और प्रत्यर्थी/परिवादी को उसका वाहन नहीं दिया। बाद में प्रत्यर्थी/परिवादी को पता चला कि वाहन ए०आर०टी०ओ० हाथरस द्वारा पकड़कर बन्द कर दिया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि वाहन अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की अभिरक्षा से ए०आर०टी०ओ० द्वारा सीज किया गया है। अत: वाहन को अवमुक्त कराने का दायित्व उन पर है। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने उन्हें नोटिस दिया फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को ऋण सुविधा देकर दिनांक 26-05-2017 को अनुबन्ध संख्या- ए०जी०आर०ए० 20705250014 निष्पादित किया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षीगण ने 3,50,000/-रू० वित्तीय सहायता दी थी जिसका भुगतान 10999/-रू० प्रतिमाह की दर से 47 मासिक किस्तों में होना था। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भुगतान में चूक करने और शर्तों का उल्लंघन करने पर
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दिनांक 23-10-2017 को वाहन को अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कब्जे में लिया था। दिनांक 27-10-2017 को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अनिछेपित किस्तों की विलम्बित धनराशि जमा किये जाने पर उसके पक्ष में वाहन को अवमुक्त किया गया था और वह वाहन लेकर गया था।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि मुक्ति आदेश आन्तरिक प्रक्रिया है। अपीलार्थीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी से एटा से वाहन लेने के लिए नहीं कहा था क्योंकि वाहन एटा में खड़ा ही नहीं था। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी की अभिरक्षा में है। ऋण भुगतान से बचने हेतु गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया है। अपीलार्थी/विपक्षीगण को ए०आर०टी०ओ० हाथरस द्वारा वाहन निरूद्ध की कोई जानकारी नहीं है।
जिला फोरम ने उभय-पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता है। जिला फोरम ने माना है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा वाहन कब्जे में लिये जाने के बाद दिनांक 27-10-2017 को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अवशेष धनराशि का भुगतान किये जाने पर वाहन प्रत्यर्थी/परिवादी की सुपुर्दगी में दिया जाना अपीलार्थी/विपक्षीगण प्रमाणित नहीं कर सके हैं। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण की सेवा में कमी माना है और परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने
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प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन दिनांक 27-10-2017 को दे दिया था। वाहन उसकी अभिरक्षा में है। ए०आर०टी०ओ० द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन सीज किये जाने की जानकारी अपीलार्थीगण को नहीं है। यदि वाहन ए०आर०टी०ओ० ने निरूद्ध किया है तो वह प्रत्यर्थी/परिवादी की अभिरक्षा से किया है इसके लिए अपीलार्थी/विपक्षीगण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। अपीलार्थी/विपक्षीगण की विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश दोषपूर्ण है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने दिनांक 23-10-2017 को किस्तों का भुगतान समय से न होने पर वाहन को कब्जे में लिया था और दिनांक 27-10-2017 को जब प्रत्यर्थी/परिवादी ने अवशेष विलम्बित किस्तों की धनराशि का भुगतान कर दिया तो उसे वाहन अवमुक्त करने का आदेश अपीलार्थी/विपक्षीगण ने दिया और कहा कि वाहन को एटा गोदाम से आदेश देकर ले जाना है। तब प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षीगण के एटा गोदाम गया परन्तु वाहन उसे नहीं दिया गया। बाद में पता चला कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा वाहन को किसी काम से भेजा गया था और उसी दौरान ए०आर०टी०ओ० द्वारा वाहन को निरूद्ध कर लिया गया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वाहन की किस्तों के भुगतान में चूक होने पर अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा वाहन कब्जे में लिये जाने के पश्चात वाहन का प्रयोग उनके द्वारा किया जाना नियम और विधि के विरूद्ध है और अपीलार्थी/विपक्षीगण की सेवा में कमी है। अत: जिला फोरम ने
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जो आदेश पारित किया है वह उचित और विधि सम्मत है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभय-पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
यह तथ्य अविवादित है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी के वाहन को किस्तों के भुगतान में चूक होने पर दिनांक 23-10-2017 को कब्जे में लिया था और जब दिनांक 27-10-2017 को अवशेष विलम्बित किस्तों को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के यहॉं जमा किया तब उन्होंने उसका वाहन अवमुक्त करने का आदेश दिया। परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार आदेश देने के बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण ने उससे वाहन एटा के गोदाम से ले लेने को कहा और जब वह वहॉं गया तो वाहन वहॉं नहीं था। उसे पता चला कि वाहन कहीं भेजा गया है। वाहन उसे नहीं मिला। बाद में अपीलार्थी/विपक्षीगण की अभिरक्षा से वाहन ए०आर०टी०ओ० द्वारा दिनांक 27-10-2017 को सीजकर कब्जे में लिया जाना उसे ज्ञात हुआ है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा निर्गत सूची/वाहन अधिग्रहण दिनांक 23-10-2017 से स्पष्ट होता है अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी से वाहन प्राप्त का प्रमाण-पत्र दिनांक 27-10-2017 को 12:14 पी०एम० पर प्राप्त किया गया है जिसमें विपक्षीगण ने यह आदेश पारित किया है कि “Please release the vehicle no. UP83AT 5114/MAHINDRA BOLERO vehicle to Mr. Rajeev Kumar, AdHAR NO. IS874069504625” यह मुक्ति आदेश विपक्षीगण को स्वीकार भी है। जिला फोरम ने उल्लेख किया है कि कागज संख्या-12/8 वह अभिलेख है जिसके द्वारा ए0आर0टी0ओ0 हाथरस ने दिनांक
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27-10-2017 को प्रश्नगत वाहन यू0पी0-83ए0टी0 5114 12.20 अपराह्न में इस कारण निरूद्ध किया है कि वाहन में 24 सवारी थी जबकि वाहन लोडिंग में पंजीकृत था।
जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि दिनांक 27-10-2017 को अपराहन 12.20 बजे प्रश्नगत वाहन ए०आर०टी०ओ० हाथरस द्वारा निरूद्ध किया गया है और उससे 6 मिनट पहले विपक्षीगण द्वारा वाहन रिलीज का आदेश पारित किया गया है जो जनपद फिरोजाबाद में प्रत्यर्थी/परिवादी को ई-मेल से मिला है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि फिरोजाबद से एटा पहॅुचने में कम से कम एक घण्टा अवश्य लगा होगा। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन विश्वसनीय माना है कि उसके एटा पहॅुचने पर अपीलार्थी/विपक्षीगण के आदेश के अनुसार वाहन उनके एटा गोदाम पर नहीं था। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी के कथन को विश्वसनीय माना है कि वाहन अपीलार्थी/विपक्षीगण की अभिरक्षा से सीज किया गया है। जिला फोरम का यह निष्कर्ष साक्ष्य की सही और विधिक विवेचना पर आधारित है। जिला फोरम के निष्कर्ष को साक्ष्य और विधि के विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि ए०आर०टी०ओ० द्वारा वाहन निरूद्ध किये जाने से संबंधित अभिलेख के विवरण से यह स्पष्ट है कि वाहन 24 सवारियां बैठाकर चलाया जा रहा था जबकि वाहन लोडि़ग वाहन में पंजीकृत था। किस्तों के भुगतान में चूक होने पर वाहन कब्जे में लेने के बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण अथवा उनके कर्ममारियों द्वारा वाहन का सवारियां बैठाने हेतु प्रयोग किया जाना निश्चित रूप से अपीलार्थी/विपक्षीगण की सेवा में कमी
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है। अपीलार्थी/विपक्षीगण अपने कर्मचारियों की सेवा में कमी हेतु वायकेरियस लाइबेलिटी के सिद्धान्त पर उत्तरदायी है। जिला फोरम का यह निष्कर्ष भी साक्ष्य एवं विधि के अनुसार उचित है।
सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हॅूं कि जिला फोरम के निर्णय में किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अपील बलरहित है। अत: निरस्त की जाती है।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01