राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१६९७/२०१३
(जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-२१५/२०१२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०४-२०१३ के विरूद्ध)
१. मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0(Earlier known as Max Life Insurance Co. Ltd.) क्षेत्रीय कार्यालय अयूम खॉंन चौराहा, सिविल लाइन्स, थाना कोतवाली, तहसील व जिला-बरेली द्वारा मण्डलीय प्रबन्धक।
२. मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0, हैड आफिस ग्यारहवॉं एवं बारहवॉं तल, डी एल एफ स्क्वेयर बिल्डिंग, जकरंद मार्ग, डीएलएफ फेस-२, गुड़गॉव, द्वारा असिस्टेण्ट वाइस प्रेसीडेण्ट-लीगल।
................. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
राजीव कुमार दीक्षित पुत्र श्री बाबूराम दीक्षित, निवासी ६०४, मोहल्ला-साहूकार, तहसील व जिला-बरेली।
................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री सौरभ यादव विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : २२-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-२१५/२०१२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०४-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती अर्चना दीक्षित ने अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमा पालिसी १५.०० लाख रू० की ली थी, जिसकी वार्षिक किश्त ८,८८५/- रू० थी। बीमा पालिसी जारी किए जाने से पूर्व बीमा कम्पनी द्वारा बीमाधारक का स्वयं परीक्षण अपने चिकित्सक द्वारा कराया गया था। स्वास्थ्य परीक्षण के उपरान्त ही बीमा पालिसी स्वीकृत की गयी थी। उक्त बीमा पालिसी में प्रत्यर्थी को
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नामिनी नियुक्त किया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती अर्चना दीक्षित का देहान्त दिनांक २०-०२-२०११ को हो गया। परिवादी द्वारा उक्त बीमा पालिसी में नामिनी होने के आधार पर अपीलार्थी बीमा कम्पनी को बीमा दावा प्रेषित किया, किन्तु अपीलार्थीगण ने बीमा दावा का भुगतान नहीं किया, बल्कि मनमाने एवं गलत आधार पर परिवादी का बीमा दावा निरस्त कर दिया। परिवादी द्वारा अपीलार्थीगण को नोटिस भी भेजी गयी, जिसका गलत जवाब अपीलार्थीगण द्वारा प्रेषित किया गया। अत: बीमा दावा का भुगतान एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया।
अपीलार्थीगण जिला मंच के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। अन्तत: प्रश्नगत निर्णय दिनांकित १८-०४-२०१३ द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद आंशिक एवं एक पक्षीय रूप से बीमित धनराशि १५.०० लाख रू० की बसूलीयावी हेतु जिला मंच द्वारा स्वीकार किया गया। इसके अतिरिक्त ३,०००/- रू० परिवाद व्यय स्वरूप अदायगी हेतु भी अपीलार्थी बीमा कम्पनी को निर्देशित किया गया। यह भी आदेश दिया गया कि विपक्षीगण पृथक-पृथक एवं संयुक्त रूप से उक्त धनराशि का भुगतान परिवादी को निर्णय के ३० दिन के अन्दर करें, अन्यथा परिवादी उक्त धनराशि पर परिवाद दायर करने के दिनांक ०१-११-२०१२ से ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल तथा प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सौरभ यादव के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
प्रस्तुत अपील प्रश्नगत आदेश दिनांकित १८-०४-२०१३ की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक ०१-०५-२०१३ को प्राप्त करने के उपरान्त प्रश्नगत आदेश के विरूद्ध दिनांक ३१-०७-२०१३ को योजित की गयी है। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच द्वारा प्रश्नगत परिवाद के सम्बन्ध में किसी नोटिस की तामीला अपीलार्थीगण पर नहीं करायी गय। प्रश्नगत निर्णय अपीलार्थीगण को सुनवाई का कोई अवसर प्रदान न करते हुए पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय की जानकारी
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अपीलार्थीगण को सर्वप्रथम अप्रैल २०१३ के अन्तिम सप्ताह में स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा करायी गयी। प्रश्नगत निर्णय की जानकारी होने के उपरान्त अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अभिलेखों का निरीक्षण करने के उपरान्त प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त की गयी तथा अपीलार्थी को मई २०१३ में यह सूचित किया गया कि उनके लिपिक द्वारा प्रमाणित प्रतिलिपि अन्य अभिलेखों में शामिल कर दिए जाने के कारण मिल नहीं पायी। लिपिक के आने पर मई २०१३ के अन्तिम सप्ताह में प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को प्राप्त करायी गयी तथा यह सूचित किया गया कि प्रश्नगत एक पक्षीय निर्णय के विरूद्ध राज्य आयोग में अपील ही योजित की जा सकती है, पुनर्स्थापन प्रार्थना पत्र जिला मंच के समक्ष योजित नहीं किया जा सकता। माह जून में अवकाश होने के कारण अपील माह जुलाई में योजित की गयी। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्कभीप्रस्तुत किया गया कि अधिवक्ता की त्रुटि का दण्ड वादकारी को दिया जाना न्यायसंगत नहीं होगा।
जहॉं तक प्रश्नगत अपील के विलम्ब से योजित किए जाने का प्रश्न है, अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब का पर्याप्त स्पष्टीकरण अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ओ0पी0 कथपालिया बनाम लखमीर सिंह, १९८४ (४) एससीसी ६६ में यह निर्णीत किया गया है कि यदि विलम्ब को क्षमा किए जाने से इन्कार किए जाने की स्थिति में न्याय की उपेक्षा होने की सम्भावना हो रही हो तब यह आधार विलम्ब को क्षमा किए जाने का पर्याप्त आधार होगा। इसके अतिरिक्त चूंकि गुणदोष के आधार भी हमारे विचार से अपील में बल है, जिसका विस्तृत विवेचन आगे उल्लिखित किया जायेगा। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किए जाने योग्य है। तद्नुसार अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है। अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अधिवक्ता की त्रुटि का दण्ड वादकारी को दिया जाना न्यायसंगत नहीं होगा।
अपीलकर्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत परिवाद, प्रत्यर्थी/परिवादी ने तथ्यों को छिपाते हुए जिला मंच के समक्ष योजित किया था तथा प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत पालिसी जारी जिला मंच को धोखा देकर प्रश्नगत निर्णय
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प्राप्त किया गया है। उनके द्वारा यह तर्क भी किए जाने से पूर्व बीमाधारक ने प्रपोजल फार्म दिनांक २९-०६-२०१० को भरकर एवं हस्ताक्षर करके प्रेषित किया था। बीमाधारक की मृत्यु दिनांक २०-०२-२०११ को हो गयी, जिसकी सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक १५-०४-२०११को अपीलार्थी को प्रेषित की। चूँकि बीमा पालिसी जारी किए जाने के बाद अल्प अवधि में ही बीमाधारक की मृत्यु हो गयी, अत: बीमा दावा की जांच बीमा कम्पनी द्वारा करायी गयी। जांच के मध्य यह तथ्य प्रकाश में आया कि प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व, भरे गये प्रपोजल फार्म से पूर्व बीमाधारक जीभ के कैंसर रोग से ग्रसित थी, किन्तु इस सारवान तथ्य को छिपाते हुए प्रस्ताव पत्र में अपने आप को निरोगी बताते हुए धोखे से बीमा पालिसी बीमाधारक द्वारा प्राप्त की गयी। अत: अपीलार्थी ने बीमा दावा को अपने पत्र दिनांकित २२-०७-२०११ द्वारा अस्वीकृत कर दिया। अपने इस तर्क के समर्थन में अपीलार्थी ने बीमाधारक द्वारा अपीलार्थी को प्रेषित प्रस्ताव पत्र (प्रपोजल फार्म) की फोटो प्रति दाखिल की है, जिसमें बीमाधारक ने अपने स्वास्थ्य को अच्छा होना दर्शित किया है तथा किसी भी रोग से ग्रसित होना नहीं बताया है, जबकि अपीलार्थी के अनुसार बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक द्वारा लगातार चिकित्सा करायी जाती रही। वह जीभ के कैंसर रोग से पीडि़त थी और इस सम्बन्ध में उसका इलाज किया जा रहा था। इस तथ्य की पुष्टि में अपीलार्थी ने निम्नलिखित अभिलेखों की फोटोप्रतियॉं प्रस्तुत की हैं :-
प्रपोजल फोर्म, बीमा कंपनी का पत्र दिनांकित ०२-०७-२०१०, २९-०६-२०१०, बेस पालिसी, बीमा धारक का मृत्यु प्रमाण पत्र, बीमा दावा प्रपत्र, परिवादी का प्रार्थना पत्र दिनांकित ११-०४-२०११, बीमा कंपनी का पत्र दिनांकित १८-०४-२०११, गोपनीय जांच रिपोर्ट दिनांकित ०५-०७-२०११, श्री राममूर्ति स्मारक इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज, बरेली के डाक्टर का पर्चा दिनांकित ०४-११-२००९, अस्पताल की जांच रिपोर्ट दिनांकित ०५-११०२००९, केशलता अस्पताल का पर्चा दिनांकित १६-११-२००९, ट्रीटमेंट समरी दिनांकित ०४-०६-२०१०, डाक्टर का पर्चा दिनांकित ०६-०४-२०१०/०८-०४-२०१०, डिस्चार्ज समरी दिनांकित १४-०४-२०१०, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एण्ड रिसर्च सेन्टर का पर्चा दिनांकित २७-०४-२०१०, किमोथेरेपी दिनांकित २८-०८-२०१० का पर्चा, ब्रीफ समरी
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आफ द केस दिनांकित २३-०९-२०१०, कैश मेमो दिनांकित २९-०६-२०११, ओ0पी0डी0 कार्ड दिनांकित ०६-०४-२०१०, क्लीनिकल नोट्स दिनांकित ०८-०४-२०१०, १३-०४-२०१०, ओ0पी0डी0 कार्ड दिनांकित २७-०४-२०१०.
उपरोक्त अभिलेखों के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक जीभ के कैंसर रोग से पीडि़त रही है और इस सन्दर्भ में वह अपना इलाज करा रही थी। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व कैंसर रोग से पीडित होने के तथ्य को छिपाते हुए प्रश्नगत बीमा पालिसी बीमाधारक द्वारा प्राप्त की गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा बीमाधारक के प्रश्नगत पालिसी प्राप्त करने से पूर्व हुए इलाज से सम्बन्धित दाखिल अभिलेखों की विश्वसनीयता पर कोई आपत्ति नहीं की। उनके द्वारा इस तथ्य से इन्कार नहीं किया गया कि बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व जीभ के कैंसर रोग का इलाज बीमाधारक का किया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने बीमाधारक की जांच अपने चिकित्सक से करायी थी। चिकित्सक द्वारा स्वीकृति प्रदान किए जाने के उपरान्त ही बीमा पालिसी जारी की गयी।
पी0सी0 चेको व अन्य बनाम एल0आई0सी0 आफ इण्डिया, (२००१) एस.सी.सी. ३२१ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय में यह निर्णीत किया गया है कि बीमा पालिसी के पुनर्चलन जारी किए जाने से पूर्व तात्विक तथ्यों को छिपाकर एवं धोखे से यदि पालिसी प्राप्त की जाती है तब बीमा निगम बीमा दावा धोखे पर आधारित होने के कारण निरस्त कर सकता है।
बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व, मात्र इस आधार पर कि बीमा कम्पनी के चिकित्सक द्वारा किसी रोग से ग्रसित होना नहीं पाया गया, बीमाधारक को यह अधिकार प्राप्त नहीं कराता कि वह बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व अपने स्वास्थ्य के विषय में सारवार तथ्य को छिपाते हुए प्रपोजल फार्म भरे।
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अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सतवन्त कौर सन्धू बनाम न्यू इण्डिया एश्योरेंस कं0 लि0, एस सी २७७६/२००२ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। इस निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि ऐसा तथ्य जिससे बीमा पालिसी जारी किया जाना प्रभावित होता है, सारवान तथ्य माना जायेगा। ऐसे तथ्यों की जानकारी बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमा कम्पनी को उपलब्ध कराने का दायित्व बीमाधारक का होता है।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से बीमाधारक ने प्रश्नगत बीमा पालिसी सारवान तथ्य (अपने आपको कैंसर रोग से ग्रसित होना) को छिपाते हुए प्राप्त की है। ऐसी परिस्थिति में बीमा दावा को निरस्त करके अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है।
मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने तथा जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच (प्रथम), बरेली द्वारा परिवाद सं0-२१५/२०१२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १८-०४-२०१३ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिल नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(राज कमल गुप्ता)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.