जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद 204/2014
1. पुसाराम पुत्र बेगाराम, जाति-प्रजापत, निवासी-लोडसर, तहसील-लाडनूं, जिला-नागौर (राज.)।
2. कमला पत्नी पुसाराम, जाति-प्रजापत, निवासी-लोडसर, तहसील-लाडनूं, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादीगण
बनाम
1. राजस्थान राज्य जरिये जिला कलक्टर, नागौर।
2. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, नागौर।
3. षाखा प्रबन्धक, ओरियन्टल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, षाखा कार्यालय 124, कनाट सर्कस, जीवन भारती मार्ग, 9 वां तल, टावर प्रथम, नई दिल्ली-110001
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री हनुमानराम पोटलिया, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 व 2 तथा अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से कोई नहीं।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 02.06.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादीगण के पहले से तीन संतानें है। परिवादीगण ने राज्य सरकार के परिवार नियोजन से प्रेरित होकर सरकार द्वारा संचालित नसबंदी कार्यक्रम के तहत दिनांक 15.11.2006 को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जसवंतगढ में परिवादिया कमला के नसबंदी आॅपरेषन करवाया गया। जिसका केस कार्ड सं. 18 है। इस नसबंदी आॅपरेषन के बाद परिवादीगण अनचाही संतान के बारे में निष्चित थे, लेकिन नसबंदी आॅपरेषन के बावजूद वर्श 2007 में परिवादिया कमला गर्भवती हो गई। इस पर परिवादीगण ने इसकी सूचना ए.एन.एम. लोडसर एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी को दी तथा विधिवत् रूप से क्लेम प्रार्थना-पत्र बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया, लेकिन अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पर परिवादीगण की ओर से मुआवजा राषि दिलाने के लिए दिनांक 21.05.2012 को अप्रार्थी संख्या 1 के समक्ष लिखित में प्रतिवेदन दिया गया। इसके बावजूद परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत क्लेम का निस्तारण नहीं किया गया और न ही क्षतिपूर्ति राषि का भुगतान किया गया। परिवादीगण द्वारा पूछे जाने पर अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से जवाब दिया गया कि क्लेम राषि प्राप्त होने पर भुगतान कर दिया जाएगा। अततः मजबूर होकर दिनांक 24.07.2013 को परिवादीगण ने अपने अधिवक्ता के मार्फत अप्रार्थीगण को नोटिस भेजा, जिसमें नसबंदी आॅपरेषन के असफल होने एवं परिवादिया कमला के गर्भवती होने से हुई क्षति की पूर्ति हेतु क्षतिपूर्ति का भुगतान किये जाने का आग्रह किया। इसके बावजूद भी अप्रार्थीगण ने परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत आवेदन का निस्तारण नहीं किया और झूठा आष्वासन दिया जाता रहा कि क्लेम फार्म अप्रार्थी संख्या 3 को भेजा गया है, जहां से चैक आने पर परिवादीगण को भुगतान कर दिया जायेगा। लेकिन आज दिनांक तक अप्रार्थीगण ने परिवादीगण के क्लेम का निस्तारण नहीं किया है। जबकि अप्रार्थीगण के चिकित्सकों की लापरवाही की वजह से ही परिवादिया कमला का नसबंदी आॅपरेषन फैल हुआ है और इसके चलते वे गर्भवती हुई और उसके अनचाही संतान पैदा हुई। जिसका भरण-पोशण व षिक्षा आदि का सम्पूर्ण खर्च अब उसे उठाना पडेगा। अप्रार्थीगण के चिकित्सकों की लापरवाही का खामियाजा उसे भुगतना पडा है और अब तब उसके क्लेम का निस्तारण नहीं किया गया है। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रथा की परिधि में आता है। अतः परिवादिया कमला के नसबंदी आॅपरेषन फेल होने से परिवादीगण को हुई क्षति बाबत् पाॅलिसी के तहत देय मुआवजा राषि 30,000/- रूपये मय ब्याज के अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश भी दिलाया जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से जवाब प्रस्तुत करते हुए राज्य सरकार की योजना अनुसार परिवादिया कमला की नसबंदी करने के तथ्य को स्वीकार करते हुए आगे बताया गया है कि नसबंदी करने में चिकित्सक की कोई लापरवाही नहीं रही है बल्कि नसबंदी केसेज में 2 प्रतिषत फेलियोर रेट है तथा परिवादिया ने गर्भवती होने की सूचना ए.एन.एम. को नहीं दी। जबकि सहमति-पत्र की षर्त अनुसार माहवारी नहीं आने की दषा में दो सप्ताह के भीतर सूचना दी जाती तो समय रहते एम.टी.पी. की जा सकती थी। यह भी बताया गया है कि परिवादिया द्वारा भिजवाया गया क्लेम फार्म इंष्योरेंस कम्पनी को भिजवा दिया गया था तथा बाद में स्मरण-पत्र भी भेजा गया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। अप्रार्थीगण ने परिवादिया की ओर से जरिये अधिवक्ता भेजा गया नोटिस प्राप्त होना स्वीकार करते हुए इसका जवाब भेजना बताया है तथा यह भी बताया है कि राज्य सरकार द्वारा नसबंदी केसेज का बीमा किया जाता है एवं क्लेम फार्म बीमा कम्पनी को भिजवा दिया गया है। यह भी बताया गया है कि परिवादिया कमला ने अपने पति पुसाराम के साथ संयुक्त परिवाद पेष किया है, जो कि उपभोक्ता नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।
3. अप्रार्थी संख्या 3 बावजूद सूचना/तामिल उपस्थित नहीं आया है तथा न ही कोई जवाब पेष हुआ है।
4. बहस अधिवक्ता उभय पक्षकारान सुनी गई तथा प्रस्तुत दस्तावेजात का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली से यह स्पष्ट है कि परिवादिया कमला ने राजस्थान सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा परिवार कल्याण योजना कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 16.11.2006 को नसबंदी आॅपरेशन करवाया था। परिवादिया ने अपने परिवाद में बताया है कि नसबंदी आॅपरेषन फेल हो जाने के कारण वह गर्भवती हुई और परिवादिया के अनचाही संतान हुई।
परिवादिया ने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही नसबंदी करवाने का कार्ड प्रदर्ष 1, नसबंदी हेतु स्वीकृति प्रदर्ष 2, क्लेम फार्म प्रदर्ष 3, नसबंदी असफल होने की सूचना बाबत् चिकित्सा अधिकारी को दी गई सूचना प्रदर्ष 4, अस्पताल की पर्चा प्रदर्ष 5, जिला कलक्टर को मुआवजा बाबत् दिया आवेदन-पत्र प्रदर्ष 6 एवं अप्रार्थीगण को दिये गये नोटिस प्रदर्ष 7 की फोटो प्रतियां पेष की है। अभिलेख पर उपलब्ध प्रलेखीय साक्ष्य से भी स्पश्ट है कि परिवादिया कमला की नसबंदी करवाये जाने के बाद भी वह गर्भवती हो गई तथा एक लडकी को जन्म दिया। यह भी स्पश्ट है कि गर्भवती होने के बाद परिवादिया ने सम्बन्धित चिकित्सा अधिकारी को सूचना भी दी तथा नियमानुसार क्लेम हेतु आवेदन प्रस्तुत करने के बाद भी क्लेम प्राप्त न होने की स्थिति में अप्रार्थीगण को जरिये अधिवक्ता नोटिस भी भिजवाया गया लेकिन इसके बावजूद उसे आज तक क्लेम राषि प्राप्त नहीं हुई है।
अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने परोक्ष रूप से परिवादिया की नसबंदी फेल होना स्वीकार करते हुए यही बताया है कि राज्य सरकार द्वारा नसबंदी केसेज का बीमा किया जाता है एवं परिवादिया का क्लेम फार्म बीमा कम्पनी को भिजवा दिया गया था। अप्रार्थीगण ने इस सम्बन्ध में बीमा कम्पनी को भेजे गये पत्र दिनांकित 11.11.2009 की प्रति प्रदर्ष ए 1 भी पेष की है। जिनके अवलोकन से स्पश्ट है कि परिवादिया ने समयावधि के भीतर क्लेम आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसे अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से आवष्यक कार्रवाई हेतु अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी को भिजवाया गया है, लेकिन उसके बावजूद परिवादिया को क्लेम प्राप्त नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में परिवादिया ने दिनांक 21.05.2012 को अप्रार्थी संख्या 1 के समक्ष भी लिखित प्रतिवेदन प्रदर्ष 6 पेष किया तथा उसके बाद दिनांक 24.07.2013 को एक नोटिस प्रदर्ष 7 जरिये अधिवक्ता अप्रार्थीगण को भिजवाया गया, लेकिन उसके बावजूद क्लेम राषि प्राप्त न होने पर परिवादिया को मजबूरन यह परिवाद पेष करना पडा।
यह स्वीकृत स्थिति है कि अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने परिवाद के कथनों का स्पश्ट खण्डन नहीं किया है तथा अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से कोई जवाब तक पेष नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए उन्हें बीमा पाॅलिसी के तहत देय मुआवजा राषि 30,000/- मय ब्याज दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
5. उपर्युक्त विवेचन से यह भी स्पश्ट है कि परिवादीगण की ओर से लम्बे समय तक मुआवजा राषि प्राप्त करने हेतु प्रयास किये गये, लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थीगण ने कोई क्लेम राषि प्रदान नहीं की, जिससे परिवादीगण मानसिक परेषानी का सामना करते रहे। ऐसी स्थिति में परिवादी पक्ष को मानसिक संताप हेतु 5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय हेतु भी 5,000/- रूपये दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
6. परिणामतः परिवादीगण पूसाराम एवं कमला द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा- 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का विरूद्ध अप्रार्थीगण स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण बीमा पाॅलिसी अनुसार परिवादीगण को देय मुआवजा राषि 30,000/- रूपये प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 07.11.2014 से परिवादीगण 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज भी प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण इस मामले में परिवादीगण को मानसिक संतापस्वरूप 5,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 5,000/- रूपये अदा करेंगे। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
7. आदेष आज दिनांक 02.06.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या