जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 57/2016
देवाराम पुत्र श्री नारायणराम चैधरी, जाति-जाट, निवासी-जोचीणा, तहसील-जायल,
हाल-1/572, हाउसिंग बोर्ड काॅलोनी, ताउसर रोड, नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
राजस्थान मरूधरा ग्रामीण बैंक, प्रधान कार्यालय, तुलसी टावर, 9बी रोड, सरदारपुरा,
जोधपुर, राजस्थान जरिये चैयरमेन।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री कन्हैयालाल सुथार, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. अप्रार्थी की ओर से कोई नहीं।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 08.06.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी नागौर जयपुर आंचलिक ग्रामीण बैंक, प्रधान कार्यालय 56 सरदार पटेल मार्ग, जयपुर का कर्मचारी रहा है। बाद में इस बैंक का नाम जयपुर थार ग्रामीण बैंक हो गया। इस दौरान ही दिनांक 31.07.2006 को परिवादी इस बैंक के एरिया मैनेजर, क्षेत्रीय कार्यालय जयपुर थार ग्रामीण बैंक, नागौर से सेवानिवृत हो गया। अब इस बैंक का नाम परिवर्तित कर राजस्थान मरूधरा ग्रामीण बैंक, जिसका प्रधान कार्यालय तुलसी टावर 9बी रोड, सरदारपुरा, जोधपुर है, कर दिया गया है। बैंक की सेवा में रहने के दौरान परिवादी का ग्रुप सेविंग लिंक इंष्योरंेस स्कीम के तहत नियोक्ता बैंक अप्रार्थी के मार्फत लाइफ इंष्योरेंस किया गया था, जो लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी में किया गया। उसके बाद परिवादी का अप्रार्थी के यहां नौकरी के दौरान प्रीमियम राषि अप्रार्थी नियोक्ता बैंक द्वारा वेतन में से कटौती की जाती रही तथा प्रीमियम की राषि अप्रार्थी नियोक्ता बैंक द्वारा जीवन बीमा निगम में जमा कराई जाती रही। जो उसके सेवानिवृत होने तक जमा कराई जाती रही। इस तरह इस बीमा स्कीम के तहत परिवादी के जीवन बीमित करने का दायित्व अप्रार्थी के मार्फत बीमा कम्पनी का हुआ। परिवादी के सेवानिवृत होने के बाद उक्त बीमा स्कीम के तहत सम्पूर्ण बेनीफिटस अप्रार्थी नियोक्ता के यहां से उसे दिये जाने चाहिए थे मगर परिवादी के सेवानिवृत होने के बाद भी उसे बीमा राषि का भुगतान नहीं किया गया और पूछने पर बताया गया कि राषि प्राप्त होने पर भुगतान कर दिया जाएगा। इस पर परिवादी ने दिनांक 04.08.2015 को परेषान होकर सूचना के अधिकार के तहत सम्पूर्ण जानकारी मांगी, मगर बैंक ने मात्र 29,588/- रूपये समूह बीमा के प्राप्त होना लिखा तथा षेश पूछे गये तथ्यांे का जवाब ही नहीं दिया। इस पर परिवादी ने दिनांक 03.12.2015 को अप्रार्थी को निवेदन किया कि उसे समूह बीमा की राषि 29,588/- रूपये मय 12.50 प्रतिवर्श ब्याज के दिलाई जावे। लेकिन अप्रार्थी ने न तो उसे राषि का भुगतान किया और न ही कोई जवाब दिया। जबकि अप्रार्थी ने दिनांक 09.05.2006 को ही परिवादी के समूह बीमा की राषि 29,588/- रूपये जीवन बीमा कम्पनी से प्राप्त कर लिये थे। ऐसे में अप्रार्थी का यह दायित्व था कि वह समूह बीमा की राषि प्राप्त होते ही उसे अवगत कराते और उसे राषि अदा करते। अप्रार्थी का यह कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अप्रार्थी से समूह बीमा की राषि 29,588/- रूपये 12.50 प्रतिषत प्रतिवर्श ब्याज की दर से कुल 96,076/- रूपये दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य परितोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण की ओर से बावजूद तामिल/सूचना कोई भी उपस्थित नहीं आया और न ही जवाब प्रस्तुत किया।
3. परिवादी की ओर से अपने परिवादी के समर्थन में अपना षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही अप्रार्थी बैंक को सूचना हेतु भी आवेदन प्रदर्ष 1, बैंक द्वारा दी गई सूचना प्रदर्ष 2, बैंक को सूचना हेतु प्रस्तुत अन्य आवेदन प्रदर्ष 3, अपील अधिकारी द्वारा दी सूचना प्रदर्ष 4, परिवादी की ओर से दिनांक 03.12.2015 को अप्रार्थी बैंक को दिया पत्र प्रदर्ष 5, पोस्टल रसीद एवं प्राप्ति रसीद क्रमषः प्रदर्ष 6 व 7 तथा गु्रप सेविंग स्कीम के नियम प्रदर्ष 8 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। जिनके खण्डन में अप्रार्थी पक्ष की ओर से न तो कोई जवाब पेष किया गया है और न ही किसी प्रकार की कोई साक्ष्य ही पेष की गई है। ऐसी स्थिति में परिवादी पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिवाद एवं उसके समर्थन में प्रस्तुत प्रलेखों पर अविष्वास या संदेह नहीं किया जा सकता है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष 2 व 4 के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी की समूह बीमा राषि 29,588/- रूपये दिनांक 09.05.2006 से ही अप्रार्थी बैंक के वहां जमा है, जो आज तक मांगे जाने के बावजूद परिवादी को प्रदान नहीं की गई है, जबकि समूह बीमा पाॅलिसी की षर्तों अनुसार परिवादी इसे प्राप्त करने का अधिकारी है। पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी ने इस राषि को प्राप्त करने हेतु अप्रार्थी बैंक को लिखित आवेदन भी दिये, लेकिन उसके बावजूद बिना किसी युक्तियुक्त कारण के यह राषि परिवादी को प्रदान न कर अप्रार्थी बैंक द्वारा सेवा दोश किया गया है।
4. परिवादी ने समूह बीमा की राषि 29,588/- रूपये के साथ-साथ इस राषि पर दिनांक 09.05.2006 से 12.50 प्रतिषत ब्याज की भी मांग की है, लेकिन परिवादी द्वारा ही प्रस्तुत प्रलेख प्रदर्ष 4 के अनुसार यह राषि अप्रार्थी बैंक के पास किसी बचत खाता में जमा न होकर विविध देनदार में जमा है। स्वयं परिवादी के कथनानुसार वह दिनांक 31.07.2006 को सेवानिवृत हुआ है, ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि समूह बीमा की राषि परिवादी के सेवानिवृत होने के दिनांक के पहले से ही अप्रार्थी बैंक को प्राप्त हो चुकी थी। परिवादी द्वारा ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया गया है, जिसके आधार पर परिवादी को इस जिला मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने से पूर्व की अवधि बाबत् ब्याज दिलाया जा सके। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय 2011 (2) सी.सी.सी. 302 (सुप्रीम कोर्ट) मिसेज रूबी दता बनाम मैसर्स यूनाईटेड इंडिया इंष्योरंेस कम्पनी लिमिटेड वाले मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित मत को देखते हुए परिवादी को यह परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक से वसूली होने तक इस राषि पर 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
5. पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि परिवादी के समूह बीमा की राषि लम्बे समय से अप्रार्थी बैंक के वहां जमा है तथा बार-बार आग्रह करने के बावजूद आज तक परिवादी को प्रदान नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में परिवादी लम्बे समय से मानसिक परेषानी झेल रहा है। यह भी स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा दिनांक 03.12.2015 को एक लिखित पत्र भी अप्रार्थी बैंक को भिजवाया गया लेकिन उसके बावजूद यह राषि प्रदान नहीं किये जाने की स्थिति में परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करना पडा, ऐसी स्थिति में परिवादी को मानसिक परेषानी हेतु 10,000/- दिलाये जाने के साथ ही परिवाद-व्यय भी दिलाया जाना उचित होगा।
आदेश
6. परिणामतः परिवादी देवाराम द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थी स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी बैंक, परिवादी को उसके समूह बीमा की राषि 29,588/- रूपये अविलम्ब प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी इस राषि पर परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 10.02.2016 से वसूली होने तक 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी प्राप्त करने का अधिकारी है। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी, परिवादी को मानसिक संताप हेतु 10,000/- रूपये प्रदान करने के साथ ही परिवाद-व्यय के 5,000/- रूपये भी अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
7. निर्णय व आदेष आज दिनांक 08.06.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या