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Love Kumar Jangir filed a consumer case on 27 Feb 2015 against Rajasthan Housing Board & Others in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/452/2013 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ.अलका शर्मा, सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-452/2013 (पुराना परिवाद संख्या 815/2005)
श्री लव कुमार जांगिड़, निवासी- 2/684, जवाहर नगर, जयपुर । हाल निवासी- 914, साउथ एवेन्यू, एपार्ट-ए-21, सिकेन, पी.ए.-19018, यू.एस.ए. ।
परिवादी
बनाम
01. राजस्थान आवासन मण्डल, जनपथ, ज्योति नगर, जयपुर जरिये आयुक्त ।
02. राजस्थान आवासन मण्डल, जनपथ, ज्योति नगर, जयपुर जरिये सचिव ।
03. राजस्थान आवासन मण्डल जरिये उप-आवासन आयुक्तम, जयपुर सर्किल- प्रथम, प्रताप नगर, सांगानेर, जयपुर ।
विपक्षीगण
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री देवेन्द्र मोहन माथुर, एडवोकेट
विपक्षीगण की ओर से श्री आनन्द शर्मा, एडवोकेट
निर्णय
दिनांकः-27.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 17.09.2005 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी ने विपक्षीगण की ’राज आंगन योजना’, जो अप्रवासी राजस्थानियों के लिए विपक्षीगण ने निकाली थी, में 2,70,000/-रूपये दिनांक 25.01.2005 को जमा करवाये थे । परिवादी को जारी बुकलेट के अनुसार इस मकान की कीमत 28,25,000/-रूपये रखी गई थी । लेकिन दिनांक 25.01.2005 से उक्त आवास की लागत में 25 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई और साथ ही पंजीकरण राशि के लिए भी अन्तर राशि 83,500/-रूपये की मांग विपक्षीगण ने परिवादी से की । जो विपक्षीगण का अनुचित व्यापार व्यवहार हैं क्योंकि परिवादी को विपक्षीगण ने मूल्य वृद्धि करने के संबंध में पर्याप्त अधिकार और अवसर नहीं दिया था तथा पंजीकरण राशि की अन्तर राशि वसूली की सूचना आवेदन के करीब तीन माह बाद 15.04.2005 को देकर गम्भीर सेवादोष कारित किया हैं । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 22 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षीगण की ओर से दिये गये जवाब में कथन किया गया है कि मण्डल द्वारा योजना की जो बुकलेट और प्रोस्पेक्ट्स परिवादी को दिया गया था उसकी विभिन्न शरायतों में यह स्पष्ट किया गया है कि उसकी शरायतों में समय समय पर परिवर्तन किया जा सकता हैं । परिवादी ने दिनांक 25.01.2005 को 2,70,000/-रूपये की जो राशि जमा करवाई थी, वह अपूर्ण पंजीकरण राशि थी । इसलिए बकाया पंजीकरण राशि 83,500/-रूपये की मांग परिवादी से किया जाना न्यायोचित हैं । इसमें विपक्षीगण की कोई त्रुटि नहीं हैं । विपक्षीगण को आवास की कीमत भी बढ़ाने का अधिकार उपलब्ध हैं क्योंकि अनेक्सर डी-1 की शरायत संख्या 4.1 में यह अंकित हैं कि श्ज्ीम ेंसम चतपबमे व िजीम ीवनेमे ंतम सपंइसम जव बींदहम तिवउ जपउम जव जपउमण्श् । इसी प्रकार शरायत नम्बर 15.1 में यह बिन्दु स्पष्ट कर दिया गया है कि ’आवासन मण्डल द्वारा आवास की कीमत में भविष्य में बढ़ोतरी करना सम्भव है ।’ इसलिए विपक्षीगण ने परिवादी से उसे आवंटित मकान की कीमत में बढ़ोतरी करने और उससे पंजीकरण राशि की मांग करने में कोई त्रुटि नहीं की हैं । अतः परिवाद, परिवादी निरस्त किया जावें ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री लव कुमार जांगिड़ ने स्वयं का शपथ पत्र एवं पत्रावली के पृृष्ठ संख्या 36 से 58 तक दस्तावेज प्रस्तुत किये । जबकि जवाब के तथ्यों की पुष्टि में विपक्षीगण की ओर से श्री वी.के.माथुर का शपथ पत्र एवं पत्रावली के पृष्ठ संख्या 114 से 136 तक दस्तावेज प्रस्तुत किये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
विपक्षीगण की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत किये गये ।
परिवादी की ओर से ैब्क्त्ब्ए त्ंरंेजींदए श्रंपचनतए ।चचमंस छवण्1719ध्05ए त्ंउ ।अजंत डममदं टे त्ंरंेजींद भ्वनेपदह ठवंतकए क्मबपकमक वद 12ध्04ध्2007 और जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, द्वितीय, जयपुर द्वारा परिवाद संख्या 815/2006, निर्णय दिनांक 23.07.2007 की प्रति प्रस्तुत की गई ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने विपक्षीगण द्वारा घोषित ’राज आंगन योजना’ में 2,70,000/- रूपये पंजीकरण राशि दिनंाक 25.01.2005 को जमा करवाई थी और उक्त योजना में अपना पंजीकरण करवाया था । यह तथ्य उभयपक्ष के मध्य स्वीकृत तथ्य हैं । इसके बाद विपक्षीगण ने दिनंाक 06.04.2005/15.04.2005 को परिवादी को प्रदर्श-4 पत्र लिखकर परिवादी को सूचित किया कि ’उसने दिनंाक 25.01.2005 को प्लाॅट संख्या फ.50 म्.1 राज आंगन योजना, प्रताप नगर, सांगानेर, जयपुर के लिए चैक/डी.डी. 2,70,000/-रूपये जमा कराये थे । लेकिन ’राज आंगन योजना’ के ठनदहंसवू की कीमत में वृद्धि दिनांक 25.01.2005 को कर दी गई है । इसलिए परिवादी को अब रजिस्ट्रेशन राशि के 83,500/-रूपये और जमा करवाने होंगे ।’ इसके बाद परिवादी ने प्रदर्श-5 व प्रदर्श-6 के माध्यम से विपक्षीगण के कार्यालय में क्रमशः 50,000/-रूपये व 33,500/-रूपये अर्थात् 83,500/-रूपये अण्डर-प्रोटेस्ट जरिये प्रदर्श-7 पत्र जमा करवा दिये तो दिनंाक 28.06.2005 को विपक्षीगण की ओर से प्रदर्श-8 डिमाण्ड नोट के जरिये परिवादी से मकान की संशोधित कीमत 35,35,000/-रूपये जमा कराने को कहा गया । इस डिमाण्ड नोट के अनुसार परिवादी विपक्षीगण को मकान की कीमत जमा कराने को तैयार नहीं हैं क्योंकि विपक्षीगण ने ’राज आंगन योजना’ के लिए जो ब्रोशर, जिसका टाईटल ।चचसपबंजपवद वित ।ससवजउमदज ळमदमतंस ज्मतउे - ब्वदकपजपवदे प्रकाशित किया था उसमें आवास की कोस्ट के बाबत् बिन्दु संख्या 4 में निम्नानुसार उल्लेख हैंः-
श्ज्ीम ेंसम चतपबमे व िजीम ीवनेमे ंतम सपंइसम जव बींदहम तिवउ जपउम जव जपउमण् ज्ीम तमअपमू व िेंसम चतपबम इम कवदम वद ुनंतजमतसल इंेपे ंज मीम समअमस व िभ्वनेपदह ब्वउउपेेपवदमतण् भ्वूमअमतए जीम ेंसम चतपबम पदवितउमक जव जीम ंचचसपबंदज ंज जीम जपउम व ितमहपेजतंजपवद ेींसस तमउंपद पितउ ंदक नदबींदहमकण्श्
इस प्रकार उक्त शर्त के अनुसार परिवादी के आवास के पंजीयन के समय जो आवास का मूल्य बताया गया है उस राशि को बाद में विपक्षीगण को बदलने का अधिकार नहीं होगा और आवास का मूल्य वही रहेगा जो पंजीयन के समय विपक्षीगण ने घोषित किया था ।
इस प्रकार विपक्षीगण ने उक्त शर्त के विपरीत परिवादी के आवास की कीमत और रजिस्ट्रेशन राशि बढ़ाने का जो पत्र प्रदर्श-4 दिनांकित 06.04.2005/ 15.04.2005 जारी किया हैं वह उक्त शर्त के विपरीत हैं । इस संबंध में माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, राजस्थान, जयपुर ने भी ।चचमंस छवण्1719ध्05ए त्ंउ ।अजंत डममदं टे त्ंरंेजींद भ्वनेपदह ठवंतकए क्मबपकमक वद 12ध्04ध्2007 के माध्यम से यह घोषित किया है कि ’राज आंगन योजना’ के तहत परिवादी को पंजीयन राशि दिनंाक 25.01.2005 को लेते समय आवास की कीमत तय की गई थी । उसके बाद विपक्षीगण के आवास की कीमत को संशोधित कर बढ़ाने का अधिकार नहीं हैं । इस न्याय सिद्धान्त का संदर्भित भाग निम्नानुसार हैंः-
श्ॅम ींअम हवदम जीतवनही जीम ंइवअम ेबीमउमण् ॅींज ूमतम जीम जमतउे ंदक बवदकपजपवदे वित ंससवजउमदज व िं तमेपकमदजपंस ीवनेम ींअम ंसेव इममद चसंबमक वद जीम तमबवतक ूीपबी हव जव ेीवू जींज जीम ेंसम चतपबम व िजीम ीवनेमे बवनसक इम बींदहमक तिवउ जपउम जव जपउम इल जीम त्भ्ठण् प्ज ूंे ंसेव उमदजपवदमक पद जीम जमतउे जींज जीम ेंसम चतपबम पदवितउमक जव जीम ंचचसपबंदज ंज जीम जपउम व ितमहपेजतंजपवद ेींसस तमउंपद पितउ ंदक नदबींदहमकण् प्ज पे बसमंत तिवउ जीम ंइवअम बवदकपजपवद जींज जीम ेंसम चतपबम बवनसक इम बींदहमक इनज वदबम जीम चतपबम ूंे दवजपपिमक जव जीम ंचचसपबंदज ंज जीम जपउम व ितमहपेजतंजपवदए ूंे दवज सपंइसम जव इम बींदहमकण् प्द जीपे चंतजपबनसंत बंेमए जीम ब्वउचसंपदंदज हवज जीम क्मउंदक क्तंजिे चतमचंतमक ूीपबी ंतम कंजमक 22ण्1ण्04 इनज जीम तमबमपचजे दृ ।ददमगनतम 6 जव 9 ेीवू जींज जीम क्मउंदक क्तंजिे ूमतम ेनइउपजजमक वद 25ण्01ण्05ण् स्मजजमत छवण् ।ब्म्ध्प्प्ध्त्भ्ठध्2005ध्180 कंजमक 25ण्1ण्05 पेेनमक इल जीम त्भ्ठए श्रंपचनत हवमे जव ेीवू जींज जीम ेंसम चतपबम ूंे पदबतमंेमक ूपजी पउउमकपंजम मििमबजण् ज्ीम ंइवअम समजजमत पे पदकपबंजपअम व िजीम ंिबज जींज पदबतमंेम चतपबम ींक बवउम पदजव मििमबज तिवउ 25ण्1ण्05ण् ।े जीम ंउवनदज ूंे कमचवेपजमक इल जीम ब्वउचसंपदंदज वद 25ण्1ण्05ए जीमतमवितम जीम चतपबम चतमअंसमदज वद 25ण्1ण्05 ूवनसक इम उंकम ंचचसपबंइसम पद जीपे उंजजमतण् ॅम कव दवज पिदक ंदल मततवत पद जीम वतकमत चंेेमक इल जीम समंतदमक क्पेजतपबज थ्वतनउ ंदक जीमतमवितम पिदक दव वितबम पद जीपे ंचचमंसण्श्
अतः माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, राजस्थान, जयपुर ने भी यह अभिनिर्धारित किया है कि विपक्षीगण को परिवादी के मकान की कीमत, जो आवास के रजिस्ट्रेशन के दिन यानि दिनंाक 25.01.2005 को विपक्षीगण द्वारा घोषित की गई थी, उसे बढ़ाने का कोई अधिकार विपक्षीगण को बाद में उत्पन्न नही होता हैं । इसलिए विपक्षीगण द्वारा परिवादी को पत्र प्रदर्श-4 दिनंाकित 06.04.2005/15.04.2005 जारी करके सेवादोष कारित किया हैं । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण को मकान की वही कीमत देने के लिए बाध्य हैं जो दिनांक 25.01.2005 को विपक्षीगण ने घोषित की थी । इसलिए परिवादी अब विपक्षीगण से घोषित राशि के अतिरिक्त जमा करवाई गई अतिरिक्त राशि को इस निर्णय के एक माह के अन्दर वापस प्राप्त करने का अधिकारी हैं । परिवादी उक्त अतिरिक्त राशि पर विपक्षीगण से परिवाद पेश करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगा । परिवादी को विपक्षीगण के इस सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 75,00/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता हैं कि परिवादी विपक्षीगण को मकान की वही कीमत देने के लिए बाध्य हैं जो दिनांक 25.01.2005 को विपक्षीगण ने घोषित की थी । परिवादी विपक्षीगण से घोषित राशि के अतिरिक्त जमा करवाई गई अतिरिक्त राशि को इस निर्णय के एक माह के अन्दर वापस प्राप्त करने का अधिकारी हैं । परिवादी अतिरिक्त राशि पर विपक्षीगण से परिवाद पेश करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगा । परिवादी को विपक्षीगण के उपरोक्त सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
विपक्षीगण को आदेष दिया जाता है कि वे उक्त समस्त राशि परिवादी के रिहायशी पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करायेेंगे ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 27.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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