राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या–296/2003
नरेन्द्र सिंह पुत्र श्री काशीराम निवासी ग्राम नगला माफी तहसील धनोरा जिला-ज्योतिबा फूले नगर।
बनाम
राजाराम पुत्र श्री राम सिंह निवासी मोहल्ला आवन्तिका नगर, गजरौला जिला- जे0 पी0 नगर व अन्य ।
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्धान अधिवक्ता : श्री आदित्य सिंह
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्धान अधिवक्ता: कोई नहीं
दिनांक 20.08.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्धारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, ज्योतिबा फूले नगर द्धारा परिवाद संख्या– 92/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 04.04.2002 के विरूद्ध योजित की गई है।
प्रस्तुत अपील विगत लगभग 21 वर्षो से लम्बित है। अपील आज सुनवाई हेतु मेरे समक्ष पेश हुई।
संक्षेप में, परिवाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी नीलामी में एक वीडर था और उसे नीलामी में सर्वाधिक बोली बोले जाने पर नगर पंचायत गजरौला द्धारा दुकान संख्या-09 अंकन रू0 42,000/- पर विपक्षीगण द्धारा प्रदान की गई थी। परिवादी ने विपक्षीगण के निर्देशानुसार दिनांक 04.07.1991 को रू0 5000/- व दिनांक 18.07.1991 को रू0 9,000/- कुल रू0 14,000/- कुल बोली का एक तिहाई भाग जमा कर दिया तथा शेष राशि कब्जे के समय जमा किया जाना था। जब परिवादी विपक्षी के कार्यालय में शेष धनराशि जमा करने गया तो ज्ञात हुआ कि शापिंग सेन्टर का निर्माण कार्य रूक गया है। दुकान निर्माण होने की सूचना बाद में परिवादी को दी जावेगी।
विपक्षीगण के कार्यालय द्धारा दिनांक 17.08.1996 को परिवादी को नोटिस प्रेषित की गई रू0 42,000/- के अतिरिक्त दुकान की लागत 15 प्रतिशत और बढ़ा दी गई है जिसके जमा करने पर परिवादी को दुकान का कब्जा दे दिया जायेगा। जायेगा। चूंकि दुकान का निर्माण कार्य पूरा नही हो सका। बाद में आयुक्त मंडल मुरादाबाद के आदेश दिनांक 29.09.1999 को विपक्षीगण के कार्यालय में प्राप्त कराते हुये 07 दिवस में धनराशि जमा करने का अनुरोध किया परन्तु विपक्षीगण द्धारा कोई कार्यवाही नहीं की गई जिससे क्षुब्ध होकर यह परिवाद संस्थित किया गया।
विपक्षी ने अपने जवाबदावा में यह अभिकथन किया है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है। विपक्षीगण द्धारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने कुल रू0 14,000/- जमा किया था तथा शेष राशि बोली छूटने पर जमा करनी थी थी जिसे परिवादी द्धारा नहीं जमा की गई तत्पश्चात परिवादी की रजामंदी पर उक्त दुकान श्री नरेन्द्र सिंह को सन् 1992 में आवंटित कर दी गई। प्रश्नगत दुकान वर्तमान में नरेन्द्र सिंह के कब्जे में है। फोरम को वाद सुनने का अधिकार नहीं है।
जिला आयोग द्धारा समस्त तथ्यों को विस्तार से उल्लिखित एवं परीक्षण किये जाने के उपरान्त पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर यह पाया कि वास्तव में अपीलार्थी नरेन्द्र सिंह आवश्यक पक्षकार नहीं है। अतएव अपीलार्थी नरेन्द्र सिंह का प्रार्थना पत्र वास्ते पक्षकार बनाये जाने हेतु निरस्त किया गया तथा निम्न आदेश पारित किया गया:-
‘’ परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण, परिवादी से पूर्व समझौते के अनुसार रू0 42,000/- के अतिरिक्त 25 प्रतिशत की राशि बढ़ाकर योग 42000+10500 कुल रू0 52,500/- में परिवादी द्धारा दिनांक 18.07.1991 को जमा धनराशि रू0 14,000/-पर 12 प्रतिशत ब्याज का लाभ भुगतान की तिथि तक समायोजन करने के उपरान्त शेष राशि परिवादी से प्राप्त करके प्रश्नगत दुकान नं0-9का दखल व कब्जा वाकई परिवादी को दें तथा वाद व्यय के रूप में रू0 1,000/- विपक्षीगण,परिवादी को अदा करें। आदेशों की पालना अन्दर तीस दिनों में की जाय।‘’
मेरे द्धारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्धान अधिवक्ता श्री आदित्य सिंह को विस्तार से सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य एवं अभिलेख का भलीभांति परिशीलन करने के पश्चात मेरे विचार से जिला आयोग ने उभय पक्षों द्वारा दाखिल सभी अभिलेखों व शर्तो का अवलोकन करते हुए साक्ष्यों की पूर्ण विवेचना करते हुए प्रश्नगत परिवाद में विवेच्य निर्णय पारित किया है, जो कि तथ्यों एवं साक्ष्यों से समर्थित एवं विधि-सम्मत है एवं उसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार, प्रस्तुत अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्धारा परिवाद संख्या-92/1999 में पारित निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्धारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
रंजीत, पी.ए.,
कोर्ट न0- 1