राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1989/2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, शामली द्वारा परिवाद संख्या 01/2015 में पारित आदेश दिनांक 03.09.2015 के विरूद्ध)
SBI Life Insurance Co. Ltd, a company incorporated under the Companies Act, 1956 having its registered office at “Natraj”, M. V. Road & Western Express Highway Junction, Andheri (East), Mumbai-400069 through its authorized signatory
....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. Sri Rajpal R/o Vill Mundate Khader, Teh Khairana,
Dist Shamli, UP
2. Smt Shimla Devi W/o Rajpal R/o Vill Mundate
Khader, Teh Khairana, Dist Shamli, UP
................प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सचिन गर्ग,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक कुमार सिंह
कुशवाहा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 08-09-2016
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या- 01/2015 राजपाल व एक अन्य बनाम एस0बी0आई0 लाईफ इंश्योरेन्स कं0लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शामली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 03.09.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद
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के विपक्षी एस0बी0आई0 लाईफ इंश्योरेन्स कं0लि0 की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद सव्यय स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि वे परिवादी राजपाल पुत्र श्री प्रसादा को 5,00,000/-रू0 की बीमा राशि तथा उस पर दिनांक 06.01.2015 अर्थात् वाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करे। इसके साथ ही जिला फोरम ने 5000/-रू0 मानसिक क्षतिपूर्ति एवं 2000/-रू0 वाद व्यय के रूप में भी अदा करने का आदेश दिया है और यह आदेशित किया है कि उपरोक्त भुगतान विपक्षीगण निर्णय की तिथि से 30 दिवस के अन्दर करे अन्यथा उपरोक्त धनराशि पर विपक्षीगण 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से दण्डात्मक ब्याज देने हेतु उत्तरदायी होंगे।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री सचिन गर्ग और प्रत्यर्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह कुशवाहा उपस्थित आए।
हमने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क
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है कि बीमाधारक ने प्रस्ताव में अपनी आय व्यवसाय के सम्बन्ध में गलत सूचना दिया है और वार्षिक आय को छिपाया है। वह अपनी वार्षिक आय के आधार पर बीमा पॉलिसी नहीं पा सकता था। गलत तथ्यों के आधार पर धोखे से प्राप्त की गयी पॉलिसी बीमा कम्पनी को निरस्त करने का पूरा अधिकार है। जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण का परिवाद स्वीकार कर गलती की है।
अपीलार्थी की ओर से अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा CONSUMER CASE NO. 148 OF 2008 NEETABEN MUKUND SHAH & ANR. Versus BIRLA SUN LIFE INSURANCE COMPANY LIMITED में पारित निर्णय दिनांक 20.05.2015 की प्रति प्रस्तुत की गयी है।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि के अनुकूल है। बीमाधारक ने प्रपोजल फार्म में कोई भी गलत सूचना नहीं दी है। प्रपोजल फार्म एजेंट द्वारा भरा गया है और उसे भरकर बीमाधारक को सुनाया नहीं गया है। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमाधारक बीमा प्रीमियम अदा करने हेतु सक्षम था और उसने बीमा प्रीमियम अदा किया है। अत: बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा क्लेम अस्वीकार करने का बताया गया कारण अनुचित और अवैधानिक है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा
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कम्पनी के कथन पर विचार किया है और यह उल्लेख किया है कि बीमा प्रपोजल फार्म कागज सं0 5ग/17 की पुष्त से 5ग/2 तक, जो अंग्रेजी में भरा है, को विपक्षीगण के एजेन्ट द्वारा भर कर ओमेन्द्र पाल बीमाधारक (मृतक) को पढ़ाया और समझाया गया, इस तथ्य का कोई उल्लेख विपक्षीगण का नहीं है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि यह भी सम्भव है कि विपक्षीगण के एजेन्ट द्वारा ओमेन्द्र पाल (मृतक) के कथित बीमा प्रपोजल फार्म में स्वयं उसकी आय को बढ़ाकर दिखाया गया हो, ताकि उसे बीमा प्रीमियम का ज्यादा कमीशन मिल सके। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा III (2014) CPJ 582 (NC) Sahara India Life Insurance Co. Ltd. Vs Rayani Ramanjaneyulu के वाद में दिए गए निर्णय का उल्लेख किया है, जिसमें माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह कहा है कि, “Insured or her legal representatives should not suffer for omissions and commissions by agents – Repudiation smacks of mala fide intention on part of OP – Insurance Company has no bone to pluck with complainant.”
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में III (2014) CPJ 10A (CN) राज्य आयोग पंजाब द्वारा Bajaj Allianz General Insurance Co. Ltd. Vs Balwider Singh
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& Oths. के वाद में दिए गए निर्णय का भी उल्लेख किया है, जिसमें आय और व्यवसाय के सम्बन्ध में बीमाधारक द्वारा गलत सूचना दिए जाने पर विचार किया गया है और कहा गया है कि, “after payment of premium in case there is difference in occupation in proposal form and in claim form that will not give any prejudice to appellant-Company – Repudiation not justified.”
स्वीकृत रूप से प्रत्यर्थी/परिवादीगण के पुत्र ओमेन्द्र पाल ने विपक्षीगण से पॉलिसी सं0 35031820704 दिनांक 31.12.2012 वार्षिक प्रीमियम 10,661/-रू0 देकर ली थी, जिसमें बीमा कवर 5,00,000/-रू0 का था और बीमाधारक ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण को नामिनी नामित किया था। अपीलार्थी/विपक्षी ने उक्त बीमा पॉलिसी इस आधार पर अस्वीकार की है कि बीमा प्रस्ताव में बीमाधारक ने अपनी वार्षिक आय 2,00,000/-रू0 बतायी थी और व्यवसाय व्यापार बताया था, परन्तु जब बीमा पॉलिसी के दावे के सम्बन्ध में जांच की गयी तो पाया गया कि बीमाधारक खेतिहर मजदूर था और उसकी वार्षिक आय 45,000/-रू0 मात्र थी। अत: बीमाधारक ने गलत सूचना देकर बीमा पॉलिसी धोखे से प्राप्त की थी। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने मृतक की आय के सम्बन्ध में धर्मेन्द्र सिंह पुत्र महाराज सिंह निवासी मुण्डेर तहसील कैराना जिला शामली एवं ओमपाल ग्राम प्रधान मुन्डेट खादर का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है, जिससे बीमाधारक ओमेन्द्र पाल की वार्षिक आय 2,00,000/-रू0
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गलत प्रमाणित होती है। प्रपोजल फार्म की फोटो प्रति अपील मेमो के साथ संलग्न है, जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इस पर बीमाधारक का अंग्रेजी में हस्ताक्षर है, परन्तु यह प्रपोजल फार्म उसके हाथ से उसके हस्तलेख में नहीं भरा गया है। प्रपोजल फार्म बीमा एजेन्ट के द्वारा भरा गया है। अत: जिला फोरम का यह उल्लेख आधार रहित नहीं कहा जा सकता है कि बीमा प्रस्ताव में बीमा एजेन्ट ने बीमाधारक की आय अपने हित में बढ़ाकर भरी है। इसके अतिरिक्त बीमा प्रस्ताव की जो फोटो प्रति अपील मेमो के साथ संलग्न की गयी है उससे स्पष्ट है कि वार्षिक इनकम का कॉलम ठीक ढंग से नहीं भरा गया है और इसे आवश्यकतानुसार दाहिनी ओर 4 रिक्त ब्लाक में शून्य बढ़ाकर 20 करोड़ तक बनाया जा सकता है। प्रपोजल फार्म में वार्षिक आय की इस प्रविष्टि को देखने से यह जाहिर होता है कि वार्षिक आय 20,000/-रू0 स्पष्ट रूप से भरी गयी है बाद में 20,000/-रू0 के बाद वाले रिक्त कॉलम में अधूरी प्रविष्टि बाद में की गयी है। अत: प्रपोजल फार्म की यह प्रविष्टि विश्वसनीय नहीं है और स्वीकृत रूप से बीमाधारक ने बीमा प्रीमियम की सम्पूर्ण धनराशि बीमा कम्पनी को अदा की है। बीमा कम्पनी बीमाधारक की आय एवं व्यवसाय के सम्बन्ध में बीमा प्रीमियम स्वीकार करने और पॉलिसी बाण्ड निर्गत करने के पहले ही जांच कर वार्षिक आय को सत्यापित कर सकती थी, परन्तु उसने प्रस्तावक की कथित वार्षिक आय एवं व्यवसाय का सत्यापन किए बिना बीमा प्रीमियम स्वीकार किया है। अत: यह जाहिर होता है कि
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बीमा पॉलिसी के लिए प्रस्तावक की आय एवं व्यवसाय का कोई महत्व नहीं था। ऐसी स्थिति में अब बीमा कम्पनी बीमा पॉलिसी को यह कहकर अस्वीकार अथवा रिपुडिएट नहीं कर सकती है कि बीमाधारक ने अपनी आय व व्यवसाय गलत दर्शित किया है। इस निष्कर्ष का समर्थन माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन आफ इण्डिया आदि बनाम श्रीमती आशा गोयल एवं एक अन्य I (2001) S.C.C. 160 के वाद में दिए गए निर्णय से होता है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि, “For determination of the question whether there has been suppression of any material facts it may be necessary to also examine whether the suppression relates to a fact which is in the exclusive knowledge of the person intending to take the policy and it could not be ascertained by reasonable enquiry by a prudent person.”
CONSUMER CASE NO. 148 OF 2008 NEETABEN MUKUND SHAH & ANR. Versus BIRLA SUN LIFE INSURANCE COMPANY LIMITED के उपरोक्त वाद में माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरित किया जाता है:-
“Accordingly, there is no escape from the conclusion that not only the false information as regards the income of the insured was a material information, it was given fraudulently so as to induce the insurance company to give a policy of Rs.1,00,00,000/- which the said company might not
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have given had it known the correct income of the deceased. The insurance company, therefore, was very well entitiled in law to repudiate the claim.”
उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि वर्तमान वाद में बीमाधारक द्वारा प्रस्ताव में अपनी आय व व्यवसाय के सम्बन्ध में स्वयं कोई सूचना दिया जाना संदेहास्पद है और यह मानने योग्य उचित आधार नहीं है कि बीमाधारक ने यह सूचना जानबूझकर कपटपूर्ण उद्देश्य से गलत दी है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने ऐसी कोई Guide Line या नियमावली नहीं दिखाया है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि 45000/-रू0 वार्षिक आय के व्यक्ति को यह पॉलिसी नहीं दी जा सकती थी। अत: माननीय राष्ट्रीय आयोग के इस निर्णय का लाभ अपीलार्थी बीमा कम्पनी को वर्तमान वाद के तथ्यों पर नहीं दिया जा सकता है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादीगण का दावा अस्वीकार करने का बताया गया कारण उचित और विधिसम्मत नहीं है। जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण का दावा स्वीकार कर कोई अवैधानिकता अथवा त्रुटि नहीं की है। हम इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार अपील अस्वीकार किए जाने योग्य है।
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आदेश
वर्तमान अपील अस्वीकार की जाती है।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस अपील में जमा की गयी धनराशि जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रेषित की जाए कि जिला फोरम उसका निस्तारण आक्षेपित निर्णय और आदेश के निष्पादन में विधि के अनुसार करें।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1