Smt. Tulsi Devi filed a consumer case on 26 Feb 2015 against Raj Health Associates & Others in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/1810/2012 and the judgment uploaded on 17 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा अध्यक्ष
डाॅ. अलका शर्मा, सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-1810/2012 (पुराना परिवाद संख्या 1045/2010)
श्रीमती तुलसी देवी पत्नी स्वर्गीय श्री सीताराम, आयु 25 वर्ष, निवासी- ग्राम छापरी, तहसील फागी, जिला जयपुर ।
परिवादिनी
बनाम
01. प्रबन्धक, राज हैल्थ एसोसिएट्स, पता-ब्यावर रोड, विजय बैंक के पास, अजमेर । (क्मसमजमक वद 16ण्04ण्2013द्ध
02. दी ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, मण्डलीय कार्यालय चतुर्थ, द्वितीय मंजिल, आनन्द भवन, संसार चन्द्र रोड, जयपुर ।
विपक्षीगण
उपस्थितः-
परिवादिनी की ओर से श्री बी.एस.चैधरी, एडवोकेट
विपक्षी संख्या 2 बीमा कम्पनी की ओर से श्री जी.एस.राठौड़, एडवोकेट
निर्णय
दिनांकः- 26.02.2015
यह परिवाद, परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनांक 29.09.2010 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम का बीमा विपक्षी बीमा कम्पनी ने कर रखा था । जिसका प्रीमियम 258/-रूपये विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्राप्त करके परिवादिनी के स्वर्गीय पति श्री सीताराम को बीमा पाॅलिसी संख्या 48/08/51510 दिनांक 13.03.2008 से 12.03.2012 की अवधि के लिए जारी की थी । इसी बीमा पाॅलिसी की अवधि के दौरान दिनंाक 28.06.2008 को परिवादिनी का पति सीताराम जब वाहन संख्या आर.जे.32-जी.ए. 4148 पर बतौर चालक कार्य करते हुए गांधीधाम से दिल्ली जा रहा था तो बिलपुूर के पास उक्त वाहन असंतुलित होकर पलटने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया । जिसमें चालक सीताराम के गम्भीर चोटें कारित हुई और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई । इस घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 70/08, पुलिस थाना पालड़ी, जिला सिरोही में दर्ज करवाई गई । लेकिन विपक्षीगण ने परिवादिनी का बीमा क्लेम प्रस्तुत करने के बाद बिना किसी युक्तियुक्त कारण के खारिज कर दिया । जो विपक्षीगण का सेवादोष हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादिनी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 09 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी हैं ।
विपक्षी संख्या 2 को परिवादिनी के आवेदन पर दिनांक 16.04.2013 को क्मसमजम किया गया ।
विपक्षी संख्या 2 बीमा कम्पनी की ओर से दिये गये जवाब में कथन किया गया है कि परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम ने कोई जहरीला और नशीला पदार्थ खा लिया हो, इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता हैें । इसलिए प्रकरण में परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम का पोस्टमार्टम करवाया जाना आवश्यक था, जो अभिलेख पर उपलब्ध नहीं हैं । परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 28.06.2008 को हुई और परिवादिनी द्वारा बीमा कम्पनी को सूचना दिनंाक 28.08.2008 को दी गई और क्लेम दिनांक 08.12.2008 को पेश किया गया जबकि बीमा कम्पनी को दुर्घटना तिथी से सात दिवस में सूचना दिया जाना आवश्यक हैं । इसलिए भी परिवादिनी का बीमा क्लेम स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं । अतः परिवाद, परिवादिनी निरस्त किया जावें ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादिनी श्रीमती तुलसी देवी ने स्वयं का शपथ पत्र एवं कुल 20 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये । जबकि विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाब की तथ्यों की पुष्टि में श्री आर.सी.यादव एवं डाॅक्टर अशोक कुमार जैन के शपथ पत्र एवं कुल 07 पृष्ठ दस्तावेज प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
परिवादिनी की ओर से न्याय सिद्धान्त 2003 त्ण्।ण्त्ण् 21 ;त्ंरण्द्ध त्ंरंेजींद भ्पही बवनतजए श्रवकीचनत प्रस्तुत किया गया ।
प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी के पति की बीमा पाॅलिसी प्रभाव में होने के तथ्य से इन्कार नहीं किया हैं । विपक्षी बीमा कम्पनी का कथन है कि परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम की मृत्यु दुर्घटना में दिनांक 28.06.2008 को हुई थी जबकि उसने बीमा कम्पनी को दिनांक 28.08.2008 को अवगत कराया था । लेकिन विपक्षी बीमा कम्पनी दिनांक 28.08.2008 को किस प्रकार से उक्त दुर्घटना से अवगत हुई, उसने यह तथ्य अंकित नहीं किया हैे । लेकिन परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम की दुर्घटना में मृत्यु को संदिग्ध, झूठा और बेबुनियाद नहीं माना गया हैं । पुलिस द्वारा प्रस्तुत किये गये अंतिम प्रतिवेदन में परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम की दुर्घटना में मृत्यु होने को संदिग्ध नहीं माना गया हैं । इसके साथ-साथ प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं पंचनामें से भी यह प्रमाणित हैं कि परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम की दिनांक 28.06.2008 को सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई थी । इसलिए परिवादिनी द्वारा बीमा कम्पनी को उसके पति की मृत्यु की सूचना विलम्ब से देने के बिन्दु के आधार पर यह तथ्य संदिग्ध नहीं होता हैं कि परिवादिनी ने अपने पति की मृत्यु दुर्घटना से होने के तथ्य को छिपाने का अवसर प्राप्त किया हैं ।
परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम की मृत्यु हो जाने के बाद उसके भाई ने थाने में यह लिखकर दिया है कि वह अपने भाई सीताराम का पोस्टमार्टम नहीं करवाना चाहता हैं । सरकारी नियमों में यह प्रावधान हैं इसलिए परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम का पोस्टमार्टम नहीं किया गया और बिना पोस्टमार्टम किये ही शव परिवादिनी के परिवार को दे दिया गया क्योंकि परिवादिनी के पति स्वर्गीय श्री सीताराम का पोस्टमार्टम नहीं होने का वास्तविक और युक्तियुक्त कारण, जो नियमों के अनुरूप था, अभिलेख पर उपलब्ध हैं । परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत न्याय सिद्धान्त 2003 त्ण्।ण्त्ण् 21 ;त्ंरण्द्ध त्ंरंेजींद भ्पही बवनतजए श्रवकीचनत में भी चक्षुदर्शी साक्ष्य आदि उपलब्ध होने पर पोस्टमार्टम का कराया जाना आवश्यक नहीं पाया गया हैं । इस न्याय सिद्धान्त का संदर्भित भाग निम्नानुसार हैंः-
’कार्यप्रणाली एवं प्रक्रिया- पोस्टमार्टम प्रतिवेदन पेश नहीं किया - चक्षुदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत हुआ जिसने कथन किया कि दुर्घटना किस प्रकार हुई - सरपंच का प्रमाण पत्र, सरकारी अस्पताल की ईलाज पर्ची, उपचार बिल पेश किये - दुर्घटना की प्रत्यक्ष साक्ष्य, जो प्रतिरक्षा साक्ष्य से समर्थित होती हैं - पोस्टमार्टम का प्रतिवेदन आवश्यक नहीं हैं ।’
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर हमारे विनम्र मत में विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी के पति का बीमा क्लेम अभिलेख पर साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद भी पारित नहीं करके सेवादोष कारित किया हैं । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादिनी अब विपक्षी बीमा कम्पनी से अपने पति की बीमा पाॅलिसी के अनुरूप बीमा क्लेम राशि प्राप्त करने की अधिकारिणी हैं । परिवादिनी बीमा क्लेम राशि पर विपक्षी बीमा कम्पनी से परिवाद पेश करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगी । परिवादिनी को विपक्षी बीमा कम्पनी के इस सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादिनी स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादिनी विपक्षी बीमा कम्पनी से अपने पति की बीमा पाॅलिसी के अनुरूप बीमा क्लेम राशि प्राप्त करने की अधिकारिणी हैं । परिवादिनी बीमा क्लेम राशि पर विपक्षी बीमा कम्पनी से परिवाद पेश करने के दिन से वसूली के दिन तक 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगी । परिवादिनी को विपक्षी बीमा कम्पनी के उपरोक्त सेवादोष से हुए आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक संताप की क्षतिपूर्ति के रूप में 7,500/-रूपये एवं परिवाद व्यय के रूप में 2,500/-रूपये पृथक से दिलवाये जाने के आदेश दिये जाते हैं ।
विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह उक्त समस्त राशि परिवादिनी के रिहायशी पते पर जरिये डी.डी./रेखांकित चैक इस आदेश के एक माह की अवधि में उपलब्ध करवायेगी ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 26.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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