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Krishn Kumar Gupta filed a consumer case on 16 Jul 2015 against Railway Manager, Union of India, Rail Mandal in the Kota Consumer Court. The case no is CC/66/2013 and the judgment uploaded on 03 Aug 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-66/2013
कृष्ण कुमार गुप्ता पुत्र स्व. श्री उग्रसेन गुप्ता आयु 66 वर्ष जाति महाजन निवासी मकान नं. 2 घ-9 दादाबाडी, कोटा 324009 (राज.) -परिवादी
बनाम
01. यूनियन आॅफ इण्डिया जर्ये मण्डल रेल प्रबंधक, पश्चिम मध्य रेल्वे, कोटा, राजस्थान।
02. श्री गिरधारी सिंह टी टी जरिये मण्डल रेल प्रबंधक, पश्चिम मध्य रेलवे कोटा (राजस्थान) -विपक्षीगण
समक्ष:-
भगवान दास ः अध्यक्ष
महावीर तंवर ः सदस्य
हेमलता भार्गव ः सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01. श्री ओम प्रकाश, शर्मा, प्रतिनिधि, परिवादी की ओर से ।
02. श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 16.07.2015
परिवादी ने विपक्षीगण रेलवे के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में उसका यह सेवा दोष बताया है कि उसने दिनांक 02.06.2012 को कोटा से जयपुर की यात्रा हेतु ट्रेन सं. 59801 के कोच संख्या एस-3 में सीट नम्बर 12 (लोवर बर्थ) टिकिट राशि 87/- रूपये अदा करके आरक्षित कराई थी। जब वह यात्रा के लिये उक्त टेªन में उक्त कोच की आरक्षित सीट पर गया तब वहाॅ अन्य पेसेन्जर (यात्री) बैठा हुआ था। उक्त कोच के टी टी विपक्षी गिरधारी सिंह से वह आरक्षित सीट खाली करवाने के लिये कहने पर भी उसे वह आरक्षित सीट उपलब्ध कराने के बजाय उसने परिवादी के साथ अभद्र व्यवहार किया एवं उस आरक्षित कोच में जबरदस्ती अन्य वेंटिग लिस्ट के यात्रियों को घुसा दिया, जिसके कारण परिवादी को जयपुर तक धक्का मुक्की के साथ खडे-खडे ही यात्रा करनी पडी, जिससे 66 वर्षीय परिवादी को असुविधा, पीडा के साथ-साथ मानसिक संताप भी हुआ। परिवादी ने विपक्षी-रेलवे को अधिवक्ता के जरिये दिनांक 02.07.12 को लिखित नोटिस भेजा जिसके प्राप्त होने के बावजूद उसे टिकिट की राशि नहीं लौटाई गई। उसने विपक्षी-रेलवे से आरक्षण की राशि 54/- रूपये, मानसिक पीडा के 10,000/- रूपये, परिवाद खर्च के 21,00/- रूपये एवं नोटिस चार्ज के 550/- रूपये दिलाने की मांग की है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित रूप से जवाब प्रस्तुत कर संक्षेप मे प्रकट किया है कि इस मंच को परिवाद सुनने का अधिकार ही नहीं है। टिकिट राशि वापसी के मामलें सुनने का अधिकार केवल रेलवे क्लेम ट्रिबनल को ही है। यह भी आपत्ति उठाई गई कि परिवादी ने विपक्षी-रेलवे को उचित तरीके से जरिये महा-प्रबंधंक पक्षकार नहीं बनाया है, इसलिये भी प्रकरण चलने योग्य नहीं है। जवाब में यह भी कहा गया कि परिवादी को उसकी आरक्षित सीट उपलब्ध नहीं कराने की कहानी मिथ्या है। परिवादी की आरक्षित सीट संख्या 12 लोवर बर्थ पर सीट नं. 13 व 14 के यात्री भी बैठने के लिये अधिकृत थे वे ही बैठे थे। गाडी रवाना होने व टिकिट चैक होने के उपरान्त वे दोनो अपनी आरक्षित सीट पर चले गये। विपक्षी टी टी ई गिरधारी ंिसह के द्वारा परिवादी के साथ अभद्र व्यवहार करने या अन्य यात्रियों को कोच में जबरदस्ती घुसाने अथवा परिवादी द्वारा खडे-खडे यात्रा करने की कहानी पूरी तरह मिथ्या है। परिवादी ने लिखित, मौखिक अथवा दूरभाष के जरिये मंडलीय कार्यालय कोटा को इस संबंध में अथवा विपक्षी टी टी ई के संबंध में कोई शिकायत ही नहीं की । परिवादी का परिवाद पूरी तरह खारिज होने योग्य है, जिसे खर्चा सहित खारिज करने की प्रार्थना की गई।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा यात्रा टिकिट, विपक्षी को प्रेषित नोटिस,पोस्टल रसीद, वेटिंग लिस्ट,ग्राम गदर समाचार पत्र आदि दस्तावेज की प्रति प्रस्तुत की। परिवादी की ओर से न्यायिक दृष्टान्त भाग 1 (1993) सी पी जे 5 (एन सी) एन के मोदी/ मै0 फेयर एयर इंजीनियर्स प्रा0लि0 और वगैरा, भाग 4 (2013) सी पी जे 155 (उत्तर प्रदेश) इंडियन रेलवे और अन्य / आंचल गर्ग प्रस्तुत किये गये है, इसके अलावा समाचार पत्र ग्राम गदर दिनांक 08.12.2012 व समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका दिनांक 22.01.15 की प्रति प्रस्तुत की गई है।
विपक्षीगण की ओर से साक्ष्य में बी एल मछया मंडल वाणिज्य प्रबंधक, कोटा एवं विपक्षी गिरधारी सिंह के शपथ-पत्र प्रस्तुत किये गये है। अन्य कोई दस्तावेजात साक्ष्य में प्रस्तुत नहीं हुये है।
हमने दोनो पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली एवं रेकार्ड का अवलोकन किया। परिवादी की ओर से बहस में तर्क प्रस्तुत किये गये है कि इस मंच को सुनवाई का अधिकार नहीं होने की आपत्ति सारहीन है क्योंकि विवाद टिकिट की राशि वापसी का नहीं होकर विपक्षी द्वारा आरक्षित सीट उपलब्ध नहीं कराने के सेवा दोष का है, इसलिये सुनने का मंच को अधिकार है। रेलवे को उचित रूप से पक्षकार नहीं बनाने की आपत्ति भी सारहीन है क्योंकि भारत संघ जरिये मंडलीय प्रबंधक कोटा को पक्षकार बनाया गया है। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात से विपक्षी- रेलवे का सेवा दोष पूरी तरह सिद्ध है। स्वयं विपक्षीगण ने जवाब में स्वीकार किया है कि उसकी आरक्षित सीट पर अन्य व्यक्ति बैठा था, इसलिये उनके जवाब से भी विपक्षीगण का सेवा दोष साबित है।
विपक्षीगण की ओर से बहस में तर्क प्रस्तुत किये गये है कि परिवादी ने आरक्षित टिकिट राशि की मांग की है इसलिये रेलवे क्लेम ट्रिबनल एक्ट के अन्र्तगत इस मंच को सुनवाई का अधिकार नही है। सी पी सी के प्रावधानों के अनुसार रेलवे को उचित रूप से पक्षकार नहीं बनाने से परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवादी विपक्षी का सेवा दोष सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा है, उसने अपनी कहानी की पुष्टि के लिये स्वयं के अलावा उस कोच में यात्रा कर रहे किसी अन्य यात्री में से किसी का भी शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं किया है। यात्रा के दौरान अथवा यात्रा समाप्ति पर तत्काल लिखित अथवा दूरभाष से सीट उपलब्ध नहीं होने की कोई शिकायत रेलवे के संबंधित अधिकारी/ उच्च अधिकारी को नहीं की, इससे कहानी असत्य सिद्ध हो जाती है उसी कोच की सीट नं. 13,14 के आरक्षित यात्रीगण का लोवर बर्थ अर्थात् सीट नं. 12 पर बैठने का अधिकार था, तथा उनका टिकिट चैक होते ही वे अपनी सीट पर चले गये, इसलिये परिवादी की कहानी स्वीकार नहीं की गई है। परिवादी अपनी कहानी को सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा है।
दोनो पक्षों के तर्को पर मनन किया।
मामले के निर्णय हेतु निम्न बिन्दु हैः-
01. क्या विपक्षीगण की आपत्ति के अनुसार इस मंच को परिवाद सुनने का अधिकार नही है?
02. क्या विपक्षी के उचित रूप से पक्षकार नहीं बनाने से परिवाद चलने योग्य नही है?
03. क्या परिवादी ने विपक्षीगण द्वारा उसे आरक्षित सीट उपलब्ध नहीं कराने का सेवा-दोष सिद्ध कर दिया यदि हाॅ तो परिवादी क्या अनुतोष पाने का अधिकारी है?
उक्त बिन्दुओ पर साक्ष्य का विवेचन विश्लेषण एवं हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
बिन्दु सख्ंया 1ः-
जहाॅ तक इस मंच को यह परिवाद सुनने का अधिकार नही होने की आपत्ति है यह सारहीन है। क्योंकि निश्चित रूप से विवाद टिकिट राशि की वापसी का नहीं होकर आरक्षित सीट उपलब्ध नहीं कराने के सेवा-दोष से संबंधित है जो इस मंच के सुनवाई के अधिकार में है।
बिन्दु संख्या 2:-
विपक्षी-रेलवे को उचित रूप से पक्षकार नहीं बनाने के कारण परिवाद चलने योग्य नहीं होने की अपत्ती भी सारहीन है। यह सही है कि विधि अनुसार विपक्षी रेलवे के विरूद्ध कार्यवाही हेतु महा प्रबंधक,क्षेत्रीय रेलवे को पक्षकार बनाना चाहिये था लेकिन रेलवे को पक्षकार बनाया गया है और तामील होकर उपस्थिति दी गई है, प्रतिरक्षा की गई अर्थात् रेलवे प्रतिरक्ष से वंचित नहीं रहा है। इयलिये यह आपत्ति सारभूत नही होकर मात्र तकनीकी है, इस कारण परिवाद को नही चलने योग्य नहीं माना जा सकता है।
बिन्दु संख्या 3ः-
परिवादी की कहानी है कि कोटा से जयपुर की यात्रा के लिये टेªन 59801 में कोच एस-3 में उसे आरक्षित सीट नं. 12 (लोवर बर्थ) पर अन्य यात्री बैठा होने से उसे जयपुर तक खडे-खडे ही यात्रा करनी पडी व विपक्षी-रेलवे आरक्षित सीट उपलब्ध कराने में विफल रहा है। इस बिन्दु पर साक्ष्य का विवेचन/विश्लेषण करने से पूर्व टेªन नं. 59801 में आरक्षित स्लीपर कोच में यात्रीगण के बैठने/ सोने की बर्थ की व्यवस्था, पर संक्षेप में प्रकाश डालना उचित है। टेªन के आरक्षित कोच में सामान्यतः 72 बर्थ/सीटे होती है जो 9 ब्लाक में विभक्त होती है तथा प्रत्येक ब्लाक में 8 सीटे होती है जिसमें से 6 सीटे आमने सामने व 2 सीटे साइड में होती है आमने सामने की 6 सीटों में 2 लोवर बर्थ, 2 मिडिल बर्थ व 2 अपर बर्थ होती है अर्थात् लोवर बर्थ के उपर मिडिल व उसके उपर अपर बर्थ होती है। मिडिल बर्थ फोल्डिंग होती है तथा दिन के समय लोवर बर्थ सीट पर उस सीट के अलावा मिडिल व अपर के यात्रियों को भी बैठने का अधिकार है। रात को तीनों सीटो पर आरक्षित यात्री अलग-अलग सोने का अधिकार रखते है।
यह विवाद रहित है कि टेªन 59801 में दिनांक 02.06.12 को कोटा से जयपुर के लिये स्लीपर कोच एस-3 में परिवादी द्वारा सीट नं. 12 (लोवर बर्थ) आरक्षित थी, जिसकी राशि उसने अदा की थी। इसलिये परिवादी को उस बर्थ परं रात्रि के समय सोने एवं यदि यात्रा दिन की थी बैठने का अधिकार था तथा दिन में उसी स्थान पर मिडल बर्थ व अपर बर्थ के आरक्षित यात्रियों को अर्थात् सीट नं. 13 व 14 के यात्रियों को भी दिन में बैठने का अधिकार था।
परिवादी को यह सिद्ध करना है कि उसकी आरक्षित सीट नं. 12 उसे उपलब्ध नहीं हुई, जिसका उसने यह कारण बताया है कि उस पर अन्य पेसेन्जर बैठे थे तथा कोच के टी टी ई गिरधारी सिंह से शिकायत करने पर भी उसने वह सीट उपलब्ध नहीं कराई, इसे सिद्ध करने के लिये परिवादी ने केवल अपना शपथ-पत्र दिया, उस ब्लाक में अथवा उस कोच में यात्रा करने वाले अन्य किसी यात्री का शपथ-पत्र इस संबंध में प्रमाण/ पुष्टि हेतु प्रस्तुत नही किया गया, जबकि स्वाभाविक तौर पर परिवादी को यदि वह सीट उपलब्ध नहीं हुई थी तब उसी ब्लाक के यात्री व कोच के अन्य आरक्षित यात्री की जानकारी में यह तथ्य आवश्य ही आया होगा, क्योंकि परिवादी के अनुसार इस संबंध में गिरधारी सिंह से कहने पर भी सीट उपलब्ध नहीं हुई, जिस पर वहाॅ विवाद की स्थिति बन गई। विपक्षी ने जवाब में स्पष्ट किया है कि परिवादी की आरक्षित सीट पर ही परिवादी ने पूरी यात्रा की, वह सीट उसे उपलब्ध हुई जिस पर अन्य यात्रियों ने यात्रा नहीं की। टिकिट चैक होने तक मिडिल व अपर बर्थ के आरक्षित सीट नं. 13 व 14 के यात्री ही कुछ समय के लिये परिवादी की आरक्षित सीट पर बैठे थे। टिकिट चैक होने पर वे अपनी सीट पर चले गये, इसकी पुष्टि स्वयं गिरधारी सिंह ने अपने शपथ-पत्र से की है। परिवादी के शपथ-पत्र का खंडन विपक्षी गिरधारी सिंह टी टी ई ने अपने शपथ-पत्र से किया है। परिवादी के लिये उस ब्लाक या कोच के अन्य यात्रियों के संबंध में जानकारी कर उनके शपथ-पत्र पेश कर विपक्षी-रेल्वे का सेवा-दोष सिद्ध करना आसान था, लेकिन उसकी ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया ।
यह भी उल्लेखन्नीय है कि परिवादीने केवल यह शिकायत बताई है कि उसकी आरक्षित सीट नं. 12 (लोवर बर्थ) पर अन्य यात्री बैठे होने से वह उस सीट का उपयोग नहीं कर सका और उसे खडे रहना पडा तथा यह सीट बैठने के साथ सोने के लिये थी । यदि एक क्षण के लिये तर्क की दृष्टि से यह माना जाय कि उसकी उस आरक्षित सीट पर कुछ समय के लिये कोई अन्य यात्री बैठा था तब परिवादी का यह कहना तक नहीं है कि इस कारण वह बर्थ का सोने के लिये उपयोग नही कर पाया। बर्थ पर एक आदमी के बैठे होने से यह किसी प्रकार भी नहीं माना जा सकता है कि उस बर्थ पर सोया नही जा सका, फिर विपक्षी का कहना तो पूरी तरह स्पष्ट है कि वह अन्य यात्री उसी ब्लाक के मिडिल व अपर बर्थ के आरक्षित यात्री थे, जो कुछ समय के लिये ही टिकिट चैक होने तक ही उस सीट पर बैठे थे, इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर आते है कि परिवादी अपनी इस कहानी को सिद्ध नहीं कर सका है कि विपक्षी-रेलवे द्वारा उक्त टेªन में आरक्षित सीट नं. 12 यात्रा के लिये उसे उपलब्ध नहीं कराई गई हो और उस पर किसी अन्य यात्री ने यात्रा की हो।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त भाग 4 (2013) सी पी जे 155 (उत्तर प्रदेश) इंडियन रेलवे और अन्य / आंचल गर्ग प्रस्तुत मामलें में सुसंगत नहीं है, इसलिये लागू नहीं होता है क्योंकि इस निर्णय में विवाद कोच मे अनधिकृत यात्रियों के घुसने व टी टी ई द्वारा उन्हे बाहर निकालने के अपने कर्तव्य में विफल होने व उसके परिणाम स्वरूप परिवादी के सामान के चोरी हो जाने के संबंध में है, जबकि प्रस्तुत मामलें में अनाधिकृत यात्रियों द्वारा घुसकर यात्रा करने का विवाद नहीं है। समाचार पत्रों की प्रतियाॅ कानूनी रूप से नजीर नहीं है।
किसी शिकायत/व्यथा/पीडा की सत्यता को परखने की यह भी स्वभाविक कसौटी है कि क्या उसकी अविलम्ब शिकायत संबंध्ाित अधिकारी अथवा उच्च अधिकारियों को की गई? परिवादी के अनुसार दिनांक 02.06.12 को टेªन में आरक्षित सीट उसे उपलब्ध नहीं हुई। लेकिन परिवादी ने परिवाद में यह कही अंकित नहीं किया कि यात्रा के दौरान अथवा यात्रा समाप्ति पर तत्काल ही संबंधित रेलवे जोन के संबंधित अधिकारी अथवा उच्च अधिकारियों को इस संबंध में उसने लिखित में कोई शिकायत की हो। सर्वप्रथम लगभग एक माह बाद उसने दिनांक 02.07.12 को अपने अधिवक्ता के जरिये इस संबंध में रेलवे को शिकायत भेजी। परिवादी की पीडा यदि सही थी तब स्वाभाविक तौर पर उसकी शिकायत तत्काल ही की जाती, लेकिन एक माह तक कोई शिकायत नही की गई तथा देरी का कोई युक्ति युक्त स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है अर्थात् इस कसौटी पर भी परिवादी की कहानी सही नही ठहराती है। ष्उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि परिवादी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि विपक्षी -रेलवे ने उसे आरक्षित सीट, यात्रा हेतु उपलब्ध कराने में कोई सेवा-दोष किया।
परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
अतः परिवादी कृष्ण कुमार गुप्ता का परिवाद, विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। खर्चा परिवाद, पक्षकारान अपना-अपना वहन करेगें।
(महावीर तंवर) (हेमलता भार्गव) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनंाक 16.07.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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