जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 140/2017 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-05.06.2017
परिवाद के निर्णय की तारीख:-12.06.2023
ऊषा पाण्डेय पत्नी श्री हरीशंकर पाण्डेय, म0नं0 02/120, विकास खण्ड गोमती नगर, लखनऊ। ...........परिवादिनी।
बनाम
1. डी0आर0एम0 11 नार्दन रेलवे बिल्डिंग, महात्मागांधी मार्ग, निकट एल0आई0सी0 आफिस, हजरतगंज, लखनऊ-226001
2. डी0आर0एम0 नार्दन रेलवे कालोनी पहाड़गज नई दिल्ली-110002 ।
3. डी0आर0एम0 नार्थ सेन्ट्रल रेलवे सुवेदारगंज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।
...........विपक्षीगण।
परिवादिनी के अधिवक्ता का नाम:-श्री संदीप कुमार पाण्डेय।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:- श्रीमती संध्या दुबे।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद इस आशय से दिया गया है कि चोरी की घटना के संबंध में एवं मानसिक, शारीरिक नुकसान हेतु कम से कम 5,00,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ऊषा पाण्डेय पत्नी श्री हरीशंकर पाण्डेय निवासी 02/120, विकास खण्ड गोमती नगर, लखनऊ की है और एच0ए0एल0 लखनऊ से 2015 में सेवानिवृत्त हुई है। परिवादिनी का कथन है कि परिवादिनी एवं उसके पति तथा घर में रहने वाला लड़का सहित सभी तीनों लोग नोएडा अपने बेटे के पास गये थे और लखनऊ लौटने के लिये शताब्दी एक्सप्रेस से (12004 ट्रेन नं0, पीएनआर नं0 2802576158 एवं 280297658 दिनॉंक 06.09.2016 को गाजियाबाद रेलवे स्टेशन से कोच संख्या सी-10 में सीट नम्बर 11,12, एवं 13 पहले से ही रिजर्व थी।
3. सुबह लगभग 6.48 बजे शताब्दी में अपने कोच सी-10 में पहले मैं चढ़ी थी, इसी बीच कोच के अन्दर ही कुछ लोगों ने भीड़ बनाकर गैलरी में हमें दोनों ओर से घेर लिया और धक्का-मुक्की करते हुए भीड़ बनाकर मेरा पर्श जो कन्धे पर लटकाए हुए कपड़े के बैग के अन्दर रखा हुआ था, उसे निकालकर सभी लुटेरे फरार हो गये। चलती ट्रेन में ही टी0टी0ई0 ने जी0आर0पी0 पुलिस बुलाया और उन्होंने घटना की पूरी जानकारी लेकर सब छानबीन करते हुए चलती ट्रेन में ही एफ0आई0आर0 पंजीकृत किया, और जॉंच का आश्वासन दिया, जो बाद में पत्र संख्या वाचक-अभि0स्था0 (निल-142/16) दिनॉंक 08 सितम्बर 2016 पुलिस अधीक्षक, रेलवे द्वारा हमें सूचना मिली कि लूट की जॉंच करवायी जा रही है, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है।
4. हमारे पर्स में 2,00,000.00 रूपये से अधिक की ज्वैलरी थी, जो निम्न प्रकार से थी-
कंगन 25 ग्राम 02 पीस
चेन 14 ग्राम 01 पीस
झुमकी 06 ग्राम 01 जोड़ी
अंगूठी 04 ग्राम 01 पीस
पेन्डुलम 06 ग्राम 01 पीस
मंगल सूत्र 10 ग्राम 01 पीस
टाप्स 20 ग्राम 05 जोड़ी
कनौती 05 ग्राम 02 पीस
पॉंच छोटी बाली 10 ग्राम 05 जोड़ी
01 सिल्वर रिंग व्हाइट नग सहित 500.00 रूपये
01 सिल्वर की रिंग (एसीपीएल सिल्वर) 2000.00 रूपये
लगभग 100 ग्राम गोल्ड 2,50,000.00 रूपये
कम्पलीट ज्वैलरी लगभग 2.50 लाख की थी। इसके अतिरिक्त ए0टी0एम0 कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेन्स, बैंक लॉकर की चाभी, घर की चाभियॉं और बैंक के चेकबुक, पासबुक और करीब 10,000.00 रूपये नकदी लगभग भी उस बैग में थी।
5. इस लूट के उपरान्त भी मुझे अनेकों प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट उठाने पड़े-जैसे हमारी पेंशन की किश्त पी0एन0बी0 के एच0ए0एल0 ब्रान्च में हमार एकाउन्ट में आती थी, परन्तु पासबुक, चेकबुक और ए0टी0एम0 की लूट हो जाने से हमें अपना बैंक एकाउन्ट बंद कराना पड़ा और नया एकाउन्ट खुलवाकर पुन: उसमें पेशन मंगाने में हमे काफी परेशानी उठानी पड़ी। इस प्रकार एल0आई0सी0 की एक पेशन/किश्त बंगलौर से आती थी, जो एकाउन्ट बंद होने से वह भी बहुत मुश्किल से नया एकाउन्ट में चालू हो सका।
6. पुराना एकाउन्ट बंद हो जाने से मेडी एसिस्ट कम्पनी बंगलौर से हमारे मेडिकल का क्लेम ही आना बंद हो गया था। ट्रेन के अन्दर हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे की थी, परन्तु उसमें बहुत चूक हुई और हमारे साथ ऐसी घटना घटी जिससे हमें बहुत आर्थिक, मानसिक व शारीरिक कष्ट हुआ।
7. विपक्षी संख्या 02 ने उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि परिवादिनी गाड़ी संख्या 12004 में दिनॉंक 06.09.2016 को कोच नम्बर सी-10 में सीट नम्बर 11, 12 व 13 पर यात्रा कर रही थी। परिवादिनी अपने आभूषण व अन्य सामान लेकर यात्रा कर रही थी, उसकी कोई भी प्रमाणित जानकारी नहीं है। परिवादिनी द्वारा सामान को बुक नहीं कराया गया था। ट्रेन के अन्दर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे की थी, जिसमें रेलवे से चूक हुई, का खण्डन किया जाता है। चॅूंकि गाजियाबाद से लूट की घटना हुई थी, अत: उनसे संबंधित नहीं है।
8. विपक्षी संख्या 03 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि चोरी की घटना ट्रेन के अन्दर घटित हुई या प्लेटफार्म पर परिवादिनी स्वयं मं स्पष्ट नहीं है।परिवादिनी के अनुसार ट्रेन में चढ़ते समय घटना घटित हुई जिसकी जानकारी उन्हें ट्रेन के चलने के कुछ देर बाद हुई। परिवादिनी ने देखा कि उनका पर्स के अन्दर रखा पर्स नहीं है। पर्स के अन्दर रखा पर्स घर से स्टेशन चलते वक्त रास्ते में गायब हुआ था या कहीं और इस बात पर परिवादिनी स्वयं स्पष्ट नहीं है। परिवादिनी रेल प्रशासन से मुआवजा वसूलने के उद्देश्य से घटना को काफी बढ़ा चढ़ा कर बता रही है ।
9. चेकिंग कर्मचारी के कथनानुसार कोच चेक करते हुए जब उक्त महिला के पास पहुँचा तो उन्होंने अपने पर्स के गायब होने की जानकारी दी, उन्हें सांत्वना देने के साथ ही तुरन्त कोच में चलने वाले जीआरपी स्टाफ को बुलया, जीआरपी ने एफ0आई0आर0 दर्ज करते हुए अपनी कार्यवाही पूर्ण की जिसकी पुष्टि स्वयं परिवादिनी ने परिवाद पत्र में की है। परिवादिनी कोई भी अनुतोष रेल प्रशासन से प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।
10. परिवादिनी ने उत्तर पत्र के खण्डन में प्रत्युत्तर दाखिल किया जिसमें परिवादिनी ने परिवाद पत्र के कथनों को ही स्वीकार किया है।
11. इस आयोग द्वारा पारित दिनॉंक-12.06.2019 के आदेश को माननीय राज्य आयोग द्वारा अपने आदेश दिनॉंक-14.02.2022 द्वारा निरस्त किया गया है। माननीय राज्य आयोग के आदेश दिनॉंक-14.02.2022 पर उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं को पुन: सुनकर साक्ष्य का पूर्ण अवसर देते हुए सुना गया।
12. परिवादिनी द्वारा अपने कथन के समर्थन में परिवाद पत्र की प्रति, टिकट, पुलिस अधीक्षक रेलवे का पत्र, बैंक को प्रेषित पत्र, खाता बन्द करने के संबंध में सूचना, भुगतान को संबंधित खाते में स्थानान्तरित किये जाने के संबंध में पत्र, अखबार की कटिंग आदि दाखिल किया है, तथा मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र दाखिल किया है।
13. मैने उभयपक्ष के अधिवक्ता के तर्को को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
14. विपक्षीगण द्वारा सर्वप्रथम यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादिनी लखनऊ की रहने वाली है और परिवाद पत्र के अनुसार गाजियाबाद में घटना हुई है, अत: इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं है।
15. परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इस आयोग को भी क्षेत्राधिकार है, क्योंकि परिवादिनी लखनऊ में रहती है, इसलिए इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार लखनऊ आयोग को है। प्रस्तुत प्रकरण की घटना दिनॉंक 06.09.2016 की है, अत: वर्तमान कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट का यह प्रकरण नहीं है। अत: कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत इसका विचारण किया जाएगा। पुराने एक्ट की धारा-12 में यह उल्लिखित किया गया है कि किस जिला आयोग का क्षेत्राधिकार होगा। धारा-12 इस प्रकार है:-
Manner in which complaint shall be made-(1) A complaint in relation to any goods sold or delivered or agreed to be sold or delivered or any service provided or agreed to be provided may be filed with a District Forum By
16. उल्लेखनीय है कि परिवाद पत्र के अवलोकन से विदित है कि परिवादिनी द्वारा गाजियाबाद से टिकट लिया गया और रेलवे से उसको लखनऊ आना था। इसलिए परिवादिनी द्वारा लखनऊ तक ही टिकट लिया गया। इसका अभ्रिप्राय यह है कि विपक्षी रेलवे को जो सेवा देनी थी वह गाजियाबाद से लखनऊ तक देनी थी। सर्विस प्रोवाइडर जहॉं हो वहॉं तक उसका क्षेत्राधिकार है। अत: लखनऊ आयोग को मेरे विचार से सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
17. उभयपक्ष को यह स्वीकृत है कि दिनॉंक 06.09.2016 को जैसा कि परिवादिनी का कथानक है कि गाजियाबाद से वह लखनऊ यात्रा करने के लिये शताब्दी के कोच संख्या सी-10 में सवार हुई और उसे लखनऊ आना था। इस दौरान उसके पहले भीड़ लगी हुई थी और वह जैसे ही ट्रेन में चढ़ी और उसे लगा कि जो भीड़ रास्ते में खड़ी थी उनके द्वारा उसका बैग लेकर भाग जाना कहा गया। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत प्रकरण में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। उसके परिशीलन से विदित है कि दिनॉंक 06.09.2016 को दो लाख की ज्वैलरी, ए0टी0एम0 कार्ड, एवं घर की चाबियॉं, चेकबुक आदि थी व 4000.00 रूपये भी बैग में थी, जो चोरी हो गये।
18. प्रथम सूचना रिपोर्ट में 2,00,000.00 रूपये की ज्वैलरी और परिवाद पत्र में 2,50,000.00 रूपये की ज्वैलरी का तस्करा किया गया है, और परिवाद पत्र में उसकी क्या-क्या ज्वैलरी गायब हुई उसका विवरण एवं उसकी कीमत भी नहीं लिखी गयी है। यह तथ्य सही है कि एफ0आई0आर0 में समस्त तथ्यों का समावेश होना आवश्यक है। इतनी बात जरूर परिलक्षित होती है कि उसने अपनी सामग्री की चोरी के संबंध में लिस्ट में होना दर्शाया गया है और परिवाद पत्र दाखिल करने में केवल 12 आइटम का होना दर्शाया गया है। अर्थात परिवाद पत्र में उल्लिखित सामान जो कि आभूषण थी जो गायब हुए जिसमें 100 ग्राम गोल्ड होने का तस्करा किया गया है। यह उपरोक्त सामान जिसका विवरण परिवाद पत्र में दर्शाया गया है वह कहॉं से प्राप्त हुआ, इसका कोई भी तस्करा परिवाद पत्र में नहीं किया गया है।
19. परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र में यह उल्लिखित नहीं किया गया है कि यह सामान इनका स्वयं का क्रय किया हुआ था अथवा उपहार का था। अगर यह स्वयं का क्रय किया हुआ था तो उसकी रसीद होनी चाहिए। अगर दहेज में मिला है तो इसे भी परिवाद पत्र में उल्लिखित नहीं किया गया है और न ही साक्ष्य में उल्लेख किया गया है। परिवादिनी द्वारा शपथ पत्र अथवा रिप्लीकेशन में भी कहीं उल्लेख नहीं किया गया। परिवादिनी द्वारा मात्र बैग चोरी किये जाने के संबंध में शपथ पत्र दिया गया अर्थात इस साक्ष्य द्वारा अपने परिवाद पत्र के कथनों में दर्शित 12 आभूषण चोरी हुए इसका कहीं तस्करा नहीं किया गया। अत: इससे यह साबित नहीं हो पा रहा है कि वास्तव में वह सामान जो ज्वैलरी थी वह उनका था, अन्यथा शपथ पत्र में तस्करा किया जाता।
20. परिवाद पत्र के परिशीलन से विदित है कि परिवादिनी स्वयं एच0एल0 से सेवानिवृत्त कर्मचारी है तथा एक पढ़ी लिखी महिला है, जिसने एच0एल0 जैसे संस्थान में कार्य किया है। वर्तमान परिवेश में जैसा कि उसका कथानक है कि उसने अपनी समस्त ज्वैलरी साथ लेकर जा रही थी यह सामान्यत: कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति नहीं करता है। एक अलग परिस्थिति हो सकती है जब कि किसी पारिवारिक वैवाहित समारोह में जा रही हो और ऐसा भी कथानक नहीं है, मात्र अपने पुत्र से मिलने हेतु जा रही थी और पुत्र से मिलने जाने में अपनी पूरी ज्वैलरी लेकर ट्रेन में यात्रा करें, बड़ा अप्राकृतिक एवं सामान्य सा प्रतीत होता है और आजकल जिस तरीके से चोरी की घटनाऍं घटती है उस तरीके से शादी विवाह में आजकल सामान्यत: यह देखने को मिलता है कि महिलाऍं आर्टीफीशियल ज्वैलरी पहनकर जाती हैा।
21. अत: शपथ पत्र द्वारा साबित नहीं किया गया कि वाद पत्र में दर्शित आभूषण चोरी हुए थे यह परिवादिनी साबित करने में सफल नहीं रही है। इनके द्वारा शपथ पत्र दाखिल किया गया है, कुछ रसीदे दाखिल की गयी है वह अस्पष्ट हैं, अगर वह रसीदें मान भी ली जाए जैसा शपथ पत्र में कहा है तो किसी सामग्री की चोरी के संबंध में उसका तस्करा नहीं किया गया है। अत: मेरे विचार से परिवादिनी साबित करने में असफल रही है कि उसकी ज्वैलरी जैसा परिवाद पत्र में अभिकथित किया गया है चोरी होना साबित नहीं होता है।
22. यह तथ्य सही है कि ट्रेन में चोरी हुई है। क्योंकि इसमें पुलिस अधीक्षक, आगरा का एक पत्र भी लगा हुआ हे जिसमें यह उल्लिखत किया गया है कि घटना गाजियाबाद में होना पाया गया है, अत: चोरी तो हुई है। कोई भी व्यक्ति जब वह ट्रेन में यात्रा करता है तो उसकी सुरक्षा हेतु रेलवे द्वारा टिकट में पैसा जोड लिया जाता है और शताब्दी जैसी ट्रेन एक महत्वपूर्ण ट्रेन की श्रेणी में आती रही है और आज भी आती है। अत: चोरी की वारदात से कैसे बचा जाए यह रेलवे का कर्तव्य व जिम्मेदारी है चाहे वह जी0आर0पी0 के तहत करे या आर0पी0एफ0 के तहत।
23. चॅूंकि रेलवे ने टिकट दिया है तो सुरक्षा का यह दायित्व रेलवे के ऊपर होता है। जैसा कि परिवादिनी द्वारा कहा गया कि उसका सामान चोरी हुआ है। 4,000.00 रूपये एफ0आई0आर0 में दर्ज कराया गया है और परिवाद पत्र में उसने 10,000.00 रूपये का तस्करा किया गया है। यह भिन्नता है। परिवादिनी के शपथ पत्र में भी उल्लिखित नहीं है कि पैसा गायब हुआ है। अत: परिवादिनी को 4,000.00 रूपये दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। परिवादिनी को ए0टी0एम0 के बिना लेन-देन में दिक्कत आयी होगी अत: मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के रूप में 1,00,000.00 रूपये दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी को 4,000.00 (चार हजार रूपया मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय की तिथि से 45 दिन के अन्दर अदा करेगें। परिवादिनी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट व वाद व्यय के लिये मुबलिग 1,00,000.00 (एक लाख रूपया मात्र) भी अदा करेंगे। यदि निर्धारित अवधि में उपरोक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-12.06.2023