Uttar Pradesh

StateCommission

A/2734/2016

Amresh Kumar - Complainant(s)

Versus

Railway Board - Opp.Party(s)

P.K. Saxena

10 Jul 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2734/2016
(Arisen out of Order Dated 06/01/2016 in Case No. C/759/2011 of District Lucknow-II)
 
1. Amresh Kumar
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Railway Board
New Delhi
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 10 Jul 2017
Final Order / Judgement

सुरक्षि‍त

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

 

                      अपील संख्‍या 2734/2016

 

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्धितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्‍या-759/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 01-01-2016 के विरूद्ध)

 

अमरीश कुमार पुत्र स्‍व0 श्री आर०एन० सक्‍सेना, फैजाबाद रोड लखनऊ।

 अपीलार्थी/परिवादी

 

बनाम

1. चेयरमैन, रेलवे बोर्ड रेल भवन, न्‍यू दिल्‍ली।

2. डिवीजनल रेलवे मैनेजर  वेस्‍ट  सेन्‍ट्रल रेवलेज भोपाल डिवीजन  भोपाल

  भोपाल 462001                                       

                                      प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

 माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :विद्वान अधिवक्‍ता, श्री पुनीत कुमार सक्‍सेना।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्‍ता, श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्‍तव

 

दिनांक: 11-08-2017  

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

                              निर्णय

 

परिवाद संख्‍या 759 सन् 2011 अमरीश कुमार बनाम चेयरमैन, इण्डियन रेलवेज रेल भवन व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, लखनऊ द्धितीय द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 01-01-2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्‍त  परिवाद  के परिवादी अमरीश कुमार की ओर से धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

    

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आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश में जिला फोरम ने कहा है कि‍  अपीलार्थी/परिवादी अपने परिवाद पत्र का कथन साबित करने में असफल रहा है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है।

     अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री पुनीत कुमार सक्‍सेना उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री प्रेम प्रकाश श्रीवास्‍तव उपस्थित आए।

     मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

     अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त और सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत कि‍या है कि‍ उसने दिनांक 16-02-2011  को पी.एन.आर. नं० 453-8770138 पर मंचरियाल  से बादशाहनगर  की यात्रा के लिए द्धितीय ए0सी0 बर्थ नं० 43 का टिकट राप्‍तीसागर एक्‍सप्रेस का निकलवाया और उक्‍त टिकट से उसने दिनांक 2/3-05-2011 को ट्रेन यात्रा की। यात्रा के दौरान दिनांक 03-05-2011 को  1.20  ए०एम० पर उसकी बर्थ के नीचे अनाधिकृत व्‍यक्ति को रेलवे स्‍टाफ द्वारा सुलाया गया और अनाधिकृत व्‍यक्तियों को कोच में घुसाया गया जिससे उसे काफी असुविधा हुयी और वह सो नहीं सका तथा उसकी नींद में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न हुआ।  अत: उसने अपना शिकायती पत्र चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को भेजा परन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं हुयी तब विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत कि‍या है और क्षतिपूर्ति की मांग की है।

     जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत कर परिवाद पत्र के कथन का खण्‍डन किया गया है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि‍ चेयरमैन रेलवे बोर्ड को गलत तौर पर पक्षकार

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बनाया गया है और  विपक्षी संख्‍या 2 डिवीजनल रेलवे मैनेजर सेन्‍ट्रल रेलवे भोपाल को  बनाया गया है जब‍कि‍ सेन्‍ट्रल रेवले का मुख्‍यालय बाम्‍बे में स्थित है। अत: विपक्षी संख्‍या 2 का सही पता परिवाद में अं‍कि‍त नहीं है। इसके साथ ही लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि‍ भारतीय रेलवे को विभिन्‍न जोनों में विभाजित कि‍या गया है जिसका मुखिया महाप्रबन्‍धक होता है। अत: संबंधित जोन इलाहाबाद के महाप्रबन्‍धक को पक्षकार न बनाए जाने के कारण परिवाद दोषपूर्ण है। इसके साथ ही लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि‍ अपीलाथी/परिवादी की शिकायत पर कार्यवाही करते हुये संबंधित कार्यालय को और परिवादी को सूचना पत्र दिनांक 20-07-2011 के माध्‍यम से दी गयी है। रेल प्रशासन द्वारा कि‍सी अनाधिकृत टिकटधारक व्‍यक्ति को ए०सी० में यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जाती है और न ही प्रवेश करने दिया जाता है।

     जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के आधार पर यह निष्‍कर्ष निकाला है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी परिवाद पत्र में कथित शिकायत साबित करने में असफल रहा है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद निरस्‍त कर दिया है।

  अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का कथन है कि‍ जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में अंकि‍त शिकायत उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के आधार पर प्रमाणित है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त कर परिवाद स्‍वीकार कि‍या जाए और परिवादी को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाए।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि‍ परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्‍तुत कि‍या गया है। जिला फोरम का निर्णय सही है।

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मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार कि‍या है।

     अपीलार्थी ने अपना जर्नी कम रिजर्वेशन टिकट प्रस्‍तुत कि‍या है जिससे यह प्रमाणित है कि‍ उसने दिनांक 02-05-2011 को मंचरियाल से बादशाहनगर की यात्रा कथित ट्रेन से की है और उक्‍त ट्रेन की यात्रा हेतु टिकट प्राप्‍त कि‍या है। ट्रेन से उसकी यात्रा को प्रत्‍यर्थी/विक्षीगण ने नकारा नहीं है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी ने भारतीय रेलवे से प्रश्‍नगत यात्रा द्धितीय ए०सी० का जर्नी कम रिजर्वेशन टिकट लेकर कि‍या है। अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र एवं शपथपत्र में इस बात का उल्‍लेख कि‍या है कि‍ यात्रा के दौरान अनाधिकृत तौर पर ए०सी० कोच में लोगों को प्रवेश दिया गया जिससे उसे असुविधा हुयी और नींद में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न हुआ। विपक्षीगण की ओर से यह बात स्‍वीकार की गयी है कि‍ आरक्षित कोच में अनाधिकृत व्‍यक्ति व प्रतिक्षासूची टिकटधारक व्‍यक्ति को यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती है। परन्‍तु परिवाद पत्र के कथन एवं परिवादी के शपथपत्र से यह स्‍पष्‍ट है कि‍ अनाधिकृत व्‍यक्ति को उसके आरक्षित कोच में प्रवेश रेल कनडेक्‍टर द्वारा दिया गया था। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से संबंधित रेल कोच और अटेडेण्‍ट का शपथपत्र प्रस्‍तुत कर इस बात का खण्‍डन नहीं कि‍या गया है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी के कोच में अनाधिकृत व्‍यक्ति को प्रवेश दिया गया था। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से डिवीजनल मैनेजर का शपथपत्र प्रस्‍तुत कि‍या गया है जिन्‍होंने सशपथ परिवाद पत्र की धारा 1 ता 10 का समर्थन कि‍या है। परन्‍तु शपथपत्र पत्र में इस बात को स्‍पष्‍ट रूप से स्‍पष्‍ट नहीं कहा गया है कि‍ परिवादी के कोच में अनाधिकृत व्‍यक्ति को प्रवेश नहीं दिया गया था। अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुये अपीलार्थी/परिवादी के कथन पर विश्‍वास न करने हेतु उचित आधार नहीं है। अपीलार्थी/परिवादी एक

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बोनाफाइट यात्री है। बोनाफाइट यात्री  द्वारा झूठी शिकायत कि‍ये जाने का कोई कारण नहीं दिखता है। अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने

के उपरान्‍त मै इस मत का हॅूं कि‍ यह मानने हेतु उचित आधार है कि‍ प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 के अधीनस्‍थ कर्मचारियों द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के आरक्षित कोच में अनाधिकृत व्‍यक्तियों को गलत ढंग से प्रवेश दिया गया है जिससे अपीलार्थी/परिवादी जो बोनाफाइट यात्री है, को असुविधा हुयी है और उसकी सेवा में कमी हुई है।

     उभय पक्ष के अभिकथन एवं सम्‍पूर्ण तथ्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हॅूं कि‍ जिला फोरम ने जो यह निष्‍कर्ष निकाला है कि‍ अपीलार्थी/परिवादी परिवाद में कथित शिकायत साबित करने में असफल रहा है, वह उचित नहीं है। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन में जो पक्षकारों का कुसंयोजन बताया गया है उसके आधार पर परिवाद निरस्‍त नहीं किया जा सकता है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद आवश्‍यक पक्षकार न बनाए जाने के आधार पर भी निरस्‍त नहीं किया जा सकता है क्‍योंकि प्रत्‍यर्थी संख्‍या 1 चेयरमैन, रेलवे बोर्ड हैं जो अपने अधीनस्‍थ कर्मचारियों की  त्रुटियों हेतु Vicarious liability के सिद्धान्‍त पर उत्‍तरदायी हैं।

     उपरोक्‍त विवेचना एवं ऊपर निकाले  गये निष्‍कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश अपास्‍त कर अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किया जाना उचित है। सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुये मैं इस मत का हॅूं कि अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण से 10,000/- रू० क्षतिपूर्ति शारीरिक और मानसिक कष्‍ट हेतु दिलाया जाना उचित है। इसके साथ ही मेरी राय में अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण से 10,000/- रू० वाद व्‍यय भी दिलाया जाना उचित है।

    

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उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षे‍पि‍त निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुये अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद स्‍वीकार कि‍या जाता है तथा प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे अपीलार्थी/परिवादी को 10,000/- रू० शारीरिक और मानसिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं 10,000/- रू० वाद व्‍यय प्रदान करें। प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण उपरोक्‍त धनराशि दो माह के अन्‍दर अपीलार्थी/परिवादी को अदा करें। सम्‍पूर्ण धनराशि इस अवधि में अदा न किये जाने पर इस निर्णय की तिथि से अदायगी की तिथि तक सम्‍पूर्ण धनराशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज भी देने हेतु प्रत्‍यर्थीगण उत्‍तरदायी होंगे।

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

अध्‍यक्ष

            

कृष्‍णा, आशु0

कोर्ट 01

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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