(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील सं0 :-1231/2011
(जिला उपभोक्ता आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0-197/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10/05/2011 के विरूद्ध)
The New India Assurance Company Limited, through the Deputy Manager, Legal Cell 94, Mahatma Gandhi Marg, Hazratganj, Lucknow.
- Appellant
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Sri Rahul Garg, Son of Sri Virendra Kumar Garg Resident of 2/184, Angoori Sadan, Bela Marg, Vishnupuri District Aligarh.
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री जे0एन0 मिश्रा
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री विकास अग्रवाल
दिनांक:- 30.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0-197/2009 श्री राहुल गर्ग बनाम शाखा प्रबंधक दि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10/05/2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर सभी पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए मोटर साईकिल की बीमित राशि 06 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अपनी मोटर साईकिल यू0पी0 81 एम-7756 का बीमा कराया था। परिवादी की उक्त मोटर साईकिल दिनांक 07.06.2004 की रात्रि मे चोरी हो गयी, जिसकी रिपोर्ट थाना क्वार्सी में दिनांक 22.06.2004 को दर्ज करायी गयी तथा बीमा कम्पनी के समक्ष दिनांक 29.06.2004 को क्लेम प्रस्तुत किया गया, जो दिनांक 22.03.2006 को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि मोटर साईकिल की दूसरी चाबी उपलब्ध नहीं करायी गयी, जबकि दूसरी चाबी थाने में जमा होना बताया गया था। अत: उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- बीमा कम्पनी का कथन है कि परिवादी ने दिनांक 07.06.2004 को मोटर साईकिल चोरी होना बताया है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 24.06.2004 यानि 17 दिन बाद दर्ज करायी गयी है। बीमा कम्पनी को सूचना देरी से दी गयी है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि पुलिस ने मोटर साईकिल का चोरी होना स्वीकार किया है और इसके बाद अंतिम रिपोर्ट लगायी, इसलिए मोटर साईकिल की चोरी होने के कारण क्षतिपूर्ति की राशि देय है।
- इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि स्वयं परिवाद पत्र में यह उल्लेख किया गया कि चोरी की घटना दिनांक 07.06.2004 को हुई है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 22.06.2004 को दर्ज करायी गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि क्लेम निरस्त करते समय केवल यह आधार लिया गया है कि मोटर साईकिल की दूसरी चाबी उपलब्ध नहीं करायी गयी, इसलिए अन्य कोई आधार उपभोक्ता परिवाद के संबंध में नहीं लिया जा सकता।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता की बहस सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए यह विनिश्चायक बिन्दु उत्पन्न होता है कि वाहन चोरी की रिपोर्ट देरी से लिखाने का क्या परिणाम है और इस आधार पर बीमा क्लेम निरस्त होने योग्य है या नहीं और निरस्तीकरण आदेश में इस तथ्य का उल्लेख न करने का क्या प्रभाव है?
- स्वयं परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में स्वीकार किया है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट 17 दिन बाद दर्ज करायी गयी है। परिवाद पत्र में देरी से रिपोर्ट लिखाये जाने का कोई आधार अंकित नहीं किया गया है। परिवाद पत्र के पैरा सं0 4 में केवल यह लिखा गया है कि मोटर साईकिल चोरी होने के बाद क्वार्सी थाने में अपराध सं0 250 सन 2004 अन्तर्गत धारा 379 आई0पी0सी0 दिनांक 22.06.2004 को दर्ज कराया गया है, परंतु इस देरी का कोई उल्लेख परिवाद पत्र में नहीं किया गया है। इसी प्रकार प्रथम सूचना रिपोर्ट जिस तहरीर के आधार पर दर्ज करायी गयी है, उस तहरीर में भी देरी से सूचना देने का कोई तथ्य अंकित नहीं है, जबकि पॉलिसी की शर्त के अनुसार मोटर साईकिल चोरी होने के पश्चात तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराया जाना बाध्यकारी है। ताकि चोरी किये गये वाहन की खोज पुलिस द्वारा की जा सके। प्रस्तुत केस में परिवादी द्वारा चोरी गये वाहन की रिपोर्ट त्वरित रूप से दर्ज नहीं करायी गयी, जिसका परिणाम यह हुआ कि बीमित वाहन को पुलिस द्वारा खोजा नहीं जा सका, इसलिए परिवादी की त्रुटि के लिए बीमा कम्पनी उत्तरदायी नहीं है। बीमित वाहन की चोरी होने के पश्चात शीघ्रता से पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराना पॉलिसी की आवश्यक शर्त है। यद्यपि बीमा कम्पनी को देरी से सूचना देने का कोई विपरीत परिणाम नहीं होता, परंतु रिपोर्ट दर्ज कराया जाना एक आज्ञात्मक प्रावधान है और यदि पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं दर्ज की जाती तब इसका स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए। प्रस्तुत केस में देरी का कोई स्पष्टीकरण मौजूद नहीं है, इसलिए बीमा क्लेम निरस्त करने वाले पत्र में इसका उल्लेख न होने के बावजूद परिवादी बीमा क्लेम प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है, इसलिए अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2