राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१७४१/१९९६
(जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-४४२/१९९३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-१९९६ के विरूद्ध)
सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, सर्वोदय नगर ब्रान्च (यू.पी.एस.आर.टी.सी. ऐक्स्टेन्शन काउण्टर, रावतपुर) कानपुर द्वारा मैनेजर।
.............. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
रघुराज सिंह पत्र श्री बी0 सिंह निवासी बी-९, रोडवेज आफीसर्स कालोनी, रावतपुर, कानपुर।
............... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री जफर अजीज विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ३०-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-४४२/१९९३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-१९९६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
पत्रावली के अवलोकन से यह विदित होता है कि अपीलार्थी द्वारा इस मामले में प्रश्नगत परिवाद एवं लिखित कथन की प्रमाणित प्रतिलिपि अपील के साथ दाखिल नहीं की हैं। संक्षेप में तथ्य, जैसा कि प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से विदित होता है, इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार दिनांक २६-०३-१९९३ को जी.आई.सी. म्यूचुअल फण्ड/जी.आई.सी. ग्रोथ प्लस के १००० यूनिट क्रय करने हेतु १०,०००/- रू० स्टेट बैंक आफ इण्डिया माल रोड, कानपुर की शाखा का चेक नं0-ई.एम.जी./एम./क्यू. ०४४५८५९ दिनांक २५-०३-१९९३ भुगतान हेतु अपीलार्थी के पास भेजा गया था। प्रश्नगत चेक जारी करते समय अपीलार्थी बैंक में
-२-
प्रत्यर्थी/परिवादी के खाता नं0-५५२० में लगभग १०,४००/- रू० अवशेष था। दिनांक ३०-०३-१९९३ को प्रत्यर्थी/परिवादी ने १५००/- रू० और जमा किया। इस प्रकार दिनांक ३१-०३-१९९३ को प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में कुल मिलाकर १२,०००/- रू० की धनराशि अवशेष थी। दिनांक ३१-०३-१९९३ को जब प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भेजा गया चेक अपीलार्थी बैंक में क्लीयरेंश हेतु प्राप्त हुआ तब अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही एवं असावधानीपूर्वक इस टिप्पणी के साथ प्रत्यर्थी के चेक को वापस कर दिया कि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में इतना पैसा नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार अपीलार्थी बैंक की इस लापरवाही के कारण उसे १००० यूनिट का आबंटन नहीं हुआ। परिवादी ने आय कर के अन्तर्गत छूट प्राप्त करने हेतु उपरोक्ट यूनिट क्रय करने हेतु आवेदन किया था, किन्तु यूनिट प्राप्त न होने पर प्रत्यर्थी/परिवादी को आय कर की छूट नहीं मिल सकी, जिससे २,०००/- रू० आय कर छूट की उसे हानि हुई तथा आय कर विवरणी भी गलत हो गयी। अत: ९५,०००/- रू० क्षतिपूर्ति दिलाए जाने की प्रार्थना के साथ परिवाद योजित किया गया।
जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों में अपीलार्थी बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया कि दिनांक ३१-०३-१९९३ को परिवादी के खाते में १०,३६९.३४ रू० शेष होना चाहिए था, किन्तु ९,३६९.३४ रू० शेष होना अंकित किया गया, जो बाद में सुधारकर ठीक कर दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक १९-०५-१९९३ को अपीलार्थी बैंक में आ कर १०,०००/- रू० निकाल लिया। अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की तरफ से जानबूझकर कोई लापरवाही नहीं की गयी।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी के परिवादी को स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को आदेशित किया कि वह परिवादी को ५,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति, ५,०००/- रू० बतौर शारीरिक एवं मानसिक क्षति एवं १,०००/- रू० बतौर वाद व्यय इस आदेश के ३० के अन्दर अदा करे।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से तर्क करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत:
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हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज के तर्क सुने। पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर कोई गलती नहीं की गयी। भूलवश प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते की धनराशि में जो त्रुटि हुई उसका निराकरण भी कर दिया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में दिनांक ३१-०३-१९९३ को कुल १०,३६९.३४ रू० शेष होना चाहिए था, किन्तु त्रुटिवश ९,३६९.३४ रू० अंकित हो जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जारी किए गये १०,०००/- रू० के चेक का भुगतान नहीं हो पाया। बाद में त्रुटि का निवारण कर दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक १९-०५-१९९३ को १०,०००/- रू० अपने इस खाते से निकाल भी लिये। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई क्षति नहीं हुई।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक २६-०३-१९९३ को जी.आई.सी. म्यूचुअल फण्ड/जी.आई.सी. ग्रोथ प्लस के १००० यूनिट क्रय करने हेतु १०,०००/- रू० अपीलार्थी बैंक में स्थित अपने खाते से निकालने हेतु चेक प्रेषित किया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला मंच के समक्ष अपने कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया तथा आय कर विवरणी भी प्रस्तुत की। विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में यह उल्लिखित किया है कि आय कर विवरणी से यह प्रतीत होता है कि परिवादी उपरोक्त यूनिट खरीद कर आय कर में २०००/- रू० की छूट प्राप्त करना चाहता था। अपीलार्थी बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही के फलस्वरूप परिवादी को यह छूट प्राप्त नहीं हो सकी। हमारे विचार से उपभोक्ता के खाते में पर्याप्त धनराशि होने के बाबजूद उसके चेक का भुगतान न किया जाना निश्चित रूप से सेवा में त्रुटि माना जायेगा। ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि, अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है, त्रुटिपूर्ण नहीं माना जा सकता।
जहॉं तक इस सन्दर्भ में क्षतिपूर्ति की अदायगी का प्रश्न है, प्रश्नगत निर्णय
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के अवलोकन से यह विदित होता है कि वस्तुत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जारी की गयी चेक का भुगतान प्राप्त न होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी आय कर में २,०००/- रू० की छूट प्राप्त नहीं कर सका। परिवादी को हुई कथित क्षति के सन्दर्भ में अन्य कोई तथ्य प्रश्नगत निर्णय में वर्णित नहीं है। ऐसी परिस्थिति में ५,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति, ५,०००/- रू० बतौर शारीरिक एवं मानसिक क्षति दिलाया जाना हमारे विचार से न्यायसंगत नहीं होगा। मामले की परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से बतौर क्षतिपूर्ति ५,०००/- रू० के स्थान पर २,०००/- रू० एवं बतौर शारीरिक एवं मानसिक क्षति ५,०००/- रू० के स्थान पर ३,०००/- रू० दिलाया जाना न्यायसंगत होगा। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-४४२/१९९३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-१९९६ इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि बतौर क्षतिपूर्ति ५,०००/- रू० के स्थान पर २,०००/- रू० एवं बतौर शारीरिक एवं मानसिक क्षति ५,०००/- रू० के स्थान पर ३,०००/- रू० देय होगा। शेष आदेश की यथावत पुष्टि की जाती है।
अपीलीय व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.