राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-823/1995
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्या 948/1994 में पारित आदेश दिनांक 18.03.1995 के विरूद्ध)
Allahabad Bank, Lukerganj, Allahabad through its Branch Manager (Chief)
....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. Radhey Shyam Agarwal R/o 90-B, Mahajani Tola,
Allahabad-211003.
2. M/s Kalyani Steel Ltd, Mundwa, Pune.
................प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
3. माननीय श्री विजय वर्मा, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 30-11-2016
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-948/1994 राधे श्याम अग्रवाल बनाम इलाहाबाद बैंक में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 18.03.1995 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी इलाहाबाद बैंक की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है कि वह आदेश प्राप्त करने के दो माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी के रिफण्ड आर्डर
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संख्या-583564 का 3750/-रू0, भुगतान की तिथि से निर्णय की तिथि तक 12 प्रतिशत ब्याज एवं 100/-रू0 वाद व्यय सहित अदा करे।
अपीलार्थी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित आए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा ने वकालतनामा प्रस्तुत किया है, परन्तु वह अपील में सुनवाई के समय उपस्थित नहीं आ रहे हैं।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विपरीत है। अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने प्रश्नगत रिफण्ड आर्डर के भुगतान में कोई त्रुटि नहीं की है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने कल्याणी स्टील लि0 मधवा पुणे को चेक संख्या 171271 दिनांक 26.03.1991 के द्वारा 3750/-रू0 100 डिबेंचर हेतु प्रार्थना पत्र के साथ भेजा, परन्तु उनके यहॉं से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई और काफी समय बीत गया तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने उन्हें पत्र लिखा तो उन्होंने सूचित किया कि उसे डिबेंचर एलाट नहीं किया गया है
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और उसका पैसा दिनांक 16.05.1991 को ही रिफण्ड आर्डर संख्या-583564 के द्वारा भेज दिया गया है, जिसका भुगतान अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के यहॉं से दिनांक 05.07.1991 को किया गया है। तब प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के पास गया तो ज्ञात हुआ कि उपरोक्त रिफण्ड आर्डर संख्या-583564 का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने किसी अन्य व्यक्ति को कर दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने पैसे की अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से मांग की, परन्तु उसने उसे भुगतान करने से मना कर दिया। तब उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया।
अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया है और कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का ग्राहक नहीं है। उसने अपने लिखित कथन में यह भी कहा कि पैसा प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम के किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा लिया गया है और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बैंक को समय से सूचना नहीं दी गयी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, जिसमें उसने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का उपभोक्ता है और अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का यह दायित्व था कि वह रिफण्ड आर्डर का भुगतान किसी अन्य व्यक्ति को न करे। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह उल्लेख किया है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की यह जिम्मेदारी है कि वह किसी भी व्यक्ति को भुगतान करते समय
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उसके बारे में पर्याप्त सावधानी और पहचान सुनिश्चित करे। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी उल्लेख किया है कि न्यायहित में यह उचित प्रतीत होता है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक प्रत्यर्थी/परिवादी को रिफण्ड आर्डर का पैसा दे दें।
उपरोक्त निष्कर्ष एवं उल्लेख के आधर पर जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के नाम के रिफण्ड आर्डर का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को पहचान सुनिश्चित किए बिना किया जाना निश्चित रूप से अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के कर्मचारियों की लापरवाही है। अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की ओर से ऐसा दर्शित नहीं किया जा सका है कि उनकी ओर से भुगतान में पूर्ण सावधानी बरती गयी है। अत: जिला फोरम ने रिफण्ड आर्डर के 3750/-रू0 का भुगतान करने का जो आदेश अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को दिया है वह अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
जिला फोरम ने 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया है। ब्याज दर बहुत अधिक प्रतीत होती है। सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि ब्याज 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिया जाना उचित है और तदनुसार जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को संशोधित किया जाना उचित है।
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आदेश
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 18.03.1995 में निर्धारित ब्याज दर 12 प्रतिशत वार्षिक को घटाकर 06 प्रतिशत वार्षिक निश्चित की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश का शेष अंश यथावत् रहेगा।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी) (विजय वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1